‘रूसी सुनकर डेंड्रफ समझा क्या, डेंड्रफ नहीं डेंजर है’ ये मीम नहीं हक़ीक़त है व्लादिमीर पुतिन की
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वायरल हो रहा है पुतिन पर बना मीम
Russian Ukraine War: सोशल मीडिया के इस दौर में इस वक़्त एक मीम बहुत तेजी से वायरल हो रहा है। अल्लू अर्जुन की सुपरहिट दक्षिण भारतीय फिल्म पुष्पा के डायलॉग से मिलते जुलते उस मीम को लोग बेहद पसंद भी कर रहे हैं और चुटकी भी ले रहे हैं।
ये मीम रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को लेकर बनाया गया है। टोस्ट लिए पुतिन की फोटो और फोटो के नीचे लिखा हुआ है, ‘रूसी सुनकर डेंड्रफ समझा क्या, डेंड्रफ नहीं डेंजर है’।
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कहने को ये मीम है यानी हंसी मज़ाक की चीज़। मगर असल में व्लादिमीर पुतिन किसी भी लिहाज से इस वक़्त हंसी मज़ाक की बात नहीं। बल्कि शायद इस वक़्त पूरी दुनिया में यही इकलौता नाम है जो सबसे ज़्यादा लोगों की ज़ुबान पर है।
हर तरफ हो रहा है पुतिन के नाम का चर्चा
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Russian Ukraine War News: 24 फरवरी 2022। इसी तारीख़ को रूसी सेना ने यूक्रेन पर हमला किया। यूक्रेन में तो हमले के बाद हाहाकार मच गया। लेकिन दुनिया भर में व्लादिमीर पुतिन के नाम का चर्चा शुरू हो गया। हरेक की जुबान से बस एक ही नाम सुनाई दे रहा है, पुतिन.. पुतिन...
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सबसे मजे की बात तो ये है कि पान की दुकान से लेकर बड़ी बड़ी पंचायत तक इस अकेले नाम का भौकाल बना हुआ है। पुतिन के बारे में पता किसी को कुछ नहीं, बस बहस और बातों में हर कोई अपनी तरफ से एक नई बात छौंक देता है। ऐसे में ये समझ में आने लगा कि लगे हाथों व्लादिमीर पुतिन के बारे में समझ लेना और समझा देना मुनासिब होगा।
अमेरिका के पिछलग्गुओं को इसलिए नहीं पसंद पुतिन
Russian Ukraine War Update: असल में व्लादिमीर पुतिन इस वक़्त रूस के राष्ट्रपति हैं, अपनी ज़िद के मालिक और दुनिया के सामने यूक्रेन के नज़रिए से शायद सबसे बड़े विलेन भी। मगर यही इकलौता नाम है जिसके सामने दुनिया के सबसे ताक़तवर देश अमेरिका की सारी हेकड़ी निकल जाती है।
अमेरिका तो व्लादिमीर पुतिन को कतई पसंद नहीं करता, उसकी देखा देखी या यूं भी कहा जा सकता है कि अमेरिका के सामने तमाम यूरोपीय देश भी व्लादिमीर पुतिन को पसंद न करने का ढोंग भी करते देखे जाते हैं। जिनमें नाटो देश सबसे पहले आते हैं। अब ये अमेरिका और उसके दोस्त देशों की दिक़्कतें हैं...इसके बारे में चर्चा फिर कभी, लेकिन मौजूदा वक़्त में व्लादिमीर पुतिन कौन है, इसके बारे में पहले समझ लेते हैं।
मोहल्ले की मार ने सिखा दिया जूडो
Russian Ukraine War: तो व्लादिमीर पुतिन इस वक़्त 65 साल के हैं। 7 अक्टूबर 1952 में USSR के लेनिनग्राद और आज के रूस के सेंट पीट्सबर्ग में पुतिन का जन्म हुआ था। पुतिन की परवरिश ऐसे माहौल में हुई थी जहां आमतौर पर सयाने होते लड़के आपस में मारपीट करते ही रहते हैं।
जैसा हिन्दुस्तान के अलग अलग गली मोहल्लों में भी नज़र आ ही जाता है। ऐसे में कई मौकों पर पुतिन अपने से ताक़तवर लड़कों से कई बार मार भी खा चुके। लिहाजा बचपन में मोहल्लों में खाई मार उन्हें जूडो की तरफ खींच ले गई। और व्लादिमीर पुतिन जूडो में ब्लैक बेल्ट वाला रुतबा रखते हैं। मार्शल आर्ट के इस खेल की दो खूबियां पुतिन में कूट कूटकर भरी हुई है, पहला मौके की ताक और दूसरा आक्रामकता।
सड़कों पर सीखा सबक सियासत में काम आया
Russian Ukraine War: क्रेमलिन की वेबसाइट में पुतिन के बारे में जो लिखा है उसके मुताबिक खुद पुतिन इस बात के कायल हैं कि लेनिनग्राद की सड़कों पर ज़िंदगी का सफर तय करते समय उन्हें यही सीख मिली है कि अगर लड़ाई होनी तय है तो पहला पंच मार दो। और उनकी रणनीति में ये बात उनके स्वभाव और फैसलों में भी दिखाई देती है। और यूक्रेन पर हुए रूस के हमले में ये बात सभी ने नोटिस भी की। पुतिन ने दुनियाभर की परवाह न करते हुए सीधे यूक्रेन पर हमला कर दिया।
पुतिन अपनी पढ़ाई ख़त्म होने से बहुत पहले ही रूस की खुफिया एजेंसी के लिए काम करना चाहते थे। और क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद व्लादिमीर पुतिन USSR की खुफिया एजेंसी KGB से जुड़े।
जासूस से राष्ट्रपति बनने तक का सफर
Russian Ukraine War: और जिस समय जर्मनी पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में बंटा हुआ था तो साम्यवादी विचारधारा वाले पूर्वी जर्मनी में पुतिन लंबे समय तक जासूस बनकर रहे। KGB में पुतिन ने कई बड़े ऑपरेशन किए और कई अहम पदों की ज़िम्मेदारी संभाली।
राजनीति की तरफ शुरू से रुझान होने के बावजूद व्लादिमीर पुतिन 1997 में रूस के पहले राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकार में शामिल हुए और फेडरेल डिफेंस सर्विस के मुखिया नियुक्त किए गए।
लेकिन 1999 का साल पुतिन की ज़िंदगी ने एक नई और बड़ी करवट ली। उस वक़्त बोरिस येल्तसिन को राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा, तब रूस के पोलित ब्यूरो ने पुतिन को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया था। और बस तभी से रूस की बागडोर व्लादिमीर पुतिन के हाथों में है।
रूस को दिलाई खोई हुई इज़्ज़त
Russian Ukraine War: रूस में एक नियम है कि कोई भी वहां लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ सकता। तो व्लादिमीर पुतिन ने 2008 में राष्ट्रपति न बनकर प्रधानमंत्री बन गए और रिमोट कंट्रोल से सरकार के तमाम फैसले लेते हुए 2012 में फिर से राष्ट्रपति का चुनाव जीत कर कुर्सी संभाल ली।
पुतिन ने उसके बाद से जो भी फैसला किया उसने रूस को एक बार फिर दुनिया के सबसे मज़बूत और ताकतवर देशों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया। यानी रूस को उसकी खोई हुई इज्ज़त दिलवा दी।
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