फांसी या उम्रक़ैद : देश में महिलाओं को पूजने की परंपरा है तो शबनम को फांसी क्यों?
Hanging or life imprisonment: If there is a tradition of worshiping women in the country, why should Shabnam be hanged?
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देश में पहली महिला शबनम को फांसी होगी या नहीं? इसे लेकर एक नया मोड़ आया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकील सहर नक़वी ने मामले उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को दया याचिका भेजी है. वकील ने दलील दी है कि अगर याची को सूली पर लटकाया जाता है, तो पूरी दुनिया में भारत और यहां की महिलाओं की छवि खराब होगी. क्योंकि देश में महिलाओं को देवी की तरह पूजने और सम्मान देने की पुरानी परंपरा है.
इस याचिका में वकील ने ये भी कहा कि मैं शबनम के ग़ुनाह या उसकी सज़ा को लेकर कोई सवाल नहीं उठा रही हूं. बल्कि आपसे गुजारिश है कि शबनम की फांसी की सज़ा को सिर्फ उम्रकैद में तब्दील कर दिया जाए.
अब बताया जा रहा है कि राज्यपाल ने इसका संज्ञान भी ले लिया है. उन्होंने पूरे मामले पर निर्णय लेने के लिए कारागार विभाग को निर्देश जारी किए हैं. ऐसे में फांसी होगी या नहीं, इस पर विचार किया जा सकता है.
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जानिए क्या थी पूरी घटना
एक ही परिवार के 7 सदस्यों के क़त्ल के इल्जाम में शबनम को फांसी की सज़ा सुनाई गई है. ये घटना उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के बावनखेड़ी गांव की है. अप्रैल 2008 में हुई घटना से सनसनी फैल गई थी.
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दरअसल, शबनम अपने पड़ोस में काम करने वाले सलीम से बेपनाह मोहब्बत करती थी. लेकिन शबनम के परिवार को उसकी मोहब्बत पर कड़ा ऐतराज था. घरवाले हमेशा इसका विरोध करते थे. वो आवाज़ उठाती थी. लेकिन ख़ामोश करा दिया जाता था. किसी को भनक भी नहीं लगी और उसकी ये ख़ामोशी हैवानियत में तब्दील हो गई.
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इसके बाद उसने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर 14 अप्रैल 2008 की रात में अपने सगे मां-बाप, दो भाइयों, भाभी और दुधमुंहे भतीजे को खाने में ही नशीली गोलियां मिलाकर दे दी थी. घर के सभी सदस्य जब सो गए तो नींद में उनकी गला रेतकर हत्या कर दी थी. इसके बाद अमरोहा जिला न्यायालय ने शबनम और उसके प्रेमी सलीम को दोषी करार देते हुए 2010 में फांसी की सज़ा सुनाई थी. जब केस हाईकोर्ट और सुप्रीम तक पहुंचा तो दोनों की सज़ा बरकरार रखी गई.
बेटे को समाज ताने देगा
वकील सहर नक़वी ने अर्जी में ये भी दलील दी है कि इस फांसी से शबनम के बेटे पर बुरा असर पड़ेगा. अगर फांसी हुई तो समाज उसके बेटे को हमेशा ताना मारेगा. मजाक भी उड़ाएगा.
समाज मे इस तरह की उपेक्षा मिलने से बेटे का मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है. ऐसे में उसका भविष्य भी खराब हो सकता है. लिहाजा, एक मां के गुनाहों की सजा उसके बेटे को मिलना ठीक नहीं होगा. इसलिए एक बेटे की मां चाहे जहां रहें, लेकिन जिंदा रहे. यही उसकी जिंदगी के लिए सबसे अहम है.
अभी क्या है स्थिति
वकील सहर नक़वी की तरफ से ये पत्र 23 फरवरी 2021 को राज्यपाल के पास भेजा गया था. इस पत्र पर यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने दखल दिया है. उन्होंने नियम के मुताबिक विचार करने का फैसला किया है. लिहाजा, इस पर उचित फैसला लेने के लिए यूपी सरकार को आवेदन पत्र ट्रांसफर कर दिया है.
राज्यपाल के निर्देश पर लेटर यूपी के कारागार विभाग के प्रमुख सचिव को भेजा भी जा चुका है. अब इस पर आगे की कार्रवाई हो रही है. अब आने वाला वक़्त बताएगा कि आखिर शबनम की जिंदगी जेल में गुजरेगी या फिर फांसी की सूली पर.
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