MBBS छात्र को भोपाल पुलिस ने बनाया क़त्ल का मुजरिम, 13 साल बाद हाईकोर्ट से बाइज़्ज़त बरी

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MBBS छात्र को भोपाल पुलिस ने बनाया क़त्ल का मुजरिम, 13 साल बाद हाईकोर्ट से बाइज़्ज़त बरी
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Latest Court News: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर ब्रांच ने एक फैसला सुनाकर सभी को बुरी तरह से चौंकाया है। हाईकोर्ट ने 13 साल पुराने मर्डर के एक मुजरिम को न सिर्फ बाइज्ज़त बरी करने का फैसला सुनाया बल्कि 4740 दिन जेल में गुज़ारने के एवज में 42 लाख रुपये का मुआवजा देकर मरहम से भरा हाथ भी रखा है।

ये सनसनीख़ेज़ क़िस्सा मध्यप्रदेश के उस मेडिकल छात्र का है, जिसे 13 साल पहले 26 अगस्त 2008 को अपनी गर्लफ्रेंड की हत्या के बाद उसकी लाश को पचमढ़ी के पास एक नदी में ठिकाने लगाने के इल्ज़ाम में गिरफ़्तार किया था।

ये क़िस्सा सनसनीखेज़ तो है ही। इसमें एक गहरी साज़िश भी छुपी है साथ ही सपनों के बिखरने की वो दास्तां है, जिसे सुनकर उसकी क़ीमत का अंदाज़ा शायद ही कोई लगा सके। हालांकि 13 साल जेल की सलाखों के पीछे अपने करियर और अपने सपनों को तिल तिलकर मरते हुए देखने वाले चंद्रशेखर मर्सकोले उर्फ चंद्रेश मर्सकोले बालाघाट में रहते थे और पुलिस ने उन्हें वहीं से गिरफ़्तार भी किया था।

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चंद्रेश मर्सकोले भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज यानी GMC से MBBS की पढ़ाई कर रहा था। पढ़ने लिखने में होशियार चंद्रेश के MBBS का फाइनल का इम्तिहान होने ही वाला था तभी पुलिस ने अपनी हथकड़ी में चंद्रेश और उसके घरवालों के तमाम सपनों को कैद करके कालकोठरी में डाल दिया।

Murder Story of MP: एक लड़की के क़त्ल के सच्चे क़िस्से में 2009 को MP पुलिस के आधे सच को अदालत ने सच मान लिया और चंद्रेश को उम्रक़ैद की सज़ा सुन दी थी। बताया जा रहा है कि पचमढ़ी के पास नदी से एक लड़की की लाश मिलने के बाद पुलिस ने उसके कत्ल का इल्ज़ाम उसके ही दोस्त के सिर मढ़ दिया और क़ानून की फ़ाइलों में बंद करके अदालत के सामने जो कुछ भी परोसा उसे ही सच मान लिया गया। पुलिस की इस अंधी चाल ने उस होनहार छात्र का रास्ता काट दिया जो अपनी काबिलियत के दम पर डॉक्टर बनना चाहता था।

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असल में चंद्रेश के ख़िलाफ़ पुलिस ने जो सबूत और सुराग इकट्ठा करके अदालत के सामने रखे वो चंद्रेश के एक सीनियर और GMC में एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर की गवाही के आधार पर तैयार किए गए थे। पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक़ GMC के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने खुद चिट्ठी लिखकर इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस को चंद्रेश के ख़िलाफ़ आरोप मढ़ा था। उस चिट्ठी के मुताबिक चंद्रेश ने ही अपनी प्रेमिका की हत्या करके उसकी लाश को एक कार में लेजाकर होशंगाबाद की एक नदी में ठिकाने लगा दिया था।

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Latest Court Story: तमाम उतार चढ़ाव से भरी क़त्ल और उम्रक़ैद के इस क़िस्से की शुरूआत होती है बालाघाट के रहने वाले चंद्रशेखर मर्सकोले से। बात साल 2009 की है तब तक चंद्रशेशखर मर्सकोले भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में MBBS के फाइनल इयर का छात्र था। हालांकि उससे एक साल पहले ही पुलिस उसे अगस्त 2008 में अपनी गर्लफ्रेंड के क़त्ल के इल्ज़ाम में गिरफ़्तार कर चुकी थी। लेकिन अदालत में अभी जिरह हो रही थी। चंद्रशेखर भी पुलिस के आरोप से घिरा था मगर मुजरिम नहीं बना था।

इसी बीच भोपाल में पुलिस महानिरीक्षक को एक चिट्ठी मिली। जिसमें क़त्ल का पूरा घटनाक्रम वैसा का वैसा दर्ज था जैसा पुलिस की तब तक की तफ़्तीश में सामने आया था। उस चिट्ठी के बाद पुलिस ने गर्लफ्रेंड की लाश को पचमढ़ी इलाके में एक नदी में ठिकाने लगाने की बात भी चंद्रेश के ख़िलाफ़ लगे आरोपों के साथ चिपका दी। अब पुलिस के पास चंद्रेश के ख़िलाफ़ मामला और पुख़्ता करने के लिए दफ़ा 302 के साथ सबूत मिटाने का भी संगीन आरोप मिल गया था। यानी अब पुलिस के पास इतना मसाला हो गया था कि वो मुलजिम को मुजरिम साबित करवा कर उसके ख़िलाफ़ सज़ा मुकर्रर करवा सकती थी। इस बीच चंद्रेश की कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। उसने बड़ी मिन्नतें की, मगर उसकी आवाज़ जज के कानों तक शायद नहीं पहुँच सकी। पुलिस की तैयारी मज़बूत थी और मुलजिम और उसकी पैरवी बेगुनाह होने के बावजूद कमजोर थे।

Bhopal Police MBBS Student: लिहाजा निचली अदालत ने पुलिस के दिए गए सबूत और सुरागों के साथ साथ गवाहों के बयानों ने और क़ानून की देवी की आंखों और कानों पर पूरी तरह से पट्टी बांध दी। और अदालत ने डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे उस होनहार छात्र को हमेशा हमेशा के साथ मुजरिम के तौर पर रहने के लिए काल कोठरी में भेजने का फैसला सुना दिया। महज़ गिरफ़्तारी के 11 महीनों के बाद ही चंद्रेश मुलजिम से मुजरिम बन चुका था और अदालत के उसके उम्रक़ैद के फैसले पर दस्तख़त करते ही उसकी आंखों के सामने उसका डॉक्टर बनकर अपने सपनों वाली ज़िंदगी जीने का सपना चकनाचूर कर दिया।

इस फैसले से चंद्रेश और उसके घरवालों की हिम्मत टूट गई थी। लेकिन बची हुई हिम्मत समेटकर चंद्रेश ने निचली अदालत के इस फैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील कर दी। क्योंकि चंद्रेश को पता था कि ये क़त्ल उसने नहीं किया है, लिहाजा उसने ठान लिया कि ये सच वो अदालत के सामने लाकर ही रहेगा। और वो ये बात भी समझने में कामयाब रहा है कि आखिर भोपाल पुलिस ने किस इरादे से उसे मुलजिम से मुजरिम करार करवाया है। लिहाजा अब वो अपना गवाह खुद ही बना।

Bhopal Police Story: हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच में जब इस मामले की दोबारा सुनवाई हुई तो निचली अदालत में हुई कार्यवाही और पुलिस की जांच पूरी तरह से तमाशा बन गई। हाईकोर्ट में जब भोपाल पुलिस की तफ़्तीश की फाइलों को पढ़ना शुरू किया तो क़त्ल के क़िस्से में झोल ही झोल नज़र आए। ये ऐसे झोल थे जो इस पूरे मामले की फिर से पड़ताल करने के हक़ में गवाही दे रहे थे।

लिहाजा अब फिर से कहानियों के झोल और उनसे उगे सवालों के आधार पर इस पूरे मामले की तहक़ीक़ात शुरू हुई...और उस गहराई से की गई पड़ताल ने पूरी कहानी ही बदल दी। और यहां तक कि क़त्ल का मुजरिम भी। नई तफ्तीश ने ये बात शीशे की तरह साफ कर दी कि जिस लड़की के क़त्ल का इल्ज़ाम जिसकी पुख़्ता गवाही के आधार पर चंद्रेश के माथे मढ़ा गया था, असल में वही सीनियर डॉक्टर खुद क़त्ल का आरोपी है।

उसका नाम है डॉक्टर हेमंत वर्मा। नई तफ़्तीश से ये भी बात सामने आई कि खुद को बचाने के लिए ही डॉक्टर हेमंत वर्मा ने चंद्रशेखर मर्सकोल को फंसाया था।

MP MBBS Student Acquitted: चंद्रशेखर मर्सकोल की उस याचिका पर निपटारा करते हुए जबलपुर बेंच के जस्टिस अतुल श्रीधरन और सुनीता यादव ने जिस टिप्पणी के साथ भोपाल पुलिस की बखिया उधेड़ी वो बेहद क़ाबिले गौर है। उन्होंने साफ साफ कह दिया कि ये तफ्तीश किसी भी लिहाज से जो कहानी कहती है ऐसी लचर तफ़्तीश इससे पहले शायद ही किसी ने देखी हो। भोपाल पुलिस की पड़ताल साफ इशारा करती है कि किसी को बचाने के मक़सद के किसी बेकसूर के सिर पर इल्ज़ाम मढ़कर उसे फंसाकर उसका जीवन तबाह कर दिया।

लिहाजा जबलपुर हाईकोर्ट ने याचिका पर फैसला सुनाते हुए बेक़सूर होते हुए भी 13 साल से उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे चंद्रशेखर मर्सकोल को बाइज्ज़त बरी कर दिया। इतना ही नहीं। मध्य प्रदेश की सरकार को भी आदेश दिया कि भोपाल पुलिस ने जो हरक़त की है उसका खमियाज़ा भी राज्य सरकार भरे और बेकसूर चंद्रशेखर को 42 लाख रुपये अदा करे।

जबलपुर हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए न सिर्फ चंद्रशेखर को फौरन रिहा करने का आदेश दिया बल्कि 90 दिन के भीतर मुआवज़े की रकम नौ प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करे। बेशक अदालत ने चंद्रेशखर को बेकसूर होकर भी 13 साल जेल में बिताने का मुआवजा दे दिया हो। लेकिन एक सवाल अब भी क़ायम है कि भोपाल पुलिस के जिन अफसरों और पुलिसकर्मियों ने एक बेकसूर को मुलजिम से मुजरिम बनाने का अपराध किया है, उन्हें कब और कैसे सज़ा मिलेगी? ताकि कोई बेकसूर दोबारा मुलजिम से मुजरिम न बनाया जा सके।

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