अफ़ग़ानिस्तान में हुई दुनिया की सबसे अनोखी परेड! तालिबान के मार्च पास्ट में Human Bomb और कार बमों की टुकड़ी
Taliban fighters march in uniforms in Afghanistan
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अफ़ग़ानिस्तान के हर टीवी स्टेशन पर इस वक़्त एक फिल्म दिखाई जा रही है. फिल्म तालिबान के ताक़त की. लेकिन 38 मिनट की इस फिल्म के बारे में आप गहराई से जानें, उससे पहले परेड में शामिल इस टुकड़ी की ये तस्वीर बेहद ग़ौर से देखिएगा. सफ़ेद पोशाक में वेस्ट जैकेट पहने इस वक़्त परेड में शामिल ये वो लोग हैं, जो अमूमन दिखाई नहीं देते. बस. हर सुसाइड हमले के बाद कभी कभार इनके नाम सुनाई ज़रूर दे जाते हैं. जी हां, ये ह्यूमन बॉम्ब हैं. यानी मानव बम. यानी फिदायीन हमले के हमलावर.
तालिबान की तरफ़ से जारी इस फिल्म में पहली बार उसने अपने ही फिदायीन को यूं कैमरे पर दिखाया है. बाक़ायदा फिल्म में इस बात का ज़िक्र भी किया गया है कि इस टुकड़ी से जुड़े जवानों ने यानी मानव बमों ने बहुत से ऑपरेशन को कामयाबी से अंजाम दिया है. इनमें अहम ठिकानों, अहम लोगों और हाई रैंक अफ़सरों को मारना शामिल है.
तालिबान के मानव बम की ये टुकड़ी इस वक़्त तालिबान के सेना प्रमुख मौलवी मोहम्मद याकूब मुजाहिद को सलामी दे रही है. जो इस व़क़्त मंच पर खड़ा है. सूत्रों के मुताबिक इस वीडियो को अफ़ग़ानिस्तान के अंदर ही किसी अज्ञात पहाड़ी इलाक़े में शूट किया गया है. इसमें तालिबान के सभी लड़ाकों ने हिस्सा लिया है.
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इसी वीडियो में मानव बम के ठीक पीछे-पीछे ये तालिबान के कार बम की टुकड़ी है. मानव बम के उलट इनके कमर पर सफ़ेद पट्टी बंधी है. ये पूरी टुकड़ी दुश्मनों के भारी वाहन, सैन्य ठिकाने, कारों के काफिले, और गाड़ियों से गुज़रनेवाले हाई रैंक अफ़सरों को अपना निशाना बनाती है.
कई बार दुश्मनों को मारने के लिए ये खुद अपना कार बम तैयार करते हैं. और उस हमले में खुद को भी उड़ा लेते हैं. दुनिया में शायद ये भी पहली मिसाल होगी, जब मानव बम के साथ-साथ कार बम से जुड़े लोगों को इस तरह कैमरे में क़ैद किया गया है.
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तालिबान ने ये डॉक्यूमेंट्री कब और कहां शूट किया, ये तो पता नहीं, लेकिन सूत्रों की मानें तो इसे तालिबान के आका काबुल में तालिबान की नई सरकार बनने से पहले अफ़ग़ान और दुनिया को दिखाना चाहते थे. फिल्म की शुरुआत में ये दिखाया गया है कि कैसे 9-11 हमले के बाद अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने अफ़गानिस्तान पर हमला किया. फिर अफ़ग़ान में कठपुतली सरकार बना कर कैसे अफ़गान को बर्बाद किया. तालिबान ने ये भी कहा कि 9-11 हमले से अफ़गानिस्तान का कोई लेना-देना नहीं था. उसने अमेरिका को आतंकवादी तक कहा.
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आम तौर पर कोई भी देश अपनी आज़ादी या ऐसे ही दूसरे मौक़ों पर जिस तरह से अपनी सैन्य ताक़त की नुमाइश करती है, तालिबान ने ठीक उसी तरह से अपने लड़ाकों के परेड का आयोजन किया. इस परेड में बाक़ायदा अलग-अलग टुकड़ियों के साथ-साथ तमाम तरह के हथियारों की भी नुमाइश की गई. तालिबान के लड़ाकों की टुकड़ी अलग-अलग रंग की वर्दी में है. इस वर्दी के रंग से ही इनके बटालियन का पता चलता है. परेड में वायुसेना के नाम पर एक हेलीकॉप्टर बेहद नीचे उड़ता नज़र आता है. परेड में शामिल कुछ हथियारों की नुमाइश देख कर तो हंसी भी आती है.
परेड में बाक़ायदा गाड़ियों का लंबा काफ़िला भी नज़र आता है. काफ़िले में टैंक भी दिखाई देते हैं. कुछ टैंक और तालिबान का काफ़िला सड़कों से गुज़रता भी नज़र आता है. जहां आम लोग और आम गाड़ियां भी दिखती हैं. मगर असली परेड एक बड़े से मैदान में हुआ था. बाक़ायदा मैदान के एक हिस्से में एक मंच बनाया गया था. उस मंच पर तालिबान के तमाम बड़े नेता मौजूद थे. जिनमें तालिबान के सेना प्रमुख मौलवी मोहम्मद याकूब मुजाहिद भी था. परेड की सलामी मुजाहिद को ही दी जा रही थी.
राष्ट्रपति भवन में घुसे तालिबानी ! अफगानिस्तान में राष्ट्रपति भवन पर तालिबान ने कब्जा किया अब अफगानिस्तान का नाम 'Islamic Emirate of Afghanistan' कर दिया जाएगाअब ये तस्वीरें देखिए. वीडियो के हिस्से में तालिबान लड़ाकों के अलग-अलग दस्तों के मेंबर इस्लामिक अमीरात का झंडा पकड़े हुए मंच के सामने से गुज़रते दिखाई दे रहे हैं. आपने ह्यूमन बॉम्ब और कार बम तो देख लिए अब दुश्मनों पर घात लगा कर हमला करने में इस्तेमाल किए जानेवाले माइंस वो कंटेनर भी देखिए, जिनमें बारुद भर कर कारों में फिट किया जाता है और जिनके धमाके से बड़ी तबाही मचती है.
प्रोपैगैंडा वीडियो के अगले हिस्से में कई तरह के सेल्फ़ लोडेड राइफल्स और असलहों का प्रदर्शन किया गया है. ये अस्लहे और रॉकेट वगैरह बेशक पुराने और कबाड़ सरीखे दिखते हों, लेकिन वीडियो शूट करने में कोई कमी नहीं छोड़ी गई है. ग़ौर से देखिए कई जगह तो ड्रोन के ज़रिए परेड से गुज़रती टुकड़ियों और अस्लहों का एरियल शॉट लिया गया है. इसी कड़ी में येलो बैरल बम का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया गया है.
तालिबान के प्रोपैगेंडा चैनल अल हिजरत की मानें तो ये येलो बैरल बम असल में दुश्मनों के सैन्य वाहन और शस्त्रागार यानी हथियार वगैरह रखने की जगह को उड़ाने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं. और अक्सर इनका इस्तेमाल मानव बम और कार बमों के ज़रिए ही होता है.
TALIBAN 2.0 : तालिबान ने बनाया 12 सदस्यों का काउंसिल, अमेरिका का मोस्ट वॉन्टेड आतंकी भी शामिल, 50 लाख डॉलर का है इनामइसके बाद घुड़सवार दस्ते के नाम पर गिनते के दो या तीन घुड़सवार मंच के सामने से गुज़रते नजर आते हैं और फिर मुजाहिदीनों की एक टुकड़ी मंच के सामने आकर कराटे के दांव पेंच दिखाते हुए मिट्टी के प्लेट्स तोड़ने का करतब करते हैं. हालांकि इस पूरी प्रक्रिया को बेहद शानदार तरीक़े से शूट किया गया है. कहीं एरियल शॉट्स हैं, कहीं लो एंगल फ्रेम, कहीं स्लो-मो तो कहीं, कहीं ओवर द शोल्डर, तो कहीं बर्डस आई व्यू.
तालिबान के सबसे बड़े नेता हिबतुल्ला अखुंदज़ादा के हवाले कहा गया कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद अब हम सभी देशों से बेहतर रिश्ते बनाना चाहेंगे. अमेरिका सहित बाकी दुनिया के साथ मज़बूत राजनायिक आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते बनाना चाहते हैं जो सभी को मंज़ूर हो.
तालिबान के बदले सुर से साफ़ है कि इस बार वो दुनिया का समर्थन चाहता है. तालिबान के तमाम बड़े नेता भी इसी सुर में बोल रहे हैं. लेकिन सरकार बनने के बाद तालिबान तमाम अहम मुद्दों पर क्या एक्शन लेता है, पहले इस पर नज़र होगी.
Afghanistan-Taliban Crisis : आतंकी संगठन है तालिबान, FACEBOOK, INSTAGRAM और WHATSAPP पर बैन : फेसबुक प्रवक्ताअमेरिका ने भी यही कहा है. शायद यही वजह है कि काबुल में सरकार बनने में देरी हो रही है.तालिबान की 'टॉप लीडरशिप काउंसिल' की बैठक में नई सरकार का खाका तो तैयार हो चुका है, लेकिन इस सरकार में किन-किन गुटों के कौन-कौन से लोग शामिल होंगे, इसे लेकर असमंजस है.
हालांकि तालिबान ने ये तो साफ़ कर दिया है कि सरकार तालिबान के सुप्रीम लीडर हैबतुल्ला अखुंदज़ादा की अगुवाई में बनेगी, जबकि मुल्ला बरादर सरकार का सबसे बड़ा चेहरा होगा. चलिए सरकार तो बन भी जाएगी, लेकिन तालिबान के लिए देश चलाना इतना आसान नहीं होगा. कहने का मतलब ये कि नई सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है, जबकि सरकार के हाथ खाली हैं.
ESCAPE FROM TALIBAN जब भारत की बेटी ने उतारा तालिबान को मौत के घाट15 अगस्त को काबुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद से 15 दिनों से ज़्यादा का वक़्त गुज़र चुका है और देश में फ़िलहाल कोई ठोस शासन व्यवस्था नहीं है. वहां बैंकों के बाहर लंबी कतार लगी हुई है और लोग रोज़मर्रा के ज़रूरी सामान की क़िल्लत से परेशान हैं. तालिबान की सरकार अब अफ़ग़ानिस्तान में फैली इस अव्यवस्था को जल्द से जल्द दूर करना चाहेगी. फिलहाल तालिबान के सामने दो तरह की चुनौतियाँ हैं. पहली चुनौती सरकार बनाने के दौरान अलग-अलग लोगों और गुटों को तरजीह देने को लेकर है,जबकि दूसरी चुनौती सरकार के गठन के बाद पेश आनेवाली है.
नई सरकार में तालिबान के राजनीतिक धड़े यानी दोहा गुट की चलती है, या फिर अफ़गानिस्तान में जंग लड़नेवाले मिलिट्री गुट की, ये देखनेवाली बात होगी. तालिबान के अंदर भी गुटबाज़ी कम नहीं है. अब तक तालिबान एकजुट थे. सभी अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर खदेड़ने के लिए लड़ रहे थे. लेकिन अब उन्होंने लक्ष्य हासिल कर लिया है, तो उनकी आपसी गुटबाज़ी के उभर कर सामने आने का ख़तरा पैदा हो गया है.
हिब्तुल्लाह अख़ुंदज़ादा अभी तालिबान में नंबर वन है. लेकिन उसकी लीडरशिप कैपेसिटी के बारे में लोगों को ज़्यादा नहीं पता है. अगर अखुंदज़ादा को ही नई सरकार के सरपरस्त की ज़िम्मेदारी मिलती है तो इसका मतलब है कि तालिबान के मिलिट्री गुट के मुकाबले सियासी गुट की ज़्यादा चली.
SADDAM HUSSEIN के इराक़ को लेकर SUPER POWER AMERICA का बड़ा फैसलाउधर, तालिबान के मिलिट्री कमांडर हैं सिराजुद्दीन हक़्क़ानी का अपना अलग ही दबदबा है. हक्कानी गुट की आदत रही है कि वो अलग ही चलना पसंद करता है. ऐसे में उसे नई सरकार में क्या जिम्मेदारी मिलती है, ये भी देखनेवाली बात होगी. सरकार चलाने के लिए तालिबान को हर फील्ड के काबिल लोगों की ज़रूरत होगी. फिर चाहे वो नौकरशाह हों, एक्सपर्ट्स, डॉक्टर्स, क़ानून के जानकार या फिर कुछ और. देखनेवाली बात ये होगी कि तालिबान ऐसे तर्जुबेकार लोग कहां से लाता है. फिलहाल तालिबान पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई, पिछली सरकार में बड़े ओहदे पर रहे डॉक्टर अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह, पूर्व प्रधानमंत्री गुलबुद्दीन हिकमतयार, समेत कई लोगों के संपर्क में है.
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