Shams ki Zubani : जब थाने में प्राइम मिनिस्टर से रिश्वत मांग ली, भारत के एक प्रधानमंत्री की हैरतअंगेज़ कहानी

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Shams ki Zubani : जब थाने में प्राइम मिनिस्टर से रिश्वत मांग ली, भारत के एक प्रधानमंत्री की हैरतअंग...
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Shams Ki Kahani : ये असली कहानी है उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की. साल 1979. शाम के करीब 6 बज रहे थे. मैला कुर्ता, मिट्टी से सनी धोती और सिर पर गमछा डाले एक किसान परेशान होकर थाने पहुंचा. उस थाने का नाम था ऊसराहार.

दुबला-पतला खांटी गांव का एक बुजुर्ग. उम्र करीब 75 साल के आसपास. पैरों में चप्पल भी नहीं. थाने में घुसने से भी थोड़ा डर रहा था. वहां पुलिसवाले तैनात थे. लेकिन डर के मारे वो बेचारा बुजुर्ग किसान कुछ बोल भी नहीं पा रहा था.

कहीं दरोगा जी उसकी बात का बुरा ना मान जाए. फिर एक हेड कॉन्स्टेबल खुद ही इस किसान के पास आता है. सवाल पूछता कि... क्या काम है. परेशान किसान कहता है कि... अरे दरोगा जी मेरी जेब किसी चोर-उचक्के ने काट ली. उसकी फरियाद लेकर थाने आया हूं. मेरी रपट लीजिएगा.

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ये बात सुनकर थाने के बाहर ही टेबल-कुर्सी लगाकर आराम कर रहे एक हेड कॉन्स्टेबल की नजर उस किसान पर गई. अपनी कुर्सी पर उंघते हुए उस हेड कॉन्‍स्‍टेबल ने सिर उठाया और किसान को देखा. फिर पूछा कि अरे पहले ये बताओं कि... कहां तुम्हारी जेब कट गई. तुम कहां के रहने वाले हो.

इस पर उस किसान ने जवाब दिया. मैं मेरठ का रहने वाला हूं साहब. यहां इटावा में अपने एक रिश्‍तेदार के घर आया था. यहां से बैल खरीदने के लिए पैसे लेकर अपने गांव से आया था. रास्ते में पैसे लेकर जा रहा था. उसी समय किसी ने मेरी जेब काट ली. उसमें रखे कई सौ रुपये चोरी हो गए. अब वो पैसे नहीं मिले तो बहुत बड़ी मुसीबत हो जाएगी. बड़ी मुश्किल से खेती से हम पैसे जुटाकर यहां आए थे. इसलिए रपट लिखकर चोरों को पकड़िए...ना साहब.

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Shams ki Jubani kahani : अब रपट लिखकर चोरों को पकड़ने की बात सुनकर कुर्सी पर चौड़े होकर बैठे हेड कॉन्‍स्‍टेबल ने फिर से सवाल दाग दिया. जैसे पुलिसवाले अक्सर और आज भी करते हैं. हेड कॉन्स्टेबल ने कहा... अरे बाबा....पहले ये तो बताओ कि मेरठ से इतनी दूर क्यों बैल खरीदने आए थे. पहले तो यही बात समझ में नहीं आ रही है. दूसरी बात कि क्या सबूत है कि तुम्हारी जेब ही काटी गई.

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ये भी हो सकता है कि वो पैसे कहीं गिर गए हों. या फिर कहीं पैसे उड़ा दिए हों. शराब पीने या दूसरी मौज-मस्ती करने के चक्कर में. तभी तो कोई उतनी दूर से यहां आएगा. फिर घरवाली के डर से चोरी का नाटक रचा रहा हो. अब इस तरह पुलिसवालों ने इतने सवाल पूछे कि वो खुद भी चकरा गए. कुल मिलाकर पुलिसवालों ने कह दिया कि चाहे कुछ भी कहो तुम्हारी FIR तो नहीं ही लिखी जाएगी.

अब नौबत ये आ गई वो बेचारा किसान क्या करता. बिना रिपोर्ट कराए जाए तो भी कैसे. परेशान होकर बिल्कुल मन रूआंसा हो गया. उस कुर्सी-टेबल से थोड़ा दूर आकर सिर पकड़कर बैठने लगे. तभी एक सिपाही पास में पहुंचा. धीरे से कान के पास आकर बोला. ...बाबा अगर कुछ खर्चा-पानी हो जाए तो रपट लिख जाएगी.

अब रपट लिख जाने की बात पर तो किसान खुश हो गए. लेकिन खर्चा-पानी तो ज्यादा ही देना होगा. ये सोचकर उनके माथे पर फिर से शिकन आ गई. अब वो किसान बोलने लगे कि हम तो पहले से ही परेशान हैं. अब पैसे कैसे दे पाएंगे. मैं बहुत ही गरीब हूं. कुछ जुगाड़ से करा देते तो बड़ी मेहरबानी होगी.

काफी बात के बाद भी वो सिपाही राजी नहीं हुआ तो आखिरकार उस समय 35 रुपये पर बात तय हुई. अब उस गरीब किसान ने 35 रुपये चुपके से पकड़ाए तो कागज के टुकड़े पर मुंशी ने रपट लिखना शुरू किया. उनकी शिकायत पर तहरीर लिखी. फिर मुंशी ने कहा कि... अरे बाबा साइन करोगो कि अंगूठा लगावोगे.

फिर ये कहते हुए उस पुलिसवाले ने पेन और अंगूठा लगाने वाला स्याही का पैड भी आगे बढ़ा दिया. अब उस किसान ने पहले पेन उठाया और फिर स्याही वाला पैड भी. पुलिसवाला भी थोड़ी देर के लिए अचरज में पड़ गया. कि आखिर ये करेगा क्या. साइन करेगा या अंगूठा लगाएगा?

PM Chaudhary Charan Singh Ki Kahani : अब वो पुलिसवाला इसी उधेड़बून में था कि आखिर ये किसान क्या करने वाला है. तभी उस किसान ने कागज पर अपना साइन किया. और फिर अपने मैले-कुचैले कुर्ते की जेब से एक मुहर निकाली. उसी मुहर को स्याही के पैड पर लगाकर कागज पर ठोंक दिया.

ये देखकर पुलिसवाला फिर अचरज में पड़ गया. इस किसान ने जेब से कौन सी मुहर निकालकर ठप्पा मार दिया. उसे देखने के लिए तुरंत कागज को उठाया और पढ़ा. तो उस पर साइन के साथ नाम लिखा था...चौधरी चरण सिंह. और मुहर से जो ठप्पा लगा था उस पर लिखा था...प्रधानमंत्री, भारत सरकार.

ये देखते ही उस पुलिसवाले के पैर कांपने लगे. तुरंत सैल्यूट किया और माफी मांगने लगा. ये देखकर बाहर कुर्सी लगाए बैठा हेड कॉन्स्टेबल और दूसरे पुलिसवाले भी जमा हो गए थे. अब थोड़ी देर में ही पूरा थाने क्या, बल्कि पूरे जिले में हड़कंप मच गया. आनन-फानन में तमाम पुलिस अधिकारी और प्रशासन मौके पर पहुंचा. इसके बाद उस समय ऊसराहार थाने के सभी पुलिसकर्मयों को ही सस्पेंड कर दिया गया था.

Chaudhary Charan Singh Story in hindi : आखिर देश के एक प्रधानमंत्री ने अचानक थाने का औचक निरीक्षण क्यों किया था. इस बारे में कहा जाता है कि साल 1979 में चौधरी चरण सिंह देश के नए-नए प्रधानमंत्री बने थे. उस समय उत्तर प्रदेश के कई जिलों से किसान आए दिन उन्हें अपनी परेशानी सुनाते थे. उन्हें ख़त लिखकर अपनी परेशानी बताते थे. काफी किसानों ने बताया था कि पुलिस थानों में उनसे छोटे-छोटे काम के लिए घूस लिया जाता है.

इसकी जानकारी मिलने पर उन्होंने किसी सीनियर पुलिस अधिकारी को फोन पर नहीं हड़काया. और ना ही किसी प्रशासनिक अधिकारी को जवाब-तलब किया. जैसा कि आजकल आमतौर पर बड़े-बड़े मंत्री करते हैं. उस समय के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह खुद ही इस बात की असलियत लगाने यूपी में पहुंच गए. यहां जब वो इटावा में अपने काफिले के साथ जा रहे थे तभी उन्हें याद आया कि इसी एरिया से उन्हें शिकायत मिली थी. इसलिए थाने से कुछ दूरी पर ही उन्होंने अपने काफिले को छोड़ दिया.

फिर सबसे पहले अपने जूते उतारे. इसके बाद पैदल जाते हुए पास के खेत से मिट्टी उठाकर अपने कपड़ों पर रगड़ लिए. सबकुछ पर ऐसे मिट्टी लगाई जैसे लगे कि वो एक गरीब और असहाय किसान हैं. इसके बाद वो ऊसराहार थाने पहुंचे थे. जहां पर उनसे 35 रुपये की रिश्वत मांगी गई.

आपको बता दें कि अब ये ऊसराहार थाना जिला औरैया में पड़ता है. लेकिन चौधरी चरण सिंह का ये कोई पहला मामला नहीं था जब वे इस तरह कहीं अचानक भेष बदलकर पहुंचे थे. इससे पहले, जब वे यूपी के सीएम थे तब भी कई बार किसान और दूसरे भेष में थानों और सरकारी दफ्तरों का हालचाल लेने चले जाते थे.

Chaudhary Charan Singh Life Story : यहां बता दें कि चौधरी चरण सिंह जी का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के बाबूगढ़ छावनी के पास नूरपुर गांव में हुआ था. इनका परिवार काफी गरीब था. चौधरी चरण सिंह जी के पिता का नाम चौधरी मीर सिंह था.

चौधरी चरण सिंह 27 साल की उम्र में 1929 में आजादी की लड़ाई में भी शामिल हुए थे. 1940 में सत्याग्रह आंदोलन के दौरान वो जेल भी गए थे. आजादी के बाद साल 1952 में पहली बार चौधरी चरण सिंह कांग्रेस सरकार में राजस्व मंत्री बने थे.

साल 1967 में 3 अप्रैल को चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि, करीब एक साल बाद ही 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन इसके बाद हुआ चुनाव के बाद फिर से 17 फ़रवरी 1970 को वे सीएम बने थे.

सीएम बनने के बाद वो केंद्र सरकार में गृहमंत्री भी रहे थे. 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों और कांग्रेस (यूनाइटेड) के सहयोग से देश के प्रधानमंत्री बने थे. पीएम बनने के कुछ समय बाद ही उन्होंने यूपी का दौरा किया था जहां ये वाकया हुआ था.

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