अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में कौन ? सिर्फ तालिबानी नेता या बाहरी भी? पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई की क्या होगी भूमिका? जानें

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Taliban 2.0 : करीब 25 साल बाद तालिबान एक बार फिर से अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाने की क़वायद में है. इस बार तालिबान के सामने कुछ नई चुनौतियां हैं तो कुछ बड़ी राहत भी. बड़ी राहत ये है कि अमेरिका अब अफ़ग़ानिस्तान में सीधे दखल नहीं देगा.

क्योंकि पिछले साल ही अमेरिका और तालिबानी नेताओं के बीच दोहा वार्ता हुई थी. जिसमें अमेरिकी प्रशासन ने वादा किया था कि मई 2021 तक वे अपने सैनिक अफ़ग़ानिस्तान से हटा लेंगे. और जुलाई 2021 तक 80 फीसदी से ज्यादा सैनिक अमेरिका लौट भी गए थे.

वहीं, चुनौती ये है कि तालिबान ने हुकूमत पर कब्जा तो कर लिया है लेकिन सरकार कैसे चलाएंगे? क्योंकि सरकार चलाने के लिए रेवेन्यू मॉडल की जरूरत होती है. राजनीतिक के साथ कूटनीति और प्रशासनिक अनुभव की जरूरत होगी.

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अभी तक अमेरिकी बैंकों में जमा 18 अरब डॉलर की संपत्ति पर तालिबानियों की नजर थी. लेकिन अब उसे भी अमेरिका ने फ्रीज कर दिया है. ऐसे में तालिबान को आर्थिक तौर पर ये बड़ा नुकसान हुआ है. वहीं, विश्व स्तर पर अभी खुलकर मदद मिलना भी आसान नहीं है.

लिहाजा, अब तालिबानियों के सामने नया संकट आ गया है. इस बीच, अफ़ग़ानिस्तान में अब जगह-जगह से लोकतंत्र की मांग उठने लगी है. यानी कल तक जिनमें तालिबान का इतना ख़ौफ़ था कि जान बचाने के लिए एयरक्राफ्ट के ऊपर चढ़ गए थे वो आज उसी तालिबान के ख़िलाफ अफ़ग़ानिस्तान का झंडा लेकर विरोध कर रहे हैं. तालिबान के झंडे को सरेआम उखाड़कर चुनौती दे रहे हैं. यानी वे लोकतंत्र की मांग करते हुए विद्रोह की तैयारी में हैं. ऐसे में तालिबान के सामने ये सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है.

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ऐसे में तालिबान को कहीं ना कहीं ये समझ में आ रहा होगा कि सिर्फ बंदूक की नोंक पर नहीं बल्कि दुनिया भर में एक अच्छी छवि लेकर ही वो आगे बढ़ सकते हैं. अगर ऐसा नहीं हुआ तो 1996 से 2001 में बनी तालिबानी सरकार की तुलना में इस बार और कम समय तक सरकार चला पाएंगे. ऐसे में तालिबान की क्या हो सकती है आगे की रणनीति. आइए जानते हैं.

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क्या पुराने नेताओं को मिलाकर बनाएंगे सरकार

अफ़ग़ानिस्तान में जिस तरह तेजी से हालात बदल रहे हैं और महिलाएं व पुरुष अब सड़कों पर उतर रहे हैं. उसे देखते हुए तालिबान कहीं ना कहीं अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई के पिछले दिनों आए बयान पर गंभीरता दिखा सकता है. दरअसल, 15 अगस्त को जब मौजूदा राष्ट्रपति अशरफ ग़नी देश छोड़कर भाग गए थे तब हामिद करजई ने बयान दिया था कि वो देश में ही रहेंगे और तालिबान के साथ बातचीत करते हुए हल निकालेंगे.

उन्होंने ये भी कहा था कि सत्ता का सही तरीके से ट्रांसफर हो, जिससे देश में कोई खूनखराबा ना हो. अब दोहा में हामिद करजई की तालिबानी नेताओं और देश के पुराने कुछ नेताओं के साथ मीटिंग की तैयारी है. ऐसे में अंदेशा लगाया जा रहा है कि तालिबान मिली-जुली सरकार बनाने की पहल कर सकता है.

तो कौन बनेगा अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रपति?

तालिबानी चरमपंथी संगठन का सह-संस्थापक और राजनीतिक प्रमुख मुल्ला अब्दुल गनी बरादर इस समय सबसे ताकतवर नेता है. वो एक बार फिर से काबुल में लौट आया है.

माना जा रहा है कि अब्दुल गनी बरादर ही अब अफ़ग़ानिस्तान का नया राष्ट्रपति बन सकता है. इस पर तालिबान में एकमत होने की बात सामने आई है. अब्दुल गनी बरादर को काफी कट्टर धार्मिक नेता माना जाता है. और दोहा में पिछले साल अमेरिका के साथ तालिबान की हुई वार्ता में इसकी बड़ी भूमिका रही थी.

अब्दुल ग़नी बरादर

जन्म : साल 1968

जगह : उरुजगान, अफ़ग़ानिस्तान

तालिबान : पहले कार्यकाल में डिप्टी रक्षा मंत्री

पहचान : 1994 में तालिबान का सह-संस्थापक सदस्य

अब्दुल गनी बरादर की छवि एक कट्टर धार्मिक नेता की है. तालिबान ने जब साल 1996 में सरकार बनाई थी तब ये डिप्टी रक्षा मंत्री थे. वो अफ़ग़ान बलों के ख़िलाफ़ सबसे खूंख़ार हमलों का नेतृत्व करते थे. मुल्ला बरादर पर संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंध लगाए थे. ये इतने कट्टर हैं कि किसी भी कीमत पर शरिया कानून के तहत ही काम करना पसंद करेंगे.

ऐसे में खासतौर पर महिलाओं को जीने की आजादी मिलने की उम्मीद नहीं है. अब भले ही तालिबान प्रेस कॉन्फ्रेंस करके महिलाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सरकार चलाने का दावा करे. ऐसे में अगर ये राष्ट्रपति बनते हैं तो दुनिया भर में खराब छवि बनेगी और अफ़ग़ानिस्तान में ही विरोध जारी रहेगा.

और क्या हो सकते हैं विकल्प

हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा : अफ़ग़ान तालिबान के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. इनके नाम का मतलब है अल्लाह की तरफ से मिला तोहफ़ा. वो नूरजई क़बीले से ताल्लुक रखते हैं. इन्हें इस्लाम धर्म का बड़ा विद्वान कहा जाता है. वे कंधार से आते हैं. 1980 के दशक में सोवियत संघ के ख़िलाफ़ अफ़ग़ानिस्तान के विद्रोह में इन्होंने कमांडर की भूमिका निभाई थी. तालिबान संगठन में धर्म से जुड़े तालिबान के आदेश यही देते रहे हैं. इनकी उम्र करीब 60 साल है. तालिबान सरकार में इनकी भी बड़ी रहेगी. लेकिन किस पद पर रहेंगे. ये अभी साफ नहीं हो सका है.

हामिद करज़ई को दे सकते हैं बड़ी भूमिका

साउथ एशिया मामलों के एक्सपर्ट का कहना है कि हामिद करज़ई ने तालिबान के कब्जे को लेकर उनके पक्ष में बयान दिया था. तालिबान से उनके पुराने ताल्लुकात रहे हैं. ऐसे में दुनिया के सामने साफ-सुथरे छवि वाले नेता के रूप में हामिद करज़ई के नाम को भी आगे किया जा सकता है. हालांकि, तालिबान इन्हें किस बड़े पद पर न्यौता देगा, ये कहना अभी मुश्किल है. लेकिन इन्हें कठपुतली नेता के तौर पर भी तालिबान आगे कर सकता है और पीछे से कट्टरपंथी प्रमुख नेता ही सरकार चलाएंगे.

इस बारे में लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स के साउथ एशिया एक्सपर्ट सज्जन ने मीडिया को बताया कि अगर तालिबान ने मिली जुली सरकार बनाई तो मुझे पूरी उम्मीद है कि ये ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी. क्योंकि भले ही दिखाने के लिए किसी सामान्य चेहरे को तालिबान ऊपर ले आए लेकिन उनकी कट्टरता खत्म नहीं होगी.

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हामिद करजई की जानें खास बातें

हामिद करज़ई 2004 में अफ़ग़ानिस्तान के पहले चुने हुए राष्ट्रपति बने थे. उनका जन्म 24 दिसंबर 1957 में कंधार में हुआ. 1990 के दशक की शुरुआत में जब तालिबान का उदय हुआ तब हामिद करज़ई ने पहले इनका समर्थन किया था. लेकिन बाद में वे अलग हो गए थे. अंतरिम राष्ट्रपति बनने के बाद इनका नाम बढ़ा और समाज के बड़े तबके ने इन्हें स्वीकार किया.

ये पढ़े लिखे और अंग्रेज़ी बोलने में माहिर हैं. पश्चिमी संस्कृति से भी रुबरु हैं. ऐसे में इन्हें पश्चिमी देशों का समर्थन मिलता रहा है और इनकी अमेरिका से भी अच्छे संबंध हैं. ऐसे में इनके अनुभव के आधार पर अगर इन्हें बड़ा पद मिलता है तो तालिबान को फायदा हो सकता है. हामिद करज़ई के संबंध भारत से भी बेहतर रहे हैं. ऐसे में कूटनीति तौर पर भी हामिद करज़ई की भूमिका बड़ी से होने से आसपास के देशों से रिलेशन बेहतर बनाने की कोशिश हो सकती है.

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