चुनाव छोड़ जंग पर छिड़ी है पान की दुकानों में 'ज़ुबानी जंग', खंगाल रहे रूस यूक्रेन का पूरा इतिहास

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चुनाव छोड़ जंग पर छिड़ी है पान की दुकानों में  'ज़ुबानी जंग', खंगाल रहे रूस यूक्रेन का पूरा इतिहास
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चाय पान की दुकानों में दिख रहा जंग का ज़ज़्बा

Russian Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ी हुई है। रूस की बारूद से भरी मिसाइलें यूक्रेन में ज़ज़्बे को जर्जर करने में लगी हुई हैं। मगर यूक्रेन के उस जंग के मैदान से क़रीब पांच हज़ार किलोमीटर दूर हिन्दुस्तान में पान की दुकानों और चाय की चौपालों में अचानक उत्तर प्रदेश के चुनाव की जगह रूस और यूक्रेन की बीच छिड़ी जंग पर धुआंधार जुबानी जंग चल रही है।

पान की पीकों में गुड़गुड़ाती हुई आवाज़ में लोग अपनी अपनी सुविधा के मुताबिक पाला अदल बदल करके रूस को जिताते और रूस को ही हराते नज़र आ जाएंगे। जिन चाय की टपरियों पर कल तक उत्तर प्रदेश के चुनावों में हार जीत पर बहस हो रही थी, वहां अब रूस यूक्रेन, अमेरिका और नाटो देशों को लेकर ग़ज़ब तरीके से ज्ञान की गंगा बह रही है।

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लेकिन कहीं कहीं कुछ पढ़े लिखे लोगों ने सड़क किनारे खड़े होकर यूक्रेन और रूस के वजूद का समूचा इतिहास ही बांच डाला। लाजमी है कि इस अच्छी और सच्ची जानकारी का साझा होना बेहद ज़रूरी हो जाता है।

यूक्रेन से अदावत 31 साल पुरानी नहीं है

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Russian Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच झगड़ा किस बात पर है, इसके बारे में अभी तक कोई भी ठीक ठीक नहीं बता सका। अक्सर बात 1991 में सोवियत संघ के दरकने से शुरू होती है। जब सोवियत संघ यानी USSR 15 अलग देशों में बंट गया था। और उस टूटन के बाद रूस सबसे बड़ा देश बनकर उभरा था। और यूक्रेन तब तक उसी के साथ था।

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लेकिन इन दोनों के बीच अदावत का ये सिलसिला सिर्फ 31 साल पुराना ही नहीं है। बल्कि इन दोनों के बीच चली आ रही इस जानलेवा इश्क मोहब्बत की दास्तां तो सौ साल पुरानी है। जिसके समझने के लिए इतिहास के कुछ पन्नों को पलटना पड़ेगा और वक़्त को थोड़ा और पीछे लेकर चलना पड़ेगा।

1918 में पहली बार आज़ाद हुआ था 'यूक्रेन'

Russian Ukraine War: बात 1918 की है जब पहली बार रूसी एम्पायर के चंगुल से निकलकर यूक्रेन ने आज़ादी की सांस ली थी। क्योंकि 1917 में रूसी क्रांति के दौरान रूसी एम्पायर को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया गया था। लेकिन तीन साल बाद ही यानी 1921 में जिन लोगों की बदौलत यूक्रेन को रूसी एम्पायर से आज़ादी मिली थी उन्हीं क्रांतिकारियों ने यूक्रेन पर फिर से अपना कब्ज़ा कर लिया।

यूक्रेन पर क़ब्ज़ा करने वाले ये क्रांतिकारी कोई और नहीं बल्कि लेनिन और उनके साथ ही थे। 1921 में लेनिन ने रेड आर्मी तैयार की थी। और इसी रेड आर्मी ने यूक्रेन जैसे तमाम छोटे छोटे देशों के साथ मिलकर 1922 में USSR यानी सोवियत संघ तैयार किया था। असल में USSR एक संघ था 15 अलग अलग छोटे मगर सोशलिस्ट विचारधारा वाले देशों का। उसी में से एक देश था यूक्रेनियन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक।

लेनिन की रेड आर्मी ने किया था यूक्रेन पर कब्ज़ा

Russian Ukraine War: यानी यूक्रेन पहले रूसी एम्पायर का हिस्सा था, वहां से इसे आज़ादी मिली, लेकिन उसके बाद इसे रूस की रेड आर्मी ने फिर क़ब्ज़ा करके उसे सोवियत संघ का हिस्सा बना दिया।

सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि सोवियत संघ बनने के बाद भी यूक्रेन के लोगों के भीतर राष्ट्रीयता या राष्ट्रवाद की भावना बनी रही। मगर 1991 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद ये भावना और भी तेज़ी से बढ़ गई।

कहा तो यहां तक जाता है कि साल 1900 से भी पहले यूक्रेन ही असल में रूस था। यानी जिस रूस को हम आज इस शक्ल में देख रहे हैं वो किसी दौर में यूक्रेन ही हुआ करता था। और रूसी एम्पायर के दौरान ही उसमें टूटन आ गई और यूक्रेन सिमटकर आकार में रूस के मुकाबले चवन्नी भर रह गया।

सोवियत संघ के टूटने पर अलग हुआ यूक्रेन

Russian Ukraine War: 1991 में सोवियत संघ जब टूट रहा था तभी यूक्रेन ने भी अपने लिए अलग वजूद तलाश लिया और एक अलग देश के रूप में मान्यता हासिल कर ली।

जिस वक़्त यूक्रेन और रूस अलग अलग हुए उस वक़्त रूस के साथ साथ यूक्रेन भी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी परमाणु शक्ति था। क्योंकि उसके पास क़रीब 2000 परमाणु बम हुआ करते थे। इतना ही नहीं यूक्रेन में बना चेर्नोबिल परमाणु प्लांट एक वक़्त में USSR की शान कहलाता था। जो सोवियत संघ के टूटने के बाद यूक्रेन के ख़ाते में ही आ गया था।

रूस को परमाणु हथियार सौंपना यूक्रेन की सबसे बड़ी ग़लती

Russian Ukraine War: मगर साल 1998-99 में व्लादिमीर पुतिन के रूस की कमान संभालते ही यूक्रेन के बुरे दिन का सिलसिला शुरू हो गया। जब यूक्रेन ने रूस की छाया से निकलकर दुनिया में अपने लिए कामयाबी का आसमान तलाश करने का सपना देखा तो रूस की सरकार ने बड़ी ही चालाकी से यूक्रेन को खुले बाज़ार में उतरने की आज़ादी दे दी, बस एक छोटी सी शर्त रख दी।

शर्त ये थी कि यूक्रेन दुनिया में जो चाहे वो करे लेकिन उससे पहले वो अपने तमाम परमाणु हथियार रूस के हवाले कर दे। यूक्रेन को पश्चिम के खुले बाज़ार में तरक्की दिख रही थी लिहाजा वो परमाणु हथियार रूस के हवाले करके पूरी तरह से आज़ाद हो गया।

मगर 20 साल पुरानी यूक्रेन की वो ग़लती आज उसी पर भारी पड़ गई। आज यूक्रेन सोचता है कि अगर उसके पास परमाणु हथियारों का वो ज़ख़ीरा मौजूद होता तो रूस की हिम्मत नहीं पड़ती इस तरह उसके दरवाजे पर खड़े होकर मौत बरसाने की।

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