सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के दोषी को रिहा किया, बेटे व दो भाइयों की हत्या के आरोप से किया बरी, ये है पूरा मामला

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अदालत का फैसला
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Delhi Court News: उच्चतम न्यायालय ने बिजनौर निवासी एक व्यक्ति की उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखी गई मौत की सजा को पलटते हुए उसे 2014 में बेटे और दो भाइयों को घर में आग लगाकर मारने के आरोपों से बरी कर दिया। न्यायालय ने कहा कि दो पीड़ितों के मृत्यु पूर्व बयान मुख्य गवाहों की गवाही से मेल नहीं खाते। आरोपों के मुताबिक आरोपी के बेटे और भाई कथित तौर पर उसकी दूसरी शादी के खिलाफ थे। शीर्ष अदालत ने मृत्युपूर्व बयान पर कानूनी सिद्धांत और इस धारणा की विश्वसनीयता पर भी विस्तार से चर्चा की कि मृत्यु शैय्या पर व्यक्ति झूठ नहीं बोलता है।

बेटे इस्लामुद्दीन, दो भाइयों इरशाद व नौशाद की मौत का मामला

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने अपने 36 पेज के फैसले में कहा, “मृत्यु पूर्व दिया गया बयान सच होने की परिकल्पना रखते हुए पूरी तरह विश्वसनीय और आत्मविश्वास जगाने वाला होना चाहिए। जहां इसकी सत्यता पर कोई संदेह है या रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से पता चलता है कि मृत्यु पूर्व दिया गया बयान सही नहीं है, इसे केवल साक्ष्य के एक टुकड़े के रूप में माना जाएगा, लेकिन यह अकेले दोषसिद्धि का आधार नहीं हो सकता।” शीर्ष अदालत ने पिछले आठ वर्षों से जेल में बंद दोषी इरफान को 5-6 अगस्त 2014 की रात उसके बेटे इस्लामुद्दीन और दो भाइयों इरशाद और नौशाद की मौत में कथित भूमिका के लिए उसकी दोषसिद्धि और मौत की सजा को रद्द करने के बाद तुरंत रिहा करने का भी आदेश दिया।

तुरंत रिहा करने का आदेश 

तीनों ने अलग-अलग तारीखों पर दिल्ली के डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दम तोड़ दिया। निचली अदालत ने इरशाद और इस्लामुद्दीन के मृत्यु पूर्व दिए गए बयानों पर भरोसा किया था, जिसमें इरफान को आग लगाने वाला व्यक्ति बताया गया था। बयानों में कोई विसंगति नहीं पाए जाने के बाद, 2018 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसले और सजा को बरकरार रखा। इरफान की अपील को स्वीकार करते हुए, शीर्ष अदालत ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर निर्भर मामले में मृत्यु पूर्व दिए गए बयानों की विश्वसनीयता पर कानूनी स्थिति और भारतीय और विदेशी दोनों तरह के फैसलों का उल्लेख किया।

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(PTI)

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