तालिबान भी आतंकी और शरिया कानून का पक्षधर, तो ISIS ने हमला क्यों किया?
Islamic state ISIS-K why attack on Taliban inside story
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अमेरिका ने तालिबान को चांदी की तश्तरी में रखकर अफ़ग़ानिस्तान गिफ्ट किया है. इस वजह से तालिबान अपने मूल मक़सद से हट गया. और फिर उसी का खामियाजा उसे भुगतना पड़ रहा है. काबुल में हुए दो आत्मघाती हमलों को लेकर एक्सपर्ट ने ऐसा दावा किया है.
बता दें कि काबुल में 26 अगस्त को हुए फिदायीन हमले में अब तक 170 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है. अभी भी दो सौ से ज्यादा लोगों के घायल हैं और उनका इलाज चल रहा है. मरने वालों में अमेरिका के 13 मरीन कमांडों भी शामिल हैं. इन बम धमाकों की जिम्मेदारी ISIS-K यानी इस्लामिक स्टेट के खुरासान ग्रुप ने ली है.
अमेरिका-तालिबान का गुप्त समझौता, बड़ी वजह
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BBC की एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि काबुल हमले के जरिए ISIS तालिबान की इमेज खराब करना चाहता है. उसे चैलेंज देना चाहता है. दरअसल, इसके पीछे सबसे बड़ी वजह अमेरिका और तालिबान के बीच साल 2020 में हुए गुप्त समझौते को बताया जा रहा है.
सवाल ये भी है कि जब हमले का अलर्ट 12 घंटे से भी पहले जारी कर दिया गया तब भी इस खतरे को टाला क्यों नहीं जा सका? जबकि चेतावनी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों ने जारी की थी.
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ऐसे में ये साफ है कि ISIS-K यानी इस्लामिक स्टेट खुरासान ने सीधे अमेरिका और तालिबान को चुनौती दी है. लेकिन चुनौती सिर्फ इन्हीं देशों के लिए नहीं रहेगी. आसपास के देशों में भी ख़तरे की आशंका बन सकती है.
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क्योंकि अब दो आतंकी संगठनों के बीच में सीधी जंग शुरू हुई है. ऐसे में पुराने दोस्तों के बीच भी जंग छिड़ सकती है. और ये जंग किस रूप में और कहां छिड़ेगी, इसे लेकर खुफिया एजेंसियां सतर्क हो चुकी हैं.
तालिबान ने शुरू की तैयारी
इस बीच, ख़बर आई है कि तालिबान को अब अपने ऊपर भी बड़े हमले का खतरा है. ऐसे में जिस तरह से काबुल में अस्थिरता आई है. उसे देखते हुए काबुल में तालिबान ने खासतौर पर सुरक्षा के लिए बदर 313 ब्रिगेड और फतह दस्ता बनाया है.
इन दस्तों को जगह-जगह अलर्ट किया है. लेकिन ये कितने कारगर होंगे, ये कह पाना मुश्किल है. क्योंकि ये लड़ाके हमले वाले दिन ही तैनात कर दिए गए थे लेकिन फिर भी दोनों आत्मघाती विस्फोट तय साजिश के तहत ही हुए.
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