देश की पहली लेडी जासूस जिसने 'नेता जी' को बचाने के लिए ली थी पुलिस अफसर पति की जान

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Shams Ki Zubani: जासूस (SPY) या जासूसी शब्द हमेशा से लोगों को आकर्षित करता रहा है। ये शब्द ऐसा तिलस्म (Wonder) पैदा करता है जिसे सुनकर कोई भी अपने ख्वाबों और ख्यालों में न जाने किस किस तरह के ताने बाने तक बुन लेता है। और अगर यही किस्सा किसी महिला (Female) से जुड़ा हुआ हो तो ये और भी ज़्यादा आकर्षित (Attraction) हो जाता है। क्राइम की कहानी में आज एक ऐसी महिला की कहानी है जो किसी न किसी शक्ल में प्रेरणा भी देती है।

उस महिला की ज़िंदगी की शुरुआत अपने आप में हैरतअंगेज है, लेकिन उस कहानी का अंत बेहद चौंकानें वाला है और अफसोसनाक भी। मगर ये कहानी बहुत सीख भी देती है। जिससे ये भी पता चलता है कि जिंदगी बस जीने का नाम नहीं बल्कि इंसान का जीवन किसी मिशन का नाम है। जो न जाने कितने अनजाने रास्तों से होता हुआ रोमांच के एवरेस्ट तक जा पहुँचता है। ये कहानी हमें ये भी सिखाती है कि मिशन कैसा भी हो, कितनी ही मुश्किलों पेश आएं लेकिन अगर समझौता नहीं करते तो आने वाली पीढ़ी आपको इज्जत के साथ आपको याद करती है।

Shams Ki Zubani: ये कहानी उस महिला की है जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी एक मिशन के लिए कुर्बान कर दी। और एक गुमनामी मौत ने कैसे उसे वक़्त के साथ पूरी तरह से भुला दिया। सबसे हैरतअंगेज पहलू यही है कि इस महिला ने अपने काम को एक मिशन की तरह पूरा तो किया लेकिन कभी सरकार या सिस्टम से कभी कुछ नहीं मांगा। अलबत्ता जब भी कभी सरकार की तरफ से कुछ उसको देने की कोशिश भी हुई तो उसने ये कहकर उसे ठुकरा दिया कि उसे ये भीख नहीं चाहिए। क्योंकि उसने जो किया उसे अपना फर्ज समझ कर किया। न तो कभी पैसे या पद का लालच की खातिर उस मिशन को अपनाया।

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ये कहानी आज़ाद हिन्दुस्तान की पहली महिला जासूस की है। नीरा आर्या। यही नाम था उस महिला जासूस का जिसे हिन्दुस्तान के खुफिया महकमें में नीरा नागिनी के नाम से पहचाना जाता था।

Shams Ki Zubani: उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले में पैदा हुई थी नीरा आर्या। ये साल था 1902। एक अच्छे खासे खाते पीते परिवार में पैदा हुई आर्या को शुरू से ही खतरों से खेलने का शौक था। उनके पिता सेठ छज्जूमल का बागपत के इलाके के साथ साथ उत्तर प्रदेश में भी बड़ा नाम था। सेठ छज्जूमल का कारोबार देश भर में फैला हुआ था। इसलिए नीरा को बचपन से ही देश के कई हिस्सों में जाने और हर तरह के लोगों के साथ मेल जोल करने का मौका भी मिला।

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उस वक्त सेठ छज्जूमल का ज़्यादातर कारोबार उस वक्त के कलकत्ता यानी आज के कोलकाता में था। ये वही दौर था जब मुल्क में अंग्रेजों की हुकूमत थी और सेठ छज्जूमल ज्यादातर कारोबार के सिलसिले में अंग्रेजों के साथ की उठना बैठना था। मगर इसके ठीक उलट सेठ छज्जूमल के परिवार के दोनों बच्चे यानी नीरा आर्या और उनका भाई शुरू से ही इस बात के कायल थे ये देश हमारा है और अंग्रेज क्यों इस मुल्क पर हुकूमत कर रहे हैं।

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Shams Ki Zubani: बहरहाल नीरा आर्या अपने परिवार के साथ कोलकाता गईं और काफी वक़्त उन्होंने वहीं बिताया। उनकी पढ़ाई लिखाई ज़्यादातर कोलकाता में ही हुई। पढ़ते पढ़ते नीरा उस वक़्त के बदलते भारत और भारत के आज़ादी के परवानों के बारे में भी अखबारों और पत्रिकाओं में पढ़ने लगी, तो उसके दिल की वो भावना और बलवती होती चली गई कि आखिर ये अंग्रेज उसके मुल्क पर राज क्यों कर रहे हैं।

पढ़ाई लिखाई के दौरान ही नीरा ने कोलकाता में ही सुभाष चंद्र बोस का नाम सुना। क्योंकि नेता जी का नाम आजादी की लड़ाई लड़ने वाले आजादी के परवानों की फेहरिस्त में काफी इज्जत से लिया जाता था लिहाजा उसका बहुत असर नीरा पर भी पड़ा। नेता जी के अलावा नीरा ने महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ साथ और भी कई स्वतंत्रता सेनानिओं के बारे में पढ़ा।

सुभाष चंद्र बोस के विचारों से नीरा आर्या बहुत ज़्यादा प्रभावित थीं। वो भी इस विचारधारा को सही मानती थी कि बिना लड़ाई लड़े देश को आज़ादी नहीं मिल सकती। हालांकि गांधी जी की विचारधारा इससे काफी अलग थी। इसी बीच सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया। और नीरा आर्या भी इस आजाद हिन्द फौज शामिल होने को उतावली हो गईं। और इसी सिलसिले में नीरा आर्या ने सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात की और अपनी विचार धारा के बारे में उनको बताया। सुभाष चंद्र बोस उस सयानी हो चुकी नीरा आर्या की सोच और समझ के कायल हो गए।

Shams Ki Zubani: इधर नीरा आर्या सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज में शामिल होने का इरादा करके उसकी तैयारी में लगी हुईं थी उधर उनके पिता सेठ छज्जूमल ने अंग्रेजों की पुलिस के एक सीआईडी अफसर के साथ उनका रिश्ता तय कर दिया। उस सीआईडी अफसर का नाम था श्रीकांत जयरंजनदास।

नीरा आर्या के सामने अब गजब की दुविधा थी। वो अंग्रेज हुकूमत को नापसंद करती थीं लेकिन उनके जीवन की एक डोर अंग्रेजों के ही मुलाजिम एक पुलिस अफसर के साथ होने जा रहा था। यानी एक ऐसा अफसर जो अंग्रेजों के लिए उन लोगों की खुफियागीरी करे जो देशकी आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ काम कर रहे थे। चूंकि नीरा अपने पिता का ज़्यादा विरोध नहीं कर सकीं। और सेठ छज्जूमल ने भी अपनी बेटी को भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपनी समझ के हिसाब से एक अच्छा पढ़ालिखा रसूखदार परिवार को देखते हुए श्रीकांत जयरंजनदास के साथ नीरा का ब्याह कर दिया।

शादी के बाद नीरा अपनी ससुराल चली गईं। और अपने घर के ही कामों में व्यस्त हो गईं। मगर उन्होंने न तो अपनी विचारधारा बदली और न ही उस वक़्त की तमाम आजादी के परवानों से जुड़ी खबरों के प्रति अपनी रुचि ही छोड़ी। वो घर के साथ साथ ऐसे कार्यक्रमों का भी हिस्सा बनती रहीं जो कहीं न कहीं भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए किए जा रहे थे।

Shams Ki Zubani: नीरा की सामाजिक गतिविधियों की वजह से उनके पति श्रीकांत जयरंजनदास तो शक हुआ कि हो न हो उनकी पत्नी का स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कोई न कोई संपर्क ज़रूर है।

इसी बीच नीरा आर्या घरवालों की मर्जी के खिलाफ सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज में शामिल हो जाती हैं। सबसे दिलचस्प यही है कि सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज में एक जासूसी का विंग भी था। और इस विंग की कमान संभाल रहे थे पवित्र मोहन रॉय। पवित्र मोहन रॉय की ही जिम्मेदारी थी कि फौज में जासूसों की भर्ती से लेकर उन्हें ट्रेनिंग दिलाने और फिर उनसे जासूसी करवाना।

असल में पवित्र मोहन रॉय ने ये महसूस किया था कि उस वक़्त अंग्रेज अफसरों को अपने घरों और दफ्तरों में काम करने के लिए महिलाओं की ज़रूरत महसूस होती थी। लिहाजा पवित्र मोहन रॉय ने ये आइडिया निकाला कि क्यों न अंग्रेज अफसरों की हरकतों पर नज़र रखने के लिए ऐसी औरतों की भर्ती अपने जासूसी महकमें में कर ली जाए जिन्हें घरेलू नौकर बनाकर अंग्रेज अफसरों के घरों में भेजा जा सके और उनकी खुफिया खबरों को हासिल किया जाए।

तो पवित्र मोहन रॉय ने अपने महकमें में शामिल कई महिला जासूसों को अंग्रेज अफसरों के घरों में काम करने वाली घरेलू नौकरानी बनाकर तैनात कर दिया। ये महिला जासूस देखने में घरेलू नौकर होती लेकिन असल में होती थीं पवित्र मोहन रॉय के महकमें की जासूस। जो न सिर्फ अच्छी अंग्रेजी समझ सकती थीं बल्कि कोडवर्ड में की गई बातों को मतलब भी निकालने में माहिर थीं। अब देखने में घरेलू नौकरानी अंग्रेज अफसरों के घरों में काम करती और उनकी बातें भी सुनती और उन बातों को इकट्ठा करके पवित्र मोहन रॉय के एजेंटों तक पहुँचा भी देती।

Shams Ki Zubani: नीरा आर्या जब आजाद हिन्द फौज में शामिल हुईं तो पवित्र मोहन रॉय ने उन्हें भी इसी मिशन का हिस्सा बना दिया। अपनी जासूसी के दिनों में नीरा आर्या ने अंग्रेज अफसरों के कई बड़े ऑपरेशन की जानकारी अपने महकमें तक पहुँचाई। जिससे कई मौकों पर कई क्रांतिकारियों की जान को बचाया जा सका। नीरा आर्या को काम से न सिर्फ पवित्र मोहन रॉय बल्कि खुद सुभाष चंद्र बोस भी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने नीरा आर्या को देश की पहली महिला जासूस का खिताब दिया।

उधर नीरा आर्या पर शक की वजह से उनके पति श्रीकांत जयरंजनदास ने पुलिस महकमें की बजाए खुद अपनी पत्नी की सीआईडी गीरी करनी शुरू कर दी। कुछही दिनों में श्रीकांत जयरंजनदास को ये पता चल गया कि नीरा आर्या आज़ाद हिन्द फौज बनाने वाले सुभाष चंद्र बोस के बेहद करीब है।

इसी बीच अपनी पत्नी का पीछा करते हुए श्रीकांत जयरंजनदास उस ठिकाने पर पहुँच जाता है जहां सुभाष चंद्र बोस अपने साथियों के साथ अक्सर गुप्त बैठकें किया करते थे।

नेताजी को सामने देखकर सीआईडी अफसर श्रीकांत जयरंजन दास ने निशाना साधा और गोली चला दी। इत्तेफाक से गोली नेता जी को नहीं लगी। अपने हीरो पर गोली चलती देख नीरा आर्या बीच में कूद पड़ी। वो एक ट्रेंड जासूस भी थी लिहाजा हथियार चलाने और हथियारों से बचना भी उसे अच्छी तरह आता था।

Shams Ki Zubani: नीरा को बीच में आता देख श्रीकांत जयरंजन दास को ये गुमान हो गया कि नीरा चूंकि उसकी पत्नी है लिहाजा वो उनके और सुभाष चंद्र बोस के बीच में नहीं आएगी। इसी गुमान नें श्रीकांत दोबारा निशाना नेताजी की तरफ साधता है लेकिन इससे पहले श्रीकांत गोली चला पाता, नीरा आर्या ने अपने पास छुपा कर रखे खंजर से अपने ही पति का क़त्ल कर दिया। वो खंजर सीधा श्रीकांत के पेट में उतार दिया।

नेता जी ये सब देखकर हैरान रह गए। क्योंकि उस ज़माने में ऐसा समर्पण न तो देखने को मिलता था और न ही कोई किस्सा सुनने को। मगर नीरा ने अपने हीरो को बचाने के लिए अपने ही हाथों से अपना सुहाग उजाड़ दिया। तब नीरा ने जो कुछ भी सुभाष चंद्र बोस से कहा वो आज भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। नीरा ने कहा था कि वो अपने देश की आजादी और अपने फर्ज के रास्ते में किसी को भी नहीं छोड़ेगी फिर वो चाहे जो हो।

ये किस्सा उस ज़माने में बहुत चर्चा में रहा और लोगों ने नीरा को वीरांगना कहना शुरू कर दिया। नीरा अपना काम और अपना फर्ज निभाती रही और इसी बीच उनका भाई भी क्रांतिकारियों की फौज में शामिल हो गया।

1945 में एक रोज खबर सामने आई कि एक हवाई हादसे में नेताजी की मौत हो गई। इस खबर ने आज़ाद हिन्द फौज में खलबली मचा दी। कई लोग मायूस हो गए। लेकिन देशमें माहौल आज़ादी का भी बनने लगा था। ये बात हर गली हर चौराहे पर होने लगी थी कि अंग्रेज अब भारत से अपना बोरिया बिस्तर समेटकर जा सकते हैं। इसी बीच ये खबरें तेजी से आने लगीं कि आज़ाद हिन्द फौज के कई सैनिकों ने अंग्रेजों के सामने समर्पण कर दिया।

जिन आजाद हिन्द फौज के लोगों ने सियासी नेताओं के कहने पर अंग्रेजों के सामने समर्पण किया उन सभी पर 1945 से लेकर दिसंबर 1946 तक दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चला। और उन लोगों में एक नीरा आर्य भी थीं।

Shams Ki Zubani: अंग्रेज हुकूमत ने इस मुकदमें में आज़ाद हिन्द फौज के तमाम सिपाहियों को बरी कर दिया। ये सोच कर कि अब इस फौज का असली कमांडर तो रहा नहीं लिहाजा अब ये लोग कुछ नहीं कर सकते। लेकिन एक सिपाही को इस मुकदमें से बरी नहीं किया गया था और वो थी नीरा आर्य। देशकी पहली महिला जासूस। असल में नीरा आर्य पर न सिर्फ जासूसी का इल्ज़ाम था और न सिर्फ आज़ाद हिन्द फौज में शामिल होने का इल्ज़ाम था बल्कि एक अंग्रेज पुलिस अफसर के कत्ल का संगीन इल्ज़ाम था। जो कि इत्तेफाक से नीरा आर्य के पति भी थे। सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास। नीरा आर्य को अंग्रेज अदालत ने उस वक़्त की सबसे बड़ी सज़ा यानी काला पानी की सज़ा सुनाई गई।

अंडमान निकोबार में काला पानी की सज़ा के वक़्त के किस्सों को नीरा आर्य ने खुद अपनी किताब में दर्ज किया है। बेहिसाब तकलीफ सहने और अंडमान की जेल के जेलर की ज़्यादती सहने के बाद देश की आजादी के बाद जब काला पानी में उम्र कैद की सज़ा काट रहे कैदियों को हिन्दुस्तान की हुकूमत ने रिहायी दी तो उसमें नीरा आर्या भी एक थीं।

Shams Ki Zubani: जेल से रिहाई के बाद नीरा आर्य एक गुमनाम जिंदगी जीती रहीं। खबर है कि उसी गुमनामी ज़िंदगी के दौरान वो भटकते भटकते हैदराबाद पहुँच गईं थी। बताया जाता है कि नीरा आर्य आखिरी के दिनों में वो फूल बेचती थीं। इस दौरान उन्हें पहचानकर उन्हें सरकारी मदद देकर उनका भला करने वाले जब भी आगे आए नीरा आर्य ने ये कहकर हरेक मदद ठुकरा दी कि उन्होंने जो कुछ भी किया वो अपने देश की ख़ातिर अपने फर्ज की खातिर किया।

क्या अजीब इत्तेफाक है नीरा आर्या हैदराबाद में जिस इलाक़े में एक झोपड़ी में रहा करती थीं उस इलाक़े को बाद की कुछ सरकारों ने ये कहकर तोड़ दियाकि ये कच्ची कॉलोनी अवैध है। ऐसा भी नहीं कि उस दौरान तक लोग नीरा आर्य को जानते या पहचानते नहीं थे।क्योंकि आस पास की कई महिलाओं को जब नीरा आर्य के बारे में पता चला तो वो उन्हें सम्मान देते हुए पैदम्मा कहकर पुकारती थीं। पैदम्मा असल में दो शब्दों से मिलकर बना है पेद्दा और अम्मा। जिसका अर्थ होता है सबसे बड़ी मां सर्वोच्च मां।

बहरहाल आखिरी वक्त पैदम्मा यानी नीरा आर्य ने हैदराबाद में बेहद ग़रीबी और मुफलिसी में गुज़ारा और 26 जुलाई 1998 को हैदराबाद के उस्मानिया अस्पताल में नीरा आर्य और देश की पहली महिला जासूस ने आखिरी सांस ली।

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