काबुल एयरपोर्ट पर हमले ने दुनिया के सबसे बुरे सपने को सच साबित कर दिया, TALIBAN और ISIS-K की दुश्मनी की INSIDE STORY

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क्या अफ़ग़ानिस्तान आतंकवादियों के बीच जंग का मैदान बनने जा रहा है?.क्या अफ़ग़ानिस्तान में आतंकियों के बीच होड़ शुरू हो चुकी है?. ये वो सवाल है जो आज पूरी दुनिया के ज़हन में है.क्योंकि काबुल में हुए सिलसिलेवार धमाकों में एक बड़ा संदेश छिपा है.ये धमाके बता रहे हैं कि दुनिया को सिर्फ लश्कर-ए तैय्यबा, जैश-ए-मोहम्मद या फिर बस तालिबान से ही खतरा नहीं है. ब्लकि ISIS पहले की तरह अभी भी खतरा बना हुआ है. जिसके हमले की भनक अमेरिका को पहले ही लग चुकी थी.

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ये बात हम इसलिए बोल रहे है क्योंकि काबुल में सीरियल ब्लास्ट से कुछ घंटे पहले ही अमेरिकी विदेश मंत्री ने दुनिया को बता दिया था कि काबुल दहल सकता है. जो शाम होते-होते सच साबित हो गया. मगर बड़ी बात ये है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की तरह तालिबान ने भी इन हमलों के लिए ISIS- K का नाम लिया.तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद्दीन ने काबुल में हुए धमाकों के लिए ISIS- K को दोषी ठहराया.तालिबान ने भी दावा किया कि उसने अमेरिका को पहले ही ISIS-K के इरादों के बारे में बता दिया था कि वो काबुल एयरपोर्ट को निशाना बना सकता है

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अब आप यहां पर सोच रहे होंगे कि जो तालिबान दुनिया के हर छोटे बड़े आतंकवादी संगठनों से जुड़ा हो.वो ISIS-K पर उंगली क्यों उठा रहा है. इस सवाल का जवाब ये है कि तालिबान और ISIS-K एक दूसरे के दुश्मन हैं. तालिबान का प्रभाव अफगानिस्तान में है. वहीं ISIS-K भी अफगानिस्तान से फैलकर बगदादी के खुरासान स्टेट के सपने को पूरा करना चाहता है.

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असल में ISIS-K तालिबान की तरह किसी राजनीतिक एजेंडा में यकीन नहीं रखता. उसका मानना है कि तालिबान जो कर रहा है काफी नहीं है. इसलिए वो तालिबान से भी ज्यादा कट्टर और खूंखार है. इसीलिए अफगानिस्तान में उसने अपने प्रभाव वाले इलाकों में बहुत ही सख़्त शरिया कानून लागू कर रखा है, और जो भी शरिया कानून को मानने से इनकार करता है, या फिर उसकी नज़र में उसका उल्लंघन करता है तो ISIS-K उसे बहुत ही क्रूर सजा देता है, और यही बात ISIS-K को तालिबान से भी ज्यादा खतरनाक आतंकवादी संगठन बनाती है. जो तालिबान की तरह किसी भी तरह के राजनीतिक समाधान में यकीन ही नहीं रखता.उसका मकसद सारी दुनिया में इस्लाम का राज कायम करना है.

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तो अब लौटते है काबुल में हुए धमाके पर, तो ISIS-K ने काबुल में धमाके करके ये जता दिया कि वो आने वाले वक़्त में इससे भी बड़े आतंकवादी हमलों को अंजाम दे सकता है. भले ही उसे महिलाओं और छोटे-छोटे बच्चों का खून ही क्यों न बहाना पड़े. वैसे इन धमाकों से पहले तालिबान ख़ुद को बदला हुआ आतंकवादी संगठन साबित करने में लगा था. जो अपनी ज़मीन का इस्तेमाल किसी देश के ख़िलाफ नहीं होने देगा.

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लेकिन काबुल में हुए धमाके ने बता दिया है कि पाकिस्तान की तरह वहां पर आतंक की जड़ें बहुत गहरी हैं. लेकिन यहां पर अब एक सवाल उठता है कि अगर तालिबान और ISIS-K में खुद को ज्यादा खूंखार आतंकवादी संगठन साबित होने की होड़ मची तो क्या होगा. अगर दोनों आतंकवादी संगठन आमने-सामने आए तो उसका अंजाम क्या होगा.

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इस सवाल पर जानकारों का जवाब है कि ISIS-K के पास भले ही तालिबान से कम आतंकवादी हों. ताकत-प्रभाव के मामले में वो तालिबान से कमजोर हो. लेकिन उसकी कट्टर सोच के चलते उसमें शामिल आतंकवादी ज्यादा खूंखार और खतरनाक हैं.

जो मौका आने पर फिदायीन हमलों से अफगानिस्तान समेत सारी दुनिया में कहीं भी हमला कर सकते हैं. काबुल एयरपोर्ट पर हमले ने दुनिया के सबसे बुरे सपने को सच साबित कर दिया है. क्योंकि अगर तालिबान और ISIS-K में वर्चस्व की लड़ाई हुई तो उसका सबसे ज्यादा ख़ामियाज़ा अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को ही भूगता पड़ेगा.

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