40 हजार का लोन इस किसान को इतना भारी पड़ा कि गांव छोड़ जंगल में बसाना पड़ा आशियाना!

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40 हजार का लोन इस किसान को इतना भारी पड़ा कि गांव छोड़ जंगल में बसाना पड़ा आशियाना!
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एक तरफ देश में आपको कई ऐसे बिजनेसमैन मिल जाएंगे जो कि बैंकों से लोन लेते हैं, और अपने बिजनेस को फर्श से अर्श तक पहुंचा देते हैं. लेकिन जब बैंक उन पर लोन वापस करने की प्रक्रिया स्टार्ट करती है तो उस दौरान ये बिजनेसमैन लोन चुकाने से बचने लगते हैं. और कई बहाने ढूंढने लगते हैं.

बैंक लगातार इन पर प्रेशर बनाती है, उसके बाद यह लोन चुकता करने में अपने आप को असमर्थ बताते हैं. जब इन बिजनेसमैन को लगने लग जाता है कि अब बैंक इन को नहीं छोड़ेगी, इनकी गिरफ्तारी कभी भी हो सकती है तो उस दौरान ये सबसे पहला तरीका अपनाते हैं. जो कि इंडिया में काफी फेमस है ये करोड़पति अरबपति बिजनेसमैन अपनी पहुंच का इस्तेमाल करते हुए देश छोड़कर भाग जाते हैं. और दूसरे देश में अपना ठिकाना बना लेते हैं.

हमारे पास कई ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं. एग्जांपल के लिए विजय माल्या, मेहुल चोकसी, नीरव मोदी जैसे बिजनेसमैन दूसरे देश में अपना घर बसा चुके हैं. लेकिन देश में ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता है. खासकर गरीब लोगों के साथ.

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आज हम क्राइम तक पर एक ऐसे ही शख्स की बात करेंगे जिसने बैंक से मात्र 40000 का लोन लिया था लेकिन वो उसे चुका ना पाया और बैंक ने फौरन उसकी जमीन को नीलाम कर दिया. जिससे यह शख्स इतना दुखी हुआ कि इसने अपना घर अपना गांव छोड़कर जंगल को अपना आशियाना बना लिया.

दरअसल हम बात कर रहे हैं. कर्नाटक के रहने वाले चंद्रशेखर की. चंद्रशेखर के पास 17 साल पहले डेढ़ एकड़ जमीन थी. इसी जमीन पर खेती कर वो अपना गुजारा करते थे. 2003 में उन्होंने कोऑपरेटिव बैंक से लोन लिया था 40000 के इस लोन को काफी कोशिशों के बाद भी वह चुका नहीं पा रहे थे. इसी वजह से बैंक ने उनकी जमीन को नीलाम कर दिया.

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बैंक के इस बिहेवियर से चंद्रशेखर इस कदर टूट गए कि उन्होंने अपना गांव छोड़कर अपनी बहन के साथ उनके ससुराल में रहने का फैसला किया. चंद्रशेखर के पास एक एम्बेसडर कार थी उसी कार से वो अपनी बहन के घर पहुंचे लेकिन कुछ समय बाद ही चंद्रशेखर की घरवालों से खटपट हो गई. जिसके बाद पहले से टूटे चंद्रशेखर का रिश्तों पर से भरोसा पूरी तरीके से खत्म हो गया. और वो जंगल में जाकर रहने लगे.

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चंद्रशेखर ने अपने पास एक कार के अलावा एक साइकिल भी रखी है जिससे वो अपना छोटा सा बिजनेस चलाते हैं. गुजारा करने के लिए उनके पत्ती और लकड़ियों का इस्तेमाल करके बास्केट बनाते हैं और उसके आसपास के गांवों में बेचते हैं, उससे जो पैसा आता है, वो उससे चावल आटा और अपनी जरूरत का सामान खरीदते हैं.

इस वजह से फारेस्ट डिपार्टमेंट को भी उनसे कोई दिक्कत नहीं है. कई बार हाथियों ने इनके घर पर अटैक भी किया, लेकिन फिर भी चंद्रशेखर ने जंगल नहीं छोड़ा.

आपको बता दें कि चंद्रशेखर ने जब अपना गांव छोड़ा तो उन्होंने एक प्रण लिया कि जब तक उनकी डेढ़ एकड़ जमीन उनको वापस नहीं मिल जाती तब तक वो वापस घर कभी नहीं लौटेंगे. चंद्रशेखर जब 17 साल पहले अपने घर से निकले थे, तो उनके पास 2 जोड़ी कपड़े, और 1 जोड़ी चप्पल थी, जिसका आज भी उनका साथ है.

जंगल में पास नहीं एक नदी है जहां वो नहाते हैं. यूं तो जीवन के सुख सुविधाएं और मोह माया से चंद्रशेखर दूर हैं और अपना जीवन जी रहे हैं. लेकिन आज भी उनके मन में ये है कि एक ना एक दिन उनकी जमीन उन्हें वापस जरूर मिल जाएगी और तब वहां खेती करेंगे.

आप चंद्रशेखर की कहानी से इतना तो समझ ही गए होंगे कि हमारे देश में गरीब के लिए लोन लेना और उसको चुकाना कितना भारी पड़ता है. और वहीं एक अमीर व्यक्ति के लिए देश में लोन लेना उसको ना चुकाना और देश छोड़कर भाग जाना कितना आसान है.

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