UP Election : देवबंद का वो 'रेशमी रुमाल' जिससे डरती थी पूरी अंग्रेज हुकूमत

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UP Election : देवबंद का वो 'रेशमी रुमाल' जिससे डरती थी पूरी अंग्रेज हुकूमत
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जूते सीधे कर दिए थे एक दिन उस्ताद के

उसका बदला ये मिला तक़दीर सीधी हो गई

मशहूर शायर डॉक्टर नवाज़ देवबंदी का ये इकलौता शेर गवाही दे देता है कि सहारनपुर ज़िले में एक विधान सभा सीट तक सिमटा हुआ देवबंद, आज कितनी आलिम और कितनी फ़ाज़िल हस्तियों की ज़मीन भी है, और वहां के लोग असल में क्या, कैसे और कितना सोचते हैं।

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यूं तो साढ़े आठ सौ साल पहले सहारनपुर शहर की बुनियाद रखी गई थी लेकिन इस शहर की पहचान आज भी पूरी दुनिया में न सिर्फ अलग है बल्कि इस्लाम के साथ साथ इंसानियत को सबसे आला मज़हब मानने वाली इस ज़मीन के लोगों को पूरी दुनिया में बड़ी इज्ज़त मिलती है।

दारुल उलूम देवबंद

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UP ELECTION: इसी शहर या ये भी कहें कि इसी ज़िले की हद में है दारुल उलूम देवबंद। जिसकी वजह से इस शहर को एक ख़ास दर्जा भी मिल जाता है...अब सवाल यही है कि आखिर ये देवबंद क्या है, कब बना और इसकी वो कौन सी ख़ासियत है जिसकी वजह से इसे इतनी अहमियत मिलती है।

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तो इस देवबंद को समझने के लिए वक़्त को थोड़ा पीछे लेकर चलते हैं और इसके छोटे से इतिहास पर नज़र डालते हैं जो अंग्रेज़ों के वक़्त शुरू हुआ था।

31 मई 1866 को एक अनार के पेड़ के नीचे एक मदरसा इस्लामिया अरबिया स्थापित किया गया था जिसे दारुल उलूम देवबंद कहा जाता है। इस मदरसे का उस वक़्त का मक़सद एकदम अलग था।

असल में क्या था मदरसे का मकसद?

CHUNAVI RANGBAAZ:असल में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जंग-ए-आज़ादी के लिए एक फौजी छावनी बनाई गई थी जिस पर शिक्षा का पर्दा डाल दिया गया था। और यहीं से शुरू हुआ था अंग्रेज हुकूमत की नाक में दम करने वाला ‘तहरीक ए रेशमी रुमाल’।

असल में ये एक ऐसी मुहिम थी जिसमें मदरसा इस्लामिया में पढ़ने वाले और पढ़ाने वाले सभी लोग अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लामबंद हो रहे थे।

क्या थी ‘रेशमी रुमाल साज़िश’

रेशमी रुमाल यानी देवबंद का वो रेशमी लाल रुमाल जिससे एक वक़्त समूची अंग्रेज हुकूमत थर्राने लगे थी। उस रुमाल पर लिखी इबारत से अंग्रेज़ों को हिन्दुस्तान में अपना सिंहासन हिलता महसूस होने लगा था। वो रेशमी रुमाल जिसे देखकर अंग्रेज़ों को कफ़न याद आ जाता था।

असल में इसके तहत रेशमी रुमाल पर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आज़ादी के परवानों के गुप्त संदेश लिखकर इधर से उधर पहुँचाए जाते थे, जिससे अंग्रेजी फौज को इस मुहिम से जुड़ी बातों और उनकी गतिविधियों की भनक तक नहीं लग पाती थी। बस इसी लिए अंग्रेज़ों ने इस मुहिम को ही रेशमी रुमाल साज़िश बताकर इसे देशद्रोह की कतार में लाकर खड़ा कर दिया था।

क्या ख़ासियत थी शेखुल हिंद की

ELECTION NEWS IN HINDI:देवबंद के जाने माने अध्यापक और संरक्षक दारुल उलूम देवबन्द मौलाना महमूद हसन उन सैनानियों में से एक थे जिनके कलम, ज्ञान, आचार व व्यवहार से बहुत लोग प्रभावित थे। उनकी इन्हीं विशेषताओं की वजह से इन्हें शैखुल हिन्द यानी भारतीय विद्वान की उपाधि से पहचान मिली थी।

उनका असर केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों तक जैसे अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, तुर्की, सऊदी अरब व मिस्र तक में था। जहां जाकर उन्होंने भारत में अंग्रेज हुकूमत का विरोध किया था। शेखुल हिन्द ने अफ़ग़ानिस्तान व ईरान की हकूमतों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यक्रमों में सहयोग देने के लिए तैयार करने में एक खास भूमिका निभाई थी।

भारत की पहली आज़ाद सरकार

साल 1914 में मौलाना उबैदुल्ला सिंधी ने अफ़गानिस्तान जाकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ मुहिम चलाई थी। इसी मुहिम में काबुल में रहते हुए भारत की पहली आज़ाद सरकार बनाई थी जिसका राष्ट्रपति राजा महेन्द्र प्रताप को बनाया गया था।

यहीं पर रहते हुए उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस की एक शाखा तैयार की जो बाद में साल 1922 में मूल कांग्रेस संगठन इंडियन नेशनल कांग्रेस में मिल गई। शेखुल हिन्द साल 1915 में हिजाज़ यानी सऊदी अरब गए थे। सऊदी अरब में रहते हुए शेखुल हिन्द ने अपने साथियों के साथ मिलकर तुर्की से संपर्क बनाया और उनसे सैनिक सहायता मांगी।

कहां से मिला रेशमी रुमाल का आइडिया

सऊदी अरब में तैयार हुई गुप्त योजना, बड़े ही गुपचुप तरीके से शेखुल हिन्द ने अपने सबसे ख़ास शिष्य मौलाना उबैदुल्ला सिंधी को अफगानिस्तान भेजी। मौलाना सिंधी ने इसका उत्तर एक रेशमी रूमाल पर लिखकर भेजा। और फिर तो दोनों के बीच रुमाल पर ही लिखी चिट्ठियों को आदान प्रदान शुरू हो गया।

रूमालों के ज़रिए बातों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना दूसरे किसी भी ज़रिए के मुकाबले ज़्यादा आसान थी और न पकड़े जाने की गारंटी। बस फिर क्या था...उसी गुप्त सिलसिले ने ”तहरीक ए रेशमी रूमाल“ की बुनियाद रख दी।

इस रेशमी रुमाल साज़िश के बारे में अंग्रेजी हुकूमतत के गवर्नर जनरल सर रोलेट ने लिखा है कि अंग्रेज हुकूमत इस रेशमी रुमाल की हरकतों से हक्का बक्का थी।

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