UP के कैराना में डर से पलायन है या कहानी कुछ और है, इस चचा के विकिपीडिया ने तो गजबे बता दिया
यूपी के कैराना में पलायन की ये वजह पहले कभी नहीं आई, इस चचा से जान लीजिए गजबे की कहानी UP election 2022 Kairana News
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कैराना से फ़र्रूख हैदर, चिराग गोठी, प्रिवेश पांडे, विनोद शिकारपुरी के साथ सुनील मौर्य की रिपोर्ट
UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश का चुनावी रंग. और इस माहौल में कैराना की बात. कैराना वही जहां से लोगों के पलायन की ख़बरें आईं. वही जगह जहां के कुछ मकानों पर लिख दिया गया कि ये मकान बिकाऊ है. वही कैराना जहां हिंदू-मुस्लिम में दुश्मनी की ख़बरें आईं.
ऐसे में सवाल था कि आखिर इनके पीछे ऐसे कौन से लोग हैं जो खुशियों के रंग में भंग डाल रहे हैं. वो कौन से लोग हैं जो पलायन करने पर मजबूर कर दे रहे हैं. आखिर ऐसे कौन से रंगबाज हैं जो यहां के सौहार्द में खलल डाल रहे हैं.
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इनका पता लगाने के लिए क्राइम तक की टीम वहां पहुंची. कई लोगों से बात की. कभी किसी चचा से तो कभी बुजुर्ग से. हर तरह की बातें हुईं. लेकिन जो लोगों ने बातें बताईं उससे सुनकर तो यही लगा कि जो हमने दूर से देखा और सुना, पास आकर तो कुछ और ही समझ आया.
कोई रोजगार के लिए कहीं गया तो उसे पलायन कहेंगे
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यहां के एक चचा ने तो ऐसी बातें कहीं. जिसे जानकर लगा कि कैराना का इतिहास तो हमलोग जानते ही नहीं. अब जब उन चचा की बात आप भी जानेंगे तो यही सोचेंगे. वाकई में ऐसी बातें तो कभी सामने आई ही नहीं.
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उन चचा ने बताया कि कैराना को तो यूं ही बदनाम किया जाता है. ऐसी बातें सुनकर बड़ा दुख होता है. कैराना तो घराना है. वो घराना जिसमें शास्त्रीय संगीत है. इस घराने में कई उस्ताद भी हुए. ऐसे उस्ताद हुए जिनका देश ही नहीं विश्व में नाम हुआ.
चचा तो ये भी बताते हैं कि अमेरिका में कैराना घराना नाम से संगीत का स्कूल भी है. अब दुनिया में कैराना के घराने को पहचान मिली. लेकिन अपने आसपास में ही नहीं. इसलिए लोग रोटी रोजी के लिए यहां से कोई कोलकाता तो कोई बॉम्बे चला गया.
अब लोग इसे ही कह देते हैं कि कैराना से तो पलायन हो गया. अब कोई रोजगार के लिए गांव घर छोड़ के कहीं चला जावे तो उसे का कहेंगे. इसे पलायन कहेंगे क्या. असली पलायन का तो कोई नाम ही नहीं लेता है.
जिस सरसों तेल को भैसों पर रगड़ते थे उसे सब्जी में भी नहीं गेर रहे
इस बार विधानसभा चुनाव में मुद्दा क्या है. अब ये सवाल सुनते ही एक चचा ने पूरा सवाल भी नहीं सुना. चाय की चुस्की भी आधे पर ही छोड़ दी. और बोल डाले चुनाव को क्या देखें जीं. चुनाव तो महंगाई पर है. सरसों के तेल को ही देख लो. जिसे लोग भैसों पर रगड़ते थे.
उसे अब सब्जी में भी नहीं गेर पा रहे. वहीं, दूसरे एक चचा ने कहा कैराना को तो लोग मिनी पाकिस्तान कह देते हैं. ये सुनकर बड़ा दर्द होता है. दिल में दुख होता है. हमको पाकिस्तान से क्या मतलब. जिन्ना तो हमारा दुश्मन है. मुस्लिम क़ौम का दुश्मन है. वो गद्दार था. ये कलंक हटना चाहिए. कैराना में कोई पलायन नहीं है.
डरकर नहीं बल्कि मीट फैक्ट्री की वजह से लिखा मकान बिकाऊ है
कैराना के कुछ लोगों ने मकान बिकाऊ का भी पूरा लेखा जोखा बता दिया. कहा कि जिस जगह पर काफी समय पहले मकान बिकाऊ है का पोस्टर लगा था. वहां पर आज भी वो पोस्टर लगा है. तो क्या डर आज भी है. इसके पीछे की असली वजह कुछ और ही है.
क्योंकि जहां के मकान पर लिखा है कि मकान बिकाऊ है वहां तो मीट फैक्ट्री है. अब उस फैक्ट्री से बदबू भी आती है. अब जब बदबू आती है तो लोगों ने वहां रहना छोड़ दिया. अब रहना छोड़ा तो घर के बाहर एक पोस्टर लगा दिया.
उस पर लिखा दिया कि..ये मकान बिकाऊ है. अब उसे ही कह दिया गया कि डर के मारे लोग मकान बेच रहे हैं. तो इसे कौन क्या समझ रहा है. उसे कैसे और क्या समझें. हमलोग खुद ही कन्फ्यूज हो गए हैं.
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