सुहाग की सिसकती निशानी के बीच 'समधी जी' निकले फ़िरोज़ाबाद के सबसे बड़े चुनावी रंगबाज़!
रंगबाज़ी में अपने 'छुट्टन मियां' भी कुछ कम नहीं, जुर्म ने ही तोड़े 'अज़ीम भाई' के सियासी अरमान, ख़ुद लड़ नहीं सकते तो बीवी को ही उतारा चुनावी मैदान में.
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फ़िरोज़ाबाद से सुधीर शर्मा के साथ सुप्रतिम बनर्जी की रिपोर्ट
बंदा चुनाव लड़ रहा हो और उस पर दो-चार-दस मुक़दमे ना हो तो वो क्या ख़ाक चुनाव लड़ेगा? सियासी कुएं में भंग ही ऐसी पड़ी है, इसका पानी पी-पी कर सारी पार्टियां बेक़ाबू हुई जा रही हैं.
जन जागरण अभियान से लेकर सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश तक सब कुछ बेअसर हैं. यूपी के विधान सभा चुनावों में आपराधिक चरित्र के उम्मीदवारों की भरमार है. सच्चाई तो ये है कि इस हमाम में सारी पार्टियां नंगी हैं. पहले और दूसरे फ़ेज में मोटे तौर पर 25 फ़ीसदी आपराधिक चरित्रवाले उम्मीदवार अपनी क़िस्मत आज़मा चुके हैं और तीसरे फ़ेज में भी कमोबेश ऐसे ही हालात हैं.
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तीसरे फ़ेज़ यानी 20 फरवरी को सुहाग नगरी फ़िरोज़ाबाद में भी चुनाव हैं और फिलहाल हम यहां फ़िरोज़ाबाद के चुनावी रंगबाज़ों की रंगबाज़ी देखनेवाले हैं. सियासत का खेल देखिए कि फ़िरोज़ाबाद के चुनाव मैदान में ज़ोर आज़मा रही तीनों बड़ी पार्टियां यानी बीजेपी, सपा और बसपा के उम्मीदवार या तो ख़ुद रंगबाज़ हैं या फिर रंगबाज़ की बीवी चुनाव लड़ रही हैं.
'समधी जी' हैं सबसे बड़े चुनावी रंगबाज़!
फ़िरोज़ाबाद के चुनावी रंगबाज़ों का ज़िक्र हो और 'समधी जी' को भूल जाएं, ये भला कैसे हो सकता है? अरे, समधी जी नहीं समझे? वही... अपने हरिओम यादव. सपा के मार्गदर्शक मंडल में समाहित हो चुके मुलायम सिंह जी के 'समधी जी'.
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कहानी में ट्विस्ट तो ये है कि इस बार 'समधी जी' समाजवाद के परिवार (या परिवार के समाजवाद?) से निकलकर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं और 'बाबा जी' को समझा-बुझा कर अपने पारंपरिक सीट सिरसागंज से भगवा टिकट भी झटक लाए हैं. मगर, जुर्म का स्याह अतीत पीछा नहीं छोड़ रहा.
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रिकॉर्ड बताते हैं कि समधी जी के हिस्से दस क्रिमिनल केसेज़ हैं और इनमें क़त्ल की कोशिश जैसे संगीन मामले भी हैं. ये और बात हैं कि इन केसेज़ पर 'समधी जी' सियासी साज़िश का मुलम्मा चढ़ाने में देर नहीं करते. कहते हैं, सब राजनीतिक विरोधियों की साज़िश है.
नाम छुट्टन मगर रंगबाज़ 'बड़े वाला'!
वैसे तो सैफ़ुर्रहमान बेशक छुट्टन मियां के नाम से जाने जाते हैं, मगर जुर्म की दुनिया में इनका रोल 'बड्डन' है. छुट्टन फिरोज़ाबाद से ही समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और इन पर 'समधी जी' से दो मुक़दमे ज़्यादा ही दर्ज हैं. उनके क्राइम रिकॉर्ड में हाफ़ मर्डर यानी क़त्ल की कोशिश तो है ही, जनाब पर गुंडा एक्ट के तहत भी कार्रवाई हो चुकी है और इनका 'बड़े घर' यानी जेल में आना जाना लगा ही रहता है.
मियां रंगबाज़ी से मिलेगी बीवी को जीत?
फ़िरोज़ाबाद सदर सीट से चुनाव लड़ रही बसपा प्रत्याशी शाज़िया हसन ख़ुद तो रंगबाज़ नहीं हैं, लेकिन उनके शौहर यानी अज़ीम भाई के दामन पर जुर्म के दाग़ हैं. अज़ीम को एक मामले में अदालत ने दस साल की सज़ा सुना दी है. वो ख़ुद चुनाव लड़ नहीं सके. सपा ने उनसे किनारा कर लिया है और उन्होंने अपनी शरीक-ए-हयात यानी बीवी को ही बसपा के टिकट से मैदान में उतार दिया है.
सिसक रही है सुहाग की निशानी!
फ़िरोज़ाबाद को सुहाग के शहर के तौर पर जाना जाता है. वजह है यहां बननेवाली चूड़ियां. फ़िरोज़ाबाद की चूड़ियां दुनिया भर में मशहूर हैं. मगर सच्चाई यही है कि कभी यहां आबाद रह चुकी चूड़ियों और कांच की दूसरी चीज़ों की चार सौ फ़ैक्ट्रियों में से लगभग आधी यानी 200 फ़ैक्ट्रियां बाक़ी बची हैं. रसोई गैस की बढ़ती क़ीमत और कोरोना की वबा कांच की चूड़ियों पर पत्थर बन कर टूटा है. और इस बार भी चूड़ियों का कारोबार यहां का बड़ा चुनावी मुद्दा है.
तीसरे फ़ेज़ में कहां हैं चुनाव?
यूपी में तीसरे फ़ेज़ में 20 फरवरी को 16 ज़िलों के कुल 59 सीटों पर चुनाव होने हैं. इन ज़िलों में हाथरस, कासगंज, एटा, फ़िरोज़ाबाद, मैनपुरी, फ़र्रुख़ाबाद, कन्नौज, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, जालौन, हमीरपुर, महोबा, झांसी, ललितपुर और कानपुर नगर शामिल हैं. और इनमें तक़रीबन सभी ज़िलों में रंगबाज़ किस्म के लोग चुनाव मैदान में हैं.
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