"ब्राह्मणों के लिए लड़ना अगर रंगबाज़ी है, तो मैं सबसे बड़ा रंगबाज़ हूं.." : रामगोपाल शर्मा
UP election 2022 "ब्राह्मणों के लिए लड़ना अगर रंगबाज़ी है, तो मैं सबसे बड़ा रंगबाज़ हूं.."
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मथुरा से मदनगोपाल शर्मा, मनीषा झा और विनोद शिकारपुरी के साथ सुप्रतिम बनर्जी की रिपोर्ट
UP Election Mathura Report : ललाट पर बड़ी सी तिलक.. करीने से काढ़े हुए बाल.. गले में मोटी सोने की चेन और चेन में लटकता हीरे जड़ा फरसे वाला लॉकेट.. मथुरा के चुनावी रंगबाज़ रामगोपाल शर्मा को कोई दूर से ही देख कर पहचान सकता है. रामगोपाल को इलाक़े के लोग दबंग या फिर रंगबाज़ बेशक मान कर चलते हों, लेकिन उनसे मिलने पर हक़ीक़त बिल्कुल उल्टी लगती है.
इसे यूं भी कह सकते हैं कि उनकी पर्सनैलिटी कुछ और है और इमेज कुछ और. मिलकर लगता है कि विनम्रता उनमें कूट-कूट कर भरी है. सबसे इज़्ज़त-ओ-एहतराम से मिलना मगर ज़रूरत पड़ने पर रंगबाज़ी भी दिखाना.
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हमने उनसे सीधा सवाल किया, "बहुत से लोग आपको क्रिमिनल माइंडेड और रंगबाज़ कहते हैं.." अभी हमारा सवाल पूरा भी नहीं हुआ था कि रामगोपाल ने कहा, "देखिए भाई साहब.. मैं घोर ब्राह्रणवादी हूं.. जब राजपूत, दलित, यादव सारे समाज के लोग एकजुट हो सकते हैं, तो क्या हम नहीं हो सकते? मैं हमेशा ब्राह्मणों की लड़ाई लड़ता रहा हूं और आगे भी लड़ता रहूंगा, फिर चाहे इसके लिए कोई क्रिमिनल कहे या फिर कुछ और.. ब्राह्मणों के लिए लड़ना अगर अपराध है, तो हां मैं अपराधी हूं.."
ब्राह्मण वोटों के 'ठेकेदार' रामगोपाल!
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मथुरा ज़िले में कुल पांच विधान सभा सीटें हैं. मथुरा, मांट, छाता, गोवर्द्धन और बलदेव. इनमें मथुरा में ब्राह्मणों का एक बड़ा वोट बैंक है. लगभग 1 लाख. जिनमें ज़्यादातर शनाड्य ब्राह्मण हैं और रामगोपाल ख़ुद को इन 1 लाख ब्राह्मणों का नेता मान कर चलते हैं.
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हालांकि पूछने पर नेता नहीं, बल्कि सेवक.. अनुयायी.. छोटा भाई जैसे विशेषण फौरन ओढ़ लेते हैं.. कहने की ज़रूरत नहीं है कि 1 लाख ब्राह्मणों का वोट इस विधान सभा क्षेत्र का एक बड़ा 'डिसाइडिंग फ़ैक्टर' है और रामगोपाल ख़ुद को 'डिसाइडर' मानते हैं. अब हम तो चूंकि क्राइम तक से हैं, हमारे सवाल घूम-फिर रंगबाज़ों की जुर्म की जन्म-कुंडली इर्द गिर्द ही जाकर टिक जाते हैं.
रंगबाज़ी से दूसरे सवाल पर रामगोपाल कहते हैं, "अगर हमने आजतक किसी को एक भी रैपटा मारा हो और मेरे ख़िलाफ़ किसी भी थाने में एक भी केस दर्ज हो, तो आप जो कहेंगे मैं वो करने को तैयार हूं.." इसके बाद अपनी जेब में अस्लहा तो नहीं, लेकिन अस्लहे का लाइसेंस निकाल दिखाते हैं और सवाल पूछते हैं, "बताइए भाई साहब, प्रशासन अगर किसी को अस्लहे का लाइसेंस देता है तो उसका ट्रैक रिकॉर्ड ज़रूर चेक करता है."
मूर्तियों की तस्करी ने करा दिए वारे-न्यारे?
अब बात रामगोपाल और उसके परिवार की. रामगोपाल तीन भाई हैं. मनोज, संजय और रामगोपाल. इनके पिता दो भाई थे. जगदीश शर्मा और किशन शर्मा. लेकिन मथुरा के लोग बताते हैं कि इस परिवार को दबंगई विरासत में मिली.
रामगोपाल के दादा पुटरोमल शर्मा अपने इलाक़े के पुराने रंगबाज़ थे. उन पर कई क्रिमिनल केसेज़ थे. जिनमें मूर्तियों की तस्करी के मामले अहम हैं. अब मूर्तियों की तस्करी के बारे में जानने से पहले मथुरा के बारे में एक ख़ासियत और जान लीजिए. मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली तो है ही, ये शहर एक टीले पर बसा हुआ है और सालों-साल अनगिनत ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है.
एक धार्मिक शहर होने की वजह से इस शहर में अब भी अनेकों मंदिर हैं और पहले भी हुआ करते थे. लेकिन मुगलों ने अनगिनत मंदिरों को तोड़ने और नष्ट करने में कोई कमी नहीं की. नतीजा ये हुआ कि जगह-जगह मंदिर और उनकी मूर्तियां टीले की मिट्टी में दबी रह गई. वक़्त वक़्त पर शहर में जगह-जगह खुदाई होती रही और ज़मीन के नीचे से बेशक़ीमती मूर्तियां बाहर निकलती रहीं.
कहते हैं पुटरोमल शर्मा ने करोड़ों-अरबों रुपये की इन्हीं मूर्तियों की जमकर तस्करी की और ख़ूब पैसे कमाए. यही इल्ज़ाम उनके बेटों जगदीश और किशन शर्मा पर भी लगता रहा. फिलहाल ये परिवार सर्राफ़ा कारोबार समेत और भी कई तरह के धंधों में शामिल हैं.
रंगबाज़ी का एक और सबूत : निर्विरोध चुनाव
आज के घोर कलयुग में जब कहते हैं कि बेटा अपने बाप की बात तक नहीं मानता, उस दौर में अगर कोई 21 साल का लड़का किसी इलाक़े से निर्विरोध वार्ड पार्षद चुन लिया जाए, तो इसे रंगबाज़ी नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे.
असल में पिछले पार्षद चुनाव में इस परिवार के बेटे ध्रुव शर्मा ने कांग्रेस के टिकट पर वार्ड नंबर 64 से चुनाव लड़ा और आपको जानकर हैरानी होगी कि ये चुनाव वो निर्विरोध तरीक़े से जीत गए. यानी किसी ने उसके ख़िलाफ़ पर्चा भरा ही नहीं और जिसने भरा था, उसने भी वापस ले लिया.
कांग्रेस के टिकट पर शर्मा परिवार के नौनिहाल को मथुरा में ऐसी जीत तब मिली, जब मथुरा को इन दिनों बीजेपी का गढ़ माना जाता है. इस बार ये शर्मा परिवार किसकी जीत और किसकी हार के लिए डिसाइडर बनेगा, ये तो आनेवाला वक़्त ही बताएगा, लेकिन जाते-जाते आपको इतना ज़रूर बता देते हैं कि ये चुनावी रंगबाज़ इन दिनों बीजेपी के प्रत्याशी और इलाक़े के मौजूदा विधायक श्रीकांत शर्मा से कुछ ज़्यादा ही नाराज़ चल रहे हैं.
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