बीहड़ में एक साथ 6-6 'सुहागरात' मनाने वाला आशिक़ मिज़ाज डाकू!

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बीहड़ में एक साथ 6-6 'सुहागरात' मनाने वाला आशिक़ मिज़ाज डाकू!
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यूपी के आख़िरी गांव बिलौड़ से चिराग गोठी, फ़र्रुख़ हैदर और विनोद शिकारपुरी के साथ मनीषा झा

चंबल का बीहड़ मशहूर है उन खूंखार डाकुओं की वजह से जिन्होंने जंगल में जुर्म की ऐसी इबारत लिखी जिसके निशान आज भी यहां मौजूद हैं। मगर यहां कुछ ऐसे भी डाकू गुज़रे जिन्होंने जंगल में अपनी अय्याशी की भी दास्तां लिखी।

ऊपर जो तस्वीर आप देख रहे हैं वो मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सरहदों से लगने वाले सरहदी ज़िले जलौन के बिलौड़ गांव की है। जहां बीहड़ में अब तक के सबसे खूंखार और सबसे अय्याश पहलवान डाकू के किस्से इधर-उधर बिख़रे हुए हैं। पहलवान डाकू की ज़िंदगी कई हिस्सों और कई पहलुओं में है। लिहाज़ा उसकी ज़िंदगी के हर एक पहलू को बारी- बारी समझना होगा।

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सबसे पहले आइए जानते हैं कि पहलवान आख़िर डाकू पहलवान कैसे बना। बिलौड़ के इस गांव में डाकू पहलवान का ये घर था जिसमें वो अपने 3 और भाईयों के साथ रहा करता था, चारों भाईयों में उनका एक ही भतीजा था और उस भतीजे को भी डाकुओं ने मौत के घाट उतार दिया था। बस यहीं से शुरू हुई पहवान के डाकू बनने की दास्तां। शुरुआती दिनों में जब उसने हथियार उठाया तब उस दौर में बीहड़ में कई खूंखार डाकू हुआ करते थे। लिहाज़ा अपना खौफ कायम करने के लिए उसने ज़ुल्मों सितम की नई इबारत लिख दी।

पहलवान का एक नया रुप बीहड़ ने तब दिखा जब उसने 90 के दशक में अलग-अलग कई राज्यों से 6 कमसिन लड़कियों को किडनैप करवा लिया। बिलौड़ के लोग उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि वो लोग जो कभी उसके साथ काम किया करते थे और अब आम ज़िंदगी बिता रहे हैं उन्होंने पहलवान डाकू की अय्याशी अपनी आंखों से देखी थी।

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बकौल बालक्टर सिंह चौहान 90 के दशक में वो पहलवान डाकू के साथ अस्थाई तौर पर काम किया करते थे, उन्होंने अपनी आंखों से देखा था जब पहलवान डाकू अलग अलग शहरों से 6 लड़कियों को उठा लाया था और उनके साथ ना सिर्फ रंगरलियां मनाता था बल्कि उसने एक साथ 6 की 6 लड़कियों के साथ शादी भी रचा ली थी।

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हालाकि गांव वाले ये भी बताते हैं कि कई बार तो लड़कियां खुद अपनी मर्ज़ी से भी आती थी। इनकी अलग अलग वजह होती है। कुछ जीवन में मिली प्रताड़ना और बेइज्जती का पहलवान डाकू के ज़रिए बदला लेने के लिए ख़ुद को समर्पित कर दिया और कुछ गरीबी से तंग आकर एक अच्छे जीवन की तलाश में इन डाकुओं के गैंग में शामिल हुई। हालाकि इनमें से बहुत कम लड़कियां ही डाकुओं के ज़रिए दिए जाने वाले डैकती में शामिल होती थी। गैंग में ज़्यादातर लड़कियां डकैती के अलावा होने वाले बाकि कामों को अंजाम दिया करती थी। इसके अलावा वो सरदारों को खुश करने का काम भी किया करती थी।

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