DELHI JAHANGIRPURI RIOTS : जहांगीरपुरी दंगे का सच ! दिल्ली पुलिस दंगा रोकने में नाकाम
DELHI JAHANGIRPURI RIOTS : जहांगीरपुरी दंगे का सच ! दिल्ली पुलिस दंगा रोकने में नाकाम Delhi Police failed to stop the riots
ADVERTISEMENT
DELHI JAHANGIRPURI RIOTS: दिल्ली दंगों के बाद अब फिर दिल्ली सुर्खियों में है। इस बार वजह है दिल्ली के जहांगीर पुरी इलाके में हनुमान जयंती के मौके पर हुए उपद्रव। पुलिस ने इस सिलसिले में 15 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। 100 से ज्यादा वीडियो इस सिलसिले में पुलिस को मिली है। हर एंगल से मामले की जांच की जा रही है। ये शरारती तत्व क्या बांग्लादेशी थे या फिर कोई और, तफ्तीश जारी है, लेकिन इस घटना ने पुलिस के काम करने के तरीकों पर फिर सवाल खड़ा कर दिया है। हालांकि ये गनीमत रही है कि इसमें 9 लोग जख्मी हुए, जिनमें एक पुलिस कर्मी भी शामिल है। किसी के हताहत होने की खबर नहीं है, लेकिन इस घटना ने 2020 दंगों की याद जरूर ताजा कर दी और पुलिस पर फिर सवाल खड़े कर दिए।
इसको धर्म के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। यहां ये देखने की जरूरत है कि इस तरह के आयोजन को लेकर या तो पुलिस को पूरी तैयारी करनी चाहिए थी, या फिर इस तरह के आयोजन को बड़े स्तर पर करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी।
यहां सवाल कई खड़े हुए है ...
ADVERTISEMENT
मसलन..
जब पुलिस की पूरी तैयारी ही नहीं थी तो फिर इतने बड़े स्तर पर आयोजन की अनुमति क्यों दी गई ?
ADVERTISEMENT
जब कोई इस तरह का बड़ा बवाल होता है तो आखिर हमारी पुलिस क्यों फेल हो जाती है ?
ADVERTISEMENT
क्या इस तरह के दंगों से निपटने के लिए पुलिस को खास ट्रेनिंग नहीं दी जाती ?
क्या पुलिस कर्मियों पर काम का बहुत ज्यादा प्रेशर है, इस लिहाज से वो दंगा जैसे अति संवेदनशील मामलों से निपटने में नाकाम साबित हो रहे है ? और ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे है। ये बात और है कि घटना के बाद इलाके में इतनी बड़ी तादाद में पुलिस कर्मियों को भेज दिया जाता है, लेकिन ये सब तब होता है, जब स्थिति almost control में हो जाती है।
क्या हर बार पेरामिलिट्री फोर्स को बुलाना ही समाधान है ? और वो भी देरी से या यूं कहें कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा लेट निर्णय लेने के वजह से इस तरह के निर्णयों में भी देरी हो जाती है। हालांकि जहांगीरपुरी मामले में ऐसा हुआ या नहीं, ये जांच का विषय है ? लेकिन अमूमन ऐसा देखा जाता है।
ये बात भी सच है कि जहांगीर पुरी दंगे को दिल्ली में 2020 में हुए दंगों से बड़ा दंगा नहीं बताना चाहिए और न ही इस तरह की खबरों को ज्यादा उछाला जाना चाहिए, क्योंकि इससे दो समुदायों के बीच और दूरियां बढ़ती है। लेकिन इस बात की जांच जरूर होनी चाहिए कि ये दंगा कुछ लोगों की हरकतों की वजह से हुआ या फिर इसके पीछे गहरी साजिश है ?
क्या हुआ था ?
दरअसल, शाम शनिवार को साढ़े पांच बजे के आसपास जहांगीर पुरी इलाके में उस वक्त हंगामा मच गया था, जब कुछ उपद्रवियों ने हनुमान जयंती के जुलुस में बवाल खड़ा कर दिया था। इसमें 9 लोग जख्मी हुए है। 15 से ज्यादा गिरफ्तार हुए है, लेकिन इस घटना ने फिर दूरियां बढ़ाने का काम किया।
जहांगीर पुरी मतलब पुलिस के लिए टेंशन इलाका !
जहांगीर पुरी में ज्यादातर मुस्लिम तबका रहता है जो को बांग्लादेश से ताल्लुक रखता है और कुछ रोहिंग्या भी है। उनमें ज्यादातर लोग अपराध मे शामिल रहते है। लेकिन पुलिस के पास ऐसी कोई योजना नहीं है जो वह इन लोगों से निपट सकें । इसलिए पहले भी जहांगीर पुरी में ऐसा होता आया है। CAA protest में भी यहां से पूरा सपोर्ट मिला । नॉर्थ वेस्ट और वेस्ट दिल्ली में सबसे ज्यादा बर्गलरी और स्ट्रीट रॉबरी यहीं के लोग करते हैं।
लेकिन सरकार के पास अगर कोई योजना है तो वह पूरी तरह से क्रियान्वित नहीं कर पा रही है जिसकी वजह से यहां पर अपराध थमने का नाम नहीं ले रहा है।
सब पुलिसकर्मियों को जहांगीरपुरी इलाके के बारे में पता है यहां पर समय-समय पर कार्रवाई भी होती है लेकिन फिर भी यहां से अपराध पूरी तरह से खत्म नहीं हो पा रहा है यही वजह है कि आए दिन जहांगीरपुरी सुर्खियों में रहता है
ADVERTISEMENT