Russia Ukraine War में क्या है NATO कनेक्शन, नाटो से इस वजह से चिढ़े हैं पुतिन

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Russia Ukraine War में क्या है NATO कनेक्शन, नाटो से इस वजह से चिढ़े हैं पुतिन
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क्या है नाटो?

Russia Ukraine War: सवाल यही उठता है कि आखिर ये नाटो (NATO) है क्या बला। दरअसल नाटो एक सैन्य संगठन है, जिसके तहत 30 देशों की सेना मिलकर एक साथ एक दूसरे की मदद करती है। ये नाटो 4 अप्रैल 1949 को संगठन के तौर पर पहली बार वजूद में आया था। नाटो असल में नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन (NORTH ATLANTIC TREATY ORGANISATION) है जिसे हिन्दी में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन भी कहा जाता है, जिसे छोटा करके नाटो पुकारा जाता है।

नाटो का इतिहास और शुरुआत

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साल 1945 में दूसरा विश्वयुद्ध ख़त्म होने के बाद सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया की दो सबसे ताक़तवर सैन्य शक्ति यानी महाशक्ति बनकर उभरे थे। ऐसे में यूरोप के कई दूसरे देशों को इस बात का ख़तरा महसूस होने लगा था कि इलाक़े में सोवियत संघ यानी USSR अपनी दादागीरी दिखाएगा। ऐसे में उस वक़्त फ्रांस, ब्रिटेन, नीदरलैंड, बेल्जियम और लक्ज़मबर्ग देशों ने मिलकर एक समझौता किया और एक संधि की।

ब्रसेल्स में है नाटो का मुख्यालय

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Russia Ukraine War Live Update News: ये समझौता बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में हुई थी। NATO का मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में बनाया गया क्योंकि यहीं इस संगठन की स्थापना हुई थी। इस समझौते में तय पाया गया था कि किसी भी देश पर अगर हमला होता है तो इस संगठन से जुड़े सभी देश एक दूसरे की सामूहिक रूप से सैनिक सहायता करेंगे। इस समझौते में ये भी तय हो गया था कि ये सहायता सिर्फ सैनिक स्तर पर ही नहीं होगी बल्कि सामाजिक और आर्थिक तौर पर भी ये मदद जारी रहेगी।

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यूरोपीय देशों में कहां से आया अमेरिका

एक तरह USSR की ताक़त बढ़ रही थी, और उससे डरने वाले देशों की संख्या भी बढ़ने लगी थी। मगर दूसरी तरफ अमेरिका भी अपनी ताक़त बढ़ाने में लगा हुआ था ताकि वो सोवियत संघ की हैसियत को चुनौती दे सके। लिहाजा अमेरिका ने सोवियत संघ की घेराबंदी करने की गरज से संयुक्त राष्ट्र संघ यानी UNO के चार्टर के अनुच्छेद 15 के तहत नाटो के सामने एक प्रस्ताव रखा।

Russia Ukraine War Live Update News:अमेरिका के साथ ये संधि 1949 को हुई जिसमें 12 देश शामिल हुए। ये देश थे अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, बेल्जियम, आइसलैंड, लक्ज़मबर्ग, फ्रांस, कनाडा, इटली और डेनमार्क। बाद में इस ट्रीटी यानी नाटो का विस्तार हुआ तो इसमें स्पेन, पश्चिम जर्मनी, तुर्की, ग्रीस भी इसके सदस्य बन गए। ये सब कुछ हुआ शीत यूद्ध से पहले।

बाद में शीत युद्ध के बाद हंगरी, पोलैंड और चेकगणराज्य भी इसका हिस्सा हो गए। इसके बाद साल 2004 में सात और देशों ने भी नाटो की सदस्यता हासिल कर ली जिससे इस संगठन में सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 30 पहुँच गई।

नाटो की स्थापना करने की नौबत क्यों?

Russia Ukraine War News: सवाल उठता है कि आखिर नाटो की स्थापना करने की नौबत क्यों आई? असल में दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद यूरोप क़रीब क़रीब कंगाल हो गया था। जिसकी वजह से वहां आम लोगों की हालत बेहद ख़राब हो गई थी। लोग बेहद ग़रीबी में ज़िंदगी बसर करने को मजबूर थे। लेकिन हर लिहाज से संपन्न सोवियत संघ इस मौके का फायदा उठाना चाहता था।

सोवियत संघ ने तुर्की और ग्रीस पर कब्ज़ा करके पूरी दुनिया के कारोबार पर अपना नियंत्रण बना लेना चाहता था। ये सोवियत संघ की दूर की सोच थी जिसे अमेरिका ने पहले ही ताड़ लिया।सोवियत संघ अगर तुर्की पर कब्जा कर लेता तो काला सागर पर उसका एक छत्र राज होता। उसका एक दूसरा फायदा ये होता कि काला सागर से लगे दूसरे देशों पर भी वो अपने साम्यवाद का प्रभाव फैला सकता था।

Russia Ukraine War Live Update News इसके अलावा सोवियत संघ का ग्रीस पर कब्ज़ा होने की सूरत में भूमध्य सागर से होने वाले सारे कारोबार पर उसका दबदबा हो जाता। तब अमेरिका ने सोवियत संघ की इस चाल का तोड़ इस संगठन में शामिल होकर निकालने का फॉर्म्यूला तैयार किया। उस वक़्त अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन थे। लिहाजा नाटो में ट्रूमैन सिद्धांत की बड़ी मान्यता है।

क्या है ट्रूमैन सिद्धांत?

सोवियत संघ की विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए अमेरिका और नाटो ने जिस सिद्धांत के तहत मिलकर काम किया उसे ट्रूमैन सिद्धांत कहा जाता है। जिसमें सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के साथ साथ यूरोप के सभी देशों की मदद करना शामिल था।

सिद्धांत के तहत अमेरिका ने उन सभी देशों की हर मदद करने का फैसला किया था जो उस समय के साम्यवाद से ख़ौफ़ खाते थे। इस सिद्धांत के तहत हुए समझौते में ये तय पाया गया कि इस शामिल सभी सदस्य देशों की सुरक्षा का ध्यान रखना होगा। अगर किसी सदस्य देश पर कोई हमला करता है तो इसे नाटो पर हमला माना जाएगा और फिर सब मिलकर उससे मुकाबला करेंगे।

इसी सिद्धांत के तहत मार्शल स्कीम लागू की गई जिसकी वजह से तुर्की और ग्रीस को 400 मिलियन डॉलर की मदद की गई थी, बाद में उन्हें नाटो का मेंबर बनाया गया था। और यही वो सिद्धांत था जिसकी वजह से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध छिड़ गया था।

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