जब पाकिस्तानी एजेंट को मारने के लिए भारत सरकार ने लिया दो-दो डॉन का सहारा

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जब पाकिस्तानी एजेंट को मारने के लिए भारत सरकार ने लिया दो-दो डॉन का सहारा
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मिर्जा को ठिकाने लगाने के लिए एजेंसियों ने उसके सबसे करीबी दोस्त बबलू श्रीवास्तव को ही हथियार बनाया। मिर्जा दिलशाद बैग का दबदबा नेपाल के उन हिस्सों में था जिनकी सीमा भारतीय राज्यों से लगती थी।

भारत से भागे अपराधियों को शरण देना, भारत से चुराई गई कारों को ठिकाने लगाना, पाकिस्तान से भेजे गए एजेंट्स के नेपाल में पासपोर्ट बनवाना और इसके अलावा नेपाल में आईएसआई के सेफ हाउस को सुरक्षा मुहैया कराना ।

मिर्जा के दो सबसे बड़े काम ये थे कि वो पाकिस्तानी एजेंट्स का फर्जी पासपोर्ट तैयार कराता था और दूसरे देशों से आने वाले हथियारों की सप्लाई भारत में किया करता था।

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दरअसल भारतीय विरोधी गतिविधियों में लगे लोग भारत से बाहर भागने के लिए दिलशाद बेग का ही सहारा लेते थे। वो पहले भारत से भागकर नेपाल पहुंचते । वहां दिलशाद बेग के आदमी उसका फर्जी नेपाली पासपोर्ट बनाते और उन्हें नेपाल से भगा देते ।

डी कंपनी के अलावा भारत में आतंकी घटनाओं में शामिल कई लोगों को भगाने में मिर्जा दिलशाद बेग ने उनकी मदद की। मुंबई अंडरवर्ल्ड के तमाम अपराधियों को शरण देने का काम भी मिर्जा किया करता था। कुल मिलाकर वो भारतीय एजेंसियों के लिए सिरदर्द बनता जा रहा था और एजेंसियां उसे कैसे भी अपने रास्ते से हटाना चाहती थीं।

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बेग का एक काम और था और वो था चोरी की गाड़िया खरीदना। 1990 के दशक में आने वाली लग्जरी कारों को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से कारें चुराकर नेपाल में दिलशाद बेग के गैराज पर पहुंचा दी जाती । मिर्जा चोरी की इन कारों को खुलेआम बेचता और न ही भारत और न ही नेपाल सरकार उसका कुछ बिगाड़ पाती।

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एक बार तो लखनऊ के एक एडीएम ने बेटी के दहेज में देने के लिए फिएट कार खरीदी थी। खरीदने के दस दिन बाद ही वो चोरी हो गई । जब पता किया गया तो पता चला कि वो नेपाल में मिर्जा के गैराज में खड़ी है। तमाम दबाव के बावजूद मिर्जा ने 25 हज़ार रुपये लेने के बाद ही एडीएम को उनकी चोरी की कार वापस करी। एक बार रेड डालने गई यूपी पुलिस की टीम को मिर्जा के आदमियों ने पकड़ लिया और बहुत पीटने के बाद छोड़ा।

यूपी पुलिस के लिए मिर्जा सिरदर्द बनता जा रहा था। यूपी पुलिस जानती थी कि बबलू श्रीवास्तव से मिर्जा के अच्छे संबंध हैं । पहले तो पुलिस ने खुद ही जेल में बंद बबलू को मिर्जा को ठिकाने लगाने की बात रखी लेकिन बबलू ने मना कर दिया।

इसके बाद यूपी के ही एक अफसर को बबलू को मनाने का जिम्मा दिया गया। बबलू इस अफसर को जानता था और उसके उससे घरेलू संबंध थे। इस अफसर ने बबलू से मुलाकात की देशहित का भी हवाला दिया । जिसके बाद बबलू ने हां कर दी।

इस काम के लिए बबलू ने अपने गैंग की सबसे तेजतर्रार महिला अर्चना शर्मा को चुना। बबलू ने अर्चना को नेपाल भेजा और मिर्जा को फोन कर के बताया कि अर्चना पर काफी केस चल रहे हैं और पुलिस उसे परेशान कर रही है लिहाजा कुछ दिन के लिए वो नेपाल में अर्चना के रहने का बंदोबस्त कर दे।

1 जून 1998 के आसपास अर्चना नेपाल पहुंच गई। मिर्जा ने उसे रहने की जगह मुहैया कराई लेकिन अर्चना ने जगह छोटी होने का बहाना बनाकर रहने की दूसरी जगह मांगी।मिर्जा ने अर्चना के लिए एक फ्लैट का इंतजाम किया और अर्चना वहीं पर रहने लगी। वहीं उसने एक टेलीफोन का कनेक्शन भी ले लिया और पास में ही एक एसटीडी बूथ भी था।

तब तक बबलू श्रीवास्तव के इशारे पर उसके शूटर भी नेपाल पहुंच चुके थे जिसमें फरीद तनाशा, मंजीत सिंह मंगे, सत्ते और दो-तीन लड़के और शामिल थे। एजेंसियों ने मिर्जा को ठिकाने लगाने के लिए छोटा राजन की भी मदद ली और राजन के भी शूटर मुंबई से नेपाल पहुंच चुके थे।

अर्चना शर्मा वैसे तो उज्जैन की रहने वाली थी लेकिन छोटी उम्र में ही घर छोड़कर मुंबई चली गई और वहां पर उसने एक ऑर्केस्ट्रा ज्वाइन कर लिया। उस वक्त ये ऑर्केस्ट्रा हिंदुस्तान का सबसे महंगा ऑर्केस्ट्रा था और इसके शो दुबई में भी हुआ करते थे।

दुबई में हीं अर्चना की पहचान इरफान गोगा से और इरफान गोगा के माध्यम से उसकी जानकारी बबलू श्रीवास्तव से हुई। बबलू के कहने पर ही अर्चना ने देश भर में हुई बड़ी-बड़ी किडनैपिंग की वारदात को अंजाम दिया।

अर्चना बेहद तेजतर्रार थी । बबलू ने उसे कहा था कि वो मिर्जा को शीशे में उतारे और किसी भी तरह वो उसे ऐसी जगह पर ले आए जहां पर शूटर उसका काम तमाम कर सकें। अर्चना ने बेग से काफी करीबी बढ़ाने की कोशिश की, कई बार उसे अपने घर पर भी बुलाया लेकिन मिर्जा बहाने बना देता था। अर्चना उसे अपने फ्लैट पर इस वजह से बुलाना चाहती थी कि वहां उसे ठिकाने लगाना आसान था।

अर्चना को नेपाल आए 25 दिन से ज्यादा का वक्त बीत चुका था लेकिन मिर्जा उसके झांसे में नहीं आ रहा था। ये बात अर्चना ने बबलू को भी बताई । इसके बाद बबलू ने मिर्जा को फोन किया और बोला कि अर्चना बेहद परेशान है और उसे इस वक्त सहारे की जरुरत है।

वो आपसे मिलना चाहती है लेकिन आप उसके पास जा ही नहीं रहे। मिर्जा बबलू श्रीवास्तव को काफी मानता था लिहाजा उसने बबलू को आश्वस्त किया कि वो अर्चना से मिलने जरुर जाएगा। इसके बाद अर्चना ने मिर्जा को फोन किया और उसे बताया कि उसने उसके लिए मटन बनाया है और उसे आज खाने पर आना ही होगा।

जब मिर्जा के आने की बात तय हो गई तो उसने ये बात उसकी ताक में बैठे शूटरों को भी बताई। तारीख थी 29 जून 1998। शूटरों को अर्चना ने बताया था कि वो अगर अपने घर की बालकनी में आ जाए तो समझ लेना की मिर्जा घर पर आ गया है। उस घर से बाहर निकलने के दो रास्ते थे । एक सामने से और दूसरा पीछे से । प्लान के मुताबिक जब मिर्जा अर्चना के घर से वापस जाएगा उसी दौरान उसे ठिकाने लगाया जाएगा।

तय वक़्त पर मिर्जा अर्चना के घर पहुंच गया। शाम का वक्त था, पहले तो दोनों बैठकर बातें करते रहे । इसके बाद अर्चना किचन में मिर्जा का खाना लाने के बहाने चली गई। किचन का एक दरवाजा घर की बॉलकनी में खुलता था।

मिर्जा को न जाने क्यों शक हुआ और जब उसने देखा कि वो किचन की बजाय बॉलकनी में चली गई है तो उसको मामला कुछ गड़बड़ लगा। अर्चना उसके लिए खाना लेकर पहुंची लेकिन वो जल्दबाजी में जाने की कहने लगा। अर्चना ने उससे जिद्द की वो खाना खाकर जाए लेकिन मिर्जा तेजी से सीढ़ियों से नीचे उतर गया । इस बार वो घर से बाहर आगे के नहीं बल्कि पीछे के रास्ते से गया।

मिर्जा के जाते ही अर्चना आगे वाले दरवाजे की ओर भागी जहां शूटर मिर्जा का इंतजार कर रहे थे। अर्चना ने उन्हें बताया कि मिर्जा पिछले रास्ते से निकल चुका है और वो ज्यादा दूर तक नहीं पहुंचा होगा। इसके बाद शूटर उस रोड की तरफ भागे जो रास्ता मिर्जा के घर के लिए जाता था। दो बाइक पर सवार चार लोग मिर्जा के घर के पास पहुंचे तो देखा कि मिर्जा अपने घर के दरवाजे पर है और अंदर दाखिल होने वाला है।

शूटरों की टीम में शामिल मंजीत सिंह मंगे को मिर्जा जानता था लिहाजा उसे रोकने के लिए मंगे ने मिर्जा को मिर्जा भाई की आवाज़ लगाई। मंगे की आवाज सुनकर मिर्जा रुक गया। वो मंगे के हालचाल पूछ ही रहा था कि वहीं पर मौजूद शूटर फरीद तनाशा ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरु कर दी और करीब सात से आठ गोलियां मिर्जा के जिस्म में उतार डालीं।

इस फायरिंग के दौरान मिर्जा का ड्राइवर भी मारा गया। मिर्जा को मारने के बाद सारे शूटर भारत भाग गए। इस ऑपरेशन के बाद से ही इस वारदात की सबसे अहम कड़ी अर्चना शर्मा गायब है जिसका आजतक कुछ पता नहीं है। कहा जाता है कि मिर्जा दिलशाद बेग के कत्ल के बाद बबलू श्रीवास्तव ने अर्चना शर्मा को भी मौत के घाट उतरवा डाला क्योंकि वो बबलू के कई राज़ जानती थी।

तो कुछ इस तरह से नेपाल में पाकिस्तान के सबसे बड़े मददगार बने मिर्जा दिलाशाद बेग को मौत के घाट उतारा गया । इसमें भारत सरकार ने एक नहीं बल्कि दो-दो गैंगस्टरों का सहारा लिया जिसमें बबलू श्रीवास्तव और छोटा राजन शामिल थे। बाद में छोटा राजन ने बेग की मौत का क्रेडिट भी लिया लेकिन इस पूरी वारदात की इनसाइड स्टोरी ये थी।

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