UP Chunav : मुझे तो पुलिसवालों ने रंगबाज बना दिया वरना मैं आदमी बड़े काम का, गरीबों का रॉबिनहुड हूं
मुझे तो पुलिसवालों ने रंगबाज बना दिया वरना मैं आदमी काम का था Bhupendra Bafar crime story assembly, read more crime election news, crime stories in hindi, cyber crime and viral video on crime tak
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मेरठ की सिवालखास सीट से उस्मान चौधरी, मनीषा झा, विनोद शिकारपुरी के साथ सुनील मौर्य की रिपोर्ट
"हम तो पढ़े-लिखे और आत्मस्वाभिमानी हैं. वो तो पुलिसवालों ने मुझे रंगबाज का मुखौटा पहना दिया. वरना हम भी इंसान बड़े काम के थे. और आज भी हैं. गरीबों, दलितों और जरूरमंदों के लिए रॉबिनहुड हूं".
हल्की मुस्कान के साथ अपनी टोपी को ठीक करते हुए ये बातें भूपेंद्र बाफर ने कही. वैसे तो इनका नाम भूपेंद्र सिंह हैं. लेकिन बाफर गांव का होने की वजह से लोग इन्हें भूपेंद्र बाफर (Bhupendra Bafar) के नाम से जानते हैं.
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लेकिन ये उनका पूरा परिचय नहीं है. बल्कि अधूरा ही है. ये फिलहाल मेरठ के सिवालखास विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. और प्रत्याशी हैं आजाद पार्टी (कांशीराम) से. वैसे तो इन पर छोटे बड़े सभी आपराधिक मामलों को मिलाकर मीडिया ने 31 केस दर्ज होने का दावा किया है. लेकिन इस सवाल के पूछने पर भूपेंद्र सिंह बाफर थोड़ा रुक जाते हैं. कहते हैं ना जी इतने तो मुकदमे नहीं है.
मीडियावाले तो मुझे बड़ा गब्बर बताते हैं
CRIME TAK से भूपेंद्र कहते हैं.... वो मीडियावाले तो ऐसे ही बड़ा विलेन बना रहे हैं. मैं तो बहुत सारे केस में बरी हो गया. फिर अपने साथी से कहते हैं, भाई वो जरा क्राइम वाली हिस्ट्री दिखाना. फिर उसे देखकर भूपेंद्र बताते हैं...लो जी ये देखो. मेरे ऊपर अब तो सिर्फ 7 केस ही बचें हैं. इसलिए मैं कह रहा था कि मीडियावाले तो ऐसे ही मुझे बड़ा गब्बर दिखा रहे हैं.
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मैं तो अपने आत्म-स्वाभिमान के लिए जरा कुछ लोगों से जरूर कह देता हूं. लेकिन मीडिया में सबसे बड़ा आपराधिक छवि वाला बता दिया गया. अब बताइए किसी परेशान व्यक्ति की मदद के लिए किसी को फोन कर दूं तो लोग उसे ही गब्बर वाला स्टाइल समझ लेते हैं.
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अब आप ही बताओ कोई किसी का पैसा हड़पकर नहीं दे रहा है. उसकी पुलिस भी सुनवाई नहीं कर रही है. अब उसकी मदद के लिए परेशान करने वाले व्यक्ति को जरा फोन कर डालूं और वो काम 4-5 घंटे के भीतर ही पूरा हो जाए तो उसे क्या कहेंगे.
ऐसे तो हम किसी की मदद ही करते हैं. पर आपको एक खास बता बताऊं, मैं अगर इतना बड़ा रंगबाज ही होता तो अपने फंसे हुए लाखों रुपये भी निकाल लेता. लेकिन ऐसा नहीं कर पा रहा हूं. मैं तो बस रॉबिनहुड स्टाइल में दूसरों की मदद कर देता हूं.
मैं तो टॉप-5 अपराधी नेताओं में भी नहीं : बाफर
मेरठ इलाके में राऊडी वाली इमेज और दर्ज आपराधिक केस वाले सवाल पर भूपेंद्र बाफर ने तो गजबे जवाब दे मारा. वो कहते हैं ना कि अपराध में राजनीति है या फिर राजनीति में अपराध घुसी पड़ी है. इस पर भूपेंद्र ने कहा कि.. अरे जी हम तो अपराध वाली लिस्ट में टॉप-5 में भी नहीं हैं.
फिर थोड़ा दिमाग पर जोर मारते हुए भूपेंद्र कहते हैं कि..
जरा मेरठ के प्रत्याशियों के पूरे अपराध वाली लिस्ट ही आप देख लो. किसी पर 4 दर्जन मामले तो किसी पर 3 दर्जन भर के क्रिमिनल केस हैं. हमारा नंबर तो छठवें या सातवें पर आता है. वैसे भी हम पेशेवर क्रिमिनल नहीं हैं. हमें तो आप हालात और जज्बात से बने अपराधी कह सकते हैं. जो दूसरों की मदद ही करता है. मेरे परिवार का भी इससे दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है. दोनों बेटियां इंजीनियरिंग कर नौकरी कर रही हैं. एक तो विदेश में सेटल हो गई.
.. तो फिर 1985 में पहला केस बैंक डकैती का कैसे लगा?
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, 1985 में भूपेंद्र बाफर पर बैंक लूट मामले में केस दर्ज हुआ था. इसके बाद लूट, डकैती समेत हत्या के मामले तक दर्ज हुए. फिर मेरठ के जानी थाने में हिस्ट्रीशीट भी खोली गई. पहला केस ही बैंक डकैती का हुआ था, अब ऐसे सवाल पर भी भूपेंद्र बाफर बिफरे नहीं. बल्कि ये खुलासा किया. बोल बैठे कि... बैंक लूट को तो एक गांव के कुछ अपराधी किस्म के लोगों ने अंजाम दिया था.
मैं तो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला था. लेकिन हुआ क्या कि जहां से अपराधी किस्म के लोगों ने मेरा नाम ले लिया. और फिर पुलिस का क्या, ना जांच की और ना ही पड़ताल. बस डाल दिया जेल के अंदर. फिर क्या लूट की दूसरी घटनाओं में हमारा नाम ले लिया. पुलिस का क्या, उन्हें तो बस नाम जोड़ना है. लेकिन अदालत ने मुझे इन मामलों में बरी कर दिया था. क्योंकि मैं शामिल नहीं था. लेकिन दूसरे नेताओं के लिए तो कहने के लिए बहाना मिल गया न.
तो क्या आप अपराध के किसी मामले में शामिल नहीं रहे. जैसे ही ये सवाल भूपेंद्र बाफऱ से पूछा तो तुरंत बोल बैठे. हां. मामले तो हैं. और कुछ सही भी हैं. क्योंकि अब देखो कोई हमें धमकाएगा. और जान से मारने की कोशिश करेगा तो हमें भी जवाब देना आता है. इसलिए कुछ केस में जवाब बस दिया तो रिपोर्ट हो गई. जेल भी जाना पड़ा.
फिल्म सौदागर की तरह है सुशील मूंछ और भूपेंद्र की लड़ाई
मेरठ में ऐसा कोई नहीं है जो कुख्यात सुशील मूंछ का नाम ना सुना हो. अब सुशील मूंछ का नाम आए और फिर भूपेंद्र बाफर की बात ना हो. ये भी संभव नहीं. अभी पिछले साल सुशील मूंछ से जान को खतरा बता भूपेंद्र को 2 गनर मिले थे. जिसे बाद में हटा लिया गया. दावा ये भी है कि सुशील मूंछ के एक साथी को मरवाने में भूपेंद्र का हाथ था. इसलिए जेल भी जाना पड़ा था और अभी कुछ महीने पहले ही वो जमानत पर आए.
इसलिए भूपेंद्र से जब सुशील मूंछ से लड़ाई को लेकर सवाल पूछा गया तो कहानी पूरी फिल्म वाली निकली. ठीक वैसे ही जैसे कई साल पहले आई सौदागर फिल्म से मिलती जुलती है. जिसमें शुरुआत में अच्छी दोस्ती निभाने वाले राज कुमार और दिलीप कुमार बाद में एक दूसरे के जानी दुश्मन बन जाते हैं. ठीक वैसे ही कुख्यात सुशील मूंछ और भूपेंद्र के बीच की कहानी है.
खुद भूपेंद्र बाफर बताते हैं कि हमारी 35 साल पुरानी दोस्ती है. बहुत अच्छे दोस्त थे. लेकिन बाद में एक और क्रिमिनल की हमारी दोस्ती में एंट्री होती है. फिर उसी वजह से हम दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे. वो हमें मारने की फिराक में है. भले ही हम दोनों एक दूसरे के खिलाफत कर रहे हैं पर हमारे परिवार की दोस्ती आज भी एक है. एक दूसरे परिवार की महिलाएं आपस में मिलती जुलती हैं. पर हमारी लड़ाई अभी बरकरार है.
प्रधानी और ब्लॉक प्रमुख बनने तक जमीन से जुड़ा रहा : बाफर
इनके प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी मनिंदरपाल सिंह ने दावा किया कि “मेरे खिलाफ दर्ज सभी मामले राजनीति से प्रेरित हैं और मामूली अपराध हैं लेकिन बाफर एक कुख्यात अपराधी है जिस पर हत्या, डकैती, अपहरण और लूट के आरोप हैं.
ऐसे में राजनीति में आने को लेकर भूपेंद्र बाफर कहते हैं कि ये कोई पहली बार नहीं है कि हम इसमें कदम रखे हैं. पहले भी प्रधानी जीत चुका हूं. ब्लॉक प्रमुख भी रहा. तब भी लोगों ने प्यार दिया और आज भी करते हैं. इसलिए देखिएगा चुनाव में पूरी टक्कर दूंगा.
और रही बात आपराधिक इतिहास कि तो हमसे बड़े वाले अपराधी चुनाव लड़ रहे हैं. वो बात अलग है कि बदनाम सिर्फ मुझे किया जा रहा है. हम तो पहले भी लोगों के साथ थे और आज भी हैं और हमेशा रहेंगे.
यहां बता दें कि मेरठ की सिवालखास सीट पर 3.24 लाख वोटर हैं. इनमें से लगभग 30 प्रतिशत मुस्लिम और 20 प्रतिशत जाट वोटर हैं. जबकि अनुसूचित जाति के लगभग 18 प्रतिशत मतदाता हैं. अब देखने वाली बात है कि 10 फरवरी को आखिर किस पार्टी के नेता को जीत मिलती है.
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