देश के सबसे लंबे चले एनकाउंटर में एक डकैत 400 पुलिसवालों पर पड़ रहा था भारी, तभी ऐसा कुछ हुआ कि बाजी पलट गई
Shams Ki Zubani : ये क़िस्सा उस एनकाउंटर का है जो इस देश ने लाइव देखा जो सबसे लंबा चला और 400 पुलिसवालों पर एक अकेला डाकू पड़ने लगा था भारी, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि बाजी पलट गई
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Shams Ki Zubani :डाकू और पुलिस के कई क़िस्से और कहानियां सुनी होंगी। ऐसे भी वाकये बेहिसाब सुने होंगे जब पुलिस ने डाकुओं को घेर लिया और दोनों तरफ से जमकर फायरिंग हुई जिसमें कई पुलिसवालों को गहरी चोट आई, या फिर एनकाउंटर में पुलिस वाले शहीद हो गए। लेकिन आज की कहानी एक ऐसे डकैत के एनकाउंटर की है जिसको मार गिराने में पुलिस को पसीना आ गया।
ये कहानी चंबल के ऐसे डाकू की कहानी है जिसके साथ कई चीजें जुड़ी हुई हैं। लेकिन सबसे हैरानी की बात ये है कि शायद ये चंबल का वो इकलौता डाकू होगा जिसका एनकाउंटर पूरे देश ने टीवी पर लाइव देखा था। इस डाकू के साथ पुलिस की वो मुठभेड़ पूरे 52 घंटों तक चली, और क़रीब 400 से ज़्यादा पुलिसवालों ने उस पूरे इलाके को कई घंटों तक घेरे रखा था। और इससे भी ज़्यादा हैरानी की बात ये है कि इस डाकू का एनकाउंटर करने के लिए उस घर के आस पास के घरों को जला दिया गया था जिस घर में वो डाकू छुपा हुआ था।
इस डाकू के बारे में ये बात पूरे चंबल में मशहूर है कि वो डाकू तभी बना जब उसकी बहन की आबूरू लुटने के बाद जब उसे इंसाफ नहीं मिला तो उसने बंदूक उठाकर चंबल का रुख कर दिया। वो डाकू था घनश्याम केवट।
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Shams Ki Zubani :घनश्याम केवट उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले के एक गांव में रहता था। साल 2003 में उसी के गांव के एक शख्स ब्रजभान सिंह ने घनश्याम केवट की बहन की आबरू लूट ली। अपनी बहन के साथ हुई ज़्यादिती के बाद घनश्याम ने पुलिसवालों से इंसाफ की फरियाद की, मगर पुलिस ने उसकी गुजारिश को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी।
कई दिनों तक पुलिस के चक्कर काटने के बाद घनश्याम को लगा कि अब पुलिस उसकी बात नहीं सुनेगी। इसी बीच उसने ये बात सुन रखी थी कि चंबल के डाकू ऐसे मुसीबत में फंसे लोगों को इंसाफ दिलाते हैं। तो उसने चंबल का रुख किया और वहां उस वक़्त का एक बड़ा डाकू था केशव। घनश्याम ने डाकुओं के सरदार केशव को अपनी बात बताई। केशव डाकू ने घनश्याम को अपने गैंग में शामिल कर लिया।
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Shams Ki Zubani : डाकू के गैंग में शामिल होने के बाद घनश्याम ने सबसे पहले उस शख्स की रेकी करनी शुरू की जिसकी बदौलत उसे चंबल का रुख करना पड़ा था। और पहला मौका मिलते ही अपने गैंग के साथ उसने उसके गांव पर धावा बोला अपने हाथों से पहला क़त्ल करके पूरी तरह से डाकू बन गया। पहला कत्ल करने के बाद घनश्याम अचानक खूंखार हो गया। लूट हत्या, डकैती, किडनैपिंग करने के मामले में घनश्याम का गिरोह पूरे चंबल इलाक़े में कुख्यात हो गया।
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कुछ अरसे बाद डाकुओं के सरदार केशव की मौत हो गई। तब घनश्याम के तौर तरीकों और उसके बागी चेहरे को देखते हुए गैंग ने उसे ही अपना सरदार मान लिया। गैंग की कमान हाथ में आते ही घनश्याम क़रीब करीब बेलगाम हो गया और उसके नाम का आतंक चंबल और उसके आस पास के इलाक़ों में हो गया।
लूट और हत्या के इसी सिलसिले में घनश्याम केवट का नाम पुलिस की नज़रों और डायरी में उस वक़्त चढ़ा जब उसने एक ही परिवार के चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया। घनश्याम का नाम इस बात के लिए बदनाम हो गया कि अगर उसने किडनैपिंग की और उसे फिरौती देने से किसी ने आनाकानी की तो वो उन लोगों को भी मारने लगा। इसकी वजह से घनश्याम के नाम की दहशत से पुलिस महकमा परेशान होने लगा था।
Shams Ki Zubani : घनश्याम केवट गैंग की ताबड़तोड़ वारदात की वजह से पुलिस ने उसके ऊपर 10 हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया। इनाम की घोषणा के बाद अब घनश्याम पुलिस की आंख कि किरकिरी बन चुका था। लिहाजा पुलिस ने उसे दबोचने के चक्कर में उसकी घेराबंदी में लग गई। एक बार चित्रकूट के पास पुलिस को मौका लगा भी और उसे घेरा भी लेकिन उस मुठभेड़ में चार पुलिसवालों की जान जाने के बावजूद घनश्याम पुलिस का घेरा तोड़कर भाग निकला।
इसके बाद एक बार फिर पुलिस ने घनश्याम को चंबल में घेर लिया था लेकिन शातिर दिमाग घनश्याम इस बार भी पुलिस को चकमा देकर भाग निकला। लेकिन इस बार जब मुठभेड़ में कुछ और पुलिसवालों की जान गई तो घनश्याम केवट पर इनाम दस हज़ार रुपये से बढ़कर 50 हज़ार रुपये हो गया।
घनश्याम केवट चंबल में लगातार खूंखार होता जा रहा था। और पुलिसवाले उसके पीछे हाथ धोकर पड़े हुए थे। मगर घनश्याम केवट पुलिस के हाथ नहीं आ रहा था। उधर घनश्याम केवट के गुनाहों की लिस्ट भी लंबी होने लगी थी। डाकू घनश्याम केवट और और पुलिस के बीच अब चूहे बिल्ली का खेल चलता रहा। वक्त बीता और साल 2009 आ गया।
Shams Ki Zubani : जून के महीने में पुलिस को अपने मुखबिरों से इत्तेला मिली कि घनश्याम केवट अपने साथियों के साथ इलाहाबाद के पास जमौली गांव के पास डेरा डालने वाला है। पुलिस ने फौरन ही पूरे इलाके की घेराबंदी करवा दी।
पुलिसवालों की टीम को पूरे इलाके की घेराबंदी के लिए तैनात कर दिया गया। इसके अलावा पुलिस ने अपने शॉर्प शूटरों को भी जगह जगह इस हिदायत के साथ तैनात कर दिया कि किसी भी सूरत में ये डकैत वहां से बचकर निकलना नहीं चाहिए। पुलिस एनकाउंटर की तैयारी कर ही रही थी उधर घनश्याम केवट को भी पुलिस की घेराबंदी की खबर लग गई।
घनश्याम जिस गांव में छुपा हुआ था वहां ज़्यादातर कच्चे मकान थे। लेकिन उसी गांव में एक पक्का दुमंजिला मकान था। घनश्याम ने फौरन उस मकान पर धावा बोला और मकान मालिक को घर से खदेड़कर उस मकान पर अपना कब्जा कर लिया। इस जल्दबाजी के चक्कर में घनश्याम केवट अकेला ही रह गया। उसके साथी गांव के दूसरे हिस्सों में ही रह गए।
लिहाजा घनश्याम केवट ने उस मकान की दूसरी मंजिल पर एक ऐसा कोना तलाश लिया जहां से बैठकर वो पूरे गांव पर नज़र रख सकता था। पुलिस को भी घनश्याम केवट के पक्के दुमंजिला मकान में छुपे होने की खबर लग गई। लिहाजा पुलिस ने मकान के चारो तरफ घेरा मज़बूत कर दिया। ये सब कुछ 16 जून की दोपहर हो रहा था।
Shams Ki Zubani : चारो तरफ घनश्याम को घेरने के बाद पुलिस ने उसे ललकारा और सरेंडर करने को कहा। थोड़ी देर तक खामोश रहने के बाद अचानक घनश्याम ने पुलिसवालों पर फायरिंग शुरू कर दी। डकैत की तरफ से हुई फायरिंग के बाद पुलिसवालों ने अपने कदम कुछ पीछे खींचे। दोपहर से शाम हो गई। लेकिन फायरिंग की आवाज़ से पूरा गांव दहलता रहा।
घनश्याम के पास पीने को पानी था और एक देसी राइफल के अलावा सैकड़ों कारतूस थे। ऐसे में वो अकेला घनश्याम कई पुलिसवालों पर भारी पड़ रहा था। एनकाउंटर जारी रहा। सूरज डूब गया तो अंधेरे में छिटपुट फायरिंग की आवाज के बीच जैसे तैसे गांववालों की रात कटी। अगले दिन सुबह से ही फायरिंग का सिलसिला शुरू हो गया।
घनश्याम को लगातार पुलिस पर फायरिंग करता देख पुलिस अफसरों को लगा कि उनके पास मौजूद पुलिस की गिनती इस डाकू का मुकाबला करने में पूरी तरह से सक्षम नहीं होगी लिहाजा पुलिस अफसरों ने आस पास के तमाम थानों की पुलिस को मौके पर आने को कहा और पूरा इलाक़ा घेरने की सख्त हिदायत दे दी।
देखते ही देखते पांच ज़िलों की पुलिस फोर्स ने उस गांव का रुख किया जहां पुलिस की एक टीम अकेले डाकू घनश्याम की गोलियों का सामना कर रही थी। ये खबर उत्तर प्रदेश पुलिस के कई सीनियर अफसरों तक भी पहुंची और उन्होंने भी उसी जमौली गांव का रुख किया। जहां पिछले 30 घंटे से गोली बारी चल रही थी।
Shams Ki Zubani : करीब 400 पुलिसवालों की पूरी बटालियन ने उस गांव को घेर लिया। हैरानी की बात ये थी कि गोलियां लगातार चल रही थी। और वो भी दोनों तरफ से। पुलिसवालों ने एहतियात के तौर पर पूरा गांव खाली करवा लिया। दूसरे दिन यानी 17 जून को दिन भर की गोलीबारी में चार पुलिसवालों की जान भी जा चुकी थी। जबकि तीन बुरी तरह से घायल हो चुके थे।
इसी बीच देखते ही देखते उस गांव में पुलिसवालों के साथसाथ मीडिया के ओबी वैन भी वहां पहुँच गए। और अब पूरा एनकाउंटर टीवी पर लाइव चलने लगा। सुबह से शाम और फिर रात भी आ गई। लेकिन एनकाउंटर खत्म नहीं हुआ। 18 जून की तारीख आ गई। और 36 घंटों से ज़्यादा वक़्त तक एक अकेला डाकू 400 पुलिसवालों पर भारी पड़ता दिखाई पड़ रहा था।
टीवी पर चले एनकाउंटर की वजह से जब पुलिस की इज्जत पर आंच आनी शुरू हुई तो पुलिस के आला अफसरों ने एक खतरनाक फैसला किया और जिस मकान में घनश्याम छुपा हुआ था उसके आस पास के कच्चे मकानों में आग लगा दी गई। गरज ये कि आग से घिरा होने के बाद जैसे ही घनश्याम बाहर निकलेगा उसे गोली मार दी जाएगी।
करीब 8 घंटे तक घनश्याम लगातार गोलियां चलाता रहा और पुलिसवालों को मुकाबला करता रहा। आठ घंटे के बाद घरों में लगी आग खुद ब खुद बुझ गई। मगर घनश्याम पुलिस के हाथ नहीं लगा। आठ घंटे के बाद फिर भी गोलियां चल रही थीं। 18 तारीख भी गुजर जाती है।
Shams Ki Zubani : यानी पूरे ढाई दिन एनकाउंटर होते हुए गुज़र चुके थे। न्यूज चैनल पर अब भी एनकाउंटर चल रहा था। पुलिस अपनी नालायकी और एक अकेले डाकू के हौसले से परेशान हो चुकी थी। 19 जून की शाम होने को थी। और एनकाउंटर को पूरे 52 घंटे हो चुके थे। और इन 52 घंटों के दौरान एक बार फिर घनश्याम पुलिसवालों से कमज़ोर नहीं पड़ा। सोचने वाली बात है कि एक डकैत के पास पुलिस से मुकाबला करने के लिए कितने कारतूस रहे होंगे।
लेकिन 19 तारीख को शाम होते होते घनश्याम के पास कारतूस खत्म होने लगे थे। तब घनश्याम ने शाम को और गहराने का इंतजार किया और हल्का अंधेरा होते ही उसने उसी मकान की दूसरी मंजिल से एक लंबी छलांग लगाई ताकि मकान से दूर गिरे। छलांग लगाकर मकान से बाहर निकलते ही घनश्याम ने दौड़ लगा दी।
Shams Ki Zubani : मगर पूरा इलाक़ा पुलिस ने पहले ही घेर रखा था। लिहाजा वो ज़्यादा दूर तक नहीं जा सका और पुलिस से आमने सामने का मुकाबला करने के लिए वो खेत में घुस गया। करीब एक घंटे तक हुई फायरिंग के बाद गोली चलना बंद हो गई। अंधेरा हो चुका था लिहाजा पुलिस ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया। तो उन्हें एक खेत के पास गोलियों से छलनी घनश्याम की लाश मिल गई।
यानी पूरे 52 घंटे तक 400 पुलिस वालों से मुकाबला करने वाला घनश्याम केवट अब मारा जा चुका था लेकिन मरने से पहले वो चार पुलिसवालों की जान ले चुका था और तीन पुलिसवालों को जिंदगी भर का निशान दे गया। ये देश का शायद सबसे लंबा एनकाउंटर था जिसमें 52 घंटों के दौरान अंदाज़न 10 हज़ार राऊंड गोलियां चलीं। हालांकि गोलियों की गिनती की पुष्टि नहीं की जा सकी।
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