PPP मॉडल : जेल में बंद गैंगस्टर को ऐसे बना देता है बेखौफ, अंकित गुर्जर की मौत की वजह कहीं यही मॉडल तो नहीं?

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PPP मॉडल : जेल में बंद गैंगस्टर को ऐसे बना देता है बेखौफ, अंकित गुर्जर की मौत की वजह कहीं यही मॉडल ...
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दिल्ली के तिहाड़ जेल में गैंगस्टर अंकित गुर्जर की मौत, सिर्फ एक मौत नहीं बल्कि सवालों की लंबी फेहरिस्त है. सवाल पुलिस से है. जेल प्रशासन से है. और सवाल पूरे सिस्टम से भी. क्योंकि ख़ाकी पर हाथ उठाने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती. और जब ये हिम्मत जेल के अंदर दिखाई जाए तो फिर सिस्टम में सुराख़ होना लाजमी है.

यहां सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर जेल में रहते हुए कोई क़ैदी कैसे एक पुलिस अधिकारी को थप्पड़ मार सकता है? जेल में आम क़ैदी तक घरवालों को सामान्य खाने का सामान पहुंचाने में भी पापड़ बेलने पड़ जाते हैं और एक गैंगस्टर तक आसानी से मोबाइल फोन भी पहुंच जाता है?

एक क़ैदी खुली दुनिया में जाने का सपना देखता ही रह जाता है और गैंगस्टर जेल में रहकर ही मोबाइल फोन से बाहरी दुनिया का काला साम्राज्य चलाता है. आखिर ये सब कैसे होता है? इन्हीं सवालों को जानने के लिए हमने यूपी में आईजी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी राजेश पांडे से बात की. उन्होंने इस बारे में बहुत ही सटीक और चौंकाने वाली जानकारी दी.

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इस PPP गठजोड़ से गैंगस्टर को मिलती है हिम्मत

रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी राजेश पांडे ने बताया कि बिना पावर के कोई भी गैंगस्टर इतनी हिम्मत नहीं कर सकता है. किसी गैंगस्टर में ये हिम्मत इस पीपीपी मॉडल से मिलती है. PPP यानी पॉलिटिशियन, पुलिस और प्रॉपर्टी का बिजनेस करने वाले. इसकी जड़ में है पैसा और धमकाने वाला रुतबा. क्योंकि धमकी देकर बदमाश लाखों या करोड़ों की प्रॉपर्टी पर या तो ख़ुद कब्जा करते हैं या फिर किसी बिजनेसमैन का कब्जा कराते हैं. इससे उन्हें पैसे मिलते हैं.

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इसीलिए गैंगस्टर ख़ुद को बेखौफ बनाते हैं. दहशत फैलाते हैं और ख़ास एरिया में कुख्यात बनते हैं. ताकी जब वो किसी को धमकी दें तो कोई भी उन्हें हल्के में ना ले. और फिर इसी धमकी का फायदा उठाकर वो लाखों-करोड़ों कमाते हैं. कई पुलिस अधिकारी, नेता और बिजनेसमैन मिलकर उस गैंगस्टर को सपोर्ट भी करते हैं. अब चाहे वो जेल में हो या फिर बाहर.

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आम कैदी को घरेलू सामान भी नहीं, गैंगस्टर के हाथ में फोन कैसे?

अंकित गुर्जर केस में एक कैदी गौरव ने दावा किया है कि वो पूरी घटना का चश्मदीद रहा है. उसने दावा किया है कि 3 अगस्त को तिहाड़ जेल के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट अचानक निरीक्षण कर रहे थे. उस समय जेल नंबर-3 में बंद गैंगस्टर अंकित गुर्जर के पास से मोबाइल फोन मिला था.

नाराज डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ने अंकित को थप्पड़ जड़ दिया था. इससे अंकित भी भड़क गया और उसने भी पलटकर पुलिस अधिकारी को तमाचा मार दिया था. इसके बाद ही जेल के 30-35 स्टाफ ने मिलकर अंकित गुर्जर की जमकर पिटाई की थी. जिसमें उसकी मौत हुई थी.

यहां देखा जाए तो पूरी घटना की वजह बना जेल में मोबाइल फोन का आना. ऐसा कहा जा सकता है कि अगर अंकित गुर्जर के पास मोबाइल फोन नहीं होता तो शायद इसकी शुरुआत ना होती. फिर दूसरी बात कि अगर पुलिस अधिकारी ने थप्पड़ मार भी दिया तो जेल में होकर भी अंकित गुर्जर ने खाकी पर हाथ कैसे उठा दिया. उसमें इतनी हिम्मत कहां से आई?

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जेल में सबसे बड़ा विलेन है मोबाइल फोन

इस बारे में रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी राजेश पांडे ने बताया कि मैं सबसे बड़ा मुजरिम मोबाइल फोन को मानता हूं. जेल प्रशासन आखिरकार फोन पर रोक क्यों नहीं लगा पा रहा है. जबकि एक आम कैदी के घर से खाने का कोई सामान भी लाए तो उसे कैदी तक पहुंचाने के लिए ना जाने कितनी बार चेकिंग से गुजरना पड़ता है. कैदियों को बाहर से एक बीड़ी भी नहीं मिल पाती है.

लेकिन जेल में बंद गैंगस्टर के हाथ में मोबाइल फोन जरूर पहुंच जाता है. दरअसल, कई नेता, अधिकारी और प्रॉपर्टी बिजनेसमैन अपने फायदे के लिए सेटिंग के जरिए गैंगस्टर तक फोन पहुंचाते हैं. ऐसे में जेल में रहते हुए गैंगस्टर जब किसी को धमकी देता है तो उसमें ज्यादा डर पैदा होता है. इससे रंगदारी और प्रॉपर्टी के विवादित मामलों में लाखों रुपये लेकर समझौता कराने या फिर कब्जा कराने का काला कारोबार चलता है.

राजेश पांडे कहते हैं कि अगर गैंगस्टर के इस PPP मॉडल को कमजोर कर दिया जाए और जेल में किसी भी तरह से फोन की एंट्री पर रोक लगा दी जाए तो कई बड़े क्राइम रुक सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. इसलिए जेल के अंदर रहते हुए भी बड़े-बड़े गैंगस्टर बेखौफ होकर वारदात को अंजाम दे रहे हैं.

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