खुफिया एजेंसियों की ऐसी साज़िश जिसने एक कारोबारी के माथे पर लिख दिया आतंकवादी

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Shams Ki Zubani : आज की क्राइम की कहानी पर आने से पहले एक बेहद अहम जानकारी का साझा करना शायद इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस कहानी को समझने में तो मददगार होगी.. साथ साथ सामान्य ज्ञान की भी जानकारी हो सकती है।

दुनिया के हरेक देश की अपनी अपनी खुफिया एजेंसियां हैं जो देश की सुरक्षा के लिए दिन रात 24 घंटे काम करती हैं। यूं तो सरकार के हरेक काम के लिए एक बाकायदा बजट तय कर दिया जाता है लेकिन सुरक्षा एजेंसियों और खासकर देश की सुरक्षा के काम में लगी एजेंसियों के लिए कोई बजट तय नहीं होता...बल्कि इन लोगों का बजट बेहिसाब रहता है।

यानी सुरक्षा एजेंसियों और खुफिया एजेंसियों से जुड़ी रकम के बारे में देश की बही खातों का ऑडिट करने वाली संस्थाएं भी इनका लेज़र या बही खाता नहीं चेक करतीं..क्योंकि सूचना के नाम पर या फिर दूसरे ज़रूरी ऑपरेशन के नाम पर ये एजेंसियां बेहिसाब रकम खर्च तो करती हैं लेकिन उसके लिए उन्हें हिसाब किताब नहीं देना पड़ता। और ये हरेक देश का एक जैसा तरीका है।

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Shams Ki Zubani : मगर कभी कभी देश और सरकार की नज़र में अपना नाम ऊंचा करने के चक्कर में कई बार ये खुफिया एजेंसियां कुछ ऐसे निर्दोष लोगों को फंदा देती हैं जिनका किसी वारदात में दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं होता अलबत्ता वो खुफिया एजेंसियों की एलबाई में पूरी तरह से फिट बैठ जाते हैं।

आज की क्राइम की कहानी भी एक ऐसी ही बड़ी एजेंसी से जुड़ी हुई है। जिसने सरकार की नज़र में अपना रुतबा ऊंचा करने के लिए एक आम इंसान को कैसे आतंकवादी बना देती है और कैसे पूरी डील को अंजाम देती है। यहां तक की कैसे एक आतंकी संगठन तक का वजूद पैदा कर देती है। यहां तक कि खुद ही हथियार को खरीदती है और खुद ही हथियार को बेचती है।

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इस कहानी का मुख्य किरदार है हेमंत लखानी। हेमंत लखानी एक भारतीय कारोबारी थे। जो गुजरात में कारोबार करते करते ब्रिटेन चले गए और फिर ब्रिटिश नागरिक बन गए। हेमंत लखानी आमतौर बासमती चावल, कपड़े और साड़ियों का कारोबार करते थे। ब्रिटेन में हेमंत लखानी का कारोबार अच्छा खासा जम चुका था। कमाई भी बेहिसाब हो रही थी। बढ़ते हुए कारोबार ने हेमंत लखानी के भीतर एक ऐब पैदा कर दिया था और वो था बड़बोला पन। यानी अपनी बात को इस तरह बढ़ा चढ़ाकर पेश करते थे कि सुनने वाला उनके रौब में आए बगैर रह ही नहीं सकता था। और उनका यही बड़बोला पन किस तरह उनके लिए परेशानी का सबब बन गई, जिसके बारे में शायद उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।

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Shams Ki Zubani : ये क़िस्सा साल 2003 का है। अगस्त का महीना था। ये वो दौर था जब 9/11 की आतंकवादी घटना के बाद अमेरिका में हर तरफ सुरक्षा का चाको चौबंद बंदोबस्त था। चूंकि उस आतंकी घटना को अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की सबसे बड़ी नाकामी माना गया था। उधर अमेरिका में दूसरी बरसी भी आने वाली थी। लिहाजा अब खुफिया एजेंसियां पूरी तरह अलर्ट पर थीं।

उसी दौर में अमेरिका के न्यू जर्सी के एक पांच सितारा होटल में एक मीटिंग हो रही थी। इस मीटिंग में हेमंत लखानी तो थे ही, साथ में था एक हाजी नाम का शख्स। दोनों के बीच बातचीत टेरेरिस्ट अटैक को लेकर ही हो रही थी लेकिन ये बातचीत अमेरिका में हुए आतंकी हमलों को लेकर उसको गलत ठहराने के लिए नहीं थी बल्कि उनके मंसूबों की मुराद कुछ ऐसी थी कि अगर ऐसे ही 9/11 जैसे हमले अमेरिका में कुछ और हो जाए तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठ सकता है।

दोनों लोग कुछ इस तरह से बात कर रहे थे कि मानों दोनों किसी दूसरी बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम देने की फिराक में हों। बातचीत के दौरान हाजी नाम का वो शख्स हेमंत लखानी से कहता है कि अमेरिका में ऐसे ही हमलों को बड़े पैमानों पर अंजाम देने के लिए हमें क़रीब 200 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलों की जरूरत पड़ेगी। चूंकि 9/11 का हमला तो हवाई जहाज को बिल्डिंग में टकराकर किया गया था लेकिन इस बार इरादा उससे जुदा है। लेकिन इस बार उड़ते जहाज़ को ही मारकर नीचे गिरा देंगे।

Shams Ki Zubani : इसके बाद हाजी नाम के उस शख्स की नज़र एक सोफे की तरफ जाती हैं जिसकी तरफ इशारा खुद हेमंत लखानी ने किया था। वहां एक मिसाइल रखा हुआ था। जिसे देखकर हाजी बुरी तरह से चौंक जाता है। लेकिन खुद को संभालते हुए वो हेमंत लखानी की तरफ देखकर इस बात पर सहमति में सिर उठाता है कि हेमंत लखानी उसके बड़े काम का है। आगे की बातचीत का मसौदा तय करने और इस मिसाइल के प्लान को आगे बढ़ाने के वायदे के साथ दोनों की मीटिंग खत्म हो जाती है और हेमंत लखानी उठकर कमरे से बाहर निकलता है।

कमरे से बाहर निकलते ही उसे FBI के दो एजेंट घेर लेते हैं और उसे पकड़ लेते हैं। हेमंत लखानी इस गिरफ्तारी से बुरी तरह से चौंक गया। क्योंकि वो समझ नहीं पा रहा था कि जब बंद कमरे में वो मीटिंग कर रहा था और उस मीटिंग के बारे में सिवाय उसके किसी को पता नहीं था तो फिर ये FBI वालों को इस मीटिंग की खबर किसने दे दी।

एफबीआई के एजेंट हेमंत लखानी को ले जाकर जेल में बंद कर देते हैं। शाम के वक़्त हेमंत की पत्नी कुसुम उससे मुलाक़ात करने जाती है तो बातचीत में हेमंत लखानी अपनी बीवी से पूछता है कि आखिर वो हाजी कहां है। जिसे उसके ही साथ एफबीआई ने उसे पकड़ा था। उसके बाद कुसुम हाजी के बारे में जो खुलासा करती हैं तो उसे सुनकर खुद हेमंत लखानी गश खा जाते हैं।

Shams Ki Zubani : असल में हेमंत लखानी के लिए इसकी शुरूआत होती है साल 2002 से जब वो न्यूयॉर्क में एक शख्स से मिलते हैं। असल में ये वो दौर था जब हेमंत लखानी का कारोबार अच्छा नहीं चल रहा था और वो अपने कारोबार को और फैलाने के लिए हाथ पैर मार रहे थे।

लिहाजा वो न्यूयॉर्क में मिले शख्स से अपनी प्लानिंग बताते हैं कि वो किसी रिफाइनरी का काम कर रहे हैं लेकिन उसके लिए उन्हें फाइनेंस की ज़रूरत है। तब वो शख्स हेमंत लखानी को रास्ता दिखाता है कि रिफाइनरी के बारे में फाइनेंस से संबंधित मदद के लिए वो खाड़ी में मौजूद एक शख्स के बारे में बताता है। इस भरोसे के साथ कि वो पैसा भी लगा सकता है।

तब हेमंत लखानी की मुलाकात रहमान से होती हो। जो मदद के लिए तैयार भी था लेकिन पूरा प्लान समझना चाहता था। उसी बातचीत के सिलसिले में रहमान अब हेमंत लखानी को अपनी बातों के जाल में पूरी तरह से लपेट लेता है और तब हेमंत लखानी के साथ मिलकर हथियार, ड्रग्स और दूसरे धंधों के बारे में बात करता है।

Shams Ki Zubani : बस यहीं से हेमंत लखानी की ट्रेन डिरेल होने लगती है। अब यहां पर कोढ़ में खाज का काम करता है हेमंत लखानी का बड़बोलापन। जो अपनी पहुँच ब्रिटेन के शाही परिवार तक या लीबिया के मुहम्मर गद्दाफी तक अपनी पहुँच का हवाला देना शुरू कर देते हैं।

तब रहमान वापस तेल के कारोबार की तरफ लौटता है और हेमंत लखानी से कहता है कि हथियारों की सप्लाई करो और जो चाहिए वो दिलवाए तो बेहिसाब दौलत कमाने का मौका मिल सकता है। तब रहमान ने उसके सामने 200 एंटी एयरक्राफ्ट गन मिसाइल की ज़रूरत है। हेमंत ने भरोसा दिलाया कि ये काम आसानी से हो जाएगा और अमेरिका के भीतर ही ये डिलीवरी भी हो जाएगी।

तब रहमान ने एक शर्त रखी कि डिलीवरी से पहले कम से कम एक मिसाइल का नमूना उन्हें दिखाया जाए। और वो भी एक महीने के भीतर। हेमंत वायदा तो कर देता है लेकिन क़रीब 8 से दस महीने का वक़्त गुजर जाता है। मिसाइल नहीं आ पाता।

Shams Ki Zubani : हेमंत लखानी रूस और यूक्रेन में अपने संपर्कों को खंगालता है और एक मिसाइल की बात करता है। इत्तेफाक से ये वो दौर था जब अमेरिका और रूस के बीच इतनी कट्टर दुश्मनी नहीं था, बल्कि रिश्ते ठीक ठाक थे। तो रूस की तरह से अमेरिका को खुफिया खबर लीक हो जाती है जिसमें इशारा किया जाता है कि किसी ने अमेरिका में ही मिसाइल मंगवाई है।

हेमंत लखानी को मिसाइल मिल नहीं पा रही थी और उधर रहमान लगातार हेमंत पर मिसाइल दिखाने का दबाव बना रहा था।

हालांकि हेमंत लखानी के दिमाग में एक सवाल खड़ा हो गय है कि आखिर ये रहमान कौन था जो तेल का कारोबार करने की शुरूआत करवाने की बजाए हथियारों की सप्लाई के झंझट में पड़ गया। लेकिन उसे उसका जवाब मिल चुका था क्योंकि रहमान ने हेमंत के सामने ये बात साफ कर दी थी कि रहमान और उसके साथी सोमालिया के एक टेररिस्ट ग्रुप के लिए हथियारों की सप्लाई का काम करते हैं।

और वही लोग अब अमेरिका में अपने संगठन को मजबूत करना चाहते हैं इसके लिए उन्हें कुछ बड़े हथियारों की ज़रूरत है। तब लखानी ने हामी भर दी थी। और वो मिसाइल का इंतज़ाम करने में लग गया।

Shams Ki Zubani : लम्बी जद्दोजहद के बाद आखिरकार हेमंत लखानी की अगस्त 2003 में रहमान और हेमंत लखानी के बीच मुलाकात होती है। ये मीटिंग थी ही इसी लिए कि हेमंत अपना वायदा पूरा करने जा रहा था। वो पहला मिसाइल रहमान को दिखा चुका था।

अब यहां एक सवाल तो खड़ा ही हो जाता हैकि आखिर एक साल तक तो मिसाइल मिला नहीं, लेकिन जब मिसाइल मिला और उसे रहमान को सौंपा गया तो उसकी भनक अमेरिकी खुफिया विभाग को भनक कैसे लग गई।

इसके बारे में जब हेमंत लखानी ने अपनी पत्नी से पूछा तो उसने एक बेहद चौंकाने वाली कहानी का खुलासा किया। असल में इस किस्से की शुरूआत होती है 90 के दशक से। जब अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान से नशे की खेप अमेरिका पहुँच रही थी और अमेरिकी एजेंसियां इससे बेहद परेशान थीं।

Shams Ki Zubani : उसी दौरान जब अमेरिकी एजेंसियों के एजेंट ड्रग्स के कार्टेल को तोड़ने के लिए पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान में काम कर रहे थे उसी दौरान अमेरिकी एजेंटों को एक शख्स मिला रहमान। जिसके बारे में कहा जाता था कि ड्रग्स के सिंडीकेट में उसकी जबरदस्त पकड़ थी। तब अमेरिकी एजेंसियों के एजेंटों ने रहमान से संपर्क किया और उससे ड्रग्स का सिंडीकेट और कार्टल को तोड़ने में मदद मांगी ।

रहमान अमेरिकी एजेंसियों के लिए बड़े काम का साबित हुआ और उसकी दी गई टिप्स से अमेरिका ने नशे की कई खेप और नशे के कई बड़े सौदागरों को पकड़ लिया।

रहमान के काम से अमेरिका की एजेंसियां तो बेहद खुश हुईं, लेकिन अमेरिकी एजेंसियों के लिए काम करने के चक्कर में रहमान उस सिंडीकेट के रडार में आ गया जो ड्रग्स के धंधे में थे। लिहाजा रहमान की जान को खतरे में देख अमेरिकी एजेंसी ने उसे अमेरिका में पनाह दे दी।

अमेरिका पहुँचकर रहमान खुफिया एजेंसियों के लिए काम करता ही रहा। लेकिन वहां वो ज़्यादा कामयाब नहीं हो पा रहा था लिहाजा कुछ वक़्त बाद ही अमेरिकी एजेंसियों ने उससे नाता तोड़ लिया। लेकिन जब 2001 में टेररिस्ट अटैक के बाद पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान के साथ साथ ओसामा बिन लादेन का नाम आया तो अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को फिर से रहमान याद आया।

इसी बीच 9/11 के हमले के दाग को छुपाने के लिए खुफिया एजेंसियों ने कुछ नया करने के चक्कर में एक प्लानिंग की । जिससे उनका नाम और रुतबा दोनों बढ़ सके। तब उस प्लानिंग में एजेंसियों ने रहमान के साथ मिलकर एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया। और उसी प्लानिंग में अमेरिकी एजेंसी ने एक भारतीय कारोबारी हेमंत लखानी को बेगुनाह होते हुए भी आतंकी घोषित कर दिया।

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