जंगल में थी तो पुलिस की हिम्मत नहीं थी कि परिवार को छू भी ले!

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जंगल में थी तो पुलिस की हिम्मत नहीं थी कि परिवार को छू भी ले!
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दस्यु सुंदरी सीमा परिहार पर क्या ज़ुल्म हुए, क्या सितम हुए, वो कैसे डाकू बनीं, कैसे आतंक का दूसरा नाम बनीं, क्यों उन्होंने पुलिस के सामने सरेंडर किया ये बातें अब पुरानी हैं। ये उनकी ज़िंदगी के उस हिस्से की कहानी है, जो पुलिस के सामने सरेंडर से पहले की है। हालांकि उनकी दूसरी ज़िंदगी या कहें असल ज़िंदगी शुरु होती है 1 अक्टूबर सन 2000 के बाद जब उन्होंने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण के बाद कोर्ट में ये कसम खाई थी कि वो अब कभी हथियार नहीं उठाएंगीं। और यहीं से शुरु हुआ सीमा परिहार की ज़िंदगी का असली संघर्ष जो शायद बीहड़ के उनके संघर्ष से भी कहीं ज़्यादा कठिन और मुश्किल था।

कहते हैं रिवॉल्वर का खौफ तब ही तक होता है, जब तक उसमें गोलियां होती हैं। रिवॉल्वर से गोलियां निकाल लेने के बाद वो हथियार नहीं बल्कि सिर्फ लोहा होता है। बस यही है सीमा परिहार की मौजूदा ज़िंदगी का सच। आत्मसमर्पण के बाद सीमा परिहार की ज़िंदगी खाली बंदूक से ज़्यादा कुछ नहीं रह गई। आज उन्हें अपने उन कामों के लिए दफ्तरों के सालों चक्कर काटने पड़ते हैं जो कभी सिर्फ उनका नाम लेने से हो जाया करते थे। वो पुलिस भी अब आए दिन उन्हें परेशान करती है जो कभी उनके नाम से ही कांपा करती थी। और तो औऱ सीमा परिहार पुलिस पर इल्ज़ाम लगाती हैं कि पुलिस ने उनके भाई का फर्जी तरीके से एनकाउंटर किया।

पुलिसवाले जब देखो हमाए द्वारे खड़ी राहत है, जब उन लोगन जानत हैं कि हम हथियार छोड़ चुके हैं। अब अपराध से हमाए लोगन का कौनों लेना देना नहीं है। आज ऊ पुलिस भी हमे धमकाए चली आवत है जो कभी हमाए नामो से कांपत रही। जब तक हम जंगल में थी तो पुलिस की हिम्मत नहीं रही कि हमाए परिवार क छू भी ले!

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- सीमा परिहार

सीमा परिहार पहले कुख्यात थी, मगर आज मशहूर हैं। टीवी औऱ फिल्मों से अलग भी इनके चाहने वाले काफी है, अब ज़्यादातर वक्त सीमा परिहार समाज सेवा में बिताती हैं। रही बात सियासत की तो चुनाव भी लड़ चुकी हैं मगर कामयाबी नहीं मिली। जब हमने पूछा कि आपने चुनाव लड़ा ही ऐसी जगह से क्यों जो आपका इलाका नहीं था, इस पर सीमा परिहार ने जो जवाब दिया वो बताता है कि उनमें आज भी तेवर बाकी है।

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इलाके मा तो कुत्ता भी शेर होवे है, शेर तो वो है जो जहां भी जाए शेरों की तरह जाए।

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सन 2000 में सरेंडर के बाद आज 22 साल बाद अब उन पर एक ही मुकदमा बचा होता लेकिन कोविड की वजह से वो आज भी कोर्ट के चक्कर काट रही हैं। हमें यानी क्राइम टीम को भी वो कोर्ट के बाहर ही मिलीं। जहां वो हमारे साथ उन बीहड़ों में गईं जहां कभी उनका राज हुआ करता था, हमने पूछा कि आज़ाद ज़िंदगी में इतने संघर्ष के बाद क्या आपको कभी लगता है कि फिर लौट कर बीहड़ों में चली जाएं। इस पर सीमा परिहार का कहना था कि वो अब अपनी पुरानी ज़िंदगी से बाहर आ गईं हैं। और परिवार के साथ ही बाकी का वक्त बिताना चाहती हैं। हां मगर इस बात का मलाल ज़रूर है कि सरकार को उनके जैसे लोगों के लिए सामान्य ज़िंदगी जीने की कोई योजना बनानी चाहिए।

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