अफ़ग़ानिस्तान में कुल 21 एयरपोर्ट्स, लेकिन भीड़ सिर्फ़ काबुल एयरपोर्ट पर ही क्यों?

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अफ़ग़ानिस्तान में कुल 21 एयरपोर्ट्स, लेकिन भीड़ सिर्फ़ काबुल एयरपोर्ट पर ही क्यों?
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Afghan Kabul Airport News : ये तस्वीरें तो याद होंगी आपको। ये मंज़र कोई चाहे भी तो भुला नहीं पाएगा। इंसानों का ये हुजूम। जान बचाने के लिए जान पर खेल जाने की ये बेवक़ूफ़ी या मजबूरी। और ये एयरपोर्ट।

काबुल का वही हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट जो इस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान के निकलने के बाद इकलौता रास्ता है। अब चूंकि रास्ता इकलौता है, तो मानों पूरा अफ़ग़ान ही बस इसी रास्ते पर सिमट आया हो। सिमट आया हो.. क्योंकि जान बचाने का कोई रास्ता बचा ही नहीं है।

पर ऐसा क्यों है? क्यों अफ़ग़ान से निकलने का ये एयरपोर्ट ही इकलौता रास्ता है? क्यों अफ़गान में मौजूद तमाम देसी-विदेशी लोग इसी रास्ते का रुख कर रहे हैं? जब पूरे अफ़ग़ान पर तालिबान का क़ब्ज़ा हो चुका है, तो फिर ये एयरपोर्ट तालिबान के क़ब्ज़े से बाहर कैसे है? कौन है जो इस वक़्त इस एयरपोर्ट की सुरक्षा कर रहा है?

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कौन कौन से देश हैं, जहां से और जहां के लिए इस एयरपोर्ट पर जहाज़ उड़ान भर रहे हैं? तो पूरी दुनिया की नज़र में अफ़ग़ान की जो जगह इस वक़्त सबसे ज़्यादा सुर्खियों में है, पेश है उसी हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट की पूरी कहानी।

इन 6 देशों से घिरा है अफ़ग़ानिस्तान

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अफ़ग़ानिस्तान से कुल छह देशों की सीमाएं लगती हैं। उत्तर में तजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्केमेनिस्तान। दक्षिण और दक्षिण पूर्व में पाकिस्तान। और पश्चिम में ईरान और चीन। 15 अगस्त यानी जिस दिन तालिबान ने काबुल फतह किया, उसी दिन से इन तमाम सरहदी देशों ने अपनी सरहद ना सिर्फ़ बंद कर दिए, बल्कि सरहद पर सुरक्षा भी बेहद कड़े कर दिए हैं।

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जबकि दूसरी तरफ़ ख़ुद तालिबान अब इन तमाम सरहदी इलाक़ों पर पहरे दे रहा है। यानी अफ़ग़ान से निकल भागने के दोनों रास्ते बंद हैं। अब ऐसे में जब सरहदी इलाक़े से निकलना मुश्किल है, तो फिर अफ़ग़ान से बाहर निकलने के लिए इकलौता रास्ता बचता है हवाई रास्ता।

कुल 21 एयरपोर्ट्स, लेकिन 1 ही चालू

अफ़ग़ानिस्तान में कुल 21 एयरपोर्ट्स हैं। लेकिन इनमें से 17 एयरपोर्ट छोटे और सिर्फ़ घरेलू उड़ानों के लिए है। जबकि चार ऐसे एयरपोर्ट हैं, जो इंटरनेशनल हैं। यानी इन चार एयरपोर्ट्स से ही अफ़ग़ान के लोग या अफ़ग़ान में फंसे विदेशी लोग अफ़गान से बाहर निकल सकते हैं। ये चार इंटनरेशनल एयरपोर्ट्स हैं काबुल का हामिद करज़ई इंटरनेशनल एयरपोर्ट, कांधार का अहमद शाह बाबा इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मज़ार-ए-शरीफ़ का मौलाना जलालुद्दीन बल्की इंटरनेशनल एयरपोर्ट और हेरात का ख्वाजा अब्दुल्ला अंसारी इंटरनेशनल एयरपोर्ट।

अफ़ग़ानिस्तान के इन चार इंटरनेशनल एयरपोर्ट्स में से तीन पर तालिबान का क़ब्जा है। यानी कांधार, मज़ार ए शरीफ और हेरात शहर। अब ऐसे में इन तीन एयरपोर्ट्स से निकलना अफ़ग़ानी नागरिक और विदेशी दोनों के लिए नामुमकिन है।

लिहाज़ा ले देकर बचता है काबुल का इंटरनेशनल एयरपोर्ट। और बस इसीलिए अफ़गान की पूरी भीड़ उसी सड़क पर उतर आई है, जो सड़क काबुल एयरपोर्ट की तरफ़ जाती है।

लेकिन काबुल एयरपोर्ट पर भी पेच फंसा हुआ है। दरअसल, अफ़ग़ानिस्तान के बाक़ी शहरों की तरह काबुल पर भी तालिबान पूरी तरह क़ाबिज़ है। पूरे शहर के साथ-साथ शहर के हर रास्ते, हर मोड़ पर तालिबानी मौजूद हैं। शहर की अंदरुनी सुरक्षा तालिबान ने अपने हाथों में ले रखा है। यानी काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट तक पहुंचने से पहले हर मुसाफ़िर को तालिबान का सामना करना पड़ रहा है।

एक बार तालिबान के सुरक्षा घेरे को तोड़ कर या तालिबान की मर्ज़ी से कोई एयरपोर्ट पहुंच भी गया, तो अब उसे अमेरिकी सैनिक का सामना करना होगा। क्योंकि अफ़ग़ान और अफ़ग़ान के तमाम शहर और क़स्बे बेशक तालिबान के कब्जे में हों लेकिन काबुल एयरपोर्ट का अंदरुनी हिस्सा पूरी तरह से अमेरिका के क़ब्ज़े में है।

तालिब से तालिबान तक... पूरी कहानी

इस देश के इंजीनियर ने बनाया था काबुल एयरपोर्ट

काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट 1960 में सोवियत संघ के इंजीनियरों ने बनाया था। 1979 से 1989 के बीच सोवियत अफ़ग़ान जंग के दौरान ये एयरपोर्ट सोवियत मिलिट्री के कब्जे में था। सोवियत सेना की वापसी के बाद काबुल एयरपोर्ट पर तब के अफ़ग़ानी राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह का कंट्रोल था। फिर 1996 से 2001 तक मुल्ला मोहम्मद उमर की अगुवाई में तालिबान ने इस एयरपोर्ट पर अपना कब्ज़ा जमा लिया।

लेकिन 2001 में जब अमेरिका ने अफ़गानिस्तान पर हमला किया, तो तालिबान को खदेड़ने के साथ-साथ काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भी क़ब्ज़ा कर लिया। हालांकि 2001 में इस एयरपोर्ट पर क़ब्ज़ा करने से पहले अमेरिकी एयरफोर्स ने ख़ुद काबुल एयरपोर्ट पर ज़बरदस्त बमबमारी की थी।

बाद में अमेरिकी कब्ज़े के बाद एयरपोर्ट को फिर से बनाया गया। जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी की मदद से। जून 2009 में काबुल का नया इंटरनेशनल एयरपोर्ट बना और तब इसका उद्घाटन उस वक़्त के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने किया। बाद में जिनके नाम पर ही इस एयरपोर्ट का नाम रखा गया।

अमेरिका को पता था कि उसके सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान भी वापसी कर सकता है। 1996 से 2001 की कहानी फिर से दोहराई जा सकती है। लिहाज़ा इस बार अमेरिका ने काबुल एयरपोर्ट पर खास नजर रखी। अगस्त के पहले हफ्ते में ही अमेरिका ने अपनी वायु सेना के अफ़ग़ान में सबसे बड़े बेस यानी बरगाम एयरबेस को खाली कर दिया था।

अब इसके बाद अफ़गान में मौजूद अमेरिकी सैनिक, अमेरिकी नागरिक और अमेरिका के लिए काम कर रहे लोगों को अफ़ग़ान से बाहर निकालने के लिए एक ही रास्ता बचा था। और वो था काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट।

15 अगस्त को ही अमेरिकी सैनिकों ने किया कब्ज़ा

15 अगस्त की दोपहर को जैसे ही अमेरिका को ये ख़बर मिली कि तालिबान काबुल की दहलीज़ तक पहुंच चुके हैं, अमेरिकी सैनिकों ने आनन-फानन में काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट को पूरी तरह से अपने क़ब्ज़े में ले लिया। इतना ही नहीं उन्होंने काबुल में मौजूद अमेरिकी दूतावास के सभी स्टाफ़ को भी वहां से निकाल कर एयरपोर्ट पहुंचा दिया। एक तरह से फिलहाल काबुल एयरपोर्ट का एक हिस्सा ही अफ़ग़ान में अमेरिकी दूतावास है।

पर ख़ुद अमेरिका को पता नहीं था कि तालिबान के काबुल में घुसते ही लोगों का हुजूम इस तरह से देश छोड़ने के लिए काबुल एयरपोर्ट पर टूट पड़ेगा। खास तौर पर यूएस एयरफोर्स के इस जंबो सी-17 की तस्वीरों ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ़ खींच लिया था। हालात को देखते हुए अमेरिका को काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए और सैनिकों की ज़रूरत पड़ गई।

12 अगस्त तक काबुल एयरपोर्ट पर 5200 अमेरिकी सैनिक तैनात थे। एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए। 15 अगस्त के बाद बहरीन, नॉर्थ कैरोलीना और कैलिफ़ोर्निया से क़रीब 3000 हज़ार सैनिकों और मरींस को काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए बुला लिया गया।

फिलहाल काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट का पूरा अंदरुनी इलाक़ा और रन-वे अमेरिकी सेना के कंट्रोल में है। 15 अगस्त से लेकर 20 अगस्त तक अफ़ग़ानिस्तान से करीब 28 हज़ार लोगों को अलग-अलग जहाज़ों से बाहर निकाला गया है। लेकिन अफ़ग़ान से निकलनेवाले लोगों की भीड़ को देखते हुए ये तादाद कुछ भी नहीं है।

अकेले 20 अगस्त तक अफ़ग़ानिस्तान में करीब 15 हज़ार नागरिक फंसे हुए थे। ये वो लोग हैं, जो अमेरिका और अफ़ग़ान की कंपनियों के लिए यहां काम कर रहे हैं। ख़बर है कि इनमें से ज़्यादातर लोग काबुल एक इर्द-गिर्द ही छुपे हुए हैं। अमेरिकी जहाज़ इनको अफ़ग़ान से निकालने को तैयार है। लेकिन दिक्कत ये है कि ये काबुल एयरपोर्ट तक पहुंचे कैसे?

इसी के मद्देनज़र अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ये ऐलान किया है कि जब तक हर अमेरिकी को अफ़ग़ान से बाहिफ़ाज़त निकाल नहीं लिया जाता, तब तक अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ान में मौजूद रहेंगे। काबुल में मौजूद अमेरिकी दूतावास ने 18 अगस्त को अफ़ग़ान में मौजूद सभी अमेरिकी शहरियों से ये कहा है कि अफ़गान में जहां भी हैं, काबुल एयरपोर्ट तक पहुंचने का इंतज़ाम खुद कर करें।

मसला सिर्फ़ अमेरिकी नागरिकों को ही निकालने का नहीं है। अफ़ग़ानिस्तान में क़रीब 70 हज़ार ऐसे अफ़ग़ानी हैं, जो पिछले 20 सालों से अमेरिका के लिए काम कर रहे हैं। अमेरिका के साथ जुड़े होने की वजह से उन्हें डर है कि तालिबान अब उन्हें नुकसान पहुंच सकते हैं। लिहाज़ा वो भी अफ़ग़ान से बाहर निकलना चाहते हैं। अब अमेरिका के सामने दिक्कत ये है कि इन्हें शहर से एयरपोर्ट के अंदर कैसे लाया जाए?

इसलिए काबुल एयरपोर्ट पर मची थी अफरातफरी

कहते हैं कि काबुल एयरपोर्ट पर अफरातफरी का आलम तब शुरू हुआ, जब ये ख़बर फैली कि अफ़ग़ान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी काबुल छोड़ कर भाग गए हैं। अशरफ़ ग़नी के देश छोड़ने की ख़बर आते ही यूरोपीय देशों ने अपने नागरिकों और दूतावास के कर्मचारियों को आनन-फानन में काबुल से निकालना शुरू कर दिया।

तब तक ये अफ़वाह भी फैल चुकी थी कि काबुल पर क़ब्ज़े के बाद तालिबान अमेरिकी और नेटो सेना की मदद करनेवाले लोगों को जोरो-शोर से तलाश रही है। हालांकि बाद में तालिबान ने कई बार ये भरोसा दिलाने की कोशिश की कि किसी भी देश के नागरिकों को या अफ़ग़ानी लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। लेकिन तालिबान के इस बयान के बावजूद लोगों को तालिबान पर भरोसा नहीं था। इसीलिए हर कोई तालिबान से निकल भागने के उसी इकलौते रास्ते की तरफ़ भाग रहा था।

उधर, काबुल एयरपोर्ट के बाहर की कहानी ये है कि एयरपोर्ट को जानेवाले हर रास्ते पर तालिबान का पहरा है। जिन लोगों से तालिबान की कोई दुश्मनी नहीं है, या जिनके पास पहले से ही अलग-अलग देशों के वैध वीज़ा हैं, ऐसे लोगों को भी तालिबान एयरपोर्ट में दाखिल होने से रोक रहा है। इस वजह से कई बार झड़पों की भी ख़बर आ रही है।

लेकिन लोग हैं कि जान जोखिम में डाल कर तालिबान का सामना करते हुए भी बस किसी तरह अफ़ग़ान से बाहर निकलना चाहते हैं। और इन लोगों में भी सबसे बड़ी तादाद उन लोगों की है, जिनके पास बच्चे हैं। ये लोग अपने बच्चों की सलामती के लिए किसी भी क़ीमत पर उन्हें अफ़ग़ान के बाहर भेजना चाहते हैं।

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