UP Election : रावण की इस जन्मस्थली वाले गांव के चुनावी माहौल में क्यों गूंज रहा 'राम का नाम'

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UP Election : रावण की इस जन्मस्थली वाले गांव के चुनावी माहौल में क्यों गूंज रहा 'राम का नाम'
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रावण की 'लंका' में राम-राम

  • नोएडा का वो गांव, जहां लंकापति रावण का जन्म हुआ

  • चुनाव में रावण के गांव में गूंज रहा है 'राम का नाम'

  • अष्टभुजी शिवलिंग का रहस्य आज भी अनसुलझा

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  • यहां रामलीला नहीं होती, ना होता है रावण दहन

  • नारायण.. नारायण.. धन्य है प्रभु की माया, कहीं धूप कहीं छाया. अपने गौतमबुद्ध नगर में ये क्या हो रहा है? स्वर्ग लोग से नीचे उतरा था, तो सोचा था कि चुनाव आए हैं. कुछ चकल्लस, कुछ नेतागिरी, कुछ भाषणबाज़ी देखने को मिलेगी, लेकिन यहां तो कुछ और ही दिख रहा है. जिस ऐतिहासिक बिसरख गांव में लंकापति रावण का जन्म हुआ था, चुनाव में उसी गांव में भोंपुआ राम का गाना बजा रहा है.. नारायण.. नारायण.. "जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे..."

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    बहरहाल, यूपी में कितना राम राज्य आया और कितने रावण पब्लिक के सीने पर मूंग दलते रहे, ये तो इन चुनावों में जनता साफ़ कर देगी. वोट लूटने-बटोरने का खेला भी चंद दिनों में ख़त्म हो जाएगा, लेकिन अगर कुछ बना रहेगा, तो वो है इस गांव का अदभुत इतिहास और यहां से 2329 किलोमीटर दूर श्रीलंका के नरेश रावण से इस गांव का रिश्ता.

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    रावण की जन्मभूमि में राम नाम का जाप

    अब आइए, चुनावी तापमान मापने जब हम यहां आ ही पहुंचे है, तो इसी बहाने आज आपको गौतमबुद्ध नगर के इस ऐतिहासिक गांव का वो पहलू भी दिखाए देते हैं, जो इसे पूरी दुनिया के दूसरे गांवों से अलग करता है. क्योंकि मान्यता ये है कि यही वो गांव है जहां कभी लंकापति रावण का जन्म हुआ था और यही वो गांव है जिसका ज़िक्र शिव पुराण में भी है.

    जी हां, बिसरख.. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का वो गुर्जर बहुल गांव, जहां आज भी रावण की पूजा किसी ईष्ट देव की तरह की है. असल में माना ये जाता है कि विश्रवा ऋषि इसी बिसरख गांव के थे. तब तो इसका नाम बिसरख नहीं था, लेकिन बाद में इन्हीं विश्रवा ऋषि के नाम पर ही इस गांव का नाम पड़ा और इन्हीं विश्रवा ऋषि के यहां रावण का जन्म हुआ था.

    विश्रवा ऋषि ने अपने गांव में अष्टभुजी शिवलिंग की स्थापना की थी. वो ख़ुद भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. रावण के माता-पिता पूरे भक्ति भाव से ग़ाज़ियाबाद के दूधेश्वरनाथ मंदिर में पूजन के लिए जाते थे और इससे ख़ुश हो कर भगवान शिव ने दंपत्ति को आशीर्वाद दिया और तब ऋषि विश्रवा के यहां रावण का जन्म हुआ.

    यहां अष्टभुजी मंदिर भी है विराजमान

    विश्रवा ऋषि के इस गांव में ये अष्टभुजी मंदिर अब भी विराजमान है और जब-जब इस गांव की खुदाई होती है, ज़मीन के नीचे से अक्सर शिवलिंग बाहर निकलते हैं. गांव में जो अष्टभुजी शिवलिंग है, उसकी गहराई भी आज तक कोई नहीं जान पाया.

    विवादित बाबा चंद्रस्वामी ने कभी अष्टभुजी शिवलिंग का ओर-छोर जानने के लिए इसके इर्द गिर्द खुदाई भी करवाई थी, लेकिन बताते हैं कि उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली और अपना इरादा बदलना पड़ा. बाद में इस गांव के लोगों ने भगवान शिव के मंदिर के साथ-साथ भगवान श्री राम और रावण के मंदिर की भी स्थापना की और आज भी यहां भगवान राम के साथ-साथ रावण की भी पूजा होती है.

    ये रावण से इस गांव का नाता ही है, जिसकी वजह से ना तो यहां रामलीला का आयोजन होता है और ना ही रावण का पुतला दहन किया जाता है। कहते हैं एक बार गांव में रामलीला का मंचन किया जा रहा था, तभी यहां किसी की मौत हो गई और रामलीला रोकनी पड़ी. इसके बाद फिर कोशिश हुई लेकिन तब किसी दूसरी अनहोनी का विघ्न पड़ा और तब गांववालों ने तय किया कि इसके बाद वो बिसरख में रामलीला के मंचन की कोशिश नहीं करेंगे.

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