तालिबान में 'बांटों और राज करो' की साज़िश कर रहा है पाकिस्तान!
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15 अगस्त को तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किया और तब से लेकर अब तक तीन हफ्ते से ज़्यादा बीत चुके हैं लेकिन अभी तक वहां नई सरकार के गठन की घोषणा नहीं हो पाई है, जानते हैं क्यों? क्योंकि तालिबान में फूट पड़ चुकी है। इस फूट का ज़िम्मेदार कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान है, क्योंकि पाकिस्तान नहीं चाहता है अफगानिस्तान की हुकूमत तालिबान के हाथ में हो। अफगानिस्तान में पाकिस्तान चाहता है हक्कानी नेटवर्क के नेतृत्व वाली सरकार। ज़ाहिर है वहां सरकार में हिस्सेदारी को लेकर तालिबान के अलग अलग गुटों के बीच संघर्ष छिड़ चुका है।
पाकिस्तान ने तालिबान में डाली फूट
हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क आपस में भिड़ गए हैं, और उनके बीच गोलीबारी तक हो रही है। इसमें तालिबान के सह-संस्थापक और भावी सरकार के मुखिया बताए जा रहे मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के घायल होने की बात भी कही गई थी। हालांकि तालिबान की तरफ से इस पर कोई बयान नहीं आया है। वहीं बरादर ने काबुल में संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात भी की। अफगानिस्तान में सत्ता के लिए चल रहे संघर्ष में बीच पाकिस्तान ने मौका देखकर एंट्री मार दी है, आइएसआइ प्रमुख फैज हामिद काबुल पहुंच चुके हैं, औऱ वो दोनों गुटों के बीच समझौत कराने का ढोंग कर रहे हैं।
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खबर है कि हक्कानी नेटवर्क समेत तालिबान के दूसरे धड़ों ने हिबातुल्ला अखुंदजादा को अपना नेता मानने से भी इन्कार कर दिया है। जबकि, तालिबान ने दो दिन पहले ही कहा था कि अखुंदजादा इस्लामिक अमीरात के सर्वोच्च नेता होंगे और उनके मातहत ही नई सरकार काम करेगी। ज़ाहिर है इन मतभेदों को सुलझाना आसान नहीं होगा, आपको बता दें कि हक्कानी नेटवर्क नार्दर्न तालिबान से अलग है।
इससे पहले तालिबान ने तीन सितंबर को अफगानिस्तान में नई सरकार के गठन की घोषणा की थी। लेकिन अभी तक सरकार का अता पता नहीं है। इस देरी की वजह सरकार में हिस्सेदारी को लेकर विभिन्न धड़ों के बीच गंभीर मतभेद बताया जा रहा है। इन मतभेदों को सुलझाना आइएसआइ प्रमुख के लिए भी आसान नहीं होगा, क्योंकि क्वेटा शूरा हक्कानी नेटवर्क से अलग है। वहीं हक्कानी नेटवर्क नार्दर्न तालिबान से अलग है। हालांकि तालिबान ने एक बार फिर कहा है कि जल्द ही नई सरकार का गठन कर दिया जाएगा। वहीं खबर है कि बरादर और हक्कानी नेटवर्क के अनस हक्कानी के बीच सत्ता संघर्ष उभरकर सामने आ गया है, दोनों के बीच पंजशीर सूबे के मसले को सुलझाने को लेकर भी गंभीर मतभेद हैं।
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मतभेद की जड़ है पाकिस्तान
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तालिबान के अलग अलग गुटों में इन मदभेदों के बीच आईएसआई प्रमुख हामिद अचानक काबुल पहुंचे, उनका मुख्य मकसद हक्कानी नेटवर्क की अगुआई में सरकार बनवाना है। जानकारों का मानना है कि हामिद ये सुनिश्चित करने काबुल आएं हैं कि अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व में अफगानिस्तान में सरकार नहीं बनने पाए।
हक्कानी नेटवर्क का नेतृत्व क्यों चाहता है पाक?
पाकिस्तान हक्कानी के नेतृत्व में अफगानिस्तान में सरकार बनवाने के लिए इसलिए आमादा है क्योंकि हक्कानी नेटवर्क आईएसआई की कठपुतली है। वहीं तालिबान ने साफ कर दिया है कि नई सरकार मुल्ला हिबातुल्ला अखुंदजादा के नेतृत्व में ही बनेगी। हालांकि सरकार को लेकर विभिन्न धड़ों के बीच संघर्ष पर तालिबान की तरफ से अभी कोई बयान नहीं आया है। इससे भी संदेह पैदा हो रहा है कि सबकुछ ठीक नहीं है। इस तरह की किसी खबर के आने के तुरंत बाद तालिबान की तरफ से बयान दिया जाता है।
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