रूस (1989) और अमेरिका (2021): अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने की सबसे डरावनी तस्वीर

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रूस (1989) और अमेरिका (2021): अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने की सबसे डरावनी तस्वीर
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काबुल छोड़ जाते अमेरिकी सैनिकों की तस्वीर आज हर कोई अपने फ़ोन की स्क्रीन पर देख और शेयर कर रहा है. बच्चा बच्चा इसे देख और अपनी समझ के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान से आई तस्वीरों को सोशल मीडिया के कई प्लेटफॉर्म पर शेयर भी कर रहा है. साल 2021 का अगस्त का महीना शायद ही कभी अफ़ग़ानियों के दिलोदिमाग़ से निकाल पाए.

ऐसा इसलिए क्योंकि तालिबान एक बार फिर 20 साल बाद अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ाबिज़ हो चुका है. महिलाओं के ख़िलाफ़ किए गए उसके तुगलकी फ़रमान से आज पूरी दुनिया हैरान परेशान है. लेकिन फिर भी पूरी दुनिया ने मानो अफ़ग़ानिस्तान से मुंह फेर लिया है. एयरपोर्ट पर इधर-उधर भागते लोगों की तस्वीरों ने पूरी दुनिया के लोगों को बता दिया की तालिबान सरकार से अफ़ग़ानी किस कदर ख़ौफ़ज़दा और नफ़रत करते हैं.

ऐसा पहली बार नहीं है की अफ़ग़ानिस्तान से ऐसी तस्वीरें पहले कभी बाहर ना आई हों, सोवियत या आज के समय में जिसे लोग रूस के नाम से जानते हैं. सोवियत के अफ़ग़ान में क़ब्ज़े और छोड़े जाने के वक़्त की ऐसी कई तस्वीरें आपको आज के अमेरिका के काबुल छोड़कर जाने की याद दिलाएंगी.

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VIDEO: अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ जाते रूस (1989) और अमेरिका (2021) की तस्वीरें को सदियों तक देखा जाएगा और बस एक ही सवाल पूछा जाएगा की किस देश ने अफ़ग़ानिस्तान को कितना बर्बाद किया

अफ़ग़ानिस्तान इसलिए आया था रूस ( तब सोवियत संघ )

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20वीं सदी के आख़िरी दशकों में यानी साल 1979 का वो दौर जब अफगानिस्तान में युद्ध का एक नया अध्याय शुरू हुआ, जो आज तक जारी है. दरअसल सउर क्रांति के तहत अफ़ग़ानिस्तान की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने अफ़ग़ान राष्ट्रपति मोहम्मद दाऊद खान की हत्या कर दी. इसके बाद आंतरिक विद्रोह का सामना करने वाली सरकार को चलाने के लिए सोवियत ने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण कर दिया.

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लेकिन1989 में जैसे ही सोवियत संघ टूटा, रूस की सेना पीछे हट गई. अफ़ग़ान सेना को अमेरिकी नेतृत्व में विद्रोह का सामना करने के लिए छोड़ दिया गया. अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी का अनुमान है कि एक दशक तक चले युद्ध में करीब 15,000 से ज्यादा सोवियत सैनिक मारे गए. सोवियत संघ ने अफ़ग़ानों के साथ सलाहकार रखे और सेना को फंडिंग जारी रखी.

अमेरिका अफ़़ग़ानिस्तान क्यों आया ?

सोवियत के जाते ही तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ाबिज़ हो गया. इसी बीच अल-क़ायदा जिसे ओसामा लीड कर रहा था उसने अमेरिका पर 9/11 हमला किया और यहीं से अफ़ग़ानिस्तान में एक बार फिर विदेशी फ़ौज को आगमन हुआ.

दरअसल 9/11 हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज विलियम बुश ने तालिबान से अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन कि मांग की, जिसे तालिबान ने यह कहकर मना कर दिया कि पहले अमेरिका, लादेन के इस हमले में शामिल होने के सबूत पेश करे जिसे बुश ने ठुकरा दिया और अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे कट्टरपंथी गुटों के विरुद्ध युद्ध का ऐलान कर दिया गया. 7 अक्टूबर 2001 को बुश ने तालिबान के ठिकानों पर एयरस्ट्राइक की घोषणा कर दी.

बीस साल की इस लड़ाई में अमेरिका के क़रीब ढाई हज़ार सैनिक मारे गए. क़रीब दो लाख चालीस हज़ार अफ़ग़ान लोगों की भी मौत हुई. मिशन अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिकी ख़ज़ाने से 2 ट्रिलियन डॉलर का भार भी पड़ा.

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