22 जून को चार्जशीट पर होगी सुनवाई, दिल्ली पुलिस की इस रिपोर्ट पर लिया जाएगा आखिरी फैसला
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Brij Bhushan Singh: बीजेपी के सांसद और बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह सात पहलवानों की शिकायत के बावजूद यौन शोषण के मामले में अब शायद ही गिरफ्तार होंगे
Brij Bhushan Singh: बीजेपी के सांसद और बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह सात पहलवानों की शिकायत के बावजूद यौन शोषण के मामले में अब शायद ही गिरफ्तार होंगे
Brij Bhushan Singh: "दिल्ली पुलिस आपके लिए आपके साथ सदैव". कभी दिल्ली पुलिस (delhi police) का ये चर्चित नारा हुआ करता था। पता नहीं अब ये नारा खुद दिल्ली पुलिस को भी याद है या नहीं? लेकिन यकीन मानिए यूपी के बाहुबली नेता और कभी दाऊद इब्राहिम (dawood ibrahim) की मदद करने के इल्जाम में टाडा के तहत जेल जानेवाले बृजभूषण शरण सिंह (Brij Bhushan) इस नारे को कभी भूलेंगे नहीं। उन्हें भूलना भी नहीं चाहिए। भूलेंगे तो अहसान फरामोशी होगी। देश के तमाम नामचीन पहलवानों ने सबकुछ जंतर मंतर कर डाला। सुप्रीम कोर्ट से अपनी फरियाद की अर्जी तक ले आए। दिल्ली पुलिस की जिद को झुकाते हुए उसे एफआईआर दर्ज करने पर मजबूर तक कर डाला। फौरन से पेशतर की गिरफ्तारी वाली तमाम धाराओं में लपेट भी दिया। लेकिन हवा के खिलाफ जाते और बनते ऐसे माहौल में भी बृजभूषण शरण सिंह सिर्फ एक भरोसे पर पिछले डेढ महीने से बिना किसी खौफ से मुस्कुराते घूम रहे थे। भरोसा दिल्ली पुलिस का और दिल्ली पुलिस के उस पुराने नारे का कि आप बेफिक्र रहें क्योंकि दिल्ली पुलिस आप ही के लिए है और आप ही के साथ है. सदा के लिए, यानी सदैव यानी हमेशा.
Wretlers Protest: जी हां, बीजेपी के सांसद और बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह सात-सात पहलवानों की शिकायत के बावजूद यौन शोषण के मामले में अब शायद ही गिरफ्तार हों। क्योंकि दिल्ली पुलिस का हाथ अब बृजभूषण के साथ है। जिस नाबालिग पहलवान की शिकायत पर पोक्सो एक्ट के तहत कायदे से बहुत पहले ही बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए था, दिल्ली पुलिस ने उस कलंकित धारा को ही बृजभूषण के दामन से धो डाला। गुरुवार को दिल्ली पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट में इस सिलसिले में एक चार्जशीट दाखिल की। यानी आरोप पत्र। इस आरोप पत्र में आरोपी से पहले खुद दिल्ली पुलिस ने अदालत के सामने हाथ जोड कर कहा कि माई लॉर्ड, बृजभूषण पाक-साफ हैं। इसलिए उनके खिलाफ पोक्सो एक्ट का कोई मामला नहीं बनता। लिहाजा उस धारा को बृजभूषण से दूर कर देना चाहिए। यानी बृजभूषण को सीधे-सीधे क्लीन चिट दे देनी चाहिए।
पोक्सो एक्ट के मामले में दिल्ली पुलिस ने अपना हाथ बृजभूषण के सर पर रखने के कुछ देर बाद ही पटियाला हाउस कोर्ट से थोडी दूर अब राऊज एवेन्यू कोर्ट का रुख किया। यहां के एमपी एमएलए कोर्ट में दिल्ली पुलिस को अब अपना दूसरा फर्ज निभाना था। पर इस कोर्ट में शायद दिल्ली पुलिस को खुद ये एहसास हुआ कि अब कुछ ज्यादा ही हो रहा है। लिहाजा कुछ छोटी मोटी धाराओं में लपेट कर मामले को थोडा बैलेंस कर लिया जाए। इसीलिए यहां दिल्ली पुलिस ने शायद दिल पर पत्थर रख कर पोक्सो की तरह बृजभूषण को पूरी तरह क्लीन चिट देने की बजाय कुछ धाराओं में लपेट दिया। पर यहां भी इस बात का ख्याल रखा कि धाराएँ ऐसी हों कि नेताजी फिलहाल जेल न जा पाएं। तो छह बालिग पहलवानों के लगाए यौन शोषण के इल्जामों पर दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण के खिलाफ आईपीसी की पांच अलग-अलग धाराओं में चार्जशीट दाखिल कर दी। ये पांच धाराएं हैं -
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धारा 354 -- किसी महिला की गरिमा को चोट पहुंचाना, उसका उत्पीडन करना। एक से पांच साल तक की सजा वाली ये धारा गैर जमानती है।
धारा 354 (ए) -- किसी महिला को गलत तरीके से छूना, यौन उत्पीडन। इसमें तीन साल तक की सजा है। ये जमानती धारा है।
धारा 354 (डी) -- किसी महिला का पीछा करना और मना करने पर भी उससे संपर्क साधने की कोशिश करना। सजा तीन साल तक। ये भी जमानती धारा है।
धारा 506 (1) -- धमकी देना या धमकाना। अधिकतम दो साल की सजा। यानी ये भी जमानती धारा है।
धारा 109 -- किसी अपराध के लिए उकसाना।
तो ये पांच धाराएं और इन धाराओं की तासीर भी यही बता रही है कि दिल्ली पुलिस का हाथ बृजभूषण के साथ ही है। दिल्ली पुलिस ने एक कमान से एक साथ दो तीर चलाए। एक में सीधे-सीधे बृजभूषण को बरी कर दिया और दूसरे में पांच धाराओं की ऐसी चाशनी लपेटी कि आरोप भी लगा दिया और आरोपी को बचा भी लिया। ये वही दिल्ली पुलिस है जिसने तमाम कोशिशों के बावजूद शुरू में पहलवानों की एफआईआर तक दर्ज करने से साफ इनकार कर दिया था। हालांकि तब भी सात पहलवानों ने यौन शोषण के इल्जाम लगाए थे। जिनमें एक तो नाबालिग थी। मगर तब दिल्ली पुलिस ने शिकायत की जांच करना तो दूर एफआईआर तक लिखने से मना कर दिया था। वो तो सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई, तब कहीं जाकर 28 अरैल को मजबूरन दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। हालांकि कानून के जानकारों की मानें तो सुप्रीम कोर्ट को भी एफआईआर दर्ज करने में देरी के लिए दिल्ली पुलिस को इतनी आसानी से नहीं छोडना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट को पूरे मामले की जांच खुद की निगरानी में करवानी चाहिए थी। क्योंकि एफआईआर दर्ज ना कर दिल्ली पुलिस की मंशा और नीयत पहले ही सामने आ चुकी थी।
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर ने भी इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस के रवैये को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि इस मामले में जिस तरह दिल्ली पुलिस पीड़ितों से ही ऑडियो और वीडियो की शक्ल में सबूत मांग रही है, उससे पुलिस की मंशा पर शक होता है। जस्टिस लोकुर का कहना था कि यौन उत्पीडन या यौन शोषण का मामला बंद दरवाजे के पीछे होता है। पहलवानों ने जो इल्जाम लगाए हैं, वो वीडियो की शक्ल में ऐसे एविडेंस कहां से लाएंगे? इस मामेल में पीडिता ने लिखित में अपनी शिकायत दे रखी है। जिसमें सारी बातों का जिक्र है। फिर दिल्ली पुलिस किस तरह की जांच चाहती है? इस केस में उल्टे पीडिता को ये साबित करने के लिए कहा जा रहा है जो उसने इल्जाम लगाए हैं। जस्टिस लोकुर के मुताबिक ये भी एक तरह का उत्पीडन है। सुप्रीम कोर्ट और तमाम अदालतों का इस पर बहुत सख्त रुख रहा है। ये पीडिता की गरिमा के साथ खिलवाड जैसा है। जस्टिस लोकुर ने तो यहां तक कहा कि दिल्ली पुलिस की जांच आरोपी को निर्दोष और पीडितों को दोषी साबित करने की दिशा में चल रही है। जस्टिस लोकुर का कहना है कि पहलवानों के खिलाफ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई भी सवाल खडे करती है। जो लोग पीडित थे और जंतर मंतर पर अपना दर्द बयान कर रहे थे, उन्हीं को धारा 144 के तहत अपराधी बना दिया गया। फिर कहा गया कि अब आप जंतर मंतर पर नहीं बैठ सकते। ऐसे में वो कहां जाएंगे, किससे अपनी बात कहेंगे?
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस लोकुर ने तो खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के उस बयान पर भी सवाल खडे किए, जिसमें उन्होंने कहा था कि जांच 15 जून तक पूरी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि खेल मंत्री को ये कैसे पता है? इस मामले में कोई बयान सिर्फ जांच अधिकारी ही दे सकता है। इसके अलावा दूसरा कोई नहीं। ज्यादा से ज्यादा जांच अधिकारी अपने सीनियर अफसर या पुलिस कमिश्नर को जांच से जुड़ी जानकारी दे सकता है। इसका मतलब ये है कि पर्दे के पीछे भी कुछ चल रहा है। जो बहुत गंभीर है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट खुद कई बार कह चुका है कि जांच में कोई दखल नहीं दे सकता। उच्चतम न्यायालय भी नहीं। जस्टिस मदन बी लोकुर 30 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे।
कुल मिलाकर दिल्ली पुलिस ने पहले दिन से ही कुश्ती का ये पूरा अखाडा एकतरफा बना दिया था। वरना अगर फैसला अखाडे में होता तो शर्तिया अपने देश के तमाम होनहार पहलवान इन्हें कब का चित कर डालते। मगर अफसोस कुश्ती पहलवानों के अखाडे में नहीं बल्कि राजनीति के अखाडे में हो रही है। बस इसीलिए तमाम काबिलियत और कोशिशों के बावजूद कोई भी पहलवान, बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह को अब तक हरा नहीं पाया। पहलवानों की छोड़िये फिलहाल तो पुलिस और कानून भी इनके आगे घुटने टेकते नजर आ रही है। वरना जरा सोचिए निर्भया के बाद जिस पॉक्सो एक्ट की सख्ती का देश भर में ढिंढोरा पीटा गया, उसी पॉक्सो में नामजद होने के बावजूद डेढ महीने तक दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण शरण को गिरफ्तार तक नहीं किया। इसी बृजभूषण की जगह कोई आम शख्स पॉक्सो के लपेटे में आता, तो पुलिस एफआईआर दर्ज करने से पहले ही उसे उठा चुकी होती। मगर यहां मामला एक ऐसे नेता और सांसद का है, जो सिर्फ अपनी पार्टी के लिए अपनी ही सीट नहीं जितवाते, बल्कि आस-पास की चार-पांच लोक सभा सीटों पर भी असर डलवाते हैं। उनके इसी चुनावी असर की वजह से ही फिलहाल दिल्ली पुलिस बेअसर नजर आ रही है।
Delhi News: ये कहानी शुरू हुई थी इसी साल 18 जनवरी को। देश के कई नामचीन पहलवान अचानक जंतर मंतर पहुंचते हैं और वहीं एक पेस कांफेंस करते हैं। इस पेस कांफेंस के जरिए भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर कई इल्जाम लगाते हैं। इनमें पहलवानों का यौन शोषण, तानाशाही, गालियां देना, मानसिक रूप से परेशान करना और आवाज उठाने पर धमकाने जैसी बातें शामिल थीं। मगर इनमें सबसे सनसनीखेज इल्जाम ये था कि बृजभूषण शरण सिंह और उनके चहेते कई कोचों ने महिला पहलवानों का यौन शोषण किया है। नामचीन पहलवान विनेश फोगाट ने ये तक कहा कि वो 10-20 ऐसी खिलाडियों को जानती हैं, जिनके साथ यौन उत्पीड़न हुआ है। हालांकि सबूतों के सवाल पर तब उन्होंने कहा था कि जब हाई कोर्ट कहेगा, वो अदालत के सामने सबूत पेश कर देंगी। पहलवानों का ये भी दावा था कि जिनके यौन शोषण हुए, उनमें एक नाबालिग है। इस हिसाब से एक मामला सीधे सीधे पॉक्सो एक्ट का बन जाता है। वो पॉक्सो एक्ट जिसमें जमानत ही नहीं है।
लेकिन पहलवानों के तमाम इल्जामों के बावजूद दिल्ली पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया। एफआईआर तक दर्ज नहीं की। जाहिर है मामला बीजेपी के एक सांसद का था। लिहाजा लाचार दिल्ली पुलिस भी ऊपर से अपने आकाओं के इशारे का इंतजार कर रही थी। आखिरकार दिल्ली पुलिस से मायूस हो कर पहलवानों ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दखल दिया और दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट के हुक्म के बाद ही मजबूरन दिल्ली पुलिस ने पूरे मामले में दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज कर लिए। पहली एफआईआर नाबालिग की शिकायत पर पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज की गई। वो भी नामजद। यानी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ। जबकि दूसरी एफआईआर बाकी अलग-अलग धाराओं में दर्ज की गई। जिनमें यौन शोषण की धाराएं भी शामिल हैं। पॉक्सो एक्ट में एफआईआर दर्ज होने के बाद हरेक को लगा कि बृजभूषण अब कभी भी गिरफ्तार हो सकते हैं। पॉक्सो एक्ट के मामले में अक्सर पुलिस का रवैया यही होता है। वो आरोपी को नाबालिग के बयान के बाद तुरंत गिरफ्तार कर लेती है। लेकिन हैरत अंगेज तौर पर एफआईआर दर्ज करने के बाद भी बृजभूषण आजाद घूमते रहे। और इसी वजह से ये सवाल उठने लगा कि क्या पॉक्सो एक्ट कमजोरों के लिए अलग और ताकतवर लोगों के लिए अलग है?
देश को खौला देनेवाले 2012 के निर्भया कांड के बाद देश में रेप और महिलाओं के खिलाफ होनेवाले अपराध को लेकर जबरदस्त गुस्सा था। उस गुस्से को देखते हुए सरकार ने भी बहुत सारे नए नियम कानून बनाए थे। खास कर नाबालिग लडकियों के साथ होनेवाले यौन शोषण को लेकर। और तभी पॉक्सो एक्ट का नाम सामने आया था। कहा गया था कि कि यौन शोषण का शिकार अगर कोई नाबालिग पुलिस को अपना बयान देती है या रिपोर्ट लिखाती है, तो फौरन आरोपी को गिरफ्तार करना चाहिए। ऐसे सैकड़ों मामले हैं, जो पॉक्सो एक्ट के तहत पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करते ही आरोपी को गिरफ्तार भी किया। मगर उनस सैकड़ों मामलों से हट कर ये इकलौता मामला है, जिसमें पीडिता की शिकायत के बावजूद दिल्ली पुलिस ने अपनी तरफ से पहले तो एफआईआर ही दर्ज नहीं की। वो तो सुप्रीम कोर्ट ने जब उसे हड़काया तब कहीं जाकर दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।
दिल्ली की दो अलग-अलग अदालतों में दाखिल दो चार्जशीट के पास अब इस मामले की सुनवाई 22 जून को होगी। ये सुनवाई बेहद अहम है।वजह ये कि जिस पोक्सो एक्ट में दिल्ली पुलिस ने बृज भूषण को क्लीन चिट देने यानी केस क्लोज कर देने की सिफारिश की है, उस सिफारिश को मंजूर या नामंजूर करना अब अदालत के हाथों में है। अगर अदालत को लगता है कि जितने भी सबूत दिल्ली पुलिस ने उसके सामने रखे हैं, वो सबूत बृज भूषण के खिलाफ पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमा जारी रखने के लिए काफी हैं, तो फिर पोक्सो वाला मामला बंद नहीं होगा। और अलर अदालत को लगता है कि बृज भूषण के खिलाफ पोक्सो नहीं बनता, तो वो केस क्लोज कर सकती है। वहीं दूसरी तरफ बाकी छह बालिग पहलवानों के मामले में जिन पांच धाराओं के तहत बृज भूषण को आरोपी बनाया गया है, उन धाराओं पर भी अब अदालत को संज्ञान लेना है। अदालत चाहे तो उनमें से कुछ धाराएं घटा बढ़ा सकती हैं।लेकिन कुल मिलाकर फिलहाल की कहानी यही है बृज भूषण सिंह को दिल्ली पुलिस ने वो राहत दे दी, जो आम लोगों को कभी मयस्सर नहीं होती।
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