अंडरग्राउंड क्यों है तालिबान का सुप्रीम कमांडर?

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अंडरग्राउंड क्यों है तालिबान का सुप्रीम कमांडर?
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तालिबान (Taliban) के सत्ता में आने के बाद से ही उसके दिग्गज नेता और कमांडर काबुल में पहुंचने लगे हैं, लेकिन तालिबान का सुप्रीम कमांडर अखुंदजादा (Akhundzada) अभी तक अंडर ग्राउंड है और दुनिया के सामने आया नहीं है। अखुंदजादा के बारे में कोई अता पता नहीं चला, उसके आने की कोई खबर भी नहीं है। वैसे तालिबान ने जानकारी दी है कि हिबातुल्लाह अखुंदजादा अफगानिस्तान में ही हैं और जल्दी ही पहली बार सार्वजनिक तौर पर सबके सामने आ सकता है।

कौन है तालिबान का सुप्रीम कमांडर अखुंदजादा?

तालिबान के सुप्रीम कमांडर अखुंदजादा (Akhundzada) का न कोई वीडियो, न बयान, बस एक तस्वीर ही है फिलहाल तालिबान के सुप्रीम कमांडर अखुंदजादा की पहचान। हालांकि तालिबान के प्रवक्ता ज़बीनुल्लाह मुजाहिद का कहना है वो कांधार मे है, और शुरुआत से यहीं रह रहा है और जल्दी ही जनता के सामने आएंगा। अखुंदजादा जो तथाकथित तौर पर कमांडर है, उसके हाथ में तालिबान की कमान 2016 में तब आई जब इनका अभियान मुश्किलों में घिर गया था। विद्रोह की बागडोर संभालने के बाद उसे सत्ता संघर्ष में बुरी तरह ध्वस्त हुए जिहादी आंदोलन को एकजुट करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

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सिर्फ अहम मौकों पर ही सामने आता है

अंखुदजादा की रोज़मर्रा की जिंदगी के बारे में कम ही लोग जानते हैं, उसका सार्वजनिक जीवन बहुत ही सीमित है और बस इस्लामिक छुट्टी के दिन उसका एक संदेश जारी किया जाता है। उसकी एक फोटो जिसे तालिबान ने जारी किया था, उसके अलावा कोई भी इस नेता के बारे में कुछ नहीं जानता है, वो कभी भी जनता के सामने नहीं आता है। यहां तक अगस्त के मध्य में तालिबान पर कब्जा जमा लेने के बाद भी समूह ने अपने नेता को लेकर चुप्पी ही साधे रखी। जबकि तालिबान के विभिन्न गुटों के प्रमुखों ने काबुल की मस्जिद में खुले आप प्रचार किया है। विपक्ष की हस्तियों से मुलाकात की यहां तक कि अफगान क्रिकेट के अधिकारियों से भी बातचीत की।

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रहस्यमयी रहा है अंखुदजादा का इतिहास

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तालिबान की अपने नेताओं को घेरे में रखने का इतिहास काफी लंबा है, समूह का गूढ़ नेता और संस्थापक मुल्ला मोहम्मद ओमर अपने एकाकी जीवन के लिए कुख्यात था और जब 1990 में समूह सत्ता में आया वो बमुश्किल काबुल से बाहर जाता था। यहां तक कि प्रतिनिधिमंडल से मिलने के बजाए वो उनकी नज़रों से भी दूर ही रहता था। कांधार में जो जगह 1990 में उनकी सरकार बनने का जन्मस्थान रही थी, उसी के परिसर में रहते रहे थे। अभी भी उसके शब्द ही शासन करते हैं और समूह में किसी को भी उतना सम्मान हासिल नहीं हो सका है।

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