...अगर ये ना होता तो ओसामा बिन लादेन अमेरिका पर हमला ना करता!

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...अगर ये ना होता तो ओसामा बिन लादेन अमेरिका पर हमला ना करता!
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वो साल था 1998, अफगानिस्तान में एक गुप्त बंकर में सर्द रात का वक्त, लेकिन ओसामा की आंखों में दूर-दूर तक नींद का नामोनिशान नहीं था, बल्कि एक ख्वाब था। ख्वाब अमेरिका को नेस्तानाबूद करने का, उसके दिल में बदले की आग सुलग रही थी। ओसामा इस बार कुछ ऐसा करना चाहता था जिसकी गूंज अमेरिका के कानों से कभी निकल ही ना सके।

7 अगस्त 1998 को तंज़ानिया और कीनिया में दो-दो अमेरिकी दूतावासों को धमाकों में उड़ा कर और तीन सौ से ज़्यादा बेगुनाहों को मौत के घाट उतारने के बाद भी ओसामा के सीने में सुलग रही बदले की आग ठंडी नहीं हुई थी, ओसामा एक खतरनाक फैसला लेने वाला था और इसके लिए उसे इंतजार था एक बेहद खास शख्स का, जो उस रोज़ उससे मिलने आ रहा था।

इंतजार के पल के बीच ही अचानक उसकी आंखों में एक मंज़र तैरता है, मंज़र 3 सितंबर 1967 का। जब वो दस साल का था और उसने अपने वालिद शेख मोहम्मद बिन अवद बिन लादेन के एक विमान हादसे में मरने की खबर सुनी थी। उस मंज़र को सोचते ही ओसामा की आंखों में फिर से खून तैर जाता है। वो फिर उस लम्हे को याद करता है जब इजराइली और अमेरिकी फौज ने लेबनान पर बमबारी कर उसकी ऊंची-ऊंची इमारतों को ताश के पत्तों की तरह ढहा दिया था। ओसामा 29 मई 1988 का वो पल भी नहीं भूला था जब उसका बड़ा भाई सालेम-बिन-लादेन भी अमेरिका में एक विमान हादसे में मारा गया था।

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उस खास मेहमान के इंतजार के बीच वो एक-एक कर इन सारी बातों को याद करता जा रहा था। और फिर अचानक ओसामा के चेहरे पर एक ख़ौफ़नाक हंसी तैर जाती है, और इस हंसी के साथ ही वो एक फैसला ले चुका था। एक ऐसा फैसला जिसके बारे में दुनिया में कभी किसी ने सोचा ही नहीं था। अब बस उसे सिर्फ और सिर्फ इंतजार था उस शख्स का जिससे मिल कर वो दुनिया के इस सबसे खूंखार फैसले को हकीकत में बदलने वाला था।

इंतजार लंबा होता जा रहा था। हर गुजरते लम्हे के साथ ओसामा की बेचैनी लगातार बढ़ती जा रही थी। पर आखिरकार वो घड़ी आ ही गई। एक खास मेहमान की जगह दो लोग बंकर में दाखिल होते हैं। उनके पास एक ब्रीफकेस है। दुआ सलाम के बाद वो ब्रीफकेस से कुछ कागज़ात निकालते हैं, और इसके साथ ही आतंक के इस हेड क्वॉर्टर में ओसामा की बेहद खास बैठक शुरू हो जाती है।

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बैठक में ओसामा अपने दोनों खास मेहमानों की बातें बेहद गौर से सुन रहा है, उसकी आंखों की चमक बता रही थीं कि वो उनकी बातों से मुतमइन था। उसे अपने खौफनाक प्लान की कामयाबी साफ नजर आ रही थी।

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बातचीत का दौर लंबा खिंचता जाता है। क्योंकि ये मीटिंग ओसामा की जिंदगी की सबसे अहम मीटिंग थी। इस मीटिंग की कामयाबी ही उसके खौफनाक प्लान की कामयाबी की चाभी थी। लिहाजा ओसामा बड़े ध्यान से उनकी बातं सुनता है। बीच-बीच में वो कुछ सवाल भी पूछता जाता है।

आखिरकार लंबी बैठक के बाद मीटिंग खत्म होती है। और इसके साथ ही ओसामा अपने सबसे खौफनाक प्लान पर आखिरी मुहर लगा देता है, प्लान अमेरिका में सबसे बड़े आतंकवादी हमले की।

ओसामा के इस गुप्त ठिकाने में हुई मीटिंग में उसके दो खास मेहमान कोई और नहीं बल्कि खालिद शेख मोहम्मद और मोहम्मद आतिफ था। खालिद शेख मोहम्मद वही शख्स है जिसने 1996 में सूडान में अमेरिकी दूतावास पर हमले का प्लान बनाया था। और इस बार भी अमेरिका में सबसे बड़े आतंकी हमले की साज़िश को अंजाम देने के लिए पैसा मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी उसी की थी। जबकि मोहम्मद आतिफ को ओसामा ने आतंकी हमलों के लिए आतंकवादियों को चुनने और ट्रेनिंग देकर उन्हें अमेरिका तक पहुंचाने की जिम्मेदारी दी थी।

मीटिंग खत्म होते ही ओसामा बंकर से निकलता है और अपने दूसरे अड्डे की तरफ रवाना हो जाता है। पर जाने से पहले वो दुनिया के सबसे खौफनाक आतंकवादी हमले का दिन, तारीख और जगह तय कर चुका था।

साल 1999

अमेरिका में आतंकी हमले का प्लान बन चुका था, ओसामा इस हमले के प्लान को हरी झंडी दिखा चुका था। अब बस बाकी था तो इस प्लान पर अमल करना, सो इसकी भी शुरुआत खालिद शेख मोहम्मद और मोहम्मद आतिफ ने शुरु कर दी। अब इस प्लान को अमल में लाने के लिए उन्हें बेहद खास फिदाइनों की ज़रुरत थी, और आखिरकार उनकी ये तलाश खालिद-अल-मिहधर और नवाफ-अल-हाज़मी पर आ कर रुक गई।

दरअलस ये दोनों जेहाद्दियों के बीच एक खास रुतबा रखते थे। दोनों ओसामा के बेहद करीबी भी थे। यही नहीं इन दोनो को बोसनिया में गुरिल्ला युद्ध का तजुर्बा भी था। लिहाजा इस हमले के लिए खालिद शेख मोहम्मद और आतिफ ने बाकी फिदाईनों को तलाशने का ज़िम्मा इन्हीं दोनों को सौंप दिया। दोनों ने ओसामा का भरोसा खूब निभाया। और कुछ महीनों में ही चार जेहादियों को इस मिशन के लिए तैयार कर लिया। इस बीच अप्रैल 1999 में मिहधर और हाज़मी को अमेरिका का वीजा भी मिल गया।

अब आगे की कमान खालिद मोहम्मद और मोहम्मद आतिफ ने संभाली, दोनों ने पाकिस्तान के कराची शहर में ऑपरेशन में शामिल होने जा रहे सभी फिदाईनों को अंग्रेजी बोलने और अमेरिकी रहन-सहन की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी। और इसके साथ ही बाकी फिदाईनों की तलाश भी जारी रही।

साल 2000 के आखिरी तक खालिद मोहम्मद और आतिफ ने मिहधर और हाज़मी की मदद से 13 और फिदाईन की टीम तैयार कर ली थी। यानी अब कुल 19 फिदाईन मिशन के लिए तैयार थे। मिशन का पहला चरण पूरा हो चुका था, दूसरे चरण में 19 लोगों की इस टीम में से छह लोगों को विमान उड़ाने की ट्रेनिंग दी जानी थी। टीम ओसामा के पास इसका भी हल था, जिस देश की सरज़मीं पर इनको आतंकी हमला करना था उसी देश में इनको विमान उड़ाने की ट्रेनिंग दिलाने का इंतजाम किया गया।

ओसामा के 9/11 हमले के प्लान का दूसरा चरण शुरु हो चुका था, मिशन के लिए चुने गए 19 लोगों में से सबसे पहले खालिद-अल-मिहधर और नवाफ-अल-हाज़मी जनवरी 2000 में अमेरिका के सैन डियागो शहर पहुंचे। वहां इन्होंने लोकल फ्लाइंग क्लब में विमान उड़ाने की ट्रेनिंग लेनी शुरु कर दी। इसके करीब महीने भर बाद मोहम्मद अता, मरवान-अल-शेही और ज़ियाद जर्राह अमेरिका के दूसरे शहर फलोरिडा पहुंचते हैं। ये तीनों फ्लोरिडा में विमान उड़ाने की ट्रेनिंग लेते हैं। दिसंबर 2000 में तीसरी खेप में छठा फिदाईन हानी हंजौर अमेरिका के सैन डियागो शहर पहुंचता है और वहां के फ्लाइंग क्लब में एडमिशन ले लेता है।

साल 2001 तक ओसामा के आतंकी प्लान का दूसरा चरण भी करीब-करीब पूरा हो चुका था, सभी छह फिदाईन विमान उड़ाने की ट्रेनिंग ले चुके थे। लिहाजा प्लान के अगले चरण के तहत अब बाकी के 13 फिदाईन 2001 में अलग-अलग ग्रुप में अमेरिका पहुंच जाते हैं।

अमेरिका पर सबसे बड़े हमले की साजिश अब अमेरिकी ज़मीन पर ही रची जा रही थी। और अमेरिका को इसकी भनक तक नहीं थी। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को इस बात का गुमान भी नहीं था कि उसी की सरजमीं पर आतंकी हमला करने वाले दहशतगर्द उन्हीं के देश में विमान उड़ाने की ट्रनिंग ले रहे हैं।

ओसामा के आतंकी प्लान के पहले दो चरण पूरी तरह से कायाब रहे थे। अब साजिश के तीसरे चरण की शुरुआत होनी थी, और ये सबसे मुश्किल और खतरनाक चरण था। अमेरिकी विमान को हाईजैक कर उसे अमेरिका में ही गिराना था। और आखिरकार वो लम्हा आ ही गया जिसकी तैयारी ओसामा और उसके दहशतगर्द तीन साल से कर रहे थे।

तारीख- 11 सितंबर, 2001

वक्त- सुबह 7 बजकर 15 मिनट

जगह- बॉस्टन का लोगन एयरपोर्ट

अमेरिकन एयरलाइंस फ्लाइट 11 का विमान बोस्टन एयरपोर्ट पर लॉस एंजेलिस के लिए उड़ान भरने को तैयार खड़ा था, तभी उस विमान में 19 में से पांच हाईजैकर सवार होते हैं। पांचो विमान में अपनी-अपनी सीट पर बैठ जाते हैं, विमान में उन पांचों के अलावा कुल 92 मुसाफिर सवार थे। विमान ने सुबह 7 बजकर 59 मिनट पर उड़ान भरी। और इसके ठीक पंद्रह मिनट बाद यानी 8 बजकर 14 मिनट पर पांचों ने विमान को अपने कब्ज़े में ले लिया।

उधर दूसरी तरफ बॉस्टन के लोगन एयरपोर्ट पर सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर यूनाइटिड एयरलाइंस फ्लाइट 175 का विमान मैसेचुसेट्स के रास्ते लॉस एंजेलिस तक उड़ान भरने के लिए तैयार खड़ा था, तभी ठीक सुबह के 7.30 बजे पांच हाईजैकर्स विमान में दाखिल होते हैं। इस विमान में कुल 65 मुसाफिर सफर कर रहे थे। विमान ने सुबह 8 बजकर 14 मिनट पर रनवे छोड़ दिया। और ठीक 32 मिनट बाद यानी 8 बजकर 46 मिनट पर ये विमान भी पांचों हाईजैकर्स के कब्ज़े में था।

तीसरा विमान ड्यूलेस इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर सुबह 7 बजकर 40 मिनटउड़ने के लिए तैयार खड़ा था, और अमेरिकन एयरलाइंस फ्लाइट नंबर 77 का विमान ड्यूलेस एयरपोर्ट पर वर्जिनिया के रास्ते लॉस एंजेलिस तक उड़ान भरने की तैयारी कर रहा था, और उससे पहले ही एक बार फिर पांच हाईजैकर्स विमान में सवार हो चुके थे। विमान ने तय वक्त से 10 मिनट की देरी यानि सुबह के 8 बजकर 20 मिनट पर 64 मुसाफिरों को लेकर उड़ान भरी। और ठीक 34 मिनट बाद यानी 8 बजकर 54 मिनट पर इस विमान का भी अपहरण हो चुका था।

नीवार्क इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर यूनाइटिड एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 93 का विमान सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर नीवार्क एयरपोर्ट पर न्यूजर्सी के रास्ते सैनफ्रांसिस्को तक उड़ान भरने की तैयारी में था। और इस विमान में भी उड़ान से ऐन पहले चार हाईजैकर्स बैठ चुके थे। विमान ने सुबह 8 बजकर 42 मिनट पर 44 मुसाफिरों को लेकर उड़ान भरी। और 46 मिनट बाद ही यानी नौ बजकर 28 मिनट पर इस विमान का भी अपहरण हो चुका था।

ओसामा के प्लान का तीसरा चरण भी कायमाबी के साथ पूरा हो चुका था, बस अब चौथा और आखिरी चरण बाकी था। हर हाईजैकर अपनी मंज़िल जानता था, इसलिए विमान के अपहरण के बाद विमान उड़ा रहे हर हाईजैकर ने अपनी-अपनी मंज़िल की तरफ विमान को मोड़ दिया।

अब ओसामा के सबसे बड़े आतंकी प्लान के चौथे और आखिरी चरण को पूरा करने का वक्त आ चुका था, अमेरिकन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 11 के विमान को उड़ा रहे मोहम्मद अता ने सुबह 8 बजकर 46 मिनट पर विमान को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी टॉवर से टकरा दिया, इस हमले में 1355 लोग मारे गए।

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए पहले हमले के ठीक 17 मिनट बाद यूनाइटेड एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 175 के विमान को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दक्षिणी टॉवर से टकरा दिया, दोनों टावर अब देखते ही देखते ज़मीदोज हो चुके थे। दूसरे टावर पर हुए हमले में 637 लोगों की जान चली गई।

वर्ल्ड ट्रेड टॉवर पर हुए आतंकी हमले के ठीक 34 मिनट बाद अमेरिकन एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 77 सीधे पेंटागन मुख्यालय पर जाकर गिरता है। आतंकवादियों ने विमान को पेंटागन के पश्चिमी हिस्से से टकराया था, इस आतंकी हमले में पांचों हमलावरों समेत 189 लोग मारे गए।

अब बचा चौथा और आखिरी विमान। यूनाइटिड एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 93 के निशाने पर अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन था। लेकिन इस विमान में सवार मुसाफिरों ने हाईजैकर्स से लड़ने का फैसला किया और अंजाम ये हुआ कि ये विमान पैंसिलवेनिया में शैंक्सविले के पास ही क्रैश हो गया, इस हादसे में चारों हाईजैकर्स समेत सभी 44 मुसाफिरों की मौत हो गई।

इन धमाकों के साथ ही ओसामा का मिशन अमेरिका पूरा हो चुका था, वो जो बर्बादी और तबाही का मंज़र अमेरिका में देखना चाहता था उसका वो ख्वाब पूरा हो चुका था। दुनिया के इस सबसे बड़े आतंकी हमले में एक घंटे के अंदर 2977 मासूम लोगों की जान जा चुकी थी।

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