दुनिया की सबसे सनसनीख़ेज़ किडनैपिंग, ज़मीन से 12 फुट नीचे छुपाए गए थे 26 स्कूली बच्चे

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दुनिया की सबसे सनसनीख़ेज़ किडनैपिंग, ज़मीन से 12 फुट नीचे छुपाए गए थे 26 स्कूली बच्चे
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Shams Ki Zubani: गुनाह का ये क़िस्सा अपने आप में बेहद अनोखा और दहलाने वाला भी है। क्योंकि दुनिया में शायद ये इकलौती कहानी होगी जिसमें किडनैपिंग की इतनी सारी वारदात एक साथ होती हैं।

ज़रा सोचिये उन माता पिता की हाल क्या हो सकता है जो अपने घर पर अपने बच्चों के स्कूल से लौटने का इंतज़ार कर रहे हों और अचानक खबर ये आए कि स्कूल की पूरी की पूरी बस और उस बस में मौजूद सभी बच्चे किसी के ख़ौफ़नाक इरादों का शिकार हो गए और पूरी बस को ही अगवा कर लिया गया हो?

Shams Ki Zubani: लेकिन उसी के साथ जब ये भी ख़बर उसी में जुड़ी हो कि स्कूली बच्चों के साथ साथ वो ड्राइवर भी अगवा हो गया जिस पर मां बाप बच्चे और स्कूल सभी बेहद भरोसा करते हों और उसके काम को पसंद करते हों? ज़ाहिर है कि इस खबर को सुनने के बाद लोगों का कलेजा हलक में अटक सकता है, सांसों की रफ़्तार बढ़ सकती है और किसी बड़ी अनहोनी की आशंका तमाम लोगों को आकर पूरी तरह से अपनी गिरफ़्त में ले सकती है। साफ है दुनिया में और ख़ासतौर पर जुर्म की दुनिया में इतनी बड़ी तादाद में किडनैपिंग की ऐसी वारदात की कोई दूसरी मिसाल अभी तक तो सामने नहीं आई है।

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स्कूली बच्चों की इतनी बड़ी किडनैपिंग की इस दास्तां को उसी बस ड्राइवर के ज़रिये ही समझना ज़्यादा मुनासिब भी होगा, जो कम से कम 27 परिवारों की सांसों को रोक देने वाली इस घटना का न सिर्फ जीता जागता चश्मदीद बना बल्कि उसने ये भी साबित कर दिया कि उसे अगर इतने लोग प्यार करते हैं तो उसके पीछे की असली वजह क्या हो सकती है।

Shams Ki Zubani: ये वाकया अमेरिका के कैलिफोर्निया स्टेट के चाउविले शहर का है और बात 1976 की गर्मियों की है। चाउविले शहर में एक स्कूल है डेयरीलैंड एलिमेंट्री स्कूल (Dairyland Elementary School)। गर्मियों के दिन थे लिहाजा बच्चों के समर हॉबी क्लासेस ही हो रही थीं। इसी स्कूल की बस के ड्राइवर थे फ्रैंक जूनियर एड। 15 जुलाई को हर रोज की तरह फ्रैंक जूनियर स्कूल की छुट्टी के बाद 26 बच्चों को बस में लेकर स्वीमिंग पूल जा रहा था।

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बस में उस वक़्त 19 लड़कियां थी जबकि सात लड़के थे। और बस में मौजूद बच्चों की उम्र पांच साल से लेकर 15 साल तक थी। स्वीमिंग पूल की तरफ जाने वाला रास्ता सूनसान था। मगर उससे बच्चों को कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि फ्रैंक जूनियर हमेशा की तरह बस में बच्चों को उनकी पसंद का गाना बजा दिया करता था, जिससे बच्चे गाने और म्यूज़िक की मस्ती में डूबकर रास्ते का ध्यान ही नहीं रखते थे।

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जिस रास्ते पर फ्रैंक जूनियर बस से बच्चों को ले जा रहा था उस पर ट्रैफिक भी बेहद कम था। इक्का दुक्का कोई गाड़ी वहां से गुज़र जाती थी। अचानक रास्ते में एक मोड़ के पास एक सफेद वैन बस का रास्ता रोकती है। चारो तरफ सन्नाटा होता है और सड़क पर सिर्फ एक बस...बस में मौजूद 26 बच्चे एक ड्राइवर और अब एक सफेद रंग की वैन। जो बस का रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है।

Shams Ki Zubani: फ्रैंक जूनियर बस रोकता है। और जैसे ही फ्रैंक बस को रोकता है, वैन से तीन नक़ाबपोश उतरते हैं और सीधे बस की तरफ आते हैं। तीनों नक़ाबपोश बस को दोनों तरफ से घेर लेते हैं और ड्राइवर फ्रैंक जूनियर से बात करते हैं। बल्कि ये कहा जाए कि वो फ्रैंक जूनियर को बस से उतरकर वहां से जाने को कहने लगते हैं।

अभी फ्रैंक जूनियर उन नक़ाबपोश से बहस में उलझा ही होता है तभी एक नक़ाबपोश गन निकाल लेता है। और फिर तीनों ही बस में सवार हो जाते हैं। तीन नक़ाबपोश अजनबियों को बस पर सवार होता देखकर सारे बच्चे रोने लगते हैं। फ्रैंक जूनियर बच्चों को चुप करवाता है। इस बीच नक़ाबपोश बस को पूरी तरह से अपने काबू में ले लेते हैं। एक नक़ाबपोश बस का ड्राइवर बन जाता है जबकि एक बस में बच्चों और ड्राइवर फ्रैंक जूनियर पर नज़र रखता है...और तीसरा नक़ाबपोश वैन को ड्राइव करने लगता है।

Shams Ki Zubani: हथियारबंद नक़ाबपोशों को देखकर फ्रैंक जूनियर की भी हालत ख़राब हो जाती है। वो इस ख़्याल से डरने लगता है कि कहीं नक़ाबपोश किसी भी बात से बौखलाकर कहीं फायर न कर दें...बस इसी ख़्याल से सहमा फ्रैंक जूनियर रोते हुए बच्चों को खामोश कराने लग जाता है। उधर ड्राइवर की कुर्सी पर जाकर बैठा नक़ाबपोश बस को ड्राइव करने लगता है।

अब उस सूनसान रास्ते पर स्कूल की बस आगे आगे और बदमाशों की वैन पीछे पीछे चलने लगती है। कुछ किलोमीटर चलने के बाद नक़ाबपोश बदमाश बस को एक बांस के खेत के पास ले जाकर खड़ा कर देता है। जहां बस रुकती है, वहां पहले से ही एक वैन खड़ी हुई थी। नक़ाबपोश बदमाश बस से बच्चों को उतारकर वहां पहले से मौजूद एक दूसरे सफेद रंग की वैन में बैठा देते हैं।

यानी अब दो वैन, वैन में मौजूद 26 बच्चे और एक ड्राइवर यानी फ्रैंक जूनियर और तीन नक़ाबपोश। दोनों वैन को दो नक़ाबपोश चला रहे थे और तीसरा नक़ाबपोश बच्चों के साथ बैठा हुआ था। इसके बाद अगले कई घंटों तक दोनों वैन किसी अनजान रास्ते पर चलती रहती हैं।

Shams Ki Zubani: इधर बच्चे और ड्राइवर फ्रैंक जूनियर तो नक़ाबपोश बदमाशों के कब्ज़े में वैन में थे और वैन किसी अनजान मंज़िल के सफ़र पर। लेकिन उधर चाउचिले शहर में अब तक हड़कंप मच चुका था। क्योंकि समर क्लासेस के ख़त्म होने के काफी वक़्त बीत जाने के बाद भी बच्चे अब तक घर नहीं पहुँचे थे। बच्चों के माता पिता उनकी तलाश में स्कूल तक जा पहुँचे लेकिन न तो बच्चे मिले न बच्चों की बस और न ही ड्राइवर फ्रैंक जूनियर।

घबराहट ने बच्चों के माता पिता से लेकर स्कूल तक को अपनी गिरफ़्त में ले लिया। बच्चों के माता पिता से लेकर स्कूल के टीचर और प्रिंसिपल तक भी अलग अलग ज़रियों से बच्चों का पता लगाने की कोशिश में जुट जाते हैं। तलाश जारी थी, शाम से रात हो गई लेकिन बच्चों का कहीं कोई अता पता नहीं मिला। चारो तरफ चीख पुकार और रोना चिल्लान शुरू हो गया।

Shams Ki Zubani: 26 बच्चों का स्कूली बस समेत लापता होना चाउचिले शहर को झकझोरने के लिए काफी था। अब ये इत्तेला पुलिस को भी मिल जाती है। बच्चों के माता पिता और स्कूल के टीचरों के साथ अब शहर की पुलिस भी बच्चों की तलाश करने लगती है। आधी रात के आस पास पुलिस को एक हल्की सी कामयाबी मिलती है।

फ्रीवे के पास एक खेत के किनारे लावारिस हालत में खड़ी स्कूली बस मिल जाती है। बस तो मिल जाती है लेकिन न तो बच्चे और न ही ड्राइवर और न ही कोई उनका निशान, कुछ नहीं मिलता। ये उसी स्कूल की बस थी जिससे बच्चे आते जाते थे। और इत्तेफ़ाक से ये वही बस ही थी जिस पर 15 जुलाई की दोपहर को बच्चे सवार हुए थे। लावारिस हालत में मिली बस की ख़बर तेजी से बच्चों के माता पिता के साथ साथ शहर के मीडिया को भी मिल जाती है। अब बस के इर्द गिर्द अच्छा ख़ासा मजमा लग जाता है।

Shams Ki Zubani: स्कूल की बस लावारिस हालत में मिलने की खबर पाकर मौके पर अमेरिका की सबसे बड़ी जांच एजेंसी FBI की टीम भी पहुँच जाती है। मौके पर गहराई से छानबीन में जुटी FBI की टीम को कुछ नज़र आता है। वो उन सुराग़ और निशानों का पोस्टमॉर्टम करने में जुट जाती है।

इधर दोनों वैन रात के अंधेरे में किसी अनजान मंजिल की तरफ तेज़ी से दौड़ती जा रही थीं। वैन में डरे सहमे बच्चे और ड्राइवर फ्रैंक जूनियर नींद और थकान की खुमारी में झोंके ले रहे थे। करीब 12 घंटे लगातार चलने के बाद 16 जुलाई की सुबह दोनों वैन झटके से एक जगह रुकती है। जहां वैन रूकी वो इलाक़ा भी सूनसान था।

दूर दूर तक आदमज़ात तक का नामो निशान नहीं था। वैन एक वीराने के पास रुकी थी। फिर नकाबपोश एक एक बच्चे को वैन से उतारते हैं उससे उसका नाम और उम्र पूछी जाती, जिसे एक नकाबपोश बाक़ायदा एक डायरी में लिखता जा रहा था। और फिर एक एक बच्चे को उसी ज़मीन पर कुछ ही दूरी पर बने एक छोटे मुंह वाले बंकर में ले जाया जाने लगा। ये बंकर काफी गहरा था और बंकर में अंधेरा भी था।

Shams Ki Zubani: असल में वो बंकर कुछ और नहीं एक बड़े ट्रक कंटेनर था जिसे वहां गड्ढढे के भीतर इस तरह से फिक्स किया गया था कि वो बंकर की शक्ल ले ले। ये ऐसा कंटेनर था जिसमें आमतौर पर रहने के इस्तेमाल में लाते हैं। उस कंटेनर में उतरने के लिए बाकायदा एक सीढ़ी भी लगाई गई थी। इसतरह एक एक बच्चे को वैन से उतारकर सीढ़ी के ज़रिए कंटेनर में ले जाया गया।

और पूरे 27 लोगों को उस कंटेनर में बदमाश कैद कर लेते हैं। और कंटेनर या यूं कहें बंकर का मुंह बदमाशों ने मिट्टी से ढक दिया। अब उस कंटेनर में 26 बच्चों और फ्रैंक जूनियर समेत 27 लोग क़ैद होते हैं। ऐसे देखा जाए तो अगवा किए गए वो सभी 27 लोग एक तरह से ज़मीन के भीतर ज़िंदा दफ़्न कर दिए जाते हैं। लेकिन ऐसा था नहीं। क्योंकि बदमाशों ने कंटेनर का बंकर बनाते समय कुछ खास तरह के इंतज़ाम भी कर लिए थे। ताकि उसमें जो भी रहे तो सांस ले सके और ज़िंदा रह सके।

इसके लिए बदमाशों ने कंटेनर के एक सिरे पर एग्ज़ॉस्ट भी लगा दिया था जिससे वो कंटेनर की ख़राब हवा को भीतर से बाहर फेंक सके और दूसरे सिरे पर एक बड़ा पंखा लगा था जिससे कंटेनर में खुली और साफ हवा पहुँच सके। इसके अलावा कंटेनर में ही टॉयलेट का इंतज़ाम था और गद्दे पड़े हुए थे जिससे वहां रहने वाला आराम से लेट भी सके। साथ ही साथ खाने पीने का सामान भी रखा हुआ था।

Shams Ki Zubani: बच्चों और फ्रैंक जूनियर को कंटेनर में बंद करके बदमाश वहां से चले गए। उस कंटेनर में बंद हुए बच्चे घबराहट में अपने घरवालों को याद करते हुए रोने बिलखने लगते हैं। इन्हीं बच्चों में एक 14 साल का बच्चा था, जो बच्चों में सबसे बड़ा और सबसे समझदार था। उसका नाम था माइकल।

बस ड्राइवर फ्रैंक जूनियर एड और माइकल। इन दोनों ने मिलकर आपस में तय किया कि किसी भी तरह यहां मौजूद सभी बच्चों को संभाला जाए और रोने न दिया जाए। क्योंकि अगर बच्चे घबरा गए तो इस हालात से लड़ने में दुश्वारी हो जाएगी। क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि ये मुसीबत कब तक टलेगी। टलेगी भी या नहीं।

लेकिन हालात से निपटने के लिए प्लानिंग और समझदारी से काम लेना जरूरी था। तब अपनी घबराहट को छुपाते हुए फ्रैंक और माइकल ने मिलकर एक स्वांग रचा ताकि वहां मौजूद तमाम बच्चे उसे भी एक एडवेंचर समझकर उसका लुत्फ लेना शुरू कर दें, इसलिए वहां दोनों ने एक तरह से पिकनिक जैसा माहौल बनाना शुरू कर दिया और सभी बच्चों को खेल में उलझा दिया।

Shams Ki Zubani: इसी बीच कंटेनर में एक ऐसी बात हो गई जिसने सभी को चौंका दिया। उस कंटेनर में लगा इकलौता वेंटिलेटर फैन बंद हो गया। फैन बंद हुआ तो कंटेनर में गर्म हवा बढ़ने लगी। इससे बच्चों में घबराहट पैदा हो गई। उस घबराहट ने फ्रैंक और माइकल को भी अपनी गिरफ़्त में ले लिया।

उधर चाउचिले शहर में अफ़रा तफ़री का आलम था। मीडिया सवाल दाग रही थी, लेकिन कोई जवाब देने वाला नहीं था। पुलिस स्कूल के अधिकारी और टीचर, बच्चों के माता पिता के साथ साथ FBI की टीमें सारे शहर का चप्पा चप्पा खंगालने में जुटी हुई थी। हर गली हर सड़क को कई कई बार खंगालते जा रहे थे, ताकि किसी भी तरह लापता बच्चों का कोई सुराग तो मिले। मगर लाख कोशिश के बावजूद बच्चों की परछाई तक किसी को नहीं दिख रही थी।

इधर शहर के तमाम शोर शराबे और अफ़रा तफ़री से दूर ज़मीन से क़रीब 12 फुट नीचे एक कंटेनर में बंद बच्चे और फ्रैंक जूनियर की हालत ख़राब होती जा रही थी। वक़्त बीत रहा था, कंटेनर का वैंटिलेटर फैन काम नहीं कर रहा था। चारो तरफ अंधेरा ही नज़र आ रहा था। इसी घबराहट के बीच फ्रैंक और बच्चों ने मिलकर कंटेनर का दरवाजा भी खोलने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे।

Shams Ki Zubani: काफी देर तक जूझने के बाद जब सब थक के चूर होकर वैन में बैठे थे। तभी माइकल की नज़र उस वेंटिलेटर फैन की ओर उठी, जो उस वक़्त बंद था। उसने गौर किया कि फैन के ऊपर थोड़ी सी जगह ऐसी है जहां से आसमान दिखाई दे रहा है। उसने ये बात फ्रैंक जूनियर को बताई। अब दोनों ने उस जगह का ढंग से मुआयना किया...और अहसास किया कि वो वेंटिलेटर फैन ही उन्हें शायद कुछ राहत दिला सके।

माइकल और फ्रैंक ने मिलकर उस वैंटिलेशन फैन के आस पास से मिट्टी को हटाना शुरू किया। दोनों कई घंटों तक धीरे धीरे मिट्टी को वहां से हटाते रहे। देखते ही देखते वहां इतनी जगह दिखने लगी कि उसमें से होकर एक इंसान निकल सकता है। तभी फ्रैंक को अहसास हुआ कि जिस जगह ये वेंटिलेटर फैन है वहीं कंटेनर का मेन दरवाजा भी है। मिट्टी के हटने से उनके हाथ दरवाजे की कुंडी तक जा पहुँचे।

कुंडी खोलने के बाद भी दरवाजा पूरी तरह से नहीं खुल पा रहा था क्योंकि दरवाजे के आगे ऐसी रुकावट लगी थी जिसके हटे बगैर दरवाजे का खुलना मुमकिन नहीं था। असल में बदमाशों ने कंटेनर के मेन दरवाजे के सामने ट्रकों की दो बड़ी बैटरी इस तरह से लगा रखी थी ताकि दरवाजा न खुल सके। मगर फ्रैंक ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार कोशिश करते रहे दरवाजे को धक्के से खोलने के लिए और आखिरकार उन्हें कामयाबी मिल ही गई। अब कंटेनर का दरवाजा इतना खुल गया था कि एक एक करके वहां से निकला जा सकता था। लिहाजा माइकल और फ्रैंक ने मिलकर सभी बच्चों को उस कंटेनर से बाहर निकाला।

Shams Ki Zubani: ये 16 जुलाई की रात थी। रात के आठ बजे थे जिस वक़्त बच्चे कंटेनर से बाहर खुले आसमान के नीचे सांस ले रहे थे। क़रीब 16 घंटे तक ज़मीन के नीचे दफ़्न रहने के बाद बच्चों ने खुली हवा में सांस ली थी। बच्चे बंकर से तो बाहर आ चुके थे। लेकिन अब उनके सामने परेशानी ये थी कि उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर वो कहां हैं किस जगह पर हैं, इसका कोई भी अंदाज़ा उनमें से किसी को भी नहीं हो सकता था।

एक तो वीराना और ऊपर से रात का अंधेरा। खुली हवा में निकलने के बावजूद उन सभी की आंखों के सामने एक अनजाना सा अंधेरा था, जिसके पार ही उम्मीद की रोशनी सांस ले रही थी। तब फ्रैंक जूनियर और माइकल ने मिलकर एक बार फिर बच्चों को खेल खेल में एक रेल गाड़ी की शक्ल दे दी और एक दूसरे का हाथ थामकर अपने पैरों से उस वीराने के अंधेरे को कुचलते हुए आगे बढ़ने लगे।

Shams Ki Zubani: थोड़ी देर चलने के बाद वो सभी एक सड़क तक पहुँच गए। अब इन सभी को नया हौसला और नया रास्ता मिल चुका था। पैरों में हिम्मत आ गई थी, और चाल में तेजी। वो सभी सड़क पर चलते रहे तभी इन्हें उम्मीद की पहली किरण एक शख्स की शक्ल में नज़र आई जो एक सिक्योरिटी गार्ड था। बच्चे तो अपनी घबराहट को पीछे छोड़कर दूर निकल आए थे, लेकिन सिक्योरिटी गार्ड इतने सारे बच्चों को उस रात के अंधेरे में देखकर बुरी तरह से घबरा गया।

तब फ्रैंक ने हालात को संभाला और उस सिक्योरिटी गार्ड को पूरी बात छोटे में समझा दी। इत्तेफ़ाक से वो सिक्योरिटी गार्ड इस किडनैपिंग की खबर से अनजान नहीं था, बल्कि मीडिया के ज़रिए इस पूरे मामले की जानकारी हो चुकी थी। तब सिक्योरिटी गार्ड ने अपना फर्ज पूरा किया और भागकर लोकल पुलिस को बच्चों के बारे में इत्तेला देता है।

Shams Ki Zubani: अचानक कुछ ही देर में वो वीराना पुलिस के सायरन और गाड़ियों की तेज़ नीली लाल बत्तियों से रोशन हो जाता है। पुलिस फौरन बच्चों को गाड़ियों में बिठाकर सबसे पहले पास की एक डिस्पेंसरी में ले जाते हैं, डॉक्टरों को बुलाकर बच्चों का चेकअप करवाते हैं। इसी बीच पुलिस अब सबसे पहले स्कूल और बच्चों के माता पिता को ये खुशखबरी सुनाती है जिसके लिए उन सभी के कान पिछले कई घंटों से तरस रहे थे।

और देखते ही देखते किडनैप हुए बच्चों की सहीसलामती की ख़बर जंगल की आग से भी तेज़ी से पूरे शहर में फैल जाती है। अदना से लेकर आला अफसर तक को चंद सेकंड में ही पता चल जाता है कि स्कूल बस से अगवा हुए सभी बच्चे मिल गए और वो भी सही सलामत।

वहां मीडिया में भी ये खुशखबरी ब्रेकिंग न्यूज़ बनकर सुर्खियों और टीवी के पर्दे पर छा जाती है। उसके बाद पुलिस सभी बच्चों को लेकर उनके स्कूल पहुँचती है। बच्चों के माता पिता बेसब्र हो रहे थे। क्योंकि उन्हें उनके बच्चे सही सलामत मिल रहे थे।

Shams Ki Zubani: पुलिस सभी बच्चों को उनके माता पिता के हवाले कर देती है। और बच्चे अपने अपने माता पिता के साथ खुशी खुशी घर लौट जाते हैं। लेकिन यहां चाउचिले शहर की पुलिस के सामने एक सबसे बड़ा सवाल था जिसने बच्चों के मिलने के बाद उसे और भी ज़्यादा बेचैन कर दिया था। ज़ाहिर है यहां से पुलिस का असली काम अब शुरू हुआ था।

पुलिस के सामने सवाल था कि आखिर अमेरिका या फिर दुनिया भर की सबसे बड़ी किडनैपिंग करने वाले वो लोग कौन थे? और उनका मक़सद क्या था? एक साथ 26 स्कूली बच्चों को किडनैप किसने किया?

अब पुलिस ने अपनी तफ्तीश शुरू की। बिना किसी सुराग के पुलिस अंधेरे में हाथ पांव मारने लगी। तब पुलिस को सबसे पहला सुराग मिला उस बंकर से जिसमें बच्चों को छुपाकर रखा गया था। वो सुराग था वो ज़मीन जिस पर ट्रक के कंटेनर को मिट्टी में दबाकर बंकर बनाया गया था। पुलिस को पता चला कि उस ज़मीन का मालिकाना हक़ जिसके पास है उसके बेटे का नाम फ्रेड्रिक है।

Shams Ki Zubani: फ्रैड्रिक के बारे में पुलिस को जैसे ही पता चला तो उसे ये पता करने में देरी नहीं लगी कि उसका जुर्म के क्या रिश्ता रहा है। पता चला कि फ्रैड्रिक पहले कार चोरी के मामलों में थानों के चक्कर लगा चुका है। जिसकी वजह से उसे रिहैब सेंटर में रहने को मजबूर होना पड़ा था। अब पुलिस फ्रैड्रिक के पीछे थी और फ्रैड्रिक लापता।

ज़ाहिर है फ्रैड्रिक शक के दायरे में था। तब पुलिस ने ये पता लगाया कि आखिर जिस रोज घटना घटी यानी 15 जुलाई को फ्रैड्रिक कहां था तो पता लगने में देरी नहीं हुई, कि उस रोज़ फ्रेड्रिक अपने दो दोस्तों के साथ था। तब पुलिस ने उन दोनों दोस्तों का पता लगाया। पता तो चल गया लेकिन फ्रैड्रिक के दोनों दोस्त भी उसकी ही तरह लापता हो गए। पुलिस फ्रैड्रिक और उसके दोस्तों के लिए चप्पे चप्पे को खंगाल रही थी लेकिन उनका कोई पता नहीं चल सका।

तीन हफ़्तों के बाद पुलिस ने फ्रेड्रिक को कनाडा से गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल की। जबकि उसका एक साथी जेम्स कैलिफोर्निया में पुलिस के हत्थे चढ़ गया। लेकिन तीसरे साथी ने खुद को ही पुलिस के हवाले कर दिया। इसके बाद पुलिस ने तीनों से पूछताछ की, और यही सवाल कि आखिर इस किडनैपिंग की वारदात को क्यों अंजाम दिया?

Shams Ki Zubani: तब इन तीन दोस्तों ने अपनी पूरी राम कथा पुलिस को सुनाई, जो कम दिलचस्प और हैरतअंगेज नहीं है। असल में फ्रेड्रिक और उसके दोनों दोस्त अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते थे। लेकिन गंदी सोहबत और कुछ बुरी आदतों ने इन्हें बिगाड़े नवाबजादे बना दिया था। इन्हीं गंदी आदतों ने तीनों को कर्ज के गहरे दलदल में धंसा दिया था। कर्ज लौटाने में जब ये तीनों ही नाकाम हो गए तब इन लोगों ने गुनाह के रास्ते पर कदम रखने का इरादा किया।

प्लानिंग बच्चों के किडनैपिंग की हुई। क्योंकि ये तीनों ही इस बात को अच्छी तरह समझ गए थे कि बच्चों के माता पिता बड़ी आसानी से अपने बच्चों की सलामती के लिए कोई भी क़ीमत देने को तैयार हो सकते हैं। चूंकि इन तीनों पर कर्ज की रकम काफी ज़्यादा थी इसलिए इन तीनों ने ज़्यादा बच्चों को एक साथ अगवा करने की प्लानिंग की। प्लानिंग ये बनी कि ज़्यादा बच्चों के लिए क्यों न किसी स्कूल बस को ही किडनैप कर लिया जाए।

बस उसके बाद ही ये लोग अपनी प्लानिंग को अंजाम देने की फिराक में लग गए और स्कूल की बाकायदा रेकी करने के बाद फ्रैंक जूनियर की बस को इन लोगों ने अपना टारगेट बना लिया। असल में इस बस को इसलिए भी टारगेट किया क्योंकि उसका रूट शहर के कुछ ऐसे हिस्सों से होकर गुज़रता था जहां दिन के वक्त भी ट्रैफिक न के बराबर होता था। लिहाजा किडनैपिंग करना आसान हो सकता है।

Shams Ki Zubani: सवाल उठता है कि आखिर फ्रेड्रिक और उसके दोस्तों को कितनी रकम की ज़रूरत थी जिसके लिए इन लोगों ने 26 बच्चों को अगवा करके उनके नाम पते तक लिख लिए थे। ताकि सभी बच्चों के माता पिता से रकम वसूली जा सके। पुलिस की पूछताछ में पता चला कि फ्रेड्रिक और उसके दोस्तों ने बच्चों के एवज में पांच मिलियन डॉलर रकम की फिरौती मांगने का इरादा किया था। ताकि इनका कर्ज भी पूरा हो जाए और कुछ पैसे बच भी जाएं।

इस पूरे क़िस्से में एक बड़ा ही दिलचस्प वाकया ये पेश हुआ कि किडनैपर्स बच्चों के लिए पुलिस से फिरौती की मांग ही नहीं कर पाए क्योंकि एक किडनैपर्स दिन भर पुलिस स्टेशन फोन करता रहा लेकिन पुलिस स्टेशन का फोन इतना व्यस्त था कि किडनैपर्स की कोई पुलिस वाला बात सुन ही नहीं पाया।

इतना ही नहीं अगले रोज फिरौती के लिए फोन करने का इरादा करके किडनैपर्स जब सोये तो अगले रोज उनकी आंख ही नहीं खुली। और जैसे ही इन किडनैपर्स की आंख खुली तो टीवी पर बच्चों के सही सलामत बंकर से निकलने की ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी। जिसने किडनैपर्स के हाथों से तोते उड़ा दिए। जब बच्चे उनकी कैद से निकल गए तो इन तीनों किडनैपर्स ने सोचा कि हम भी यहां से निकल जाते हैं नहीं तो पुलिस छोड़ेगी नहीं। और तब तीनों वहां से भाग खड़े हुए।

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