Umesh Pal Murder Update: उमेश पाल हत्याकांड में दूसरा एनकाउंटर. पहली गोली मारने वाला ढाई लाख का इनामी उस्मान चौधरी ढेर
Umesh Pal murder case: प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड के सिलसिले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने दूसरी कामयाबी के तौर पर उस शूटर को शूट कर दिया जिसने उमेश पाल पर पहली गोली दागी थी। प्रयागराज के कौंधियारा इलाके में हुए इस एनकाउंटर में पुलिस ने विजय क
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सबसे बड़ी खबर प्रयागराज के उमेश पाल हत्याकांड से जुड़ी हुई सामने आई। उत्तर प्रदेश की पुलिस उमेश पाल हत्याकांड से जुड़े हत्यारों को हथकड़ियों में जकड़ने में नाकाम भले ही दिख रही लेकिन उनका टिकट कटवाने में वो कतई पीछे नहीं हैं। उमेश पाल हत्यांकाड के सिलसिले में एक और एनकाउंटर का किस्सा सामने आया है जिसमें पुलिस ने उमेश पाल पर पहली गोली चलाने वाले बदमाश विजय कुमार उर्फ उस्मान चौधरी को गोलियों से भून डाला।
उमेश पाल हत्याकांड के सिलसिले में ये बीते 10 दिनों के दौरान दूसरा एनकाउंटर है। पुलिस के मुताबिक ये मुठभेड़ प्रयागराज के कौंधियारा इलाक़े में हुई। बताया जा रहा है कि विजय कुमार उर्फ उस्मान चौधरी पर पुलिस ने पहले ही 2.5 लाख रुपये का इनाम रखा था।
उमेशपाल का कत्ल 24 फरवरी को हुआ था। यानी कत्ल को 10 दिन हो गए। अब इन दस दिनों में बुल्डोजर वाली जांच को किनारे रख दें, तो यूपी पुलिस ने कत्ल की जांच कैसे की, जांच अभी कहां तक पहुंची, उमेश पाल के कातिलों का क्या हुआ, कत्ल का मकसद क्या था, इनमें से एक का भी जवाब शायद ही वो दे पाएं। यूपी पुलिस इन सवालों के जवाब तो देगी नहीं, तो चलिए सच्चाई से आप खुद ही रूबरू हो लीजिए। सच्चाई ये है कि पिछले इतने दिनों में उमेश पाल पर गोली और बमों से हमला करनेवाले एक भी शूटर पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा, यानी अब तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है। शूटरों को छोड़िए कत्ल की असली वजह यूपी पुलिस से पूछ लीजिए तो बगले झांकते हुए वजह बताने की बजाय एक नाम पर सारा किस्सा तमाम कर देते हैं। अतीक अहमद।
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अब जब यूपी पुलिस की जांच ही अभी बेनतीजा है, तो उस पर क्या बात की जाए? लिहाजा, उसी पर बात करते हैं, जो कम से कम सामने दिखाई दे रहा है। यानी बुल्डोजर। वैसे बताया तो ये गया कि ये मकान नियम कानूनों का उल्लंघन कर बनाए गए थे। लेकिन सच्चाई यही है कि इन मकानों पर चले इन बुल्डोजरों का कनेक्शन उमेश पाल मर्डर केस से जरूर है। वरना ऐसी क्या बात थी कि पीडीए को कानून तोड़ कर बनाए जानेवाले इन मकानों की याद एकाएक आ गई और ये कार्रवाई शुरू हो गई। पीडीए यानी प्रयाग राज डेवलपमेंट ऑथोरिटी ने जिस मकान को माशुकुद्दीन का बता कर जमीदोज कर डाला, उसके लिए दलील दी गई कि ये मकान एयरफोर्स की जमीन पर बना है। सवाल ये कि जब ये मकान बन रहा था, तब पीडीए कहां था? हां, ये जरूर है कि माशुकुद्दीन पर सोलह, उसके बेटे शाहजमन और शाह फतेह पर 40 और भतीजे असलूब पर दस क्रिमिनल केसेज दर्ज हैं। अब बात उस जफर अहमद खान की जिसकी कोठी को जमींदोज करने के साथ ही माफिया को मिट्टी में मिला देनेवाली कार्रवाई की शुरुआत हुई। बांदा के रहनेवाले जफर अहमद खान ने खुद के पत्रकार होने का दावा करते हुए ये कहा है कि उसका ना तो उमेश पाल के कत्ल से कोई लेना-देना है और ना ही अतीक अहमद से। यहां तक कि जफर का कहना है कि उसकी आजतक कभी अतीक अहमद या उसके घरवालों से मुलाकात तक नहीं हुई। इसके बावजूद पीडीए की ओर से पयागराज के चकिया इलाके में मौजूद उसकी कोठी को धराशाई कर दिया गया। जफर ने अपनी सफाई में एक वीडियो जारी किया है। उसने कहा है कि उसने पयागराज की वो कोठी अपनी मेहनत के पैसों से खरीदी थी और उसे अपने बहनोई और एडवोकेट खान सौलत हनीफ के जरिए शाइस्ता परवीन को किराये पर दिया था। असल में खान सौलत हनीफ ने जब कुछ दिनों के लिए जब उससे अपनी कोठी शाइस्ता को किराये पर देने की पेशकश की थी, तो बहनोई होने के नाते वो मना नहीं कर सका और शाइस्ता अपने बच्चों के साथ उस कोठी में रहने लगी। जफर के मुताबिक कोठी का किराया 20 हजार रुपये महीने का तय हुआ था। ऐसे में बगैर किसी पूर्व सूचना के सिर्फ इस बात पर कि उसकी कोठी में अतीक का परिवार रहता था, उसे गिरा दिया गया।
वैसे तो तफ्तीश के नाम पर अब तक यूपी पुलिस के हाथ खास कुछ नहीं लगा है। शूटरों का कोई अता-पता नहीं है। लेकिन पुलिस के सूत्र कुछ सुरागों का दावा जरूर कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो 24 फरवरी को उमेश पाल पर गोलियां बरसाने के बाद शूटरों ने गाड़ियां बदल-बदल कर अपने ठिकानों तक भागने का प्लान बनाया था, ताकि पुलिस के लिए उन्हें लोकेट करना मुश्किल हो जाए।
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सूत्रों के मुताबिक शूटरों ने हर जिले में गाड़ी बदली, ताकि अगर एक जिले की पुलिस को उनके बारे में खबर भी हो जाए, तो जब तक वो दूसरे जिले में पहुंचे, तब तक गाड़ी बदल लिए जाने की वजह से उनकी पहचान मुमकिन ना हो। सिर्फ इसी मॉडस ऑपरेंडी को देख कर ये समझा जा सकता है कि उमेश पाल के कत्ल की तैयारी कितनी खतरनाक थी। मामले की तफ्तीश में जुटी प्रयागराज पुलिस और एसटीएफ को शूटरों के मूवमेंट के बारे में कई अहम इनपुट मिले हैं। पता चला है कि वारदात को अंजाम देने बाद तय प्लान के मुताबिक शूटरों ने जहां अपनी सफेद रंग की केटा कार पयागराज में ही छोड़ दी थी, वहीं उन्हें पिक करने के लिए लखनऊ से दो फॉर्च्यूनर गाडियां भेजी गई थीं। जिनमें बैठ कर शूटर जिले से बाहर निकल गए।
छानबीन में पुलिस को उमेश पाल हत्याकांड से जुड़ी एक और चौंकानेवाली बात पता चली है। पुलिस सूत्रों की माने तो उमेश का कत्ल बेशक 24 फरवरी को हुआ, लेकिन इससे पहले तीन बार उमेश की हत्या की कोशिश की गई थी। लेकिन अलग-अलग वजहों से वो मुमकिन नहीं हो सका। सूत्रों के मुताबिक फरवरी में ही 14, 18 और 21 तारीख को उमेश पर हमले के लिए उमेश के घर के पास ही घात लगाया गया था। लेकिन वो बच निकला। पयागराज पुलिस ने कुछ संदिग्ध मोबाइल नंबर और सीसीटीवी फुटेज की स्कैनिंग के बाद इस बात का खुलासा किया है। पुलिस का कहना कि शूटर पहले कम से कम तीन बार उसके घर तक पहुंचे थे।
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उमेश पाल के कत्ल की साजिश कितनी शातिराना तरीके से बुनी गई, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वारदात को अंजाम देने के लिए हर शूटर का रोल पहले से ही तय था। मसलन कौन गाड़ी से जाएगा, कोई हवाई फायर करेगा, कौन कवर फायर देगा, कौन बम चलाएगा और कौन पहले ही किसी खरीददार के भेष में उमेश के घर के बाहर दुकान में मौजूद रहेगा। इतना ही नहीं प्लानिंग किसी भी सूरत में लीक ना हो जाए, इस बात का ख्याल रखते हुए मास्टरमाइंड ने ना सिर्फ हर किसी को उसके हिस्से का काम बांट दिया था, बल्कि शूटआउट के चंद मिनट पहले तक शूटरों को इस वारदात में शामिल होनेवाले दूसरे शूटरों के बारे में ज्यादा जानकारी भी नहीं दी गई थी।
सीसीटीवी कैमरों की तस्वीरों को देखकर भी साफ है कि सारे शूटर एक साथ उमेश पाल या उसके गनर पर नहीं टूट पड़ते हैं, बल्कि कोई राइफल लेकर हवाई फायर करता है, कोई घूम-घूम कर बम फेंकता है, कोई अचानक ही उमेश पाल पर हमला करता है, कोई उसे कवर फायर देता है, तो कोई उमेश पाल किसी भी सूरत में बच पाए, इस बात का ख्याल रखते हुए गोली लगने के बावजूद पीछा कर उस पर और गोलियां दागता है।
पुलिस की माने तो उमेश के घर के पडोस में मौजूद इलेक्टॉनिक की दुकान में गाहक बन कर घात लगानेवाले मोहम्मद गुलाम ने इस शूटआउट में एक अहम कडी का रोल अदा किया। ये मोहम्मद गुलाम ही था, जिसने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के मुस्लिम हॉस्टल में रहनेवाले वकील सदाकत से संबंध साधा था और शूटआउट की प्लानिंग के लिए हॉस्टल के रूम में बैठक करवाने की बात कही थी। बदले में उसने सदाकत को अतीक से जुडे तमाम जमीन विवाद के मामलों की वकालत दिलाने का भरोसा दिया था। गुलाम ने ही उसे अतीक अहमद के बेटे अली से भी मिलवाया था। जिसके बाद उसकी अली से दोस्ती हो गई थी।
फिलहाल इस वारदात को अंजाम देने के बाद मोहम्मद गुलाम तो फरार है, लेकिन उसकी करतूत की कीमत अब उसके भाई राहिल हसन को चुकानी पडी है। राहिल हसन बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा का महानगर अध्यक्ष था, लेकिन इस वारदात में उसके भाई गुलाम का नाम सामने आने के बाद बीजेपी ने अब राहिल हसन को पद से हटा दिया है। दूसरी ओर पयागराज जेल में बंद अली अहमद की जमानत भी हाई कोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दी। उसने कत्ल की कोशिश और 5 करोड की रंगदारी मांगने के एक मामले में जमानत की अर्जी दी थी। हालांकि कोर्ट ने कहा कि उमेश पाल हत्याकांड में अली अहमद का नाम आया है, लिहाजा उसे जमानत नहीं दी जा सकती है। अगर जमानत दी गई तो गवाहों और समाज के लिए यह सुरक्षित नहीं होगा।
वैसे तो उमेश पाल के कत्ल की वारदात के बाद अतीक का पूरा का पूरा गैंग ही पुलिस की रडार पर है, लेकिन सीसीटीवी कैमरे में नजर आ रहा ये गोल-मटोल सा बमबाज गुड्डू मुस्लिम अचानक से सुर्खियों में आ गया है। अतीक का ये पुराना गुर्गा गुड्डू मुस्लिम कभी यूपी के धनंजय सिंह, अभय सिंह और मुख्तार अंसारी जैसे दूसरे बाहुबलियों के लिए भी काम कर चुका है।
गुड्डू के बारे में बताया जाता है कि वो कत्ल और जानलेवा हमलों की वारदातों में तो शामिल रहा है, लेकिन वो गोली नहीं, बल्कि बम चलाने पर ज्यादा यकीन रखता है। वो खुद ही बम बनाता है और चलाता भी है। कुछ इसी वजह से उसका नाम गुड्डू बमबाज पड़ गया। गु्ड्डू का लखनऊ से भी पुराना नाता रहा है। लखनऊ के ला मार्टिनियर के स्पोर्ट्स टीचर पीटर गोम्स के कत्ल के मामले में भी गुड्डू मुस्लिम का नाम सामने आया था। इसी तरह लखनऊ के नाके में बम मार कर हुए एक कत्ल के सिलसिले में भी गुड्डू को गिरफ्तार कर जेल भेज गया था। फिलहाल पिछले करीब दस सालों से ज्यादा वक्त से वो अतीक अहमद के लिए ही काम कर रहा था और अपने आका के लिए वो रेलवे के स्कैप का, प्रॉपर्टी डीलिंग और ठेके मैनेज करने का काम देख रहा था।
उधर, इस मामले में अतीक की बीवी शाइस्ता परवीन ने अपने दो बेटों को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में हैबियस कोरपस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की है। इस अर्जी में बताया गया है कि उनके दो बेटे अजहान अहमद और अबान अहमद पिछले 24 फरवरी से ही गैर कानूनी पुलिस की गिरफ्त में जिन्हें रिहा किया जाना चाहिए। इसी तरह खालिद अजीम की पत्नी जैनब और अतीक अहमद की बहन आयशा नूरी और उसकी बेटी को भी पुलिस ने अवैध तरीके से गिरफ्त में ले रखा है, जिन्हें आजाद किया जाना चाहिए। अतीक की पत्नी शाइस्ता की ओर से वकील रवींद्र शर्मा, खान सौलत हनीप और शादाब अली ने इस मामले पर तुरंत सुनवाई की गुजारिश की, लेेकिन हाई कोर्ट ने होली के बाद ही इन पर सुनवाई करने की बात कही।
लेकिन सोमवार की सुबह सुबह सामने आई दूसरे एनकाउंटर की कहानी से अब एक बार फिर प्रयागराज के उमेर पाल हत्याकांड में एक नया और सबसे ताज़ा मोड़ सामने आया है...क्योंकि अब ये कहानी कुछ और बलखाती हुई आगे बढ़ेगी...कुछ किस्सों को नए सिलसिले शुरू होंगे..
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