क्या भारत के लिए मुश्किल पैदा करेगी अफगान की नई सरकार?
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दोहा में तालिबान के जिस ग्रुप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्ता शुरू की थी और भारत से भी संपर्क साधा था, उसे अफगानिस्तान की नई सरकार में करीब-करीब किनारे कर दिया गया है। नई कैबिनेट में 33 में से 20 कंधार केंद्रित तालिबान गुट और हक़्कानी नेटवर्क के कट्टरपंथी हैं। इन लोगों पर पाकिस्तान का असर जगजाहिर है।
बरादर को नहीं चाहता था पाकिस्तान!
उम्मीद जताई जा रही थी कि तालिबान की राजनीतिक विंग के प्रमुख और दोहा में अमेरिका से वार्ता करने वाले अब्दुल गनी बरादर को अफगानिस्तान सरकार की कमान मिल सकती है, लेकिन अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री बनाया गया कट्टरपंथी और रहबरी-शूरा काउंसिल के प्रमुख मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को। मुल्ला अखुंद ने साल 2001 में बामियान में बुद्ध की मूर्तियां तुड़वाई थीं। अफगानिस्तान में इससे पहले के तालिबान शासन में मुल्ला अखुंद उप-विदेश मंत्री थे और इनका नाम संयुक्त राष्ट्र की ब्लैकलिस्ट में था। जानकारों का मानना है कि अमेरिका के करीबी माने जाने वाले मुल्ला बरादर को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख मोहम्मद फैज हामिद के इशारे पर किनारे लगाया गया है। कहा जा रहा है कि मुल्ला बरादर पर पाकिस्तान को भरोसा नहीं है। उसे लगता है कि मुल्ला बरादर अमेरिकी दबाव में काम कर सकते हैं। गौरतलब है कि तालिबान के नेतृत्व में सरकार बनाने पर जब सहमति नहीं बन पा रही थी तो फैज हामिद काबुल पहुंचे और उनके पहुंचने के चौथे दिन सरकार की घोषणा कर दी गई।
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भारत के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है हक्कानी!
भारत के लिए चिंता का सबब सरकार में कट्टरपंथी हक्कानी नेटवर्क का दबदबा होना भी है। हक्कानी नेटवर्क का मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी गृह मंत्री बन गया है। हक्कानी नेटवर्क आईएसआई का पसंदीदा है और भारत के खिलाफ कई आतंकी हमलों में इस संगठन का नाम आ चुका है। काबुल में साल 2008 में भारतीय दूतावास पर हमले के लिए भी इसी संगठन को जिम्मेदार बताया गया था। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि बतौर गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी न सिर्फ अफ़गानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालेगा बल्कि 34 प्रांतों में गवर्नरों की नियुक्तियां भी करेगा। ऐसे में प्रांतों के गर्वनरों की नियुक्तियां भी आईएसआई के इशारे पर होगी। सिराजुद्दीन हक्कानी ग्लोबल आतंकवादियों की लिस्ट में भी है और अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने उस पर 50 लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है।
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अब आगे क्या हो सकता है?
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जानकारों का मानना है कि ये देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई आतंकवाद के मसले पर कैसे मोस्ट वॉन्डेट सिराजुद्दीन हक़्कानी से सूचनाओं का आदान-प्रदान करेगी। एफबीआई को अब उसी के साथ आतंकवाद रोकने पर काम करना है? अमेरिका और ब्रिटेन के मुंह पर ये एक और तमाचा है। और ये नियुक्तियां आईएसआई ने कराई हैं और ये बात बिल्कुल बकवास थी कि तालिबान बदल गया है।
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