बेगुनाह हूं पर मौत की सजा चाहिये- जज के सामने क्यों कहा एक कातिल ने? कत्ल की ऐसी कहानी जो दिमाग हिला देगी
कत्ल का तरीका तो हैरतअंगेज था ही संतोष भूकन ने भरी अदालत में जो कहा उसे सुनकर हर कोई हैरान रह गया। संतोष ने जज से कहा कि- "मैं दोषी ठहराए जाने के फैसले को स्वीकार नहीं करता। मैं निर्दोष हूं और मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं है। फिर भी मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि मुझे मौत की सजा दी जाए"।
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Pune: क्या कभी आपने किसी ऐसे मुलजिम के बारे में सुना है जो दावा करता हो कि उसने कत्ल नहीं किया, फिर भी अपने लिये मौत की सजा मांगी हो? जी हां, अब से चौदह साल पहले, यानी 2010 में पुणे पुलिस ने एक 33 साल के शख्स को अपनी प्रेमिका की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था। मगर बेहद हैरतअंगेज ढंग से अदालत में पेश किये जाने पर आरोपी ने जहां एक ओर बेगुनाही का दावा किया वहीं दूसरी ओर सजा-ए-मौत की मांग की।
शादी शुदा से इश्क बना जान की मुसीबत
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, पुणे शहर के लोहेगांव का रहने वाला संतोष भूकन, जो पेशे से एक आर्किटेक्ट था, 2008 से 32 साल की शादी शुदा महिला वैशाली कदम के साथ रिलेशनशिप में था। वैशाली, नारायण पेठ में संतोष की कंपनी में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर काम करती थी। वैशाली के पति को जब उसके एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के बारे में पता चला तो वो उससे अलग हो गया। इस बीच, वैशाली ने भी संतोष की कंपनी में अपनी नौकरी छोड़ दी, लेकिन दोनों के बीच मेल जोल बना रहा। वक्त गुजरता गया और संतोष और वैशाली का रिश्ता गाढ़ा होता गया। इस हद तक, कि वैशाली संतोष को अपनी बीवी को छोड़ कर उससे शादी करने के लिए मजबूर करने लगी। रोज रोज की बहस और झगड़ों से तंग आकर आखिरकार संतोष ने उससे हमेशा के लिये छुटकारा पाने का फैसला किया। इसी के बाद संतोष ने वैशाली का मर्डर करने की ऐसी प्लानिंग की कि महाराष्ट्र पुलिस तो क्या एफबीआई भी आ जाए तो उन्हें भी उसके खिलाफ कोई सबूत न मिले। इसके लिये वैशाली का कत्ल करने से दो महीने पहले, संतोष ने पुणे शहर से लगभग 70 किलोमीटर दूर पुरंदर तालुका में कम आबादी वाले पोंधा गांव में एक छोटी सी जमीन खरीदी और उस पर एक फार्महाउस बनाना शुरू कर दिया।
'दृश्यम' बनने से पहले ही लिखी फिल्म की स्क्रिप्ट
फार्म हाउस पूरी तरह से तैयार होने से पहले संतोष ने प्लानिंग को अंजाम देने से एक हफ्ते पहले, श्रमिकों से बाथरूम को छोड़कर सभी कमरों में टाइलें बिछाने के लिए कहा। पुलिस के मुताबिक, 10 अगस्त 2010 को वो वैशाली को इसी फार्महाउस में ले गया। फिर संतोष ने उसके ड्रिंक में नींद की गोलियां मिला दीं और रस्सी से उसका गला घोंट दिया। इसके बाद उसने वैशाली की लाश को बाथरूम के लिए बने गड्ढे में दफन कर दिया और फिर उसे बजरी और सीमेंट से ढक दिया। बिलकुल वैसे ही जैसा 'दृश्यम' फिल्म में इस घटना के पांच साल बाद दिखाया गया था।दिलचस्प बात ये थी कि संतोष ने वैशाली के घरवालों को गुमराह करने के लिये अपने एक पूर्व कर्मचारी को वैशाली का फोन दिया और ये मैसेज उसके घरवालों को भेजने को कहा कि उसे एचआईवी यानी एड्स हो गया है और वो सबसे दूर रहना चाहती है लिहाजा कोई भी उसकी तलाश न करे। कर्मचारी ने संतोष के इशारे पर ऐसा ही किया और इसके बाद वैशाली का मोबाइल फोन स्विच ऑफ कर सिम कार्ड तोड़ कर फेंक दिया। उधर इस मैसेज के डिलीवर होने और फोन बंद हो जाने से वैशाली के घरवाले परेशान हो गये। जब वैशाली चार दिनों के बाद भी वापस नहीं लौटी, तो उसके परिवार ने विमानतल पुलिस स्टेशन में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी।
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वैशाली के सिम ने बताया कातिल का पता
दरअसल संतोष ने वैशाली से बात करने के लिए वैशाली के ही नाम पर दो सिम कार्ड खरीदे थे। एक वैशाली के फोन का वो सिम जिससे संतोष के कर्मचारी ने महाबलेश्वर जाकर उसके परिवार को मैसेज भेजा था और दूसरा वो जो संतोष के मोबाइल में अब भी एक्टिव था। वैशाली के फोन वाला सिम तो संतोष ने उसके कत्ल के बाद परिवार को मेसेज भेज तोड़ कर फेंक दिया था। लेकिन संतोष के मोबाइल में दूसरा सिम एक्टिव था।इस सिम से जुड़े नंबर और वैशाली के नंबर के बीच सैकड़ों बार बात हुई थी। पुलिस ने जब इस सिम की टावर लोकेशन का पता किया तो मालूम हुआ कि वैशाली की मौत के बाद ये सिम पुणे, चाकन और फिर धुले में एक्टिव था। इन सभी जगहों पर संतोष के दोस्त या रिश्तेदार रहते थे। और उसका वहां अक्सर आना जाना रहता था। ये जानकारी वैशाली की गुमशुदगी की जांच कर रही पुलिस के लिये एक बड़ी कामयाबी थी। अब उसने संतोष को फोकस में रख कर जांच आगे बढ़ाई और उस पर नजर रखना भी शुरू कर दिया।
मोबाइल महाबलेश्वर भेज पुलिस को किया गुमराह
आखिरकार संतोष भूकन के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिल जाने के बाद सहायक पुलिस निरीक्षक यशवंत निकम की टीम ने उन्हें 26 अगस्त 2010 को गिरफ्तार कर लिया। पुणे पुलिस ने बताया कि उनकी जांच को गुमराह करने के लिए, भुकन ने अपना मोबाइल फोन एक पूर्व कर्मचारी के पास रखा ताकि यह दिखाया जा सके कि वह भोसरी क्षेत्र में था। हत्या के दिन, उसने कथित तौर पर अपने उसी कर्मचारी को अगले दिन कदम का मोबाइल फोन पुणे से 120 किमी दूर एक हिल स्टेशन महाबलेश्वर ले जाने के लिए कहा ताकि लोकेशन के हिसाब से उसकी बनाई कहानी से पुलिस गुमराह हो जाए। इधर शक की बिनाह पर पकड़े जाने के बाद संतोष भूकन पुलिस को पोंधे गांव के अपने फार्महाउस पर ले गया जहां उसने वैशाली की लाश को बाथरूम के फर्श के नीचे दफनाया था। गवाहों की मौजूदगी में शव को मौके से निकाला गया।
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"मैं निर्दोष हूं पर मुझे सजा-ए-मौत चाहिये"
अब केस का सबसे दिलचस्प पहलू। पुणे की अदालत में जब मुकदमा चला तो एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर रमेश घोरपड़े ने 35 गवाहों की जांच की और चूंकि सभी की गवाही संतोष भूकन के कातिल होने की ओर इशारा कर रही थी, आरोपी के लिए अधिकतम सजा की मांग की। मगर, संतोष भूकन अपने दावे पर अटल था। उसने वैशाली के कत्ल के आरोप को मानने से साफ इनकार कर दिया। मई 2013 में, एडिशनल सेशन्स जज एसपी तावड़े की अदालत ने संतोष को दोषी ठहरा दिया लेकिन सजा सुनाने से पहले तय प्रक्रिया के मुताबिक संतोष को अपनी बात रखने का मौका दिया। पर संतोष भूकन ने भरी अदालत में जो कहा उसे सुनकर हर कोई हैरान रह गया। संतोष ने जज से कहा कि- "मैं दोषी ठहराए जाने के फैसले को स्वीकार नहीं करता। मैं निर्दोष हूं और मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं है। फिर भी मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि मुझे मौत की सजा दी जाए"। जब जज ने संतोष से पूछा कि खुद को निर्दोष मानते हुए भी तुम फांसी की मांग क्यों कर रहे हो तो संतोष ने कहा- "मृत्युदंड की अपील पर हाईकोर्ट आजीवन कारावास के मामलों के मुकाबले जल्दी सुनवाई करता है। अगर आप मुझे मौत की सजा देते हैं, तो मेरा मामला छह महीने के भीतर ही हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए आ जाएगा और फिर मैं वहां अपनी बेगुनाही साबित करूंगा।" जज तावड़े संतोष भूकन की ये बात सुनकर चकित रह गए। हालांकि दो साल बाद 2015 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे अदालत की ओर से संतोष भूकन को दी गई उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा। अपना फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सबूतों और गवाहों के मद्देनजर इस बात में कोई शक नहीं है कि ये कत्ल यकीनन संतोष भूकन ने ही किया है।
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