ये है 'असली' चुनावी रंगबाज़ी! वो ना तो 'हाथ जोड़ते' हैं और ना 'वोट मांगते' हैं, मगर फिर भी जीत जाते हैं!

ADVERTISEMENT

ये है 'असली' चुनावी रंगबाज़ी! वो ना तो 'हाथ जोड़ते' हैं और ना 'वोट मांगते' हैं, मगर फिर भी जीत जाते...
social share
google news

आगरा से अरविंद शर्मा, मनीषा झा और विनोद शिकारपुरी के साथ सुप्रतिम बनर्जी की रिपोर्ट

चुनावी बयार में रंग बदलते चुनावी रंगबाज़ तो आपने बहुत देखे, लेकिन क्या कभी ऐसे रंगबाज़ को भी देखा है, जो चुनाव में जनता से वोट भी ले लें और जनता के आगे हाथ तक ना जोड़ें. जबकि दुनिया जानती है कि इलाक़े का छंटा से छंटा रंगबाज़ हो या बड़े से बड़ा दबंग, चुनाव में वोट पाने के लिए उसे जनता के सामने खींसे निपोरते हुए हाथ जोड़ना ही पड़ता है. ऐसे पोस्टर भी छपवाने ही पड़ते हैं.

यूपी के विधान सभा चुनाव में चुनावी रंगबाज़ों की तलाश में हम दिल्ली से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर ताज नगरी आगरा पहुंचे. हमने इससे पहले कई शहरों का दौरा किया, कई रंगबाज़ देखे. लेकिन आगरा के बाह विधान सभा क्षेत्र में हमें कुछ अलग तरह की रंगबाज़ी दिखी. आगरा के इस विधान सभा में वैसे तो सभी पार्टियों के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन बीजेपी के टिकट पर इस बार यहां भदावर राजघराने की महारानी पक्षालिका सिंह एक बार फिर से चुनाव लड़ रही हैं.. और रंगबाज़ी की बात करें तो उनका अलग ही जलवा है. वो ना तो जनता के आगे हाथ जोड़ते हैं और ना ही वोट मांगते हैं. बस चुनाव में खड़े हो जाते हैं.

ADVERTISEMENT

11 चुनावों में सिर्फ़ एक बार हारा 'राज परिवार'

ऐसा भी नहीं है कि महारानी यहां से कोई पहली बार चुनावी मैदान में हैं. बल्कि सच्चाई तो ये है कि कभी राजा महेंद्र रिपुदमन सिंह, कभी अरिदमन सिंह तो कभी महारानी पक्षालिका सिंह यहां से चुनाव लड़ती रही हैं और जीतती रही हैं. आज़ादी के बाद से अब तक सिर्फ़ एक बार यानी साल 2007 राज परिवार को हार का सामना करना पड़ा. 2007 में बहुजन समाज पार्टी के मधुसूदन शर्मा इस सीट से राजा महेंद्र अरिदमन सिंह को हराकर विधान सभा चुनाव जीत गए थे. लेकिन शुरू से लेकर अब तक इस विधान सभा में यही पहला और आख़िरी मौक़ा था, जब इस सीट राजपरिवार हारा। खुद राज परिवार से लेकर इस इलाक़े की जनता तक उस चुनावी नतीजे को एक 'फ़्लूक' यानी तुक्का मान कर चलते हैं. 1985 में राज परिवार ने ख़ुद को चुनावों से अलग रखा था और तब ये सीट कांग्रेस के अमरचंद ने जीती थी.

ADVERTISEMENT

वोट न मांगने को 'राज परिवार' सम्मान से जोड़ते हैं लोग

ADVERTISEMENT

कहने का मतलब ये कि राजा हो या रानी इस सीट से जो भी चुनाव लड़ा वो जीत गए. और सबसे बड़ी बात ये कि चूंकि उनका ताल्लुक राज घराने से है, तो वो ना तो जनता के आगे हाथ जोड़ खड़े होते हैं और ना ही वोट मांगते हैं. बेशक ये लोकतंत्र हो, लोगों के वोट पर ही उन्हें सत्ता की चाबी हाथ लगती हो, लेकिन राजा या रानी जनता का वोट लेने के लिए कभी 'हाथ जोड़ कर' जनता के दरबार में नहीं जाते और शायद यहां की जनता भी इस बात का बुरा नहीं मानती. इसे उनका सम्मान मानती है. उनका चुनाव में खड़ा हो जाना ही उनकी जीत की गारंटी है.. और ये तय है.

पिछले विस चुनाव में 23 हज़ार वोट से जीतीं 'महारानी'

आगरा के नज़दीक बाह विधान सभा सीट फ़तेहपुर सीकरी संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है. इस बार इस सीट में क़रीब साढ़े 3 लाख मतदाता उम्मीदवारों की तक़दीर का फ़ैसला करनेवाले हैं. अगर साल 2017 के विधान सभा चुनावों की बात करें, तो पिछले विधान सभा चुनावों में महारानी पक्षालिका ने बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी मधुसूदन शर्मा को 23 हज़ार से ज़्यादा वोटों से हराया था.

बाह कभी भदौरिया ठाकुरों की राजधानी रही है. जिनके अलग-अलग जगहों पर 7 क़िले थे. इन दिनों ये परिवार नौगवां के क़िले में रहता है. इनका एक क़िला भिंड के अटेर में भी है.

राज परिवार पर रहा है ग़ुंडे 'पालने' का इल्ज़ाम

अब बात असली रंगबाज़ी की. वैसे तो इलाक़े के लोग बताते हैं कि राजा अरिदमन सिंह ख़ुद एक बेहद ही शालीन और सौम्य स्वभाव के इंसान हैं. लेकिन उन पर भी इलाक़े के छुटभैयों और बदमाशों को साथ रखने और उन्हें बढ़ावा देने का इल्ज़ाम लगता रहा है. अब से कुछ साल पहले तक सुग्रीव सिंह अरिदमन सिंह के खेमे का ही एक मेंबर हुआ करता था, लेकिन अरिदमन सिंह से हुए मतभेद के बाद अब सुग्रीव सिंह ने यहां अपना अलग खेमा बना लिया है और वो सियासी तौर पर गाहे-बगाहे अरिदमन सिंह और राजपरिवार को चुनौती देता रहा है. कई बार दोनों के बीच की ये तनातनी सुग्रीव और राज परिवार के समर्थकों के ख़ून ख़राबे की शक्ल भी ले चुकी है और मामला पुलिस के पास भी जा चुका है. ज़ाहिर है इस चुनाव में भी सुग्रीव सिंह राज परिवार के ख़िलाफ़ है.

ये डाकुओं और बीहड़ का इलाक़ा है

अब बात बाह की हो और बीहड़ और डाकुओं का ज़िक्र ना हो, ये भला कैसे मुमकिन है. बाह और आस-पास का यही वो इलाक़ा है, जहां मान सिंह से लेकर माधो सिंह जैसे एक से बढ़कर एक डाकू हुए. वही मान सिंह जिस पर कभी 1012 से ज़्यादा मुक़दमे दर्ज थे और जिसका कभी इस इलाक़े में सिक्का चलता था. यहां तक कि मान सिंह के चले जाने के बाद उसके चाहनेवालों ने उसकी याद में मंदिर तक बन लिया. ठीक इसी तरह डकैत माधो सिंह ने भी कभी जुर्म की दुनिया पर राज किया. बीहड़ और बाग़ियों का ज़िक्र होते ही 600 से ज़्यादा मुक़दमे अपने सिर पर क़ानून को चुनौती देनेवाले माधो सिंह का ज़िक्र आ ही जाता है. वैसे अब बीहड़ और डकैत गुज़रे ज़माने की बात बन चुके हैं.

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT

    ऐप खोलें ➜