आठ क़त्ल की वो पहेली जो 110 साल बाद भी अनसुलझी है, भूतिया बंगले की रोंगटे खड़े करने वाली दास्तां

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आठ क़त्ल की वो पहेली जो 110 साल बाद भी अनसुलझी है, भूतिया बंगले की रोंगटे खड़े करने वाली दास्तां
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Shams ki Zubani: पूरे 110 साल पुराने इस क़िस्से में आठ लोगों का क़त्ल है, और सभी आठों क़त्ल आज तक पहेली बने हुए हैं। जुर्म की दुनिया में ये कहा जाता है कि क्राइम के इतिहास में जितने भी रहस्यमय क़त्ल हुए हैं उनमें इन आठ क़त्ल का ज़िक्र शायद बहुत पहले किया जाता है।

यानी 110 साल बीत जाने के बावजूद आज तक कोई ये नहीं जान सका कि जिन आठ लोगों का क़त्ल किया गया उनका क़ातिल कौन है, वो क़ातिल कहां है? कभी कभी ये भी सवाल सामने आ जाता है कि इन आठ क़त्ल का कोई क़ातिल है भी या नहीं?

और जैसे ही क़ातिल को लेकर ये सवाल उठता है तो बात आती है कि कहीं इन क़त्ल के पीछे किसी भूत किसी साये या किसी प्रेम आत्मा का कोई रिश्ता है? कोई भी इनमें से किसी भी सवाल का जवाब पूरे यक़ीन के साथ नहीं दे पाता। कम से कम बीते 110 सालों में तो अभी तक किसी ने नहीं दिया।

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Shams ki Zubani: 110 साल पहले आठ क़त्ल हुए उनका क़ातिल बेशक आजतक किसी को नहीं मिला, मगर जिस बंगले में क़त्ल की ये सनसनीख़ेज़ वारदात हुई, वो बंगला आज भी मौजूद है। बंगले में रखा सारा सामान आज भी वैसा ही रखा हुआ है जैसा शायद 110 साल पहले रखा था।

बीते 110 साल के दौरान इस घर को खंगालने के लिए न जाने कितनी बार पुलिस गई होगी। खुफिया एजेंट्स ने वहां रात गुज़ारी होगी और जिस जिस को क़त्ल के इस क़िस्से में ज़रा भी दिलचस्पी थी उसने इस घर का चप्पा चप्पा अपनी आंखों से उलट पलट कर देखा होगा।

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लेकिन इन 110 सालों के दौरान ये बंगला कुछ और भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। दुनिया भर के वो तमाम लोग जो भूत प्रेत और आत्मा वगैराह की बातों और कहानियों में यक़ीन करते हैं वो अक्सर इस बंगले पर आते रहते हैं। ऐसे लोग जिन्हें आत्माओं से बात करने का शौक है या आत्माओं के बारे में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। जो पैरानॉर्मल एक्टिविटी में शामिल होते रहते हैं, उन सभी को भी ये बंगला अपनी ओर खींचता है। और वो लोग उसे देखने ज़रूर जाते हैं।

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Shams ki Zubani: इस मामले में सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि पिछले कई सालों से जो इस बंगले की देखभाल कर रहे हैं वो भी इस बंगले में नहीं जाते। अलबत्ता जो सैलानी या पैरानॉर्मल टूरिस्ट इस बंगले में रात गुज़ारने का ख़्वाहिशमंद होता है तो उसे बंगले की चाबी पकड़ा दी जाती है और वहां से लौटते वक़्त उनसे चाबी ले ली जाती है।

यानी रात के वक़्त टूरिस्ट के अलावा उस बंगले में और कोई नहीं होता। सवाल ये उठ सकता है कि अगर टूरिस्ट की भीड़ बंगले में है तो फिर वहां डरने जैसी कोई बात तो होनी नहीं चाहिए। लेकिन यहां हल्का सा पेंच है। बंगला की देखभाल करने वाले केयर टेकर की एक ही शर्त होती है कि एक वक़्त में केवल आठ टूरिस्ट ही बंगले में रह सकते हैं।

असल में बंगले के केयर टेकर का मानना है कि उस बंगले में मौजूद तमाम ज़रूरत की चींजें सिर्फ आठ लोगों के हिसाब से थीं। लिहाजा वहां एक वक़्त में टूरिस्ट भी आठ ही जाने चाहिए। क्योंकि 110 साल पहले जब यहां आठ क़त्ल का क़िस्सा हुआ था तो उस वक़्त बंगले में एक परिवार के छह लोगों के साथ दो मेहमान भी थे। लिहाजा ये आठ का अंक बेहद ग़ौर करने वाला है।

Shams ki Zubani: कितना अजीब ख़्याल है कि जिस बंगले में आठ लोगों का क़त्ल हुआ हो, और जिसका क़ातिल पकड़ा ही न गया हो, पकड़ना तो छोड़िये जिसके बारे में सही सही मालूमात भी न हो ऐसी जगह पर जाकर ठहरना, किसी भी सूरत में आसान काम नहीं है। इसके लिए वाकई बहुत हिम्मत और जिगर की ज़रूरत पड़ती है।

और साथ ही दीवानगी की भी। क्योंकि ऐसा काम कोई दीवाना ही कर सकता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि जिस बंगले का क़िस्सा सामने है उस बंगले में रात गुज़ारने वाले न जाने कितने टूरिस्ट हैं और आगे भी होंगे।

कुछ ऐसे दीवाने लोगों ने तो शायद बंगले में इस गरज से रात बिताई कि हो सकता है कि रात के सन्नाटे में उनकी किसी भूत प्रेत या आत्मा से मुलाक़ात हो जाए और उन्हें क़त्ल की पहेली को सुलझाने में कोई मदद मिल जाए। लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं।

Shams ki Zubani: ये कहानी अमेरिका की है। अमेरिका में एक शहर है वेलिस्का, वेलिस्का मोंटगोमरी काउंटी। इसी काउंटी में एक जगह है आयोवा। क़िस्सा शुरू होता है साल 1912 को। एक शांत और छोटा शहर वेलिस्का की उस वक़्त की आबादी महज ढाई हज़ार लोगों की थी। शहर नया था और तेजी से विकसित भी हो रहा था।

नए कारोबारी और उद्योगपति इस शहर में अपना बसेरा बना रहे थे। शहर के बीचो बीच से ट्रेन की पटरियां गुज़रती थी लिहाजा ट्रेनों के आने जाने का शोर ही शहर का इकलौता शोर था। इसके अलावा सारे शहर में सन्नाटा रहता था।

इसी शहर की हद में एक कारोबारी परिवार भी रहता था। जिसे मूर फैमिली भी कहा जाता था। जो सिया मूर और सारा मूर पति पत्नी थे। उस वक़्त जो की उम्र 45 साल की थी। जबकि सारा भी 39 की थीं।

जो और सारा के चार बच्चे थे। सबसे बड़ा बच्चा 11 साल का था जबकि सबसे छोटे बच्चे की उम्र 5 साल थी। लेकिन इसी परिवार के साथ दो और बच्चे रहते थे, जिसमें एक की उम्र 8 साल थी जबकि दूसरे की उम्र 12 साल।

Shams ki Zubani: ये कारोबारी परिवार बेहद खुशमिज़ाज और शांत प्रिय थे साथ ही धार्मिक भी थे। इसीलिए इलाक़े के गिरजाघर की ज़्यादातर देखभाल जो मूर की पत्नी सारा मूर किया करती थीं। और चर्च के कामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थीं। शायद इसीलिए इलाक़े के तमाम लोग इस परिवार की बहुत इज्ज़त करते थे। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था।

साल 1912 की 10 जून को चर्च ने चिल्ड्रन्स डे मनाने का कार्यक्रम रखा था साथ ही ख़ास प्रार्थना सभा का भी इंतेज़ाम किया गया था। इसी चर्च से सारा मूर भी जुड़ी हुई थीं लिहाजा जो मूर और सारा अपने बच्चों को साथ लेकर चर्च जाते हैं। दिन भर के तमाम कार्यक्रम और प्रार्थना सभा को होते होते रात हो जाती है।

रात क़रीब साढ़े नौ बजे मूर पति पत्नी अपने चारों बच्चों को लेकर घर की तरफ जाने वाले होते हैं तभी उनके पड़ोस के दो बच्चे भी उनके साथ हो जाते हैं। चूंकि वो दोनों बच्चे पड़ोस के थे और बच्चों की आपस में दोस्ती थी लिहाजा बच्चों के माता पिता इस बात के लिए रजामंद हो जाते हैं कि सारे बच्चे उस रात एक साथ ही मूर परिवार के साथ उसी बंगले में बिता सकते हैं।

Shams ki Zubani: अब मूर दंपत्ति अपने चारो बच्चों और पड़ोस के दो बच्चों को साथ लेकर रात क़रीब 9.45 बजे अपने घर में दाखिल होते हैं। घर पहुँचकर सारे बच्चे थोड़ा बहुत खाने पीने के बाद अलग अलग कमरों में सो जाते हैं। दो दो के जोड़े में। जबकि जो मूर और सारा मूर अपने बेडरूम में सो जाते हैं। घर की लाइट बंद हो जाती है।

11 जून 1912 को सुबह के आठ बज जाते हैं। लेकिन मूर परिवार के घर का दरवाजा अब भी बंद होता है, न तो पर्दे हटाए जाते हैं और न ही सुबह की प्रार्थना। ये बात मूर परिवार के पड़ोसियों को बुरी तरह चौंकाती है। क्योंकि आमतौर पर मूर परिवार सुबह जल्दी उठकर प्रार्थना करता था जिससे उनके पड़ोसी अच्छी तरह वाकिफ़ थे।

लिहाजा 11 जून की सुबह मूर परिवार के पड़ोसियों को अटपटी लगने लगी। क्योंकि सालों से उसने ऐसा सन्नाटा मूर परिवार में इससे पहले कभी नहीं देखा था, बेशक हालात कैसे भी रहे हों। कम से कम इतनी देर तक तो कोई सोता नहीं रहता था।

Shams ki Zubani: फ़िक्रमंद पड़ोसी ने मूर परिवार के घर का दरवाजा खटखटाया, तब भी कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी। खिड़कियों से झांककर देखा, कुछ नज़र नहीं आया। तब पड़ोसियों को चिंता हुई तो उसी मोहल्ले में रहने वाले सारा के भाई को खबर भिजवाई गई। सारा का भाई वहां पहुँचता है और बड़ी कोशिश के बाद घर के पिछवाड़े के एक दरवाजे को खोलकर वो घर के भीतर दाखिल होता है। उसके सामने एक बेडरूम था।

वो सीधा उसमें जाता है। बेड रूम में दाखिल होते ही सारा के भाई की चीख निकल जाती है क्योंकि कमरा खून से सराबोर था। फर्श पर खून ही खून था और बेडरूम खून से लाल हो चुका था। और उसी बेड पर सारा और जो मूर की खून से लथपथ लाशें पड़ी हुईं थीं। लाशों की हालत देखकर सारा के भाई के होश फ़ाख़्ता हो गए। सिर लगभग कुचला हुआ था। जो मूर की आंख लगभग बाहर लटक रही थी। देखकर यही अंदाज़ा हो रहा था कि क़ातिल ने बड़ी ही बेरहमी से इनका क़त्ल किया।

Shams ki Zubani: बेडरूम की हालत देखकर सारा के भाई की हालत ख़राब हो जाती है वो उल्टे पैर वापस लौटता है और पड़ोसियों से कहकर मार्शल यानी इलाक़े की पुलिस को इत्तेला करता है। दस मिनट में पुलिस मौके पर पहुँच जाती है।

पुलिस के साथ सारा का भाई और दूसरे पड़ोसी घर में दाखिल होते हैं। बेडरूम का हाल तो सारा का भाई देख ही चुका था, लेकिन पुलिस के साथ वो घर के बाकी कमरों में जाकर देखता है। हर कमरे में लाशें ही मिलती हैं। हरेक बेड पर लाशें। सारा और जो के चारों बच्चों के अलावा पड़ोस के दोनों बच्चों की भी लाशें वहीं बेड पर पड़ी हुई थीं।

पुलिस अब अपनी तफ्तीश शुरू करती है। फॉरेंसिंक और डॉक्टरों की टीम भी मौके पर आ जाती है। शुरूआती तफ़्तीश का इशारा यही था कि सभी लोगों की हत्या नींद में की गई। यानी क़ातिल इन लोगों को उस वक़्त मौत के घाट उतारा जब वो सब गहरी नींद में सो रहे थे।

लेकिन पुलिस और फॉरेंसिक के लोग उस वक़्त चौंक गए जब उन्हें वहां 9 साल की एक बच्ची की लाश बाकी लाशों से अलग तरह से नज़र आई। वो बेड पर तिरछी पड़ी हुई थी और उसकी बाह में चोट थी। उसको देखकर पुलिस ने ये अंदाज़ा लगाया कि वारदात के वक्त शायद वो बच्ची जाग गई थी इसलिए उसने खुद को बचाने की कोशिश की। शायद इसीलिए उसकी लाश दूसरी लाश के मुकाबले अलग तरह से पड़ी मिली।

Shams ki Zubani: इसी बीच जांचकर्ताओं को जो शिया मूर और सारा मूर के कमरे में एक हथौड़ा पड़ा मिला। जो पूरी तरह खून से लथपथ था। उस हथौड़े को देखकर पुलिस ने ये तो अंदाज़ा लगा लिया कि यही वो आला-ए-क़त्ल है। जिससे क़ातिल ने सभी को मारा। पुलिस की तफ़्तीश में ये भी बात सामने आई कि हरेक के सिर पर क़ातिल ने कम से कम 20 से 30 बार वार किया था।

लेकिन सबसे बुरी तरह किसी को मारा गया था वो उस घर के मालिक जो सिया मूर को मारा गया था। जो मूर को हथौड़े के अलावा कुल्हाड़ी के धार वाले हिस्से से भी मारा गया था। मौका-ए-वारदात का मुआयना करते वक़्त पुलिस को ये भी अंदाज़ा हो गया कि क़ातिल को शायद सबसे ज़्यादा नफ़रत घर के मालिक जो मूर से ही थी।

उस घर से जो लाशें मिलीं उसमें जो सिया मूर के अलावा उनकी पत्नी 39 साल की सारा मूर, 11 साल के हरमन मूर, 10 साल की कैटरीन मूर की, सात साल का ऑर्थर मूर और पांच साल के पाउल मूर। और दो पड़ोस के बच्चे आठ साल की इना इंस्ट्रिंगलर और 12 साल की लीना इंस्ट्रिंगलर।

Shams ki Zubani: डॉक्टरों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक सारे क़त्ल रात 12 बजे से सुबह 5 बजे के दरम्यान हुए थे। घर की तलाशी के दौरान पुलिस को सिगरेट के दो बट्स भी मिले। इससे ये भी पता चल गया कि क़ातिल ने सबका क़त्ल करने के बाद बड़ी तसल्ली से वक्त बिताया सिगरेट भी पी और फिर बाथरूम में जाकर हाथ भी धोए। और ये सब करने के बाद बड़े आराम से वहां से निकल गया। जाते जाते वो घर की चाबी भी अपने साथ ले गया और दरवाजे को बाहर से लॉक कर दिया।

छोटे और शांत से शहर में एक बंगले के भीतर आठ आठ लोगों का क़त्ल ये खबर जैसे ही फैलती है तो हंगामा मच जाता है। और देखते ही देखते शहर की तमाम आबादी उस बंगले के सामने तमाशबीन बनकर खड़ी हो गई जहां आठ लोगों का क़त्ल हुआ था। बहुत से लोग बंगले के भीतर घुसने की कोशिश करने लगे।

Shams ki Zubani: उस वक़्त बंगले में एक फॉरेंसिक डॉक्टर भी मौजूद थे नाम था डॉक्टर एफ एस विलियम्स। बंगले के भीतर जाने को बेताब भीड़ को देखकर डॉक्टर विलियम्स ने भीड़ से कहा था कि अगर तुम लोग बंगले के भीतर मत जाओ, क्योंकि अगर भीतर गए और वहां जो कुछ है उसे देखा तो यकीन जानो अपनी ज़िंदगी के आखिरी पल तक पछताते रहोगे। इसलिए मेरी बात मानों मत देखो मत जाओ।

असल में भीतर लाशों की जो हालत थी वहां का जो मंजर था उसे देखने के बाद शायद ही कोई उसे अपनी जिंदगी में भुला सकता। बावजूद इसके कई लोग उस बंगले में दाखिल हुए। जिसकी वजह से बंगले के भीतर मौजूद सबूत और सुराग के अलावा कई ज़रूरी फिंगर प्रिंट और डीएनए जैसी चीजें ख़राब हो गईं। जिससे पुलिस के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई क्योंकि तफ़्तीश के लिए ज़रूरी सुराग मिट गए थे।

Shams ki Zubani: पुलिस ने फिर भी अपनी तफ्तीश आगे बढ़ाई और पता लगाया कि वो कौन लोग हो सकते हैं जो हथौड़े से क़त्ल तक कर सकते हैं। पुलिस ने सात आठ संदिग्धों की निशानदेही की। उनमें से एक शख्स तो ऐसा भी था जिसने कुछ अरसा पहले ही हथौड़े से अपनी बीवी, अपनी सास का क़त्ल किया था। लेकिन तफ्तीश में पता चला कि उस रोज उसकी मौजूदगी ही वहां नहीं थी। एक और को भी पकड़ा लेकिन वो भी उन क़त्ल का मुल्जिम नहीं बन सका। पुलिस ने हथौड़े से क़त्ल करने के एंगल से खूब छानबीन की, लेकिन पुलिस को न कोई सबूत मिले और न ही कोई सुराग।

पुलिस मूर फैमिली के साथ किसी की अदावत को भी साबित नहीं कर सकी। पुलिस को ये तो पक्का यकीन हो गया था कि जो क़ातिल था वो यहां सिर्फ और सिर्फ क़त्ल के इरादे से ही आया था। लेकिन एक सवाल पुलिस को भी अखर रहा था कि अगर क़ातिल की दुश्मनी जो मूर से थी तो फिर उसने बच्चों को निशाना क्यों बनाया। पुलिस के पास किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं था।

Shams ki Zubani: पुलिस ने जिन संदिग्धों को इस क़त्ल के सिलसिले में पूछताछ के लिए पकड़ा था उनमें से एक था कैली। जो इस वारदात के बाद सबसे बड़ा संदिग्ध था, पुलिस की नज़र में। उसकी वजह भी थी। असल में पुलिस के मुताबिक 10 जून की रात को कैली वेलिस्का शहर में भी था और वो स्कूल में प्रिंसिपल से मिलने भी पहुँचा था। उस रात वो वेलिस्का में ही रूका था, लेकिन सुबह पांच बजे वो वेलिस्का छोड़कर चला गया था।

चूंकि क़त्ल का वक़्त 12 से 5 बजे तक का ही था लिहाजा कैली पर शक गहरा हो गया। लेकिन उस पर शक की जो सबसे बड़ी वजह थी वो ये थी कि जब वो ट्रेन से शहर छोड़कर जा रहा था तो रास्ते में उसने कुछ लोगों से कहा था कि वेलिस्का शहर के एक घर में आठ लाशें पड़ी हुई हैं और उनमें छह बच्चे हैं। असल में ये बात कैली के बारे में कुछ चश्मदीदों ने पुलिस को बताई थीं।

Shams ki Zubani: यहां बड़ा सवाल खड़ा हुआ कि आखिर कैली को कैसे पता चला था कि मूर के बंगले में आठ लाशें पड़ी हैं और मरने वालों में छह बच्चे हैं। और वो भी तब जबकि तब तक ये ख़बर न तो मीडिया में आई और न ही कहीं छपी। इसी सवाल के सहारे पुलिस ने कैली को तलाशना शुरू कर दिया और कैली पकड़ा गया।

कैली के बारे में तफ़्तीश के दौरान पुलिस को पता चला कि उसके ख़िलाफ़ महिलाओं से छेड़खानी के कई आरोप लग चुके हैं। कुछ लोगों के साथ आपत्तिजनक तस्वीरों को साझा करता था। तभी पुलिस को जांच में पता चला कि उसकी मानसिक हालत भी ठीक नहीं है। और उसका इलाज भी चल रहा है। लेकिन पुलिस ने संदिग्ध को गिरफ़्तार कर लिया। इत्तेफाक देखिये कि पुलिस के सामने कैली ने स्वीकार भी कर लिया कि उसने ही क़त्ल किए थे क्योंकि गॉड का हुक्म था।

Shams ki Zubani: पुलिस ने जब बतौर कातिल कैली को अदालत में पेश किया तो साथ में उसकी मैंटल रिपोर्ट भी अदालत के सामने रखी गई। उसकी मानसिक हालत की रिपोर्ट देखने के बाद जूरी बट गई। क्योंकि जूरी के कुछ सदस्यों का कहना था कि संदिग्ध का इक़बालिया बयान उसकी मानसिक हालत के मद्देनज़र स्वीकार नहीं किया जा सकता। जूरी का फैसला हुआ और कैली बरी हो गया।

बरी होने के बाद इधर पुलिस अपनी तफ़्तीश करती रही और कैली के ख़िलाफ उसे सबूत और सुराग मिलते रहे। उधर कैली भी घूम घूमकर लोगों से कह रहा था कि क़त्ल उसने ही किए हैं। लिहाजा पुलिस ने फिर कैली को पकड़ा और उसके ख़िलाफ़ मुकदमा फिर चलाया।

लेकिन कैली की बहकी बहकी बातों और उसकी मेंटल रिपोर्ट ने जूरी को हैरान कर दिया। और पुलिस अदालत में कोई ऐसा ठोस सबूत भी पेश नहीं कर सकी जो ये साबित कर सके कि कैली ने ही आठ लोगों की हत्या की। अदालत ने दूसरी बार कैली को बरी कर दिया।

Shams ki Zubani: पुलिस ने छह और संदिग्धों को पकड़ा लेकिन किसी के भी ख़िलाफ़ पुख़्ता सुबूत न होने की वजह से उन्हें भी मुलजिम नहीं बनाया जा सका।

वक़्त गुज़रता रहा, पुलिस की तफ़्तीश चलती रही, लेकिन क़त्ल की पहेली अनसुलझी ही बनी रही। उधर मूर फैमिली का वो बंगला और उससे जुड़े क़िस्सों की वजह से ज़माने में घोस्ट बंगले के रूप में बदनाम हो गया। बरसों तक बंगला वीरान रहा। इस बंगले की कहानियां इस कदर मशहूर हुईं कि एक स्थिति ये आ गई कि लोग इसे दुनिया के सबसे डरावनी जगहों से एक करार देने लगे।

घोस्ट बंगले के रूप में मशहूर होते ही इस बंगले को लेकर कई किस्से और कहानियां भी हवा में तैरने लगीं। कई बरस बीत जाने के बाद पहले इस बंगलो के एक म्यूज़ियम के तौर पर तब्दील कर दिया गया। लेकिन वक़्त गुज़रने के बाद ये बंगला बिका, लेकिन उसकी पहचान नहीं बिकी। उस बंगले के बाहर बाक़ायदा एक बोर्ड लगाया गया जिस पर इस बंगले की कहानी लिखी गई। देखते ही देखते तमाम पैरानॉर्मल एक्टिविटी करने वालों के बीच ये बंगला मशहूर हो गया।

Shams ki Zubani: इस बंगले की डरावनी कहानियों और उनसे जुड़े क़िस्सों के बारे में सुनकर बंगले के मालिक ने इसे कमाई का ज़रिया बना लिया। और बंगले को होटेल में तब्दील कर दिया। जिसकी शर्त थी कि एक रात एक वक़्त में सिर्फ आठ लोग ही यहां रुक सकते हैं। और वो भी अपनी ज़िम्मेदारी पर।

इस बंगले से जुड़ा एक क़िस्सा लोगों को बहुत खींचता है। इत्तेफाक से बंगले में हुए क़त्ल के ठीक सौ साल बाद यानी 10 जून 2012 को दो शख्स इस बंगले में जाकर रुकते हैं। अगले रोज सुबह उन दो में से एक ज़ख्मी हालत में मिलता है। उसके सीने के पास खंजर के निशान थे। हालांकि ज़ख्म मामूली था और जान को ख़तरे जैसी कोई बात नहीं थी। लेकिन ये बात रहस्य ही रह गई कि आखिर उस शख्स को चाकू किसने मारा था। हालांकि उस लड़के ने ये बयान दिया था कि उसे घर में किसी के होने का आभास हुआ और ये भी आभास हुआ कि कोई है जो उसे मारना चाहता है।

बहुत से लोग इस बंगले में रुके, रात भी गुजारी और सबके पास इस बंगले की अलग अलग कहानियां भी हैं। फिलहाल तो बंगला एक म्यूजियम है लेकिन ये रहस्य आज भी जस का तस है कि मूर फैमिली और पड़ोस के दोनों बच्चों का क़ातिल आखिर कौन है? ये सवाल आज भी उसी बंगले के इर्द गिर्द जवाब की तलाश में भटक रहा है।

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