पानी और हवा के बीच लटकी 155 ज़िंदगियां!

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पानी और हवा के बीच लटकी 155 ज़िंदगियां!
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15 जनवरी 2009 की सुबह यूएस एयरवेज़ की फ्लाइट 1549 उड़ान को तैयार थी, हर दिन की तरह रूट लोगार्डिया से शेर्लोट के लिए निकला था। प्लेन से जुड़ी हर एक जांच पूरी की गई, प्लेन उड़ान भरने के लिए तैयार था। कप्तान ने भी हरी झंड़ी दे दी थी, घड़ी में दोपहर के तीन बजकर 24 मिनट हो रहा था। 66 टन वज़नी इस विमान में कंबाइंड थर्स्ट वाले दो इंजन लगे थे। विमान में क्रू मेंबर के अलावा 155 यात्री सवार थे, फ्लाइट पाथ पर गौर करें तो ये विमान न्यूयॉर्क शहर के उत्तर दिशा में आगे बढ़ना था और फिर पश्चिम की ओर शार्लोट की तरफ मुड़ जाना था, जिसमें दो घंटे का वक्त लगने वाला था।

अमेरिका के ग्वार्डियाज़ नॉर्थईस्ट से एयरबस ए 320 टेकऑफ किया। विमान को उड़ान भरे सवा मिनट बीत चुके थे और ये 250 मील प्रति घेंट की रफ्तार से फर्राटा भर रहा है। और 54 सेकेंड बाद विमान 3200 फीट की ऊंचाई पर पहुंच गया। ये सफर बेहद सामान्य अंदाज़ में सहज भाव से आगे बढ़ रहा था कि तभी एक ज़ोरदार आवाज़ होती है, एक पक्षी विमान के इंजन से टकराया।

एक पक्षी प्लेन के ऊपर मंडरा रहा था, कप्तान चैस्ले के मुताबिक़ प्लेन के ऊपर अचानक से पक्षी गिरने लगे और बहुत जोर से आवाज़ होने लगी, हर दूसरी आवाज़ से ऐसा लग रहा था, जैसे मानो कोई कड़कड़ाती बिजली हो। कुछ पक्षी प्लेन के दोनों तरफ के इंजन में जाकर घुस गए। जिस चीज का डर था, वही हुआ, इंजन में उनके जाते हीं आग की लपटें निकलने लगी।

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दोनों इंजन ने काम करना बंद कर दिया, प्लेन के अंदर बात होने लगी की इतनी आवाज़ आखिर क्यों हो रही है? थोड़ी ही देर में यात्रियों को आग की लपटें निकलती दिखने लगी. ईंधन की महक भी उन्हें आने लगी थी।

तमाम यात्रियों को एहसास हो चुका था कि कुछ तो गड़बड़ है, विमान के कैप्टन ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल को तुरंत इस हादसे की जानकारी दी, एयरबस 18 फीट प्रति सेकेंड की गति से नीचे की तरफ आ रहा था, इस रफ्तार के हिसाब से एयरबस 3 मिनट से भी कम वक्त में न्यूयॉर्क शहर में क्रैश हो जाता।

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विमान के अंदर सन्नाटा छा गया था, इंजन से आने वाली आवाजें भी बंद हो गई थी, यात्रियों को एहसास था कि किसी चीज़ की आवाज़ तो आ रही थी, लेकिन वह क्या था? ये कोई नहीं जानता था। इंजन के बंद हो जाने के बाद प्लेन हवा में था, वो तेजी से ऊपर की ओर जा रहा था, असली परेशानी ये थी कि प्लेन 3,000 फीट से ज्यादा ऊपर नहीं जा सकता था।

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अब समय आ चुका था, जब किसी भी कीमत पर प्लेन को नीचे उतरना था और यहीं से शुरू होती है चमत्कार की कहानी। टेकऑफ के पौने 3 मिनट में ही फ्लाइट 1549 के साथ हादसा हो गया, जाहिर है मौत महज 3 मिनट के फासले पर खड़ी थी और अब 155 पैसेंजर और क्रू मेंबर की जान कैप्टन चेस्ले सलेनबर्गर उर्फ सैली की समझ-बूझ पर टिकी है।

58 साल के सैली की रिटायरमेंट को महज 7 साल बचे थे, वो काफी तर्जुबेकार पायलट थे और यूएस एयरवेज़ के लिए 30 साल से काम कर रहे थे, लेकिन कभी उनके सामने ऐसे हालात नहीं बने थे, बहरहाल अब उनके पास अपने फ्लाइंग एक्सपीरियंस के कला-कौशल का दमखम दिखाने के लिए सिर्फ 3 मिनट थे। पूर्व एयरबस पायलट जे जोसेफ इस विमान में फ्लाइट सिमुलेटर की भूमिका में थे जबकि कैप्टन सलेनबर्गन विमान को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे थे।

को-पायलट एयरबस मैन्युल के हिसाब से इंजन को रि-स्टार्ट करने में जुटे थे लेकिन वक्त बहुत कम था। एयर ट्रैफिक कंट्रोलर पैट्रिक ने तुरंत ही लोगार्डिया से उड़ान भरने वाले सभी विमानों को हटाने का आदेश दे दिया, क्योंकि प्लेन 1549 कभी भी रनवे नंबर 13 लैंडिंग के लिए आ सकता था। सब चैस्ले के वापस लौटने की राह देख रहे थे, चैस्ले ने एयरपोर्ट पर लैंड का मन बनाया, कंट्रोलर ने भी इसकी अनुमति दे दी थी, लेकिन चैस्ले ने बाद में इसके लिए मना कर दिया। चैस्ले ने कहा कि ‘हम ये नहीं कर सकते हैं’।

पायलट के मुताबिक यहां तक पहुंचना मुश्किल था, लिहाजा विमान ने न्यूजर्सी में टीटरबोरो का रुख किया, मगर वो भी 6 मील की दूरी पर था, अगर विमान यहां तक पहुंच गया तो ठीक, अगर नहीं पहुंचा, तो नतीजे विनाशकारी होने वाले थे। ना सिर्फ प्लेन के लिए बल्कि ज़मीन पर मौजूद लोगों के लिए भी। अब फ्लाइट 1549 दो मिनट से भी कम वक्त में ज़मीन पर होगी, अब क्या होने वाला है ये सोचकर सबकी सांसे थमी हुई थीं।

लाग्वार्डिया पहुंच से दूर है और टीटरबोरो भी, लिहाजा कैप्टन सलेनबर्गर ने तय किया कि वो अब विमान को हडसन नदी पर ही उतारने वाले हैं। ये फैसला बेहद खतरनाक था क्योंकि इससे पहले विमान को पानी पर लैंड कराने की कोशिशें नाकाम रही थीं।

1996 में इथोपियन एयरलाइंस का बोइंग 767 भारतीय महासागर में खत्म हो गया था, विमान में सवार 175 लोगों में से 125 लोगों की तत्काल मौत हो गई थी। हडसन नदी अमेरिका के न्यूयॉर्क से न्यू जर्सी तक होकर गुज़रती है, और चैस्ले इसी पर प्लेन लैंड कराने वाले थे।

न्यूयॉर्क में लोगों को प्लेन साफ तौर पर नीचे आता दिखाई दे रहा था, मगर अभी भी चैस्ले प्लेन को हडसन नदी पर प्लेन लैंड कराने का आत्मविश्वास नहीं जुटा पा रहे थे क्योंकि उनके इस फैसले के बीच हडसन नहीं पर बना 600 फीट ऊंचा जॉर्ज वाशिंगटन ब्रिज आ रहा था, जिसे चैस्ले ने महज 900 की ऊंचाई से पार किया।

यात्री खिड़कियों से प्लेन को हर पल नीचे गिरते हुए देख रहे थे, कई यात्री मान चुके थे कि वो मरने वाले हैं, तभी अचानक से कप्तान की आवाज़ आई. ‘खुद को सिकोड़ लो’। ये वो बात थी, जिसे कोई भी नहीं सुनना चाहता था। प्लेन का क्रू भी इसे पहली बार सुन रहा था, इसका सीधा मतलब था कि प्लेन क्रेश होने वाला है।

माना जाता है की प्लेन हादसे के समय सिकुड़ कर बैठने से चोट लगने का खतरा कम हो जाता है। नौ सेकंड बाद करीब 3:31 बजे हड़सन नदी पर प्लेन लैंड की तैयारी की गई, न कि एयरपोर्ट पर। प्लेन कर्मियों के मुताबिक़ लैंडिंग बहुत ही मुश्किल थी, जब प्लेन बस नदी के पानी से थोड़ा सा ही ऊपर था तब सबसे पहले प्लेन का पिछला हिस्सा पानी से टकराया, उसके बाद बाकी प्लेन, चैस्ले ने तुरंत ही प्लेन के दरवाजे खोले और सबको जल्दी से बाहर निकलने को कहा।

आपातकालीन दरवाजे भी खोल दिए गए। एक-एक करके सब नदी में कूद गए, तभी मौके पर वहां कुछ नौका आ गई। चैस्ले ने उन्हें कहा कि यात्रियों को पहले बचाया जाए, थोड़ी ही देर में यात्रियों को बचा लिया गया। 140 दमकल कर्मियों के साथ पुलिस का एक बड़ा दल यात्रियों को सही सलामत बचाने के लिए तैयार था।

चैस्ले की ये प्लेन लैंडिंग इतिहास में दर्ज हो गई, लैंडिंग इतनी स्मूथ थी कि क्रू समेत तमाम मुसाफिर सुरक्षित निकाल लिए गए, सिर्फ पांच लोगों को मामूली चोटें आईं। फ्लाइट 1549 का 3 मिनट का ये सफर जितना खतरनाक था, उसका अंत किसी चमत्कार से कम नहीं था।

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