लखीमपुर हिंसा साजिश थी, मौके पर था मंत्री का बेटा, फायरिंग भी हुई; 5 हजार पन्नों की चार्जशीट में खुलासा
लखीमपुर खीरी हिंसा : हादसा नहीं, बल्कि सोची समझी साजिश थी, SIT की 5 हजार पन्नों की चार्जशीट में खुलासा : UP Crime News SIT files chargesheet in Lakhimpur Kheri violence, Read more crime news in hindi
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UP Lakhimpur Kheri Violence Chargesheet News : उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में आगजनी और हिंसा अचानक हुई कोई दुर्घटना नहीं थी. बल्कि एक सोची समझी साजिश थी. ये खुलासा मामले की जांच कर रही एसआईटी (SIT) की चार्जशीट में हुआ है. इस पूरी साजिश में मुख्य आरोपी केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा को ही बनाया गया है. पूरी घटना में कुल 14 आरोपी बनाए गए हैं. इसमें आशीष मिश्रा की पिस्टल से फायरिंग होने का भी जिक्र किया गया है.
करीब 5 हजार पन्नों की ये चार्जशीट अब कोर्ट में दाखिल कर दी गई. घटना के 90 दिनों में ही ये चार्जशीट पेश की गई है. इस चार्जशीट में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी (Ajay Mishra) के बेटे आशीष के करीबी वीरेंद्र कुमार शुक्ला का नाम भी जोड़ा गया है. वीरेंद्र शुक्ला रिश्ते में आशीष मिश्रा का मामा बताया जा रहा है. लेकिन इसमें केंद्रीय राज्य मंत्री का नाम शामिल नहीं है.
हालांकि, किसानों की तरफ से कोर्ट में पेश होने वाले वकील ने मंत्री अजय मिश्रा के नाम को भी आरोप पत्र में जोड़ने की अर्जी दी थी. लेकिन जो फाइनल चार्जशीट बनाई गई उसमें अजय मिश्रा का नाम नहीं है.
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Uttar Pradesh: SIT files chargesheet against 14 accused in the Lakhimpur Kheri violence case
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) January 3, 2022
"Name of one more person, Virendra Shukla, has been added in the chargeseet. He has been charged under Section 201 of IPC," prosecution lawyer says
3 अक्टूबर 2021 की घटना में हुई थी 8 की मौत
lakhimpur kheri violence case : बता दें कि लखीमपुर में 3 अक्टूबर 2021 को बड़ी घटना हुई थी. जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना में एक पत्रकार की भी जान गई थी. इस केस में किसानों की तरफ से मामला दर्ज कराया गया था.
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इस केस में मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा मोनू समेत 13 लोगों को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया था. आरोपी आशीष मिश्रा की तरफ से भी मामले में एक रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी.
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जानकारी मिली है कि इस केस में जांच कर रही SIT यानी स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने अब 5 हजार पन्ने की चार्जशीट दाखिल की है. इसमें लखीमपुर के तिकुनिया में हुई घटना को लेकर किसानों की तरफ से एडवोकेट अमान ने मीडिया को बताया कि एफआईआर में आईपीसी की धारा-201 को जोड़ा गया है.
आईपीसी की धारा-201 का मतलब होता है तो साक्ष्यों को मिटाना. इसके साथ ही वीरेंद्र कुमार शुक्ला के नाम को जोड़ा गया है हालांकि मंत्री के नाम को इसमें शामिल नहीं किया गया है.
न्यायालय की फटकार व सत्याग्रह के चलते अब पुलिस का भी कहना है कि गृह राज्यमंत्री के बेटे ने साजिश करके किसानों को कुचला था
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) December 14, 2021
जांच होनी चाहिए कि इस साजिश में गृहराज्यमंत्री की क्या भूमिका थी? लेकिन @narendramodi जी किसान विरोधी मानसिकता के चलते आपने तो उन्हें पद से भी नहीं हटाया है। pic.twitter.com/ZLRNNefz7I
SIT ने हादसा नहीं, सोची-समझी साजिश बताया
SIT files chargesheet in Lakhimpur Kheri violence : बता दें कि इस घटना को आज पूरे 90 दिन पूरे हो गए. नियमानुसार पुलिस जांच के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करती है. इस केस की जांच के लिए गठित एसआईटी ने 90 दिनों के भीतर चार्जशीट बनाकर पेश कर दिया है.
इस रिपोर्ट में ये बताया गया है कि ये कोई दुर्घटना नहीं थी. बल्कि सोची समझी साजिश थी. यानी चार्जशीट में ये दावा किया है कि किसानों को जिस तरह से गाड़ी से रौंदा गया था वो कोई अचानक हुआ हादसा नहीं था. बल्कि पूरा एक षड़यंत्र था. इसलिए कोर्ट में ये भी अनुरोध किया गया कि मामले में आरोपियों के खिलाफ धाराओं में कुछ बदलाव करने की जरूरत है.
लखीमपुर हिंसा : 5000 पन्नों की चार्जशीट के 5 वो बड़े सबूत, जिसने खोला मंत्री बेटे का कच्चा-चिट्ठाक्या थी घटना
ये घटना लखीमपुर के तिकुनिया कस्बे में 3 अक्टूबर 2021 को हुई थी. उस दिन तिकुनिया क़स्बे में उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का किसान विरोध कर रहे थे. उसी दौरान किसानों पर गाड़ियां चढ़ाई गईं थीं. इसे अंजाम देने का आरोप बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा से जुड़े लोगों पर लगा था.
इस घटना में कुल 8 लोगों की मौत हो गई थी. जिनमें चार किसानों और एक पत्रकार की मौत तो कार से कुचलने की वजह से हुई थी. वहीं, मौके पर जुटी भीड़ ने गुस्से में कारों में सवार तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. इस तरह कुल आठ लोगों की जान गई थी. इस घटना की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी लखीमपुर खीरी मामले का खुद ही संज्ञान लिया था.
इन बातों से समझें चार्जशीट में क्या है ख़ास
मुख्य और सह अभियुक्त बनाए : चार्जशीट के अनुसार, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी का बेटा आशीष मिश्र मुख्य अभियुक्त हैं. इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश दास के भतीजे अंकित दास के अलावा 12 अन्य आरोपियों को सह अभियुक्त बनाया गया है.
फ़ॉरेंसिक रिपोर्ट को बनाया सबूत : 5 हजार पन्नों की चार्जशीट में अहम सबूत जुटाए गए हैं. इसके लिए अभियुक्तों के मोबाइल फ़ोन, उनसे बरामद हथियार और घटना को लेकर सामने आए तमाम वीडियो की फ़ॉरेंसिक जांच कराई गई थी. उनकी रिपोर्ट को भी शामिल किया गया है.
घटनास्थल पर ही था आशीष मिश्रा : सूत्रों के मुताबिक, चार्जशीट में एसआईटी ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा के बारे में दावा किया है कि वो यानी आशीष मिश्रा घटनास्थल पर ही मौजूद था.
स्कॉर्पियो थी सगे साले वीरेंद्र की : रिपोर्ट के अनुसार, आशीष मिश्रा की थार जीप के पीछे चल रही दो गाड़ियों में से एक वीरेंद्र शुक्ला की स्कॉर्पियो थी. ये वीरेंद्र शुक्ला ही आशीष के मामा और केंद्रीय राज्य मंत्री के सगे साले हैं. वीरेंद्र शुक्ला ने पहले अपनी स्कॉर्पियो छिपाकर दूसरे की गाड़ी को मौके पर होना बताया था.
आशीष के हथियार से फायरिंग : एसआईटी ने अपनी जांच में लखीमपुर हिंसा में आशीष मिश्रा के हथियार से फायरिंग होने की पुष्टि की है. दावा है कि आशीष मिश्रा की रिवॉल्वर और राइफल से भी फायरिंग की गई.
आशीष मिश्रा का दावा झूठा : जांच के दौरान आशीष मिश्रा ने दावा किया था कि उसके असलहों से 1 साल से फायरिंग नहीं की गई है. लेकिन एसआईटी ने चार्जशीट में आशीष मिश्रा और अंकित दास के लाइसेंसी असलहों से फायरिंग की पुष्टि की है. ये पुष्टि बैलेस्टिक रिपोर्ट के आधार पर हुई है.
वीरेंद्र शुक्ला पर साक्ष्य मिटाने का सबूत : इस केस में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा समेत सभी आरोपी जेल में बंद हैं. इस चार्जशीट में पहली बार वीरेंद्र शुक्ला का नाम जोड़ा गया है. इस पर आईपीसी की धारा-201 यानी सबूत मिटाने की साजिश करने का आरोप है.
90 दिनों में नहीं होती चार्जशीट तो मिलता फायदा : इस आरोप पत्र को दाखिल करने की अवधि 90 दिनों की थी. 3 जनवरी को 90वां दिन था. उसी दिन एसआईटी ने रिपोर्ट दाखिल की. अगर एसआईटी ऐसा नहीं करती तो सभी अभियुक्तों के लिए जमानत लेने में आसानी होती और कानूनी रास्ते खुल जाते. लेकिन अब ये फायदा नहीं मिलेगा.
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