पाकिस्तान नहीं दुनिया का ये देश है तालिबान का 'भरोसेमंद दोस्त'
China ने पहले कहा था कि बीजिंग, अफगानिस्तान को वित्तीय सहायता प्रदान करेगा और युद्धग्रस्त देश के पुनर्निर्माण में 'सकारात्मक भूमिका' निभाएगा।
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तालिबान के साथ आगे की रणनीति को लेकर पाकिस्तान नहीं बल्कि ड्रैगन यानी चीन चोरी छुपे खिचड़ी पका रहा, सीनियर तालिबानी लीडर चीन के अधिकारियों से लगातार मुलाकातें कर रहे हैं। अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता के बीच तालिबान के सीनियर नेता अब्दुल सलाम हनाफी ने चीन के राजदूत वांग यू से काबुल में मुलाकात की है।
ड्रैगन और तालिबान के बीच गुपचुप मुलाकात
हनाफी तालिबान के कतर स्थित राजनीतिक कार्यालय का डिप्टी हेड है, अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद और वहां पैदा हुए अफरातफरी के माहौल के बीच चीन ने काबुल में अपने दूतावास को खुला रखा है। बकौल तालिबान उनके बीच चीन दूतावास और राजनयिकों की सुरक्षा, अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति, द्विपक्षीय संबंधों और चीन की मानवीय सहायता को लेकर बातचीत हुई। इससे पहले चीन तालिबान को अफगानिस्तान में वैध सरकार के रूप में शासन करने पर सहमति जता चुका है।
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आर्थिक प्रतिबंधों के खिलाफ खड़ा हुआ चीन
अफगानिस्तान के संकट और तालिबान के खिलाफ संभावित आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर G-7 देशों की बैठक से पहले चीन ने कहा था कि अमेरिका और उसके सहयोगियों को अतीत से सबक सीखना चाहिए और समझदारी से काम लेना चाहिए। चीन ने कहा कि तालिबान के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जाने संबंधी कदम सार्थक साबित नहीं होगा। तालिबान पर नए प्रतिबंध लगाने की G-7 नेताओं की योजना पर चीन ने कहा कि अफगानिस्तान एक स्वतंत्र, संप्रभु राष्ट्र है, उसपर प्रतिबंध लगाने और दबाव बनाने से समस्या का समाधान नहीं होगा।
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किसी भी तरह के सख्त प्रतिबंध और दबाव बनाने से समस्या का समाधान नहीं होगा, हमारा मानना है कि अफगानिस्तान में शांति और पुनर्निर्माण को आगे बढ़ाते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ये सोचना चाहिए कि लोकतंत्र के बहाने सैन्य हस्तक्षेप को कैसे रोका जाए।
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- वांग वेनबिन, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता
तालिबान ने ड्रैगन को माना भरोसेमंद दोस्त
काबुल पर कब्जे से पहले चीन ने तालिबान के नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से पिछले महीने 28 तारीख को मुलाकात की थी और चरमपंथी समूह की तारीफ करते हुए अफगानिस्तान में उसे अहम सैन्य और राजनीतिक ताकत करार दिया था। इसके साथ ही चीन ने तालिबान से सभी आतंकवादी समूहों से संपर्क तोड़ने को कहा। खासतौर पर शिनजियांग के उइगर मुस्लिम चरमपंथी समूह ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) से। मुल्ला बरादर की अगुवाई में चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ बातचीत के दौरान तालिबान ने बीजिंग को “भरोसेमंद दोस्त’ बताया था और आश्वस्त किया था कि समूह अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी को भी करने की इजाजत नहीं देगा।
चीन की शह पर अमेरिका को धमका रहा है तालिबान
अमेरिका ने अफगानिस्तान में 20 साल की मौजूदगी के बाद 31 अगस्त तक अपने सभी सैनिक वापस बुलाने की घोषणा की थी और तालिबान ने इससे दो हफ्तों पहले 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। तालिबान ने अमेरिका को 31 अगस्त तक उनके मुल्क से जाने के अभियान को पूरा करने को लेकर आगाह भी किया है।
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