तोप से भी नहीं उड़ा ये मंदिर, झुकते थे बड़े-बड़े डकैत

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तोप से भी नहीं उड़ा ये मंदिर, झुकते थे बड़े-बड़े डकैत
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इस मंदिर को ना तोप उड़ा सका, ना ही कोई दुश्मन। बड़े-बड़े डकैत भी यहां झुक जाया करते थे। आज भी इस मंदिर में लोग अपनी मुराद लेकर आते हैं। डकैत, जो सिर्फ डकैती नहीं करते थे बल्कि आस्था भी रखते थे, मंदिरों में, भगवानों में और पूजा-पाठ में। बीहड़ों के बीच बसे इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना और दिलचस्प है। बीहड़ों का सरदार इसी मंदिर में आकर मां काली के सामने शीश झुकाते थे और लक्ष्य पूरा होने का आशीर्वाद लेते थे और अपने गलत मंसूबों में कामयाब होने के बाद यहीं मंगला काली के मंदिर में झंडा और घंटा चढ़ाते थे।

तोप से भी नहीं उड़ा मंदिर

मंदिर की मान्यता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बड़े से बड़ा बागी, यानी की डकैत इस मंदिर में आकर सिर झुकाते थे। अंग्रेजों के इस मंदिर पर तोप चलाने और ध्वस्त करने की कोशिश के बावजूद भी मंदिर का बाल भी बांका नहीं हो सका। ना सिर्फ यूपी बल्कि पूरे देश से लोग यहां आज भी अपनी मुराद लेकर आते हैं।

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बड़े-बड़े डकैतों ने झुकाया सिर

उत्तर प्रदेश के औरेया शहर से 5 किलोमीटर दूर एक मंदिर है। यमुना तट और बीहड़ों के बीच ये मंदिर बहुत ख़ूबसूरत है। बीहड़ों के बसा ये मंदिर सिद्ध शक्ति पीठ में शामिल है और इसकी बहुत मान्यता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में मांगी गई मुराद पूरी हो जाती है। घने जंगल और खार के बीच स्थित इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि कुछ दशक पहले कुख्यात डकैत इसी मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे। निर्भय गुर्जर, मलखान सिंह, फूलन देवी, राम आसरे फक्कड़, माधौ सिंह जैसे बड़े डकैत मत्था टेकते और घंटा चढ़ाते थे।

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टीले पर बना ख़ूबसूरत मंदिर

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यमुना के तट ये मंदिर कुछ ही दूरी पर एक ऊंचे से टीले पर बना हुआ है। मंगला काली की शक्ति का बखान कई जगहों पर सुनने को मिलता है। एक किस्सा ये भी है कि साल 1857 तक मंदिर के पास देवकली गांव बसा हुआ था और लोग अपनी कुल देवी की पूजा किया करते थे। लेकिन कहा जाता है कि अंग्रेज़ों ने सब नष्ट कर दिया। लेकिन मंदिर का वजूद आज भी है और लोगों की आस्था इस मंदिर में बहुत ज़्यादा है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं ने बताया कि इस मंदिर में आने पर उन्हें शांति महसूस होता है और मान्यता है कि यहां मांगी गई मुराद भी पूरी होती है।

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