UP Election : कैराना में जुर्म की स्याही से लिखी वो चिट्ठी, ऐसे लाती थी व्यापारियों के मौत का पैगाम
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कैराना में क्राइम की इनसाइड स्टोरी, कैसे एक चिट्ठी बनती थी कारोबारियों के लिए मौत का पैगाम, Read latest UP election news, यूपी चुनाव, यूपी चुनाव 2022 on CrimeTak.in
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कैराना से फ़र्रूख़ हैदर, चिराग गोठी, प्रिवेश पांडे, विनोद शिकारपुरी के साथ सुनील मौर्य की रिपोर्ट
UP Election Kairana Crime Story : कैराना की जड़ में कभी सिर्फ़ और सिर्फ़ क्राइम हुआ करता था. क्राइम की इस दुनिया में ख़ौफ़ का ये आलम था कि उसे ना दिन के उजाले से कोई फर्क पड़ता था. और ना रात की खामोशी से. जुर्म की ये काली दुनिया हर वक़्त मुंह फाड़े खड़ी रहती थी. इसमें कौन और कब, कहां समा जाएगा. इसे कोई नहीं जानता था. ख़ौफ़ इतना था कि इसके आगे ख़ाकी भी कभी बेदम हुआ करती थी.
उस ख़ाकी की लाचारी का आलम ये था कि थाने में घुसकर ही बदमाश अपने साथी को छुड़ा ले जाते थे. जुर्म की दहलीज ऐसी थी जिसकी चौखट पर तो दूसरा कोई नहीं आ सकता था. लेकिन ये जब चाहे तब किसी के घर में बेधड़क घुस जाते थे. कई बार ये ख़ुद जाते थे. तो कई बार बस इनका नाम ही काफी होता था.
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तो कई बार बस एक कागज का टुकड़ा भी. वो कागज का टुकड़ा जिस पर जुर्म की काली स्याही से कुछ लाइनें लिखीं होती थीं. और वो लाइनें ही कब किसकी जिंदगी की लाइन को ख़त्म कर दे. ये कोई नहीं जानता था.
रात में चिट्ठी आई और दिन में सरेआम हत्या
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कैराना में रहने वाले किराना कारोबारी विनोद सिंघल के मन में भी इसका खौफ था. लेकिन उस दिन आजादी का दिन था. तारीख थी 15 अगस्त. साल 2014. दिन में अपनी दुकान पर तिरंगा फहराया. ये सोचा था कि अब तो देश को आजाद हुए 67 साल बीत चुके हैं.
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शायद कुछ बदल जाए. ये सोचकर शाम को दुकान बंद की. और अगली सुबह यानी 16 अगस्त की सुबह दुकान का शटर जैसे ही उठाया आंखों के सामने एक कागज का टुकड़ा मिला. असल में वो चिट्ठी थी.
उस चिट्ठी में लिखा था...
ओ भाई लालाजी...सब ठीकठाक है ना...कल हमारा आदमी मिलेगा. उसे 10 लाख रुपये दे दियो...कहां कब पैसे देने है फोन पर बता देगा. ...मुकीम काला
अब ये चिट्ठी पढ़ते ही विनोद सिंघल कांपने लगे. जो कल तक आजादी का जश्न मना रहे थे. अब खुद को बचाने के लिए दुआ मांगने लगे. इसकी शिकायत किससे करते. पुलिसवालों से. फिर ये सोचकर चुप रह गए कि पहले भी कई लोगों ने पुलिस से कहा. लेकिन क्या हुआ.
उन कारोबारियों को भी या तो पैसे देने पड़े या फिर जान गंवानी पड़ी. लेकिन विनोद के पास इतने पैसे थे नहीं कि वो दे सके. आखिर वो रंगदारी नहीं दे पाए. और दोपहर बाद ही उनका पूरा बदन खून से लाल-लाल हो गया. सरेआम बाजार में दुकान के बाहर ही गोली से उन्हें छलनी कर दिया गया.
कारोबारी विनोद सिंघल की ये ना कोई पहली हत्या थी और ना ही आखिरी. उन दिनों सिर्फ 8 दिन के भीतर ही रंगदारी को लेकर कई हत्याएं हुईं. पानीपत-खटीमा रोड पर सरिये की दुकान चलाने वाले दो ममेरे भाइयों शिव कुमार और राजू की भी सरेआम गोली मारकर हत्या हुई.
इन्हें भी रात में दुकान की शटर के नीचे रंगदारी वाली चिट्ठी भेजी गई थी. और अगले दिन दोपहर तक पैसे नहीं मिलने पर गोली मार दी गई थी. अब ऐसे में यहां के कारोबारियों के पास एक ही तरीका बचा था. वो तरीका ये था कि या तो वो चिट्ठी आते ही कहीं से कैसे भी करके लाखों रुपये का इंतजाम करें या फिर मरने के लिए तैयार रहें.
इस बारे में कैराना में सोने-चांदी का बिजनेस करने वाले कारोबारी राम अवतार बताते हैं कि...
कैराना का नाम गुंडागर्दी में उछला था. सपा की सरकार में यहां बहुत गुंडागर्दी हुई. इसी वजह से यहां पलायन हुआ. मुझसे भी रंगदारी मांगी गई. पैसे मांगने आए. हमने बहुत कुछ झेला है. पहले तो दिन में भी डर लगता था. लेकिन अब माहौल बदला है. अब दिन हो या रात कभी भी दुकान खोल सकते हैं. ये सबकुछ योगी की सरकार में हो पाया.
आगे रावअवतार ये भी कहते हैं कि यहां होने वाली गुंडागर्दी की वजह से ही पलायन हुआ. उनमें से अब तो 3-4 परिवार लौट आए. लेकिन अभी भी काफी लोग बाहर ही सेटल हो गए.
तो क्या कैराना में वाकई गुंडागर्दी थी?
जिस तरह से सुनार राम अवतार ने कैराना में गुंडों के राज के बारे में बताया उसे खत्म करने का कई मीडिया रिपोर्ट्स में श्रेय आईपीएस अधिकारी डॉ. अजयपाल शर्मा को दिया जाता है. कहा जाता है कि वो आए तो पुरानी सरकार में थे लेकिन जब भाजपा की सरकार बनीं तो उन्हें काम करने की आजादी मिली और फिर बदमाशों के खौफ का ही खात्मा कर डाला.
इस बारे में जब उनसे बात की तो आईपीएस डॉ. अजयपाल से कई चौंकाने वाली बातें सामने आई. उन्होंने ये माना कि जब वो कैराना में साल 2016 में बतौर एसपी तैनात हुए तब खौफ का माहौल था. लोग इतना डरते थे कि पुलिस से शिकायत भी नहीं करते थे. क्योंकि उन्हें मदद नही मिल पाती थी. बदमाश इतने बेखौफ थे कि वो वर्दीवालों को भी गोली मारने से नहीं डरते थे. ये बिल्कुल उनके लिए आम बात थी.
वो बताते हैं जब एसपी बनकर आया तो उस समय मुकीम काला, फुरकान, कग्गा, विपुल खूनी, नौशाद डेनी जैसे बदमाशों का इस कदर खौफ था कि इनके नाम पर ही दूसरे छोटे-मोटे बदमाश भी कारोबारियों से पैसे वसूल लेते थे.
ये बस शाम होते ही एक चिट्ठी लेकर कारोबारी की दुकान में डाल देते थे और अगली सुबह पैसे ले लेते थे. जो नहीं देता था उसे कोई दूसरा मौका भी नहीं देते थे. और मार डालते थे. इनके अंदर कोई खौफ नहीं था. इनके खिलाफ जब अभियान चलाया गया तो ये सीधे पुलिस पार्टी पर फायर कर देते थे.
इसीलिए मुठभेड़ में कई बदमाश मारे गए. नौशाद डैनी, सरवर, इकराम टोला, शाबिर चंदेरी जैसे बदमाश भी पनप रहे थे. इनमें से कई बदमाश या तो अब जेल में बंद हैं या फिर मुठभेड़ में मारे गए. इसके बाद धीरे-धीरे कारोबारियों के मन में बदमाशों का खौफ खत्म हुआ.
कैराना से लगातार ग्राउंड रिपोर्ट करने वाले एक स्थानीय पत्रकार श्रवण शर्मा बताते हैं कि यहां पर कभी हिंदू-मुस्लिम में कोई विवाद नहीं रहा. ये जो रंगदारी मांगने वाले बदमाश थे उनकी वजह से ही यहां दहशत का माहौल था. आईपीएस अजयपाल के समय में जब बदमाशों का खात्मा हुआ तब माहौल बदला.
फिर भी बदमाश लाखों की फिरौती मांगने के बजाय 10 से 20 हजार तक आ गए थे. लेकिन अब पिछले कुछ सालों से सबकुछ शांत है. इस बारे में कैराना के लोग ये भी बताते हैं कि यहां दोनों धर्मों में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है. बस गुंडों की वजह से ही खौफ रहा है. जो अब खत्म हो गया है. मीडिया में ही इसे काफी बढ़ाचढ़ाकर दिखाया गया. जिसकी वजह से यहां का मामला तूल पकड़ा.
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