चंबल में डाकुओं का वो 'EXIT PLAN' जो कभी FAIL नहीं हुआ! सालों तक पुलिस को इस तरह चकमा देते रहे डाकू

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ऊपर जो तस्वीर आप देख रहे हैं, वो चंबल के बीहड़ों की वो खाईयां या यूं कहें कि ऊंचे नीचे गहरे रास्ते हैं जिन्हें खार कहते हैं। ये वही खार हैं जो सदियों तक चंबल में डाकुओं का 'EXIT PLAN' बना रहा है, एग्ज़िट प्लान इसलिए क्योंकि इन्हीं खार में कब कहां डाकू खो गए पुलिस को भनक तक नहीं लगती थी।

क्राइम तक की टीम जब यहां पहुंची तो हमने देखा कि इन खारों से भागना तो दूर यहां खुद को संभाल पाना भी किसी आम आदमी के लिए नामुमकिन है। तस्वीरों में आपको ये जो झाड़ियां नज़र आ रही हैं ये झाड़ियां दरअसल एक ट्रैप, एक ऐसा ट्रैप जिसमें कोई अगर फंस गया तो उसका बच कर निकाल पाना बेहद मुश्किल है। यही वो खार में जिसमें कई बार नामी डाकुओं ने पुलिस को चमका देकर उनके ऑपरेशन को नाकाम किया है।

यूपी से लेकर एमपी तक ये जंगल और खार यमुना नदी के साथ साथ चलता है, किसी अंजान शख्स के लिए यहां आना और इन खारों को समझना तकरीबन नामुमकिन है जब तक कोई जानकार इसके खतरे और इतिहास को समझाने वाला ना हो। लिहाज़ा हमने हमारे साथ एक ऐसे पुलिस अधिकारी को चलने के लिए राज़ी किया जो इन जंगलों इन खारों को बेहद नज़दीक से समझते हैं।

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नाम है राम नाथ यादव, जो डिप्टी एसपी के पद से रिटायर हुए और उन्होंने इन बीहड़ों इन खारों को नज़दीक से जाना है। सिर्फ जाना ही नहीं बल्कि इन इलाकों में उन्होंने करीब 32 से एनकाउंटर किए हैं और इतने ही डाकुओं को मारा भी है। बकौल राम नाथ यादव कहीं कहीं इन खार की गहराई 30 से 40 फुट गहरे भी होते। और इन खारों को डाकू ना सिर्फ मुश्किल वक्त में एग्ज़िट प्लान के तौर पर इस्तेमाल किए बल्कि कई मौकों पर वो अपने अड्डे भी खार की आड़ में बना लिया करते थे।

ऊंचे नीचे गहरे खार में भागना तो दूर खड़े रह पाना भी मुश्किल है लेकिन इतिहास में चंबल के अंदर जितने भी डाकू हुए वो ऐसा करने में माहिर थे। इसकी वजह भी है क्योंकि चंबल में ज़्यादातर डाकू गुर्जर या मल्लाह समाज से हुए जिनका बसेरा यमुना नदी के आसपास ही हुआ करते थे। इसके अलावा उनके गैंग में जो लोग शामिल होते थे वो भी इन इलाकों को नज़दीक से समझते थे। यही वजह है कि बीहड़ों में डाकुओं का एनकाउंटर करने के लिए पुलिस के कई प्लान फेल हो गए।

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