ESCAPE FROM TALIBAN जब भारत की बेटी ने उतारा तालिबान को मौत के घाट

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ESCAPE FROM TALIBANजब भारत की बेटी ने उतारा तालिबान को मौत के घाट
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जब सुष्मिता को अफगानी नागरिक जांबाज खान से प्यार हुआ

सुष्मिता का जन्म कोलकाता में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता सिविल डिफेंस विभाग में काम करते थे जबकि उनकी मां घर संभालती थीं। सुष्मिता के तीन भाई थे जिनकी वो इकलौती बहन थीं। उनकी जिंदगी में सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब उनकी मुलाकात कोलकाता में थियेटर रिहर्सल के दौरान अफगानी नागरिक जांबाज खान से हुई। जांबाज खान बिजनेस के सिलसिले में अफगानिस्तान से कोलकाता आते रहते थे।

मां-बाप की मर्जी के खिलाफ जांबाज खान से शादी की

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सुष्मिता ने चोरी छिपे जांबाज से शादी कर ली क्योंकि उन्हें अंदाजा था कि उनके मां-बाप इस शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे। जब सुष्मिता के परिवार को इस शादी का पता लगा तब वो उन पर तलाक लेने का दबाव बनाने लगे।

सुष्मिता अपने पति जांबाज को तलाक देने के लिए तैयार नहीं थी लिहाजा वो जांबाज के साथ अफगानिस्तान चली गईं। उस वक्त वहां पर तालिबान का राज था कुछ दिन बाद तालिबान ने जांबाज को तो कोलकाता वापस लौटने की इजाजत दे दी लेकिन सुष्मिता को लौटने से रोक दिया

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पति की पहली शादी के बारे में पता चला

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अफगानिस्तान पहुंचने पर सुष्मिता को पता चला कि उनके पति की पहले भी शादी हो चुकी है और वो उनकी दूसरी पत्नी हैं। जांबाज की पहली पत्नी का नाम गुलगुट्टी था जिससे उनकी शादी दस साल पहले हुई थी।

तालिबान की वजह से ज़िंदगी में भूचाल

अफगानिस्तान में रहने के दौरान सुष्मिता को लगने लगा कि ये तालिबान इस्लाम को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं। महिलाएं अपने पति के अलावा किसी और मर्द से बात नहीं कर सकती थीं, घर से बाहर नहीं निकल सकती थीं । वो इलाज के लिए अस्पताल तक नहीं जा सकती थी क्योंकि इलाज के दौरान मर्द डॉक्टर उन्हें छूते। उन्हें घर पर ही मरने के लिए छोड़ दिया जाता। अगर कोई महिला इसका विरोध करती तो उसे सरेआम गोली मार दी जाती।

सुष्मिता ने अफगानिस्तान से भागने का फैसला किया

सुष्मिता ने देखा कि उनकी पति की भाभी आठवें बच्चे को जन्म देने के दौरान मारी गईं क्योंकि उन्हें इलाज के लिए अस्पताल नहीं ले जाया गया। उसने एक लड़के को जन्म दिया था, सब घरवाले लड़के के जन्म की खुशी मान रहे थे बच्चे की मां की मौत का गम किसी को नहीं था। नर्स की ट्रेनिंग कर चुकी सुष्मिता ने चोरी छिपे एक क्लीनिक खोली और महिलाओं को उनके हकों के बारे में बताना शुरु किया।

मई 1995 में उनकी क्लीनिक के बारे में लोगों को पता चल गया। सजा के तौर पर सुष्मिता को सरेआम बुरी तरह से पीटा गया और किसी ने इसका विरोध नहीं किया जिसमें उसके पति का परिवार भी शामिल था।

पहला प्रयास

पहली बार अफगानिस्तान से भागने के दौरान सुष्मिता जैसे-तैसे पाकिस्तान के इस्लामाबाद तक पहुंच गईं। वहां पर उन्होंने भारतीय दूतावास के साथ संपर्क किया लेकिन उनके साथ धोखा हुआ और उन्हें एक बार फिर तालिबान को सौंप दिया गया।

दूसरा प्रयास

दूसरी बार भागने के दौरान सुष्मिता पाकिस्तान पहुंचने के लिए पूरी रात चलीं लेकिन तालिबान ने उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया। इस बार सुष्मिता के खिलाफ मौत का फतवा निकाला गया और तय किया गया कि 22 जुलाई 1995 को उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाएगा।

तीसरा और आखिरी प्रयास

जिस गांव में सुष्मिता रहती थीं उस गांव के मुखिया के बेटे को तालिबान ने मौत के घाट उतार दिया था जिसकी वजह से वो तालिबान के विरोध में आ गया था। सरपंच ने सुष्मिता की मदद की और भागने के दौरान सुष्मिता ने एके 47 से तीन तालिबान आतंकियों को मौत के घाट उतार डाला। सरपंच उन्हें काबुल तक लेकर आया वहां उन्हें वीजा और पासपोर्ट मिल गया और 12 अगस्त 1995 को आखिरकार वो भारत पहुंच गईं।

एक बार फिर अफगानिस्तान में वापसी

भारत में रहने के दौरान सुष्मिता ने कई मशहूर किताबें लिखीं लेकिन वो एक बार फिर अफगानिस्तान लौटना चाहती थीं। बताया जाता है इसकी दो वजह थीं, पहली तो एक बच्ची जिसको सुष्मिता ने गोद लिया था। दूसरी ये कि वो अफगानिस्तान में रहकर और किताबें लिखना चाहती थीं।

वो महिलाओं के हकों को लेकर काम करना चाहती थीं। अफगानिस्तान लौटने पर सुष्मिता महिलाओं के स्वास्थ के लिए काम करने लगीं। वो अफगानिस्तान के पट्टिका राज्या में रहतीं थी और महिलाओं को स्वास्थ सेवाएं देने के साथ ही वो उन पर डॉक्यूमेंट्री फिल्मे भी शूट कर रही थीं।

तालिबान ने सुष्मिता को उतारा मौत के घाट

4-5 सितंबर की दरम्यानी रात को तालिबानी आतंकी जबरदस्ती सुष्मिता के घर में घुस गए। यहां पर तालिबान ने सुष्मिता के पति को बांध दिया और सुष्मिता को अगवा कर के ले गए। अगले दिन सुष्मिता की लाश शराना शहर के बाहरी हिस्से में मिली। सुष्मिता के जिस्म पर गोलियों के बीस निशान थे यानि आतंकियों ने सुष्मिता को बीस गोलियां मारी थीं।

हालांकि तालिबान ने इस हत्या की जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया लेकिन बाद में तालिबान के एक धड़े ने ये कहकर जिम्मेदारी ली कि सुष्मिता रॉ के लिए जासूसी का काम कर रही थीं इस वजह से उनको मारा गया।

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