NATWARLAL: ताजमहल, राष्ट्रपति भवन और संसद भवन तक बेचने वाला देश का सबसे बड़ा जालसाज़

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NATWARLAL: ताजमहल, राष्ट्रपति भवन और संसद भवन तक बेचने वाला देश का सबसे बड़ा जालसाज़
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NATWARLAL जिसने जज से मांग लिए थे रुपये

Shams ki Zubaani: ऐसा ही एक किरदार है नटवरलाल का। जिसकी जरायम की दुनिया में बड़ी इज़्ज़त है। जुर्म से नाता रखने वाले ये हिन्दुस्तान का इकलौता ऐसा किरदार होगा जिसके नाम और काम के चर्चे हदों को लांघते हुए सरहदों के पार निकल गए। और सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई मुल्कों में उसके कारनामों की कहानियां लिखी तक लिखी गईं।

एक क़िस्से से उसके कारनामों की कहानी शुरू करना ज़्यादा मुनासिब होगा क्योंकि उससे उसके तेज़ दिमाग़ और हाज़िर जवाबी का अंदाज़ा भी हो जाएगा।

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क़िस्सा कानपुर की एक अदालत का है। और बात 80 के दशक की है। जिस नटवरलाल के क़िस्से हम सब आंख नाक कान खोलकर सुनते हैं, वो उन दिनों कानपुर की जेल में बंद था और तारीख़ पर अदालत में पेश किया गया। उसके कारनामों की लंबी फेहरिस्त देखने के बाद जज साहब ने उससे पूछ लिया कि ये सब क्यों करते हैं। तुम्हें मुजरिम बनना अच्छा लगता है क्या? नटवरलाल उस वक़्त जज साहब की बात को सुनकर मुस्कुराया और बड़ी ही शालीनता और तमीज़ भरे लहजे में जज से कहा, माई लॉर्ड, क्या आपके पास एक रुपये का नोट है। अगर है तो क्या आप उसे मुझे दे सकते हैं, अगर ऐतराज़ न हो तो...और इसमें किसी तरह की कोई क़ानूनी अड़चन ना आ रही हो तो?

NATWARLAL इसलिए कहा गया जिसे ख़तरनाक

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Shams ki Zubaani: जज ने नटवरलाल की बात सुनी और अपने पर्स से एक रुपये का नोट निकालकर उसे थमा दिया। नटवरलाल ने वो नोट हाथ में लिया और फिर उसे जेब में रख लिया। और नोट को जेब में रखते ही जज से कहा। हूज़ूर बस मैं यही करता हूं। मैं किसी से उसकी सुविधा के मुताबिक कुछ मांगता हूं, और वो अपनी सुविधा के हिसाब से मांगी हुई चीज़ हमें पकड़ा देता है और मैं उसे अपने पास रख लेता हूं, बस इतने के लिए ही मुझे मुजरिम बना दिया जाता है।

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नटवरलाल का ये जवाब सुनकर न सिर्फ जज साहब मुस्कुराए, बल्कि अदालत में मौजूद हर शख्स खिलखिलाकर हंस पड़ा। हालांकि जज ने उसको रिहा नहीं किया लेकिन उसकी सज़ा में दी जा रही सख़्ती को थोड़ा कम ज़रूर कर दिया मगर अपने फैसले में ये लिखना नहीं भूले कि मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव वाकई बेहद तेज़ दिमाग़ और हाज़िर जवाब के साथ साथ बातचीच में माहिर भी है। इसलिए ये दूसरे अपराधियों के मुक़ाबले ज़्यादा ख़तरनाक है।

NATWARLAL यानी एक हुनरमंद चोर

Shams ki Zubaani: इस क़िस्से से नटवरलाल से तो आपका तार्रुफ हो गया। अब जब तार्रुफ़ की बात शुरु हुई है तो चलिए आपको नटवरलाल से पूरी तरह से मिलवा देते हैं ताकि ये अंदाज़ा हो जाए कि ये नटवरलाल क्यों दुनिया का सबसे ख़तरनाक और चालाक इंसान था और क्यों उसे ये नाम भी मिला।

1912 को बिहार के सीवान ज़िले के बंगरा गांव में मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव पैदा हुआ था। और छोटी सी ही उम्र में उसने अपने कारनामों की झलक दे दी थी। कोई बच्चा अच्छा गाता है, कोई अच्छा नाचता है, कोई खिलाड़ी बनकर नाम कमाता है तो किसी की हाथ में ऐसा हुनर होता है जिसे सभी दाद देते हैं और सराहते हैं। लेकिन मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव एक हुनरमंद चोर था, ऐसा हुनरमंद कि जिसकी चोरी करता था, वो भी उसकी तारीफ़ दिए बिना नहीं रह पाता था।

NATWARLAL पड़ोस से शुरू किया पहला जुर्म

Shams ki Zubaani: मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव की नटवरलाल बनने की शुरूआत उसके पड़ोस से ही हुई। हुआ ये कि जब वो छोटा था तो पढ़ने में काफी तेज़ था। एक बार मिथिलेश के पड़ोस में रहने वाले पड़ोसी ने एक चेक देकर उसे बैंक से भुनाकर लाने को कहा। वो सिर्फ दस रूपये का चेक था। उस चेक को देखकर मिथिलेश कुमार की आंखें चमक उठी,चेक में दस्तख़त को उसने बड़े ग़ौर से देखा।

चेक लेकर बैंक जाने से पहले मिथिलेश कुमार ने दस्तख़त की जमकर प्रेक्टिस की। और फिर जाकर बैंक से चेक भुना लिया। लेकिन उसके बाद मिथिलेश ने अगले कुछ दिनों में क़रीब दस बार बैंक के नक़ली दस्तख़त से 1000 रुपये निकाल लिए। इसका पता जब पड़ोसी को लगा तो उन्होंने बैंक में तफ़्तीश की तो पता चला कि नकली दस्तख़त वाले चेक से उसी मिथिलेश ने पैसे निकाले हैं। मगर ये देखकर बैंकवाले भी ताज्जुब करने लगे कि असली और नक़ली दस्तख़त एकदम हू ब हू थे।

NATWARLAL कोलकाता में सेठ को लगाई लाखों की चपत

Shams ki Zubaani: पड़ोसी ने मिथिलेश के इस कारनामे की जानकारी उसके पिता को दी तो पिता ने मिथिलेश की जमकर पिटाई की। जिससे रूठकर वो कोलकाता चला गया, जो उस समय कलकत्ता कहलाता था। कोलकाता में मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ने अपनी पढ़ाई पूरी की। वहीं मिथिलेश ने एक कॉटन कारोबारी सेठ के यहां नौकरी कर ली। उसके तेज़ दिमाग़ की बदौलत कारोबारी ने अपने बच्चे को ट्यूशन पढ़ाने के लिए उससे कह दिया।

सिलसिला यूं ही चलता रहा। एक रोज मिथिलेश ने अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए सेठ से कुछ पैसे उधार मांगे। लेकिन सेठ ने उसे पैदा देने से इनकार कर दिया। सेठ का वो इनकार मिथिलेश को अखर गया। उसके बाद उसने उस सेठ को रूई की गांठ की ख़रीद में उस वक़्त के साढ़े चार लाख रुपये की चपत लगाई। और वहां से निकल भागा।

NATWARLAL राजीव गांधी के नाम पर ठगी

Shams ki Zubaani: यहां से मिथिलेश कुमार ज़माने के लिए नटवरलाल हो गया। क़ानून की पढ़ाई कर चुके मिथिलेश कुमार को क़ानून की बारीक़ियों का अच्छी तरह अंदाज़ा हो गया था लिहाजा उसने क़ानून की उन्हीं कमज़ोरियों को अपना हथियार बनाया और बड़े बड़े नेताओं और बड़े नामचीन लोगों के नाम से सैकड़ों ठगी की वारदात को अंजाम दिया।

हालांकि जरायम की दुनिया में जब मिथिलेश कुमार उर्फ नटवरलाल नया नया ही था तभी उसने रेलवे के लोकोशेड से कई टन स्टील की चद्दरों का सौदा करना चाहा मगर कामयाब न हो सका। वो शायद ऐसा पहला ठग था जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लेकर ऐसी ठगी की जिसे सुनकर राजीव गांधी ने भी माथा पकड़ लिया था।

NATWARLAL ने दिया था घड़ी का ऑर्डर

Shams ki Zubaani: असल में उस वक़्त राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे जबकि उनकी केबिनेट में नारायण दत्त तिवारी वित्तमंत्री हुआ करते थे। नटवरलाल कनॉट प्लेस में एक मशहूर घड़ी की दुकान पर एक सफेद रंग की एंबेसेडर कार से पहुँचा, जिस पर लाल बत्ती लगी हुई थी और खुद का तार्रुफ नारायण दत्त तिवारी के पीए के तौर पर दिया।

वहां दुकान के मालिक से नटवरलाल ने कहा कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कैबिनेट की बैठक बुलाई है और उस बैठक में हिस्सा लेने वाले तमाम लोगों को एक एक घड़ी गिफ़्ट के तौर पर देना चाहते हैं। लिहाजा सबसे बेहतर घड़ी दिखाओ। नटवरलाल ने दुकान की सबसे बेहतरीन घड़ी को सलेक्ट किया और क़रीब 93 घड़ियों का ऑर्डर दे दिया।

अगले रोज घड़ियों को ले जाने के वायदे के साथ नटवरलाल उस रोज़ वहां से चला गया। अगले रोज वो दो एम्बेसेडर गाड़ियों के साथ आया और घड़ियों को लेने के साथ ही साथ वो दुकान के एक मैनेजर को अपने साथ ले गया और साउथ ब्लॉक चला गया। साउथ ब्लॉक में दफ़्तर के भीतर जाकर थोड़ी देर बात वो एक चेक लेकर लौटा। जिस पर 35,935 की रकम लिखी हुई थी।

NATWARLAL राष्ट्रपति को लिखी क़र्ज़ उतारने वाली चिट्ठी

Shams ki Zubaani: अगले रोज़ जब घड़ी की दुकान के मालिक ने चेक को बैंक में जमा किया तो पता चला कि वो चेक फ़र्ज़ी है। दुकानदार को समझते देर नहीं लगी कि वो ठगी का शिकार हो गया। इत्तेफ़ाक से दुकानदार ने नटवरलाल के क़िस्से भी सुन रखे थे।

क्या अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि जिस सीवान ज़िले से देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का रिश्ता था उसी सीवान से ही नटवरलाल ताल्लुक रखता था।

एक बार नटवरलाल को राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से मिलने का मौका मिला जब वो एक दौरे पर सीवान गए थे। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से मुलाक़ात करने के साथ ही नटवरलाल ने अपना हुनर भी दिखा दिया था। नटवरलाल ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के दस्तख़त हू ब हू करके उन्हें भी चौंका दिया था।

नटवरलाल की हिमाकत तो देखिये कि उसने भारत के राष्ट्रपति को एक चिट्ठी लिखी। जिसमें उसने साफ साफ लिखा था कि अगर भारत की सरकार उसका साथ दे तो वो देश का सारा कर्ज़ उतार सकता है। हालांकि उसकी इस चिट्ठी को कूड़े के डिब्बे में फेंक दिया गया था, मगर उसकी इस हिमाक़त का चर्चा उस वक़्त की सबसे बड़ी बात मानी जाती थी।

NATWARLAL राष्ट्रपति भवन, लाल क़िला, संसद भवन और ताजमहल बेच दिया

Shams ki Zubaani: एक ये भी इत्तेफाक़ ही था कि सीवान ज़िले से ही डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने ट्रेन पकड़ी और सियासत के रास्ते से होते हुए राष्ट्रपति भवन तक जा पहुँचे और प्रथम पुरुष कहलाए। जबकि उसी सीवान से नटवरलाल ने भी ट्रेन पकड़ी थी और उसने अपनी चालाक़ी से राष्ट्रपति भवन को बेच दिया था। और वो भी उस वक़्त के राष्ट्रपति के दस्तख़त से।

सबसे ज़्यादा हैरानी की बात ये है कि नटवरलाल ने सिर्फ फ़र्ज़ी तरीक़े से राष्ट्रपति भवन ही नहीं बेचा, बल्कि संसद भवन को भी बेच डाला था और वो भी उस संसद में मौजूद तमाम सांसदों के साथ। जिस वक़्त नटवरलाल ने संसद भवन का सौदा किया था उस वक़्त सदन चल रही थी और उसने सदन में मौजूद तमाम सांसदों के साथ संसद भवन का सौदा कर दिया था।

सिर्फ ससंद भवन और राष्ट्रपति भवन तक ही नटवरलाल की धोखाधड़ी सीमित नहीं थी, बल्कि उसने तो दिल्ली का लाल किला दो बार और आगरा का ताजमहल तीन बार बेचा।

NATWARLAL टाटा बिड़ला और धीरू भाई अंबानी तक को ठगा

Shams ki Zubaani: यूं तो नटवरलाल ने उस वक़्त देश का कोई भी बड़ा ऐसा नाम नहीं था जिसके नाम पर उसने फरेब की रसीद न काटी हो। टाटा बिड़ला या धीरू भाई अंबानी जैसे लोग भी उसके शिकारों की लिस्ट में शामिल हैं। असल में वो इन तमाम बड़े और नामी उद्योगपतियों से समाजसेवी के तौर पर मिलता। बातों का ऐसी चाशनी में उन्हें लपेटता कि मोटा चंदा देकर ही तमाम उद्योगपति उसे अपने यहां से जाने देते।

नटवरलाल यानी मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव पर देश के आठ राज्यों में ठगी के क़रीब 100 मामलों में 100 साल से ज़्यादा की सज़ा सुनाई गई थी। हालांकि नटवरलाल अपनी पूरी ज़िंदगी में सिर्फ नौ बार ही पुलिस की गिरफ़्त में आया, लेकिन आठ बार वो जेल से भागने में कामयाब भी हो गया था।

NATWARLAL 84 साल की उम्र में हुआ फ़रार

Shams ki Zubaani: एक बार उसने अदालत में जो कहा था उसका बयान बहुत मशहूर हुआ था। जज ने नटवरलाल से पूछा कि तुम्हें खुद पर इतना भरोसा कैसे हो जा ता है कि तुम लोगों को ठग लेते हो। और भाग जाते हो, क्या तुम क़ानून से भी बड़े हो। इस पर नटवरलाल ने जो जवाब दिया वो बहुत मशहूर हो गया। नटवरलाल ने कहा था कि मुझे अपनी बुद्धि पर इतना भरोसा था कि मुझे लगता था कि मैं कभी पकड़ा ही नहीं जा सकता। ये तो परमपिता परमेश्वर की मर्जी है। बाक़ी मैं नहीं जानता उसने मेरी क़िस्मत में क्या लिखा है।

कहते हैं कि नटवरलाल को जब आखिरी बार 24 जून 1996 में दिल्ली में देखा गया था उस वक़्त उसकी उम्र 84 साल की थी। और उसके पुलिसवालों को चमका देकर भागने का ये क़िस्सा भी कम मशहूर नहीं है। असल में कानपुर जेल में बंद हुए नटवरलाल को साढ़े तीन साल गुज़र चुके थे। और इस दौरान वो बिलकुल चल फिर नहीं पा रहा था।

NATWARLAL मौत तक को दी मात

Shams ki Zubaani: पुलिस ने उसके पैरों का इलाज भी करवाया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा तब उसने जेल प्रशासन को एक चिट्ठी लिखी कि उसके पैरों का इलाज़ अच्छे अस्पताल में करवाया जाए। जेल प्रशासन ने उसकी ये बात मान ली और उसे इलाज के लिए दिल्ली भेज दिया गया। इलाज के बाद वो व्हीलचेयर में बैठकर ही दिल्ली से कानपुर भेजा जा रहा था।

उस वक़्त उसके साथ तीन पुलिसवाले थे। स्टेशन पर उसने एक पुलिसवाले से सिरदर्द की गोली लाने को कहा। पुलिसवाला उसके लिए दवा लेने स्टेशन के बाहर चला गया। तब उसने दूसरे पुलिसवाले से चाय पिलाने को कहा। दूसरा पुलिसवाला चाय लेने चला गया तब उसने तीसरे पुलिसवाले से वॉशरूम जाने की इच्छा जताई।

जैसे ही पुलिसवाला उसे लेकर वॉशरूम की तरफ गया तो भीड़ में नटवरलाल अचानक न जाने कहां भीड़ में गुम हो गया। पुलिसवालों ने पूरा स्टेशन छान मारा लेकिन वो नहीं मिला। कहा तो यहां तक जाता है कि उसने दिल्ली स्टेशन से भागने का प्लान तीन साल पहले ही कानपुर जेल में ही बना लिया था और उसका चल न पाना असल में उसकी उसी प्लानिंग का हिस्सा भी था।

कहा जाता है कि नटवरलाल 1996 में ही एक हादसे का शिकार हो गया था, जिसके बारे में नटवरलाल के भाई गंगा प्रसाद श्रीवास्तव ने पुलिस को बताया था कि रांची में ही नटवरलाल का अंतिम संस्कार कर दिया था। लेकिन पुलिस महकमा इस बात को आज तक मानने को तैयार नहीं है।

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