Russia-Ukraine War One Year: एक साल की जंग में यूक्रेन के 81 लाख लोग देश छोड़कर चले गए, कई शहर तबाह हो गए, 7000 से ज़्यादा बेकसूर मारे गए

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पिछले एक साल से जारी रूस और यूक्रेन की जंग के खत्म होने के आसार फिलहाल नहीं दिख रहे
पिछले एक साल से जारी रूस और यूक्रेन की जंग के खत्म होने के आसार फिलहाल नहीं दिख रहे
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Russia-Ukraine War One Year: रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध को अब एक साल पूरा हो चुका है। पिछली साल यानी 24 फरवरी 2022 की सुबह रूसी सेना की मिसाइलों ने गहरी नींद में सोए हुए यूक्रेन के शहरों को तबाह और बर्बाद करना शुरू कर दिया था। और जिस वक़्त युद्ध छिड़ा पूरी दुनिया में ये बात होने लगी थी कि ये जंग ज़्यादा दिनों तक नहीं रहेगी, क्योंकि दुनिया की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी फौज के सामने यूक्रेन की फौज कहां टिक पाएगी। लेकिन ये बात एक मिथ साबित हुई। और सिर्फ हफ्ते भर तक जंग होने की बात देखते ही देखते एक साल तक खिंच गई। और इससे भी ज़्यादा चौंकानें वाला पहलू ये है कि यूक्रेन की सेना हार मानने को राजी नहीं, जबकि रूसी सेना को भी दूर दूर तक जीत नज़र नहीं आ रही है। 

सवाल उठता है कि आखिर इस जंग में रूस ने क्या पाया और यूक्रेन ने क्या खोया...साथ ही साथ इस जंग की वजह से दुनिया पर क्या असर पड़ा। इस पूरे वाकये पर गौर करने से पहले ज़रा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उस भाषण पर गौर करने की भी ज़रूरत है जो जंग के एक साल होने से दो दिन पहले उन्होंने अपने देश की जनता को संबोधित करने के साथ साथ दुनिया के सामने अपना रुख साफ किया। 

रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पूरे 105 मिनट तक भाषण दिया। और उस भाषण में पुतिन किसी जख़्मी शेर की तरह दहाड़ते और पश्चिमी देशों खासतौर पर अमेरिका और नाटो देशों पर हमला करते ही नज़र आए। अपने भाषण में पुतिन बार बार यही कहते सुनाई दिए कि वो तो युद्ध खत्म करना चाहते हैं लेकिन पश्चिमी देश और खासतौर पर अमेरिका ऐसा कतई नहीं चाहते। ऐसे में पुतिन के भाषण का लब्बोलुआब यही निकलता है कि इस युद्ध को खत्म करने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से पश्चिमी देशों पर आ कर टिक गई है। हालांकि पुतिन ने ये भाषण रूस की संसद में दिया, जिसे स्टेट ऑफ द नेशन एड्रेस (State of the Nation Address) कहा जाता है। 

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सबसे चौंकानें वाला पहलू ये है कि व्लादिमीर पुतिन 19 साल से रूस के राष्ट्रपति हैं लेकिन इस पूरे कार्यकाल के दौरान सिर्फ 18 बार ही उन्होंने अपने देश को लोगों को संबोधित किया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने 105 मिनट के भाषण में 53 मिनट तक पश्चिमी देशों की नीतियों की आलोचना की। और इस दौरान उन्होंने खास तौर पर इराक, सीरिया और लीबिया जैसे देशों का ज़िक्र किया। आंकड़ों की जुबानी अब ये जानने की कोशिश करते हैं कि बीते एक साल के दौरान ये युद्ध कहां तक पहुंचा और इस जंग में रूस और यूक्रेन की क्या स्थिति बनी। 
इस युद्ध की शुरुआत 24 फरवरी 2022 को हुई थी और इससे एक दिन पहले यानी 23 फरवरी को यूक्रेन (Ukraine) के लगभग सभी इलाकों पर वहां की सरकार का नियंत्रण था और इनमें लुहांस्क ( Luhansk) और दोनियस्क (Donetsk)..जैसे इलाकों को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दे दी थी। लेकिन ये इलाके पूरी तरह रूस के नियंत्रण में नहीं थे। 

जंग के दौरान किस तरह से यूक्रेन के नक्शे में आई तब्दीली


लेकिन युद्ध शुरू होने के एक महीने बाद यानी 23 मार्च 2022 को यूक्रेन का नक्शा काफी हद तक बदला गया। और यूक्रेन के जितने भी इलाके, रूस की सीमा से लगते हैं, उन सब पर रूसी सेना ने कब्जा कर लिया। और जो इलाके Black Sea से लगे हुए हैं, उन पर भी पुतिन की सेना का नियंत्रण हो गया। लेकिन अब आप इसी महीने की 19 तारीख़ का नक्शा देखिए। जिसमें देखा जा सकता है कि पिछले कुछ महीनों में रूस की सेना को पीछे हटना पड़ा है। लेकिन कुछ ऐसे भी इलाक़े थे जहां रूस का नियंत्रण है। मगर कुछ ऐसे इलाक़े भी थे जिन्हें यूक्रेन की सेना ने वापस छीन लिया। अब हालात ये हैं कि एक साल बाद यूक्रेन का सिर्फ 17 प्रतिशत क्षेत्र ही रूस के कब्जे में है। यानी पिछले एक साल रूस कुछ खास हासिल नहीं कर सका।  

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इसके अलावा इस युद्ध की वजह से पिछले एक साल में यूक्रेन के 81 लाख लोग अपना देश छोड़ कर पलायन कर चुके हैं... जिनमें 53 लाख लोगों ने पश्चिमी देशों में शरण ली है और 28 लाख लोगों ने रूस में शरण ली है। 
पश्चिमी देशों में भी ज्यादातर लोगों ने शरण लेने के लिए पोलैंड (Poland) को चुना है, जो यूक्रेन का पड़ोसी देश है। और पोलैंड को ऐसी उम्मीद है कि, जब ये युद्ध समाप्त हो जाएगा, तब ये लोग वापस वहां से यूक्रेन लौट जाएंगे। इसके अलावा पिछले एक साल में यूक्रेन के 7 हज़ार नागरिक इस युद्ध में अपनी जान गंवा चुके हैं। और इस युद्ध ने बड़े बड़े देशों में महंगाई का ज़बरदस्त विस्फोट किया है। लेकिन उससे भी बड़ी बात ये है कि.. जब इस युद्ध के दौरान पूरे एक साल पश्चिमी देशों में महंगाई 10 प्रतिशत या उससे ज्यादा थी। 

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