भूतों का स्कूल! जहां रात 12 बजे होती है "मॉर्निंग प्रेयर"

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भूतों का स्कूल! जहां रात 12 बजे होती है "मॉर्निंग प्रेयर"
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भूतों का ये स्कूल उत्तराखंड में है, इसे भूतो का स्कूल इसलिए कहा जाता है क्योंकि कई साल पहले इस जगह पर मरने वाले लोगों की आत्मायें छात्र और शिक्षक के रूप में नजर आती हैं। बात करीब 60-65 साल पुरानी है, यहां रहने वाला श्वेतकेतु नाम का एक व्यक्ति उस वक्त डर गया जब उसने रात के वक्त खंडहर हो चुकी एक इमारत में रोशनी देखी, जहां कुछ लोग पढ़ रहे थे और कुछ पढ़ा रहे थे।

उस रात आखिर ऐसा क्या हुआ था?

उस रोज़ श्वेतकेतु अपनी दुकान बंद करके देर रात घर लौट रहे थे तभी उन्हें अचानक बस्ती के पास ही एक जगह पर लाइट जलती हुई नजर आई, श्वेतकेतु ये देखकर हैरान रह गए क्योंकि उनकी बस्ती में तब लाइट ही नहीं थी और ना ही बिजली की लाइन। श्वेतकेतु हैरान थे कि एक ही दिन में उस बस्ती से दूर उस छोटे सी जगह पर लाइट की व्यवस्था कैसे हो गई? इस बात को जानने के लिए वो उस जगह पर पहुंच गए, उसके बाद उन्होंने वहां का जो नजारा देखा वो बहुत ही डरावना था। श्वेतकेतु ने देखा कि पुराने हो चुके उस खंडहर भवन में कुछ लोग पढ़ रहे हैं और कुछ लोग पढ़ा रहे हैं। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई स्कूल चल रहा हो, वे लोग बेहद डरावने लग रहे थे। उनकी आंखें बिल्लियों तरह चमक रही थी, वे आपस में चीखते और चिल्लाते हुए पढ़ और पढ़ा रहे थे।

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कैसे शुरु हुआ भूतों का स्कूल?

उस डरावना मंज़र को देखकर दिसंबर की ठंड में भी श्वेतकेतु को पसीना आ गया और वो वहां से डरकर भागने लगा। घर पहुंचकर उसने चैन की सांस ली, श्वेतकेतु जब अपने घर पहुंचे तो रात का ढाई बज चुका था। उन्होंने रात के वक्त में घर के किसी व्यक्ति ये सब बताना उचित नहीं समझा। सुबह होते ही उन्होंने सब बात अपने पिता को बताई, तब उनके पिता ने उनको जो कहानी सुनाई वो और भी अधिक चौंकाने वाली थी। उनके पिता ने उन्हें बताया कि साल 1952 में समाज सेवक एम. राघवन ने छोटे बच्चों के एक स्कूल को बनाने लिए चंदा इकट्ठा कर बस्ती से बाहर एक छोटा सा भवन बनवाया, ताकि बस्ती के छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई शुरु की जा सके।

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समाजसेवी एम.राघवन का ये सपना साकार हो गया, स्थानीय लोगों की आर्थिक सहयोग से स्कूल बनकर तैयार हो गया और उसमें पढ़ाई लिखाई भी शुरू हो गई। लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जो बहुत दर्दनाक था, श्वेतकेतु के पिताजी ने बताया कि उस दिन स्कूल का वार्षिक उत्सव था, स्कूल के सारे स्टाफ और छात्र-छात्राएं एनुअल फंक्शन की तैयारी में लगे थे। दोपहर बारह बजे के आसपास तीव्र गति का भूकंप आ गया और दुर्भाग्यवश स्कूल की छत धरासायी हो गई। जिसमें स्कूल के कई अध्यापक, कर्मचारी और बच्चे स्कूल की छत के नीचे दब कर मर गए।

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भूतों के स्कूल में होने लगीं अजीब घटनाएं!

उस हादसे के कुछ दिन बात स्कूल की छत की मरम्मत कर फिर से पढ़ाई शुरु कर दी गई, लेकिन भूकंप की उस दुर्घटना के कारण वहां होने वाली अकाल मौतों के बाद विद्यालय में अनहोनी घटनायें शुरू हो गईं। बताया जाता है कि एक बार उस स्कूल में एक बच्चा लंच कर रहा था, उस वक्त वो क्लास में अकेला ही था, तभी उस बच्चे को ऐसा लगा कि अचानक किसी ने उसका लंच बॉक्स उठाकर उसके सर पर दे मारा। इससे उसके सिर पर गहरी चोट आ गई, वह दर्द से चिल्लाने लगा और फिर उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया।

ऐसा ही कुछ एक दिन स्कूल के एक टीचर के साथ हुआ। टीचर क्लास में पढ़ा रहे थे तभी उन्हें लगा कि क्लास में कोई घुसा और उनके कंधे पर बैठकर उनके कान पकड़कर खींचने लगा। टीचर दर्द से कराहने लगे। ऐसी ही कई घटनाओं के कारण लोगों ने इस स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना बंद कर दिया, तब से लोग समझने लगे कि भूकंप के कारण स्कूल के मलबे में दबकर मर गये बच्चे और शिक्षक भूत बनकर स्कूल में रहते हैं और अब ये प्रेत आत्माओं के साए से घिर गया है। फिर धीरे-धीरे उत्तराखण्ड का वो भूतिया स्कूल खंडहर में बदल गया।

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