Exclusive - Delhi Crime : दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर के कान पर मारा तमाचा! आरोपी बोला - मैं जांच अधिकारी बदलवा दूंगा, मुकदमा दर्ज, अदालत ने बेल दी
Delhi Police Sikandar Behl: दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर को एक आरोपी ने खींच कर तमाचा मार दिया।
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Delhi Police Sikandar Behl: दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर को एक आरोपी ने खींच कर तमाचा मार दिया। पुलिस को गुस्सा आ गया, अब इस आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है। आरोपी ने इंस्पेक्टर को थप्पड़ इसलिए मार दिया, क्योंकि वो कस्टडी के दौरान आरोपी को खाने-पीने नहीं दे रहे थे। ये और बात है कि अदालत ने आरोपी को इस मामले में बेल दे दी। आरोपी का नाम सिकंदर बहल है। ये नेता जी है। बहल के खिलाफ अभी तक तीन मुकदमें दर्ज हो चुके हैं। इस पर आरोप है फार्म हाउस कब्जाने का। ये मामला अदालत में चल रहा है। आरोपी के खिलाफ तीनों मामले मैदान गढ़ी थाने में दर्ज है।
South District Police : इंस्पेक्टर साहब का नाम है संदीप मलिक। ये मैदान गढ़ी थाने (Maidan Garhi Police Station) के ATO (Anti Terrorist Operation) इंस्पेक्टर हैं। ये एक केस (FIR NO. 91/23) की जांच कर रहे थे। केस दर्ज था सिकंदर बहल पर। सिकंदर पर आरोप है कि उसने धोखाधड़ी करके फार्म हाउस पर कब्जा कर लिया है। अदालत ने सर्च वारंट जारी किया था। मैदान गढ़ी थाने के इंस्पेक्टर संदीप मलिक अपनी टीम के साथ 15 अक्टूबर को फार्म हाउस पहुंचे थे, तभी आरोपी सिकंदर बहल के रिश्तेदार और खाने व पीने की चीजें देने लगे। इसका संदीप मलिक ने विरोध किया। इतने में सिकंदर बहल ने इंस्पेक्टर के कान पर तमाचा मार दिया। साथ साथ फार्म हाउस पर मौजूद उसके रिश्तदार ने पुलिस स्टाफ के साथ धक्का-मुक्की की और गालियां दी। इतने में संदीप मलिक ने आरोपी को काबू में किया। इंस्पेक्टर को जान से मारने की धमकी दी और जांच अधिकारी बदलवाने की बात कही।
Sikandar Behl : अदालत ने इस मामले में आरोपी को बेल दे दी। दरअसल, इस मामले की शुरुआत होती है साल 2022 से। सिकंदर बहल युवा नेता है। 1 सितंबर 2022 को सिकंदर के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने एक मुकदमा दर्ज किया। 27 जुलाई 2022 को आरोपी सिकंदर ने एक फार्म हाउस के बाहर लगे सीसीटीवी तोड़ दिए थे। इसका सीसीटीवी फुटेज भी सामने आया था।
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क्या हुआ था 27 जुलाई 2022 को?
युवा नेता सिंकदर बहल और उनके साथियों पर सीसीटीवी कैमरे तोड़ने और सुरक्षा में खतरा पैदा करने का मामला दर्ज किया गया था। सिंकदर सड्रिन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का निदेशक है। उसके खिलाफ विशाल एंक्लेव निवासी ने गैरकानूनी गतिविधियों, दंगा करने और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने के आरोप में पुलिस थाना मैदान गढ़ी में एफआईआर दर्ज कराई थी।
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शिकायतकर्ता मीना चावला और उनके पति रमेश चावला, 8-32, विशाल एन्क्लेव में रहते हैं और उनका अंसल विला, सतबारी में एक फार्म हाउस है। उन्होंने सिकंदर बहल को 1 जून 2019 से 31 मई 2022 तक के लिए ये फार्म हाउस किराये पर दिया था। आरोप है कि किराये का समझौता खत्म होने के बाद भी सिकंदर बहल खाली करने की बजाय संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा कर उपयोग कर रहा है। कानूनी मालिकों यानी मीना चावला और उसके पति रमेश चावला को अपनी ही संपत्ति में ही प्रवेश नहीं करने दे रहा है। ये तमाम आरोप लगाए थे मीना चावला और रमेश चावला ने।
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इसको लेकर बाकायदा कोर्ट में केस चला रहा है। हद तो तब हो गई, जब 27 जुलाई को उनके फार्म हाउस में कुछ लोग इकट्ठा हो गए और वहां लगे सीसीटीवी तोड़ दिए।
फार्म हाउस पर कब्जे का मामला अदालत में चल रहा है। इस दिल्ली पुलिस ने इसी साल मार्च में आरोपी के खिलाफ एक और FIR (NO. 91/23)दर्ज की। इस केस में दिल्ली पुलिस ने आरोपी को 14 अक्टूबर को गिरफ्तार और अदालत के सामने पेश किया। अदालत ने आरोपी को दो दिनों के लिए पुलिस रिमांड पर भेज दिया। दरअसल, ये मामला सिकंदर बहल पर धोखाधड़ी की धाराओं के तहत दर्ज हुआ था। 15 अक्टूबर को जब आरोपी को फार्म हाउस में ले जाया गया, वहां उसने इंस्पेक्टर के साथ बदसलूकी। हालांकि अदालत ने आरोपी को बेल दे दी।
सवाल ये उठता है कि आखिर आरोपी के खिलाफ दिल्ली पुलिस को कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं कर पा रही है?
क्या अदालत से बेल मिलने पर आरोपी का दुस्साहस नहीं बढ़ जाता कि उसके खिलाफ कोई भी केस पुलिस दर्ज करे वो किसी से डरने वाला नहीं है?
क्या इससे पुलिसवालों का Moral Down नहीं होता कि आरोपी कानून का मजाक उड़ा रहा है?
क्या मैदान गढ़ी थाने की पुलिस सिकंदर के पीछे पड़ी है या सिकंदर पुलिस के पीछे?
फार्म हाउस दरअसल है किसका ?
क्या साउथ डिस्ट्रिक पुलिस के लिए ये फार्म हाउस कब्जे का मामला गले की हड्डी बन गया है?
सवाल ये भी है कि दिल्ली पुलिस कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी के साथ-साथ इस तरह के मामलों में इतनी उलझ जाती है कि उसका ज्यादातर समय इस तरह के केसों में खराब हो जाता है और इससे सही मुकदमों के पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता है या देरी हो जाती है।
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