Nithari Kand : अगर वो कॉलगर्ल गायब ना होती तो निठारी कांड का खुलासा आज भी नहीं हो पाता! पढ़िए सबसे चौंकाने वाली रिपोर्ट
Nithari Kand : अगर ये कॉलगर्ल गायब नहीं हुई होती तो शायद ही लापता हो रहे मासूम बच्चों का रहस्य आज भी नहीं सुलझ पाता।
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Nithari Kand : निठारी कांड के दोनों दोषी मोनिंदर सिंह पंढेर (Moninder Singh Pandher) और नौकर सुरेंद्र कोली (Surendra Koli) को दो मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है. नोएडा के साल 2006 वाले निठारी नरकंकाल कांड में नौकर सुरेंद्र कोली और डी-5 कोठी मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर को दो मामलों में इनकी फांसी की सजा रद्द कर दी है. अब हाईकोर्ट ने इन दोनों केस में सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को निर्दोष करार दिया है. असल में साल 2004 से 2006 के बीच निठारी से लापता बच्चों के मामले में जब 29 दिसंबर 2006 को खुलासा हुआ तब 19 मुकदमे दर्ज हुए थे. इसमें से 3 केस में सबूतों के अभाव में शुरुआत में ही क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई थी. इसके बाद से 16 मुकदमे चलाए गए. जिनमें से 13 केस में सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा मिली थी जबकि 3 में उसे बरी कर दिया गया था.
वहीं, मोनिंदर सिंह पंढेर को कुल 2 केस में फांसी की सजा हुई थी. जबकि एक केस में 7 साल की सुनाई गई थी और 4 मुकदमों में बरी कर दिया गया था. फांसी की सजा वाले केस में हाईकोर्ट में अपील की गई थी. ये अपील मोनिंदर सिंह पंढेर और नौकर सुरेंद्र कोली दोनों ने ही की थी. अब उसी में फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने पंढेर को दोनों केस में बरी कर दिया है जबकि कोली को भी एक केस में छोड़कर बाकी में राहत मिली है. एक केस कोली का अभी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है.
ऐसे एक कॉलगर्ल के राज से खुला था निठारी कांड
Nithari Kand Call Girl : नोएडा के निठारी की कोठी से एक कॉल गर्ल भी गायब हो गई थी. उसी की कॉल डिटेल से ये पूरा राज खुला था. लेकिन ये केस कैसे खुला था. आइए जानते हैं. बात 21 दिसंबर 2006 की रात लगभग 9:20 बजे की बात है। इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस की मदद से लापता कॉलगर्ल के गायब मोबाइल फोन का आईएमईआई नंबर (नंबर 355352003845870) चलने की जानकारी हुई। इस आईएमईआई नंबर को यूज करने वाले का पता लगाया गया। जानकारी मिली कि बरौला निवासी राजपाल उस मोबाइल फोन यूज कर रहा है। इस पते पर पुलिस की एक टीम पहुंची। उससे मुलाकात हुई। उसने बताया कि मोबाइल फोन में यूज किया हुआ सिमकार्ड मेरे नाम पर खरीदा गया है लेकिन उसका प्रयोग संजीव गुर्जर कर रहा है।
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पुलिस तत्काल संजीव के पास पहुंची। थोड़ी देर में ही उसके पास से मोबाइल फोन बरामद हो गया। पुलिस ने उससे कड़ाई से पूछताछ की। यह सोचकर अब पायल का कातिल उनके हत्थे चढ़ गया। लेकिन जब संजीव ने बताया कि उसने एक रिक्शे वाले से फोन खरीदा था तो पुलिस हैरत में पड़ गई। चूंकि रिक्शा वाला उस रास्ते से ही अपने घर जाता था। इसलिए उसके बारे में पुलिस को जानकारी मिल गई। आखिरकार, पुलिस रिक्शा चालक सतलरे के पास पहुंच गई। उसने पूछताछ में बताया कि पिछले महीने एक युवक उसके रिक्शे पर बैठकर सेक्टर-26 से निठारी सेक्टर-31 तक आया था। इस दौरान उसका मोबाइल फोन रिक्शे पर छूट गया। इसलिए उसे मैने अपसे रख लिया और बाद में बेंच दिया। इस तरह मोबाइल रखने वाले को लेकर सस्पेंस एक बार से बरकरार रहा।
दरोगा विनोद पांडे ने ऐसे निकाला था निठारी कांड का सुराग
Nithari Kand Vinod Pandey : लापता कॉलगर्ल के मोबाइल फोन में नवंबर में यूज किए हुए सिमकार्ड की जांच की गई। उसमें पता चला कि 1 से 27 नवंबर के बीच पायल के मोबाइल फोन में 9871215328 नंबर का यूज किया गया। इसे सेक्टर-31 निठारी निवासी सुरेंद्र कोली के नाम पर खरीदा गया है। घनी आबादी से घरे निठारी में इस नाम के युवक का पता लगाना आसान नहीं था। हुआ भी यही, पुलिस पता नहीं लगा पाई। तभी कॉल डिटेल में 27 नवंबर 2006 की सुबह 11:07 बजे से लेकर दोपहर 1:13 बजे के बीच 01202453372 नंबर से 11 बार हुई बातचीत पर पुलिस की नजर टिकी।
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इस नंबर को देख एसआई दारोगा विनोद पांडे चौंक गए। उन्होंने उस नंबर पर कॉल किया। शायद, पंढेर के ड्राइवर ने फोन रिसीव किया। सब इंस्पेक्टर को पता था कि कोई भी आसानी से कुछ नहीं बताएगा। इसलिए पुलिसिया शैली में पूछा कि, सुरेंद्र कोली खुद को बहुत शातिर समझता है। और भी गालियां…..। यह सुनकर ड्राइवर सहम गया। उसने कहा कि सुरेंद्र तो गांव अल्मोड़ा गया है। उससे घर का पता पूछा गया। उसने बता दिया सेक्टर-31 डी-5। इस तरह पुलिस को डी-5 कोठी के खिलाफ पायल को गायब कराने के पीछे पुख्ता सबूत मिल गए। यह बात है 24 दिसंबर 2006 की। पुलिस की एक टीम कुछ घंटे बाद ही कोठी पहुंची। वहां मोनिंदर सिंह पंधेर से मुलाकात हुई। पंधेर से पूछा गया कि कोली कहां है।
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वहीं, जवाब मिला कि वह गांव गया है। इसके बाद पंधेर को पायल के मोबाइल फोन और उसमें यूज किए हुए सिमकार्ड की जानकारी दी गई। यह जानकर पंधेर भी दंग रह गया। अब पुलिस ने नौकर सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार करवाने की जिम्मेदारी पंधेर के कंधों पर डाल दिया। पंधेर भी तैयार हो गया। पंधेर ने ही पुलिस को पहुंचाया था कोली के घर तक यह जानकार भी आप आश्चर्य में पड़ेंगे।
दरअसल, पंधेर ने ही सुरेंद्र कोली का पूरा पता दिया और अपनी एक लग्जरी गाड़ी भी पुलिस को दी। साथ में ड्राइवर भी। चूंकि वह ड्राइवर कोली के घर जाने वाले रास्तों से वाकिफ था। इसलिए पुलिस की एक टीम पंधेर की गाड़ी से अल्मोड़ा पहुंची। वहां से किसी तरह पुलिस ने उसे हिरासत में लिया और गाड़ी में बिठाकर नोएडा आने लगे। 25 दिसंबर की शाम सभी लोग नोएडा पहुंचे। इससे पहले रास्ते में ही पुलिस ने सुरेंद्र की अच्छी खासी पुलिसिया खातिरदारी की। लेकिन उसने कुछ भी नहीं बताया। नोएडा में उसे पंधेर के सामने खड़ा किया। फिर भी उसकी जुबां चुप थी।
इसके बाद पुलिस ने उससे कड़ाई से पूछताछ की. आखिरकार पुलिस टूट गई। लेकिन उसकी चुप्पी नहीं टूटी। उसके रवैये से पुलिस दंग रह गई। 27 दिसंबर भी निकल गया। आखिरकार, आखिरी दांव आजमाया गया. तब सुरेंद्र कोली की जुबां चली। जवाब दिया, हां मैने उस लड़की कॉलगर्ल को मार दिया। क्यों? सवाल पूछा गया। बताया- कि वो अक्सर पंधेर के पास आती थी। उसे मैने कई बार उत्तेजक स्थिति में देखा था। मुझसे भी काफी करीब से बातचीत करती थी। इसलिए पंधेर के नहीं होने पर फोन कर घर पर बुला लिया। वह आ भी गई। उससे सौदा किया। मेरे पास महज पांच सौ रुपये थे। लेकिन वह इतने कम रुपये में नहीं तैयार हुई। कई बार कहा। फिर भी नहीं।
आखिर कब तक सुनता। गुस्सा आ गया। बहाना बनाया चाय पिलाने का। उसे कुर्सी पर बिठा दिया। थोड़ी देर बाद कुछ लेेने के बहाने उसके पीछे आया और उसके दुपट्टे से ही गला घोंटने लगा। विरोध किया। लेकिन मेरे खौफ के आगे वह खामोश हो गई। इसके बाद उसके साथ सेक्स किया। वह काफी बड़ी थी इसलिए उसके शव को तीन भाग में कर कोठी के पीछे फेंक दिया। उसके पास रखा मोबाइल फोन अपने पास रख लिया। यह सब पता लगाने में 28 दिसंबर की शाम हो गई। 28 दिसंबर की रात में ही पुलिस कोठी के पिछवाड़े पहुंची। यहां पहले पायल की सैंडिल मिली। पुलिस को यकीन हो गया। उसने जो कहा वह सच है। मांस के लोथड़े भी मिले। इस दौरान तक एक गांव वाले ने देख लिया था। लेकिन रात होने की वजह से उसने भी कुछ नहीं कहा।
पुलिस ने भी रात में कोठी के पीछे ज्यादा खोजबीन करना मुनासिब नहीं समझा। यहीं पुलिस से चूक हुई। जिसके खामियाजे के रूप में पुलिस की वर्दी पर हमेशा के लिए ऐसा दाग लगा कि जिसे कभी भी मिटाया नहीं जा सकता। कभी भी नहीं। अगर पुलिस ने यहां तत्परता दिखाई होती और रात में खोजबीन करती तो 29 दिसंबर 2006 को नोएडा पुलिस का यह सबसे बड़ा गुडवर्क होता।
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